परमेश्वर की आवाज सुनना

परमेश्वर की आवाज सुनना
परमेश्वर की आवाज सुनने की कुन्जी बाइबल में याकूब 4ः 8 में पायी जाती है। परमेश्वर के निकट आओ तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा। वह आप से व्यक्तिगत बात करना चाहता है तथा आपको भी व्यक्तिगत रूप से उसकी बात सुनना चाहिए (यूहन्ना 10ः 3-5)। परमेश्वर के निकट आने पर वह आपके लिये वार्तालाप एवं संगति का द्वार खोलता है। उसकी इच्छा है कि आपको शिक्षित करे। (भजन संहिता 32ः 8) सत्य के मार्ग पर ले चले और भविष्य की बातें बतलाए। (यूहन्ना 16ः 13-15)

परमेश्वर आपसे पवित्र आत्मा के द्वारा बाते करता है (यहेजकेल 36ः 27; यूहन्ना 14ः 16-17)। प्रभु यीशु उसे सलाहकार कहते हैं। सलाहकार यूनानी शब्द ‘पेराक्लीटोस’ है जिसका अर्थ किसी के सहायता हेतु साथ चलना। इसका अर्थ तसल्ली देने वाला, सामर्थ देने वाला, सहायक, सलाहकार, मध्यस्थ एवं मित्र आदि भी हैं। हमें पवित्र आत्मा की आवाज पर विष्वास करने से नहीं डरना चाहिए। हम स्मरण रखें कि वह परमेश्वर के गुणों से बाहर नहीं जाता तथा परमेश्वर के वचनों से तालमेल रखता है। वह आपका मित्र है जो आपके साथ चलने एवं वार्तालाप करने हेतु बुलाया गया है। उसकी मित्रता चुप्पी वाली नहीं है। (भजन संहिता 28ः 7; 37ः 3; यूहन्ना 12ः 49; 14ः 26)
परमेश्वर आपको निर्देश और आपके प्रश्नों का उत्तर देना चाहता है। (भजन संहिता 21ः 2; 119ः 169) आप किसी व्यक्ति पर अपने सुनने हेतु आश्रित नहीं हो सकते कि वह आपके बदले में परमेश्वर की आवाज सुने। यह उसके साथ समय बिताने वाले के लिये प्रतिदिन की साघारण घटना है। आप इसे परमेश्वर के वचन पढ़ने, मनन करने एवं स्मरण करने से कर सकते हैं। (यहोशू 1ः 8; भजन संहिता 119ः 11,16) तब जब आप उसकी आवाज सुने, आप जान लेंगे क्योंकि यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप होगा। 

जितना अधिक आप परमेश्वर के वचनों को जानेंगे उतने ही ज्यादा आप उसके गुण एवं तरीकों को समझ पाएंगे। (निर्गमन 33ः 13; भजन संहिता 25ः 4; 103ः 7; होशे 4ः 6)

आप पवित्र आत्मा की आवाज सुन रहे हैं या नहीं इसके परीक्षण का एक तरीका है। क्या आवाज आपको घीरे से किसी दिशा में ले जा रही है ? या कठोरता से आज्ञा दे रही है ? परमेश्वर की आवाज शांति से मार्गदर्शन, उत्साह और आशा देती है। (भजन संहिता 18ः 35; यशायाह 40ः 11; याकूब 3ः 17) परमेश्वर ले चलता है परन्तु शैतान ढकेलता है। परमेश्वर अपराघ माफ करता है लेकिन शैतान दोशी ठहराता है तथा आत्मग्लानि पैदा करता है। परमेश्वर थपथपाता है परन्तु शैतान जोर से दबाता है। जब परमेश्वर बोलता है तो भय से प्रेरित नहीं करता। यदि हम भयभीत हो जाएं तो समझिये कि शैतान बोल रहा है परमेश्वर नहीं। (2 तिमुथियुस 1ः 7; यूहन्ना 10ः 4; भजन संहिता 8ः 1-2)
हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान करके सुन और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आँखो से ओझल न होने दे, वरन अपने मन में घारण कर। (नीति वचन 4ः 20-21)

सुनना - मध्यस्थता का महत्वपूर्ण हिस्सा
शैतान के गढ़ों, शत्रु की युद्ध प्रणाली एवं प्रार्थना रणनीति बताने का मौका पवित्र आत्मा को दीजिए। वचन हमें सचेत रहने और हमेशा निगरानी करते रहने की आज्ञा देता है। उसकी आवाज को पहिचानें और संवेदनशील होकर जब भी वह बोले या उत्तर दें, तत्काल प्रतिउत्तर दें।
कभी-कभी परमेश्वर शांत रहता है। जब यह होता है तो उलझन होती है। परन्तु विश्वास से इन्तजार करें। अपने को शत्रु के अविश्वास के जाल में फंसने न दे। (1 पतरस 4ः 8-9; इब्रानियों 4ः 11) इन्तजार करते समय परमेश्वर की विश्वास योग्यता एवं अन्य सकारात्कम गुणों पर केन्द्रित रहें। (भजन संहिता 33ः 18; 36ः 5; 37ः 7,34; 143ः 1; विलापगीत 3ः 25-26; फिलिप्पियों 4ः 8)
परमेश्वर के लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसकी आवाज सुनना कठिन है या यह केवल आत्मिक और परिपक्व लोगों के लिये ही है। अपने माता-पिता की आवाज अबोध बच्चा भी सुनकर पहचान लेता है। ऐसा ही संबंध 

परमेश्वर और उसकी संतान के साथ भी है ।
उसके साथ अघिक समय बिताने पर उसकी आवाज एक बच्ये के समान स्पष्ट पहचानी जा सकती हैं। जैसे-जैसे बच्चा परिपक्व होता है, बातचीत करने में ज़्यादा निपुण हो जाता है। आपको राजाओं के राजा को सुनने हेतु समय बनाना है तथा एकाग्रचित होकर जो वह बोलता है उसे सुनना है।

प्रभु यीशु ने अपना वचन दिया कि उसकी भेड़े उसकी आवाज सुनती हैं। आप उसकी एक भेड़ हैं और जब तक आप उस झुन्ड के भाग हैं आप उसकी आवाज सुनेंगे।

मेरी भेड़े मेरा शब्द सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। (यूहन्ना 10ः 27)
जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है और तुम इसलिये नहीं सुनते कि तुम परमेश्वर की ओर से नहीं हो। (यूहन्ना 8ः 47)

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