पाप स्वीकृति

पाप स्वीकृति
निम्न पवित्र वचन का अवलोकन करें।
सुनो परमेश्वर का हाथ इतना छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके न ही बहरा हो गया कि सुन न सके, परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुंह तुमसे ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता। (यशायाह 59ः 1-2)

फलवंत जीवन के लिये सबसे बड़ी रूकावट हमारे छुपे हुए पाप । अधर्म के कामों के कारण हमारी प्रार्थना सुनी नहीं जाती। मध्यस्थता या निवेदन करने के पूर्व अपने पाप मानना जरूरी है ताकि हमारी प्रार्थना उसके कानों को प्रिय लगे।
आप अपनी ताकत एवं सामर्थ से पवित्र नहीं बन सकते परन्तु परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा आपके पापों पर प्रकाश डालता है ताकि आप अपना पाप मान लें।

अपने प्रार्थना के दौरान थोड़ा रूककर पवित्र आत्मा से पूछें कि क्या कुछ बातें बाकी हैं जिनकी पाप स्वीकृति जरूरी है। इस समय अपने उत्तर से उसकी प्रतिक्रिया मालूम करें।

हे परमेश्वर मुझको जांच और परख, मेरे मन एवं ह्नदय को परख क्योंकि तेरी करूणा तो मेरी आंखों के सामने है और मैं तेरे सत्य पर चलता रहा हूँ। (भजन संहिता 26ः 2-3)

एक बार जब आपने अंधकार के क्षेत्र को परमेश्वर के वचन के उजाले में लाकर पश्चाताप किया है तो आप किसी भी प्रकार पलट कर न देखें। जब एक पाप अंगीकार किया गया है तब आप जाने कि वह प्रभु यीशु के रूधिर से ढ़ापा गया है तथा परमेश्वर उसे कभी स्मरण नहीं करता। कभी भी पिछले पापों को याद नहीं करें जो प्रभु यीशु के रूधिर में ढ़ापे जा चुके हैं। परमेश्वर उन्हें समुद्र की गहराईयों में दफन कर उन्हें भूल गया है।

यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वास योग्य और धर्मी है। (1 यूहन्ना 1ः 9) मसीह ने स्वतंत्रता के लिये हमें स्वतंत्र किया है सो इसी में स्थिर रहो और दासत्व के जुएं में फिर से न जुतो। (गलतियों 5ः 1)

यदि हम कहें कि उसके साथ हमारी सहभागिता है फिर भी अंघकार में चलें तो हम झूठे हैं और सत्य पर नहीं चलते। पर यदि जैसा वह ज्योति में है वैसे ही हम भी ज्योति में चले तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। (1 यूहन्ना 1ः 6-7)

वह फिर हम पर दया करेगा और हमारे अधर्म के कामों को लताड़ डालेगा। तू उनके सब पापों को गहरे समुद्र में डाल देगा। (मीका 7ः 19)

शैतान से बेखबर न रहें, आपके द्वारा पूर्व में किये पापों का स्मरण करा कर आपको दोषी सिद्ध करना उसकी एक चाल है। उसकी इच्छा है कि आपके विवेक को दोशी ठहराकर आपको प्रार्थना, प्रशंसा तथा उसके गढ़ों को ढ़ाने से दूर रखे। युद्ध स्थल आपका विवेक है।

4. क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं पर गढ़ों को ढ़ा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। 5. सो हम कल्पनाओं और हर एक ऊँची बात को जो परमेश्वर की पहिचान के विरोघ में उठती है उसका खंण्डन करते हैं, और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। 6. और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने को दण्डित करते हैं। (2 कुरिन्थियों 10ः 4-6)

परमेश्वर की शांति से जो प्रभु यीशु के द्वारा है अपने हृदय एवं विवेक को प्रतिदिन सुरक्षित करें। यदि हमारा मन हमें दोशी ठहराए तो हम विश्वास से नहीं मांग सकते। हम दो चित्ते हैं तथा आत्मविश्वास से प्रार्थना नहीं कर सकते। (याकूब 1ः 6) विवेक की शांति निरंतर प्रार्थना से आती है।

किसी भी बात की चिन्ता मत करो परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किये जाएं। 7. तब परमेश्वर की शांति जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी। (फिलिप्पियों 4ः 6-7)

जब आप पाप मानते हैं तब यह जानिये कि क्षमा पाने हेतु भावनात्मक अनुभव नहीं चाहिये। पहले मांगिये तब परमेश्वर के वचन पर विश्वास करके ग्रहण करिए, जैसा उसने कहा है वह वैसा ही करेगा क्योंकि वह क्षमा करने में विश्वास योग्य एवं घर्मी है। (1 यूहन्ना 1ः 9)

Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?