परमेश्वर की आवाज सुनने का अभ्यास

परमेश्वर की आवाज सुनने का अभ्यास
कल्पना करें कि किसी ने आपसे पुरूष, स्त्री तथा घर शब्द कहे। अपने मस्तिष्क के चित्रपट पर आप शब्द पु-रू-ष नहीं देख पाएंगे आप पुरूष स्त्री या घर का चित्रण अंकित पाएंगे। अब यदि हम उन्हीं शब्दों को मेरे पिता, मेरी माँ और मेरा घर में बदल डाले तो यही शब्द आपके मस्तिष्क में अलग तस्वीर बनायेगा। अब तस्वीर बिल्कुल भिन्न है।
अपने मित्र के साथ बिताए हुए एक स्मरणीय अनुभव को पुनः स्मरण करें। आप शब्दों को नहीं देखते परन्तु एक वास्तविक अनुभव जो आपके मस्तिष्क में एक अमिट छाप बन गया है, जो कुछ किया गया या कहा गया आप उसे देख या सुन सकते हैं। आप यथार्थ में देख या सुन नहीं रहे हैं परन्तु, चूंकि वह व्यक्ति आपका घनिष्ट है तथा अनुभव इतना गूढ़ है कि आप उसे बार-बार दुहरा सकते हैं।

ऐसा प्रभु के साथ भी है। जब भी मनन करते हैें तो आप भी उसे देख एवं सुन सकेंगे तथा उसे और अच्छी तरह से जान सकेंगे, उस व्यक्ति से अघिक जिसे आप सम्पूर्ण विष्व में सबसे अघिक प्यार करते हैं। इस प्रकार यह सम्बन्घ सच में प्रभु यीशु के साथ निजी एवं प्यारे रिष्ते में विकसित हो जाएगा।
आपने शायद उसकी आवाज कई बार सुनी होगी और उसने बिना शंका आपको छाप एवं तस्वीरें दी होंगी, जिनका आपने अहसास नहीं किया कि उसकी ओर से है।

पवित्र आत्मा का स्वरूप
पवित्र आत्मा के व्यक्ति के कई स्वरूप हैं। वह एक व्यक्ति है और जिस प्रकार हम अपनी भावनाओं को विभिन्न प्रकार से व्यक्त करते हैं तथा विभिन्न भावनाएं अनुभव करते हैं, उसी प्रकार पवित्र आत्मा भी करता है। परन्तु वह परमेश्वर के वचन के दायरे से कभी बाहर नहीं जाता और न शारीरिक ध्यान या  प्रशंसा चाहता है।
जब यह मुझे सिखाया गया तब इसने पवित्र आत्मा के लिए मेरी समझ को नए रूप से खोल दिया तथा आराघना प्रार्थना समूह या कोई अन्य मीटिंग में व्यक्तियों द्वारा प्रतिक्रिया की भिन्नता को समझने में सहायक बना।

क्या आप एैसी मीटिंग में गये हैं जहां पवित्र आत्मा की सामर्थ की मघुर उपस्थिति थी और आपको लगा कि सब चुप एवं शान्त होकर जाने कि वह परमेश्वर है, परन्तु आपके बाजू के व्यक्ति का एैसा नहीं लगा। वह उत्तेजित और सम्पूर्ण आनन्द से भरा नाचना, गाना या ताली बजाना चाहता था और आप उसे चुप करा कर कहना चाह रहे थे, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि परमेश्वर की उपस्थिति यहां है ? और उस व्यक्ति को आपके गम्भीर रहने का कारण समझ नही आ रहा था। शायद आप दोनों यह समझ रहे हो कि दूसरा व्यक्ति पवित्र आत्मा की हलचल को खो रहा है, परन्तु सत्य यह है कि पवित्र आत्मा आप दोनों व्यक्तियों में अपने अलग-अलग स्वरूप में कार्य कर रहा था। क्या यह परमेश्वर के गुण एवं सामंजस्य के विपरीत है ? नहीं। उदाहरण के लिये एक मंडली में हर पुरूष, स्त्रियां एक ही समान के चेहरे, एक ही समान कपड़े पहने या एक ही समान कार्य नहीं करते। वे प्रतिदिन बदलते हैं यही आपके साथ परमेश्वर की आत्मा का स्वरूप है। जब आप समर्पित हैं तो पवित्र आत्मा जैसा चाहे आप को प्रभावित करेगा।

वरदान तो कई प्रकार के हैं, सेवा भी कई प्रकार की हैं परन्तु आत्मा एक ही है। प्रभावशाली कार्य कई प्रकार के हैं परन्तु परमेश्वर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है। (1 कुरिन्थियों 12ः 4-6)

आईये पवित्र आत्मा के कुछ स्वरूप देखें:

दोशी ठहराना या दलील प्रस्तुत करना
और वह आकर संसार को पाप, धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते। (यूहन्ना 16ः8)
हम देखते हैं कि पवित्र आत्मा अविश्वासी को पाप हेतु या धार्मिकता या न्याय हेतु अपनी दलीलें प्रस्तुत करता है। उसका यही व्यक्तित्व मनुष्य को यीशु की ओर खीचंता है। पवित्र आत्मा गलती पर अपनी ऊंगली उठाता है कि वह गलती ठीक हो जाए। आराधना में वह इसी प्रकार कार्य करता है। कुछ कलीसिया के पासवानो के पूछने पर बिलीग्राहम ने बताया कि ‘‘यदि मेरी सेवकाई का कोई रहस्य है तो वह मेरा नहीं परन्तु पवित्र आत्मा का रहस्य है।’’ दो बातों पर मैं पूरा भरोसा रखता हूँ।
        पहला - पवित्र आत्मा के दोशी ठहराने का कार्य।
दूसरा - मैं वही कहता हूँ जो बाइबल कहती है।
दोषी ठहराना एक अच्छी बात हो सकती है परन्तु यह अत्यन्त कष्टदायक भी है। जब किसी व्यक्ति पर दोष ठहराने वाली आत्मा मंडराती है तो कई भावनाओं का अनुभव होता है। जब पवित्र आत्मा किसी व्यक्ति को कायल करती है तो बाधा न डालें परन्तु परमेश्वर के समय का इंतजार करें तथा प्रार्थना करें और अपने को उसकी सहायता हेतु उपलब्घ करें।

सफाई:- पवित्र आत्मा का जाँचने वाला स्वभाव आपके भीतर एक पुकार या रूदन है जो आप में पाप के प्रति घृणा उत्पन्न करती है और शैतान के ऊपर आपको अधिकार दिलाती है। प्रभु की आत्मा आपके भीतर उठकर पाप के प्रति घृणा उत्पन्न करती है जो परमेश्वर के लोगों का नाश कर रहा है। प्रभु यीशु द्वारा मंदिर की सफाई के समय उसमें पवित्र आत्मा का यही स्वरूप (व्यक्ति) कार्य कर रहा था।

15. फिर वे यरूशलेम में आए। वह मंदिर में गया और वहां जो लेनदेन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा। उसने सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचने वालों की चैकियां उलट दी। 16. और उसने मंदिर में से होकर किसी को बरतन लेकर आने जाने न दिया। 17. और उपदेश देकर उनसे कहा, क्या यह नहीं लिखा है कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा ? पर तुमने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।
(मरकुस 11ः 15-17)

परमेश्वर के भौतिक मंदिर में पाप कार्य होने के विरोघ में प्रभु यीशु क्रोघित था, मनुष्यों पर नहीं। यही आज भी है, केवल आज उसकी संतान जीवित परमेश्वर का मंदिर है जो पत्थर से नहीं बने। आज परमेश्वर अपने मंदिर अर्थात् मनुष्य को साफ करना चाहता है कि वह पवित्र आत्मा की सफाई की सामर्थ में चल सके।

पौलूस इफिसियों 4ः 26-28 में बताते हैं कि- क्रोघ तो करो पर पाप मत करो। सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे और न शैतान को अवसर दो। जब पवित्र आत्मा इस प्रकार आप में कार्य करेगा तब आप परमेश्वर के क्रोध का अपने में जल-जलाहट के रूप में अनुभव करेंगे और पाप नहीं करेंगे। इस प्रकार का पाप शैतान के क्रोध को अवसर नहीं देता परन्तु बिलकुल जितना आप परमेश्वर की संगति करेंगे उतना ही आप उसे जानेंगे और पवित्र आत्मा के अन्य रूप के व्यक्तित्व के प्रति संवेदनशील बनेंगे।

सहभागिता:- पवित्र आत्मा का यह स्वरूप हमारे संग सहभागिता और संगति की लालसा करता है। सहभागिता एक दूसरे के विचारों, मतों, आदर्शों एवं भावनाओं का आदान-प्रदान है। परमेश्वर की यह इच्छा है कि आप उसकी उपस्थिति में आएं। उसके हृदय में जो कुछ है वह आपके साथ बांटना चाहता है और आपकी सुनना चाहता है। यूहन्ना 17 अपनी महायाजकीय प्रार्थना में यीशु पिता से विनती करता है कि हमारी एक दूसरे के साथ वैसी ही सहभागिता हो जैसी उसकी पिता के साथ होती है।

मैं केवल इन्हीं के लिए विनती नहीं करता परन्तु उनके लिए भी जो इनके द्वारा मुझ पर विश्वासी करेंगे, कि वे सब एक हों। जैसा तू हे पिता मुझ में है और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों इसलिए कि जगत प्रतीति करे कि तू ने ही मुझे भेजा है। (यूहन्ना 17ः 20-21)

कई बार परमेश्वर आपके साथ सहभागिता रखना चाहता है। वह विभिन्न माध्यमों के द्वारा ऐसा करता है जैसे प्रार्थना, स्तुति, आराधना, मनन और वचन के अध्ययन द्वारा।
जितना अधिक आप प्रभु के साथ सहभागिता रखेंगे उतना ही अधिक आप उसे जानेंगे और पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व के दूसरे स्वरूपों के प्रति और अधिक संवेदनशील रहेंगे।

तरस-हमदर्दी:- परमेश्वर का तरस खाने वाला या हमदर्दी रखने वाला स्वरूप आंतरिक भावनाओं को लेकर चलता है। वह केवल संवेदनशील ही नहीं परन्तु गहराई से हमदर्दी का इज़हार करता है। ग्रीक में इसका अर्थ है- ‘‘आंतरिक पुकार’’, गहराई से आंतरिक पुकार जो उसकी अतड़ियो में है, यह हमदर्दी से भी गहरी फिक्र या चिन्ता है। यही है जो गहराई से परिचित होकर आश्चर्य कर्म उत्पन्न करता है।

बाइबल में कई जगह लिखा है कि यीशु मसीह तरस से भर गये, और उन्होंने परमेश्वर की सामर्थ को आश्चर्य कर्मों से प्रभावित किया। यीशु ने भूखों पर तरस खाकर उन्हें खाना खिलाया, अंधो को आँखे दी, मुर्दो को जिलाया, दुष्टात्माओं को निकाला तथा कोढ़ियो को शुद्ध किया। जब भी यीशु ने लोगों को बिना रखवाले की भेड़ों के समान देखा, तरस की आत्मा द्वारा हमेशा भर गये। (मत्ती 9ः 36; 14ः 4;15ः 32; 20ः 34; मरकुस 1ः 14; 6ः 34; 8ः 2 एवं लूका 7ः 13)
        परामर्श देना:- प्रभु यीशु ने कहा उसका जाना हमारे लिये लाभदायक है क्योंकि वह जाकर एक परामर्शदाता या सहायक भेजेगा जो सत्य के मार्ग में हमारी अगुवाई करेगा। पवित्र आत्मा अपने अधिकार से नहीं बोलता परन्तु जो सुनता है, वही बोलता है।  (यूहन्ना 16) पवित्र आत्मा तुम्हें सिखाएगा और निर्देश देगा। एक सलाहकार केवल सलाह ही नहीं देता परन्तु आपसे विचारों एवं इच्छाओं का आदान प्रदान करता है। वह आपको एक निश्चय में पहूँचाने या दिशा निर्रिधारित करने में सहायक होता है। वह आपके साथ-साथ चलने और सहायता के लिए भेजा गया है।

पवित्र आत्मा का यह स्वरूप आपको सलाह देता है तथा दूसरो को सलाह देने में भी आपकी सहायता करता है। क्या आपने किसी के साथ संगति की है जिसके पास कोई जरूरत या समस्या हो और पवित्र आत्मा ने अद्भुत रीति से 
उस समस्या का हल आपके द्वारा कराया।

आपको लगा की आपने सचमुच सहायता की तथा अगले सप्ताह फिर से मिलकर बातचीत करने का निश्चय किया परन्तु दूसरे सप्ताह वही बुद्धिमता में पूर्ण परामर्श नहीं था। क्या हुआ ? पवित्र आत्मा की सामर्थ प्रथम बार सामर्थी रही परन्तु दूसरी बार भी उसी सामर्थ में नहीं आई।

परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बाते सिखाएगा और जो कुछ मैने तुमसे कहा है वह सब तुम्हे स्मरण कराएगा। (यूहन्ना 14: 26)

आदेशित करना:- परमेश्वर का यह स्वरूप हर क्रिया एवं विवाद को समाप्त कर देता है। शब्दकोश में इस का अर्थ दिया है ‘‘अधिकार करना नियंत्रण करने की सामर्थ तथा आज्ञाकारी बना देना। यूनानी भाषा में इसका अर्थ है ‘‘नियुक्त करना’’, ‘‘समुचित स्थान देना’’, ‘‘ऊपर नियुक्त करना’’, तथा ‘‘अधिकार में रखना’’।

प्रभु यीशु नाव में चेलों के साथ थे। तब समुद्री तूफान उठने लगा। चेले डर गये कि डूब कर मर जाएंगे, उन्होंने प्रभु यीशु को जगाया। तब प्रभु यीशु ने तूफान को शांत होने का आदेश दिया।

24. तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा स्वामी। स्वामी। हम नाश हुए जाते हैं। तब उसने उठकर आंधी को और पानी की लहरो को डांटा जिससे वे थम गये और चैन हो गया।

25. और उसने उनसे कहा, तुम्हारा विश्वास कहां था ? पर वे डर गये और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, यह कौन है ? जो आंधी और पानी को भी आज्ञा देता है और वे उसकी मानते हैं। (लूका 8ः 24-25)

परमेश्वर की आत्मा की सामर्थ में होकर जब भी आप कोई आदेश देते हैं तो आप याद रखिये कि आपके पास अधिकार है। अब आपको इस अधिकार हेतु पूछना या मांगना नहीं पड़ता। यह परमेश्वर की आत्मा के वसीले से आपका है। परमेश्वर की आत्मा के निर्देशन के बिना आप आदेश देकर फल नहीं पा सकते। परमेश्वर की इच्छा को जानने का प्रमुख मार्ग प्रार्थना है। जब पौलूस ने उपवास किया तब परमेश्वर ने उसे निर्देश दिया था।

परमेश्वर के वचनो में कई स्थानों में दिया है जहां परमेश्वर की आत्मा ने आज्ञा दिया और दूसरों ने प्राकृतिक एवं आत्मिक जगत में उसे माना है। यीशु ने दुष्टाआत्माओं को जाने का आदेश दिया जबकि पौलुस ने डूबते हुए जहाज को नहीं छोड़ने का आदेश दिया।

लड़ाई में जीतना:- पवित्र आत्मा का यह स्वरूप परमेश्वर की विजय सामर्थ है जिसके कारण आप विजयी होते हैं। यह आनन्द, विजय और प्रशंसा है जो आपके विजयी होने पर आती है।

यही परमेश्वर ने दाऊद को दिया जब उसने गोलियत पर विजय प्राप्त किया था। वह जानता था कि वह परमेश्वर में कौन है इसलिए वह बिना शंका एवं डर के विजयी होने हेतु आगे बढ़ा था। (1 शमूएल 17)

जब उन्होंने मिश्रियों पर विजय प्राप्त की थी तब विजय के आनन्द का अनुभव कर मूसा, मरियम तथा इजराइल की संतान ने भी  स्वतंत्र होने का गीत गाया (निर्गमन 15)।

परमेश्वर के वचन में कई स्थानों पर पवित्र आत्मा के विजयी स्वरूप के उदाहरण दिये गये हैं और हम जानते हैं कि हम उसमे जयवंत से भी बढ़कर हैं। (रोमियों 8ः 37)

संगीत सभा:- जब परमेश्वर इस स्वरूप में चलता है तो वह एक मधुर संगीत के माध्यम से आपके ह्नदय में आता है। संगीत सभा को शब्दकोश इस प्रकार वर्णन करता है एक योजना या आकार जिस में दो या अधिक की सहमति, विचारों का परस्पर आदान-प्रदान या तालमेल की एकता।

इस स्वरूप में प्रभु विश्राम, आनन्द, शान्ति, निर्देश एवं मार्गदर्शन लाता है। गानों की सेवकाई आराम, विजय और शांति लाती है। यह एक कोरस, गाने, कविता या मधुर धुन के रूप में आता है। 

कलीसिया की आराधनाओं में संगीत के विभिन्न पहलुओं को आप अनेक प्रतिक्रियाओं में देखकर उत्तेजित होंगे। यह देखना आनन्दमय है कि संगीत द्वारा परमेश्वर की आत्मा एक दूसरे में कार्य करती है।

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