मुझे कितनी देर प्रार्थना करना चाहिए ?

मुझे कितनी देर प्रार्थना करना चाहिए ?

  गतसमनी के बगीचे में प्रभु यीशु एवं उसके चेलों के वृतांत से स्पष्ट है कि प्रभु यीशु अपने चेलों से कम से कम एक घंटा प्रार्थना करने का निवेदन करता है। जब उसे उनके प्रार्थना सहयोग की अत्यंत आवश्यकता थी, तब उन्होंने उसे निराश किया। सच में आज भी परमेश्वर निराश होता है जब उसके पीछे चलने वाले लोग, उसके साथ प्रार्थना का समय बिताने के बदले नींद या अन्य कार्यो में लगे रहते हैं। एक पासवान ने कहा ‘‘जब हम परमेश्वर के साथ एक घंटा व्यतीत करते हैं तो कुछ अलौकिक घटना होती है। हम परमेश्वर की योजना एवं गुण को समझने लगते हैं और परमेश्वर  की सामर्थ के अभिषेक का अनुभव करने लगते हैं जैसे पहले कभी नहीं हुआ था।

यदि एक घंटे प्रार्थना करना आपको कठिन लगे तो केवल पन्द्रह मिनिट प्रतिदिन की प्रार्थना से शुरू करें, तब घीरे-घीरे प्रार्थना समय को बढ़ाएं।

जब आप प्रार्थना करें तो आपके विवेक में एक प्रष्न आएगा, मैं किसी व्यक्ति या विषय पर कितना समय लगांऊ? जिसके लिये यहां पर कुछ सुझाव है।

जवाब मिलने तक प्रार्थना करें जब तक कि वह कार्य पूरा न हो जाए।

ःः या :ः

प्रार्थना तब तक करें जब तक कि आपको हृदय में शान्ति न मिल जाए, तब उसे विश्वास से स्वीकार करें। वह कभी देरी नहीं करता, यद्यपि हमको महसूस होता है कि देर हो रही है।

आप अपनी दैनिक रणनीति के द्वारा जब एक बार प्रार्थना कर चुकें तब अवष्य प्रशंसा करें। जय पाने हेतु उसे प्रशंसा एवं घन्यवाद देवें।

यदि कोई उत्तर आने में देरी लगे तो विघवा के उदाहरण को कस कर थामे रहें।
फिर उस ने इस के विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए उन से यह दृष्टान्त कहा, किसी नगर में एक न्यायी रहता था, जो न तो परमेश्वर से डरता था और ना ही किसी मनुष्य की परवाह करता था। उसी नगर में एक विघवा भी रहती थी, जो उसके पास आ आकर कहा करती थी कि मेरा न्याय चुका मुझे मुद्दई से बचा। वह काफी समय तक तो न माना परन्तु अन्त में उसने मन में विचारकर कहा, यद्यपि मैं न तो परमेश्वर से डरता और ना मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ। तो भी यह विघवा मुझे परेशान करती है, इसलिये मैं उसका न्याय चुकाऊंगा। कहीं ऐसा न हो कि घड़ी-घड़ी आकर अन्त को मेरी नाक में दम करे। प्रभु ने कहा सुनो, यह अघर्मी न्यायी क्या करता है ? सो क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते और क्या वह उन के विषय मे देर करेगा ? मैं तुम से कहता हूँ वह तुरन्त उन का न्याय चुकाएगा। तो भी मनुष्य का पुत्र जब आएगा तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा ? (लूका 18ः 1-8)

यदि प्रतिउत्तर में विलम्ब होता है फिर भी निरंतर प्रार्थना में आग्रहपूर्वक लगे रहें। लूका अध्याय 18 की विधवा के समान परमेश्वर पर ठहरे रहने का आत्मविष्वास न छोड़ें। यदि आप थक कर छोड़ देंगे तो आपकी प्रार्थना निष्फल हो सकती है।

और मैं तुम से कहता हूँ कि मांगो तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूंढ़ो तो तुम पाओगे और  खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है उसे मिलता है, जो ढूंढ़ता है वह पाता है और जो खटखटाता है उसके लिये खोला जाता है। (लूका 11ः 9-10)

इस कारण मांगते रहें, ढूढ़ते रहें, खटखटाते रहें, लगे रहें। क्या बार-बार दुहराना और मांगना व्यर्थ है? क्या यह विश्वास की घटी नहीं?

इस प्रकार का दुहराना गलत नहीं है जब तक कि विश्वास से मांगा गया है। व्यर्थ दुहराने वाली प्रार्थना वह हैं जब आप खोखले शब्द बिना विष्वास के बोलते हैं या आप गलत उद्देश्य से मांगते हैं। (देखें याकूूब 4ः 3)

प्रभु यीशु मसीह ने सच्चे उद्देष्य के लिये दृढ़ संकल्प के साथ प्रार्थना किया। गतसमनी के बगीचे में प्रभु यीशु मसीह ने विषेश रूप से प्रार्थना किया कि यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाये तो भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो। (मत्ती 26ः 39)

प्रभु यीशु ने यही निवेदन तीन बार किया।
फिर वह चला गया और वही बात कहकर प्रार्थना की। (मरकुस 14ः 39)
वह उन्हें छोड़कर चला गया और वही बात फिर कहकर तीसरी बार प्रार्थना की। (मत्ती 26ः 44)

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