पाप मानना एवं क्षमा
पाप मानना एवं क्षमा
अपने पाप मानना एवं दूसरों को क्षमा करना परमेश्वर की पवित्रता के सामने सही प्रतिउत्तर है। अपने मन से प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सही व्यव्हार रखना चाहिये और साथ ही परमेश्वर के प्रति भी। प्रभावशील मध्यस्थता हेतु यह बहुत आवश्यक है।
जब तक पाप स्वीकृति क्षमा से न जुड़ी हो तब तक वह अपूर्ण है। पाप मानने का अर्थ है, किसी व्यक्ति के विरूद्ध की गई क्षति या मानहानी को उजागर मान लेना। क्षमा का अर्थ है किसी की गलती को माफ करना या किसी की भावना पर आघात की क्षमा मांगना, क्रोघ त्यागना, नाराजगी या कड़वाहट त्यागना, उधारी से मुक्त रहना आदि।
पाप मानना और क्षमा दोनोें एक दूसरे के बिना अपूर्ण है। पाप स्वीकृति एवं क्षमा के बाद आप एक कदम बढ़ कर परमेश्वर के वचनों में दिये प्रतिज्ञाओं को ग्रहण करें जैसे कि चंगाई, शांति एवं सम्पन्नता। यदि आप पाप स्वीकार और क्षमा के बाद अपने को अयोग्य समझकर परमेश्वर की विशेष प्रतिज्ञाओं को ग्रहण नहीं करते है तो बहुत बड़ी गलती करते हैं। परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं आप का विशेष वरदान है।
एक अच्छे ग्रहणकर्ता बनिये। ग्रहण करने का अर्थ है प्राप्त करना या दी गई वस्तु को लेना। ग्रहण करना आप का काम है। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को जोर से बोलकर विश्वास के साथ ग्रहण करें। अपनी भावनाओं और इच्छाओं पर निर्भर न रहें।
पाप मानने एवं क्षमा की इस विधि के द्वारा आप परमेश्वर की संतान बन जाते हैं। प्रभु यीशु के रूधिर की प्रशंसा करें जो आपके उद्धार के लिए फिरौती दी गई है। आइये, पाप स्वीकृति एवं क्षमा पर अलग-अलग चर्चा करें।
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