आत्मिक युद्ध की रणनीति

आत्मिक युद्ध की रणनीति
मध्यस्थ का कार्य अर्थात् शैतान और उसके दूतों से आत्मिक हथियारों से लैस होकर शत्रु से आत्मिक जगत में युद्ध करना है। इस प्रक्रिया में उसे पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन एवं प्रकाशन से मल्ल युद्ध की रणनीति निश्चित करना चाहिए। पवित्र आत्मा द्वारा प्रकाशित रणनीति एक विशेष कुन्जी है। प्रकाशन का अर्थ है फर्क करना या पृथक करना। 
परमेश्वर ने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह से कहा-

यदि तू निकम्मों में से अनमोल को निकाले तो तू मेरा मुंह बनेगा।’’ (यिर्मयाह 15ः 19)

मसीह के आगमन के समय की निकटता के कारण स्वर्गीय स्थानों में क्रियाशीलता बढ़ रही हैं। मध्यस्थ एक ही आवाज में मानो कह रहे हैं कि युद्ध सच में है और युद्ध रेखाए खींचीं जा चुकी हैं। आत्मिक मल्ल युद्ध चुंकि विशेषकर मस्तिष्क के क्षेत्र में होती है, मध्यस्थ का प्रार्थना जीवन लड़खड़ाना नहीं चाहिए।

शैतान इस युद्ध में इमानदारी से नहीं लड़ता। यदि वह आपको प्रार्थना से रोक नहीं सकता तो भय, अविश्वास, निरूत्साह इत्यादि से असम्भव स्थिती पैदा कर देता है। यह छल करने वाला आपको परिस्थितियों के प्रति उद्देश्यहीन  बना देगा। यर्थात् में उसका निशाना आपको आशाहीन और निष्क्रीयता के गुणों द्वारा दिशाहीन करना है।

आपको अपने शत्रु की पहचान मालूम होना चाहिए। जनरल डगलस मैंकआर्थर सेना को विजय हेतु निम्न लिखित महत्वपूर्ण सुझाव देता है -

विजय की तीव्र इच्छा - शहीद होने लायक उद्देष्य होना चाहिए।
सामर्थ - पर्याप्त प्रशीक्षित एवं हथियारों से पूरी तरह सुसज्जित योद्धा।
पर्याप्त वितरण स्त्रोत - आवश्यक वस्तुओं की उपलब्घी होना जरूरी है।
शत्रु की जानकारी - जितनी अधिक शत्रु की जानकारी होगी उतनी ही आसान और महान विजय होगी।
यही रणनीति आप भी अपनाएंगे तो अवश्य विजय पांएगे। प्रभु यीशु ने युद्ध जीता है अब आपकी पारी है कब्जा करने की।
परमेश्वर ने नहेमायाह के मन में यरूशलेम की दीवार को पुनः बनाने हेतु विचार डाला। उसने उपवास एवं प्रार्थना उस परिस्थिति हेतु किया, परमेश्वर ने राजा की तरफदारी उसे दिलाई। राजा ने उसे अपने मातृमूमि जाकर शहर की दीवार को पुनः बनाने हेतु स्वतंत्र किया ?

शैतान उससे कैसे लड़ा ? नहेम्याह के मस्तिष्क में लडाई उत्पन्न करके। सर्वप्रथम उसने उसकी दीवार बनाने की प्रतिष्ठा का मजाक बनाया- कहा वे क्या बना रहे हैं, यदि एक लोमड़ी ही उनकी पत्थरों की दीवार पर चढ़ जाए तो वह टूट जाएगी। (नहेमा 4ः 3)

जब उपहास एवं निरूत्साह नहेमायाह को रोकने में असफल रहे तो शत्रु ने दूसरी कोशिश किया।
तब शत्रु ने वचन भेजा ‘‘कि आ हम दोनो किसी गांव के मैदान में एक दूसरे से भेंट करें।’’ (नहेम्याह 6ः 2) इस पर उसने मल्लयुद्ध का प्रमुख सिद्धान्त सीखा। ‘‘कभी शत्रु से समझौता नहीं करें’’। यद्यपि यह धमकी भरा संदेश पांच बार उसे भेजा गया। नहेम्याह ने शत्रु की सरहद पर बातचीत करने से इन्कार कर दिया।

इस दीवार बनाने वाले योद्धा ने उस झूठे नबी की सलाह का सामना किया जो कि उसे शत्रु के सामने से भागने एवं छिप जाने की सलाह दे रहा था। परन्तु वह परमेश्वर की ओर से प्रार्थना करता था तथा निडर होकर परमेश्वर के महान आदेश जो उसे दिये गये थे पूरा करता रहा।

शैतान आपके मस्तिष्क को भ्रमित कर अपने समूह में आकर्षित करता है, जैसा उसने नहेम्मयाह के साथ किया। कोई शारीरिक युद्ध का जिक्र नहीं है केवल मस्तिष्क के स्तर पर युद्ध हुआ। जिस समय आप शत्रु के स्तर पर उतर आते हैं तो आप परास्त हो जाते हैं।

शैतान तथा उसके प्रधान दुष्ट आत्माओं की सेना के द्वारा परिस्थितियों और मनुष्यों में गड़बड़ी या उलटफेर करके अपने कार्य को पूरा करते हैं। तो भी एक विश्वाशी के नाते आपके पास सामर्थ और अधिकार है कि उनके दायित्व एवं श्रापों को नष्ट कर दें। आप उन श्रापों को शत्रु की सेना पर वापस भेज कर उनको अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। (देखें प्रेरितों के काम 13ः 6-12)

धर्मशास्त्र के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि शैतान ने आत्मिक शासकों को देशों और भौगोलिक क्षेत्रों के ऊपर अधिकार रखने के लिए नियुक्त किया है। पढ़ें यहेजकेल 28 एवं दानिएल अध्याय 9 एवं 10 जहां उदाहरण है कि कैसे वे शासक किसी भौगोलिक क्षेत्र के ऊपर शासन करते हैं। स्मरण रहे कि आत्मिक मल्लयुद्ध केवल स्वर्गीय स्थानों में ही होते हैं, परन्तु उस मल्लयुद्ध का प्रभाव मनुष्यों के जीवन में और पृथ्वी पर दिखाई देता है।
लेटिन अमेरिका के एक प्रचारक की कहानी पर ध्यान करें जो एक शहर की गलियों में बाइबल साहित्य वितरण कर अपनी गवाही बता रहा था। एक राजकीय सरहद लाइन उस शहर के मध्य से गुजरती थी। जब प्रचारक वहां सुसमाचार के साहित्य को बाटता था तो कड़ा विरोध होता था। लोग उसके दिये बाइबल अंष को नालियो में फेंक देते तथा उसकी गवाही सुनना नहीं चाहते थे।
हतोत्साहित होकर प्रचारक सरहद को पारकर नगर के दूसरे भाग में चला गया जो भिन्न शासक के आधीन था। अचानक प्रचारक ने पाया कि सरहद के इस पार के लोगों का स्वभाव पूर्णतः अलग है। यद्यपि इनकी वेश, भूषा, भाषा तथा बाहरी संस्कृति पहले समूह के समान ही था परन्तु इन लोगों ने प्रसन्न होकर सुसमाचार साहित्य लिया तथा उत्सुकता से उससे उद्धार के सुसमाचार को सुना।

कुछ समय बाद उस प्रचारक ने सुना कि इस क्षेत्र के राज्य के मसीहियों का एक समूह अंधकार की ताकतों को बांधते रहे और अपने क्षेत्र में सुसमाचार प्रचार हेतु प्रार्थना करते रहे हैं। उनके आत्मिक मल्लयुद्ध के कारण ही प्रचारक का कार्य फलदायी हुआ। परन्तु पहले राज्य में कोई भी आत्मिक मल्लयुद्ध नहीं कर रहा था इस कारण वहां सुसमाचार प्रचार का कड़ा विरोध था।

दानिएल का अनुभव- परमेश्वर ने दानिएल भविष्यवक्ता की प्रार्थनाओ के उत्तर में स्वर्गदूत को भेजा, जिसे फारस के प्रधान राजकुमार ने रोका। (दानिय्येल 10ः 12-13) जब दानिएल ने प्रार्थना की तो उसकी प्राथनाओं के फलस्वरूप परमेश्वर ने आत्मिक मल्लयुद्ध हेतु मीकाएल को भेजा तथा फारस के राजकुमार को परास्त किया गया। दानिएल ने उपवास एवं निरंतर प्रार्थना द्वारा सम्पूर्ण इस्राएल देश को प्रभावित कर दिया था।

परमेश्वर से विशिष्ठ प्रकाशन एवं समझ उन व्यक्तियों अगुवों हेतु एवं उनकी सेवकाई के लिए मांगे, जिनके लिये आप प्रार्थना कर रहे हैं। उनके लिये जो मुस्लिम या मूर्तीपूजकों के बीच कार्य कर रहे हैं, आप मसीह विरोधी आत्मा को नष्ट करें। जहां गुप्त क्रियाएं सामर्थी हैं वहां आप को छल, नियंत्रन, चरित्र भंग, भ्रष्टाचार तथा प्रलोभन की आत्माओं से सामना करना पडे़गा। (1 यूहन्ना 2ः 18)
एैसे क्षेत्र जहां कई कलीसियाएं हैं परन्तु अगुवों एवं सदस्यों के बीच अघिक मतभेद है। पवित्र आत्मा आपको प्रकाशन देगा कि वहां की समस्या एक दुष्ट आत्मा है तो उस क्षेत्र पर अन्य आत्माओं जैसे कलह, विवाद, और स्वधार्मिकता के साथ शासन कर रही है। ऐसी परिस्थिति में जहाँ दुष्ट आत्मांए जिम्मेदार हैं, आपकी परख आपकी मध्यस्थता को अधिक विषिष्ट और अधिक प्रभावी बना देगी।

शत्रु के आक्रमण के तरीकों के प्रति सचेत रहें। कुछ समय के दौरान आत्मिक अगुवों के बीच विवाह पर कड़ा आक्रमण होता रहा। एक विशिष्ठ संस्था ने बड़ी संख्या में अपने सदस्य कैन्सर के कारण खो दिये। तब भयानक दुर्घटना की लहर ने मिशनरियों, पासवानो तथा उनके परिवार को मृत्यु या गम्भीर चोटे पहुंचाई।
 
मध्यस्थ को ‘‘दीवार पर पहरेदार’’ की तरह सेवा करके, आत्मिक मल्लयुद्ध से सारे शैतानिक आक्रमणों को निष्फल करना तथा विजातियों के मध्य सेवकाई करने वालों को प्रार्थना द्वारा सहायता एवं सुरक्षा पहुँचाना है।

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