आत्मा से प्रार्थना करना संचार एवं सामर्थ का स्तंभ
आत्मा से प्रार्थना करना संचार एवं सामर्थ का स्तंभ
हमने इस अध्याय के पूर्व प्रार्थना के विभिन्न प्रकार एवं उसके विशिष्ठ महत्वों की चर्चा कर चुके हैं। आत्मा में प्रार्थना करना यथार्त् में आत्मिक मल्लयुद्ध के अभ्यास का आधार है। यह दूसरा स्तंभ है जो हथियारों के शस्त्रागार को संभालता है।
इस भाग में हम विस्तार से आत्मा में प्रार्थना करने के विषय की चर्चा करेंगे। कुछ मसीहियों को यह विषय अपरिचित लग सकता है परन्तु परिपक्व मसीही अपने प्रार्थना के जीवन में इसकी महत्वता को पहिचानेंगे।
आत्मा में प्रार्थना करें। अन्य-अन्य भाषा के वरदान को एक साथ न मिलाएँ अन्यथा आप एक मन होकर प्रार्थना नहीं कर सकेंगे। अन्यान भाषा का दान का प्रयोग उल्था करने के दान के साथ मिलकर है। यह सम्मिलित वरदान भविष्यवाणी के वरदान के बराबर है जो पूरी कलीसिया उन्नति करती है।
जो अन्यान भाषा में बाते करता है वह अपनी ही उन्नति करता है परन्तु जो भविष्यवाणी करता है वह कलीसिया की उन्नति करता है। मैं चाहता हूँ कि तुम सब अन्यान भाषा में बातें करो परन्तु अधिकतर यह चाहता हूँ कि भविष्यवाणी करो क्योंकि अन्यान भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिए अनुवाद करे तो भविष्यवाणी करने वाला उस से बढ़कर है। (1 कुरिन्थियों 14ः 4 बी.-5)
जब आप एकत्र हो, यदि कोई अन्य भाषा में बोले तो वे दो या ज्यादा से ज्यादा तीन हों तथा एक बारी-बारी से उसका अनुवाद करें, परन्तु यदि कोई अनुवाद करने वाला नहीं है तो उसे कलीसिया में चुप रहना चाहिए और उसे स्वयं से और परमेश्वर से बातें करने दें। (1 कुरिन्थियों 14ः 26-28)
यदि आप निम्न कों धर्मषास्त्र में देखे तो आप पायेंगें कि आत्मा में प्रार्थना करना मध्यस्थता करने वाले का एक शक्तिशाली औज़ार है।
1. परमेश्वर से सीधे बातचीत करना आत्मा में प्रार्थना है।
यह आपके आराधनात्मक प्रार्थना जीवन की प्राथमिकता हेतु उपयोगी है ताकि मध्यस्थता, प्रसंशा एवं आराधना कर सकें।
और अपने मन से और परमेश्वर से बातें करें। (1 कुरि. 14ः 26-28 बी.)
क्योंकि जो अन्य भाषा में बातें करता है वह मनुष्यों से नहीं परन्तु परमेश्वर से बातें करता है, इसलिये कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। (1 कुरिन्थियों 14ः 2)
2. आत्मा में प्रार्थना ही सटीक प्रार्थना है।
चूंकि आप हमेशा नहीं जानते कि किसी विशेष परिस्थिति के लिए कैसी और क्या प्रार्थना करना चाहिए। इसलिए आपको इस जरूरत को परमेश्वर के सामने आत्मा में प्रार्थना से लाना चाहिए। पवित्र.आत्मा आपका सहायक है वह आपको परमेश्वर की इच्छा अनुसार प्रार्थना करने में सहयोग करता है।
आत्मा में प्रार्थना करना पवित्र आत्मा का माध्यम है जो आपकी आत्मा द्वारा मध्यस्ता करता है। यही वह प्रार्थना भाषा है। एक बिना सिखाई भाषा जिसमें आप प्रार्थना कर सकते हैं। जब आप अपनी समझ से प्रार्थना करते हैं तो आसानी से अपनी भावनाओं, विचारों, इच्छाओं, अनुभवों, अलगावों, समझ तथा इच्छा से प्रभावित हो जाते हैं। आपकी शब्दावली भी आपकी प्रार्थना को सीमित कर देती है। परमेश्वर आपको एक प्रार्थना भाषा देता है जो आपके मस्तिष्क इच्छा एवं भावनाओं को पार कर आपको प्रार्थना में बिना रूकावट निरंतर प्रार्थना करने की अनुमति देता है।
इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा अपने आप ही ऐसी आहें भर-भरकर जो बयान से बाहर है हमारे लिये विनती करता है और मनो का जांचने वाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है ? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेष्वर की इच्छानुसार विनती करता है। और हम जानते है कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं उनके लिए सभी बातें मिलकर भलाई ही उत्पन्न करती हैं, अर्थात् उन्हीं के लिए, जो उसकी इच्छा अनुसार बुलाए हुए हैं। (रोमियों 8ः 26-28)
क्योंकि यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना कंरू तो मेरी आत्मा प्रार्थना करती है परन्तु मेरा मस्तिष्क निष्फल है। (1 कुरिन्थियों 14ः14)
और हमे उसके सामने जो हियाव होता हैं वह यह है कि यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं तो वह हमारी सुनता है। हम यह जानते हैं कि जो कुछ हम मांगते हैं वह हमारी सुनता है तो यह भी जानते है कि जो कुछ हमने उससे मांगा वह पाया है। (1 यूहन्ना 5ः 14-15)
तुम मांगते हो और इसलिये नहीं पाते क्योंकि बुरी इच्छा से मांगते हो ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो। (याकूब 4ः 3)
3. आत्मा में प्रार्थना करने का निश्चित अर्थ।
यद्यपि आप नहीं जानते कि आप क्या प्रार्थना कर रहे हैं परन्तु परमेश्वर जानता है।
जगत में कितने ही प्रकार की भाषाए क्यों न हों परन्तु उन में से कोई भी बिना अर्थ की न होगी। (1 कुरिन्थियों 14ः 10)
4. आत्मा में प्रार्थना व्यक्ति की उन्नति करता है।
जब आप परिपक्व, शक्तिशाली एवं उत्साहित हों, आप आत्मिक मल्लयुद्ध को जारी रख सकते हैं जिस हेतु बुलाए गये हैं।
जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है। (1 कुरिन्थियों 14ः 4)
पर हे प्रियों तुम अपने अति पवित्र विष्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए। (यूहन्ना 20)
5. स्वर्ग का अधिकार आत्मा में प्रार्थना के द्वारा है।
आप किसी भी प्रकार से नहीं जान सकते कि शैतान और उसकी दुष्ट सेना कब आक्रमण कर देगी। पवित्र आत्मा आपको उसी अवसर पर आगाह कर देगा।
और हर समय हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना और विनती करते रहो, और इसीलिए जागते रहो, कि पवित्र लोगों के लिये लगातार विनती किया करो। (इफिसियों 6ः 18)
क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध लहू और मांस से नहीं परन्तु प्रधानों, अधिकारियों, इस संसार के अंधकार के हाकिमों और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में है। (इफिसियों 6ः 12)
धर्मीजन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। (याकूब 5ः 16 बी.)
आत्मा में प्रार्थना करना एक चुनाव है। प्रार्थना आपकी इच्छा का एक कार्य है जिसे आप आत्मा के साथ या अपनी समझ के साथ कर रहे हैं, जबकि पतरस पानी पर चल रहा था तो उसे पूरा कार्य करना पड़ा था। वह नाव पर से निकल कर अपने पावों पर चला। चलना आष्चर्यजनक नहीं था, सच तो यह है कि वह नहीं डूबा। प्रार्थना आत्मा में करना ऐसा ही है। आपको पूरा काम करना है। बोलना आश्चर्य कर्म नहीं है। सच तो यह है कि जिस भाषा में आप बोल रहे हैं उसे नहीं समझते। पवित्र आत्मा आपको बोल देगा। जैसा किसी भाषा को जितना आप बोलेंगे उतने ही आराम से और दक्ष बन जाएंगे।
सो क्या करना चाहिये ? मैं आत्मा से भी प्रार्थना करूंगा और बुद्धि से भी प्रार्थना करूंगा मैं आत्मा से गाँऊंगा और बुद्धि से भी गाँऊगा। (1 कुरिन्थियों 14ः 15)
शैतान को यह मालूम है कि पवित्रात्मा अपना निषाना उसी बिन्दू पर रखता है जहाँ शैतान विनाशकारी कार्य करता है। यही कारण है कि वह पूरी कोशिश करता है कि आत्मा में प्रार्थना करने वालों के दिमाग को हांनि पहुँचाए। पौलुस प्रेरित लिखता हैः
‘‘मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि तुम सभी से ज्यादा अन्य भाषा में बाते करता हूँ, और अब मैं चाहता हूँ कि तुम सब अन्य भाषा में बोलो और अन्य भाषा में बोलने के लिए मना मत करो।’’ (1 कुरिन्थियों 14ः 5,18, 39)
सो पौलुस की तरह आप भी प्रभु यीशु मसीह की स्तुति और आराधना आत्मा में कर सकते हैं ताकि लोगों को शैतान के अधिकार और दुष्टात्मा की सामर्थ से छुड़ा सकें। आत्मिक शस्त्रों से लैस होकर आत्मा में प्रार्थना करना शत्रु के विरोध में एक मजबूत स्तम्भ खड़ा करना है।
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