क्षमा की प्रार्थना

क्षमा की प्रार्थना
पिता मैं खेदित हृदय से आपके सिहांसन के पास आता हूूं क्योंकि (व्यक्ति/व्यक्तियों के नाम ............................) ने मुझे दु:ख दिया है, और जिन्हें मैं क्षमा नहीं कर सका हूँ। मैं यह जानता हूँ, कि क्षमा नहीं करना आपके वचनो का विरोध है। इस कारण मैं अपने विवेक और भवनाओं में कष्ट पाता हूँ। मेरे और (नाम .....................) के बीच एक घाव उत्पन्न हो गया है।

इस कारण हे पिता मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप मेरे पाप एवं (नाम ........................) के पाप को क्षमा करें और मैं भी (नाम ........................) को क्षमा करता हूँ। जैसे आपने मुझे क्षमा किया है वैसे ही मैं भी पश्चाताप करता हूँ और सारी कडुवाहट, रोश, क्रोध शिकायत, निन्दा, शत्रुता और गंदे विचार आदि को छोड़ता हूँ। मैं प्रभु यीशु के नाम और उसके बहुमुल्य रूघिर में अपनी क्षमा ग्रहण करता हूँ।

मुझे एवं (नाम ........................) को मानसिक, शारीरिक एवं भावनाओं की पीढ़ा से स्वतंत्र करने हेतु पिता मैं धन्यवाद करता हूँ। मैं शैतान को कोई सुअवसर नहीं दूंगा। मैं अपने मुंह की चैकसी करूंगा कि कोई गंदी बात (नाम ..............) के लिये नहीं निकलने पाए। मैं जीवन सामर्थ, स्वास्थ्य और चंगाई के वचन बोलूंगा। मैं पवित्र आत्मा को दुखित नहीं करूंगा। मैं दूसरों के प्रति दयावान, कोमल ह्नदय और क्षमा करने वाला बनूंगा जैसे आपने मुझे क्षमा किया है। मैं दुष्टता के बदले दुष्टता, अपमान के बदले अपमान वापस नहीं करूंगा। परन्तु मैं (नाम ..................) हेतु आशीष वचन बोलूंगा।

प्रभु मैं आपके योग्य चाल चलूंगा। मैं अपने समस्त कार्य एवं विचारों से आपको प्रसन्न करने का निश्चय करूंगा। मैं प्रत्येक कार्य में अच्छा फल उगाऊंगा क्योंकि मैं आपके वचन का सुनने वाला नहीं वरन करने वाला बनूंगा।
मैं अपने शरीर, आत्मा प्राण, परिवार तथा आर्थिक परिस्थिति को प्रभु यीशु के नाम से स्वतंत्र होने की आज्ञा देता हँू क्योंकि अब मैं श्राप के नियम के नीचे नहीं परन्तु अपनी स्वतंत्रता पा चुका हूँ।

मैं पवित्र आत्मा को अपना जीवन संचालित करने बुलाता हूँ ताकि आप को प्रसन्न करने हेतु फलदाई बंनू। आज मैं अपने पुराने मनुष्यत्व उतार कर आपका प्रेम आनन्द, शांति, घीरज, दया, अच्छाई, विश्वसिपन, कोमलता और आत्म संयम पहन लेता हूँ।

अपनी इच्छा के चुनाव पर मैं आपसे नवीन वाचा बांघता हूँ कि मैं बुजुर्गों, मित्रों, सहकर्मियों, पड़ोसियों एवं परिवार के साथ शांति एवं प्रेम से रहूँगा। (यशायाह 59ः 1-2; मरकुस 11ः 25; मत्ती 6ः 12; 14-15; 18ः 21-35; 1 पतरस 2ः 12; 1 यूहन्ना 6ः 7; इफिसियों 4ः 25-32; 1 पतरस 3ः 8-12 कुलुस्सियों 1ः 10; 3ः 10; याकूब 1ः 22,25; मलाकी 3ः 13-14; 5ः 22-23; रोमियों 12ः 10; 16-18; फिलिप्पियों 2ः 2) 

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