प्रशंसा - हमारा झंडा
प्रशंसा-हमारा झंडा
प्रशंसा आत्मिक मल्लयुद्ध हेतु एक महत्वपूर्ण कुन्जी और विश्वासियों हेतु सबसे महत्वपूर्ण शक्तिशाली हथियार है। प्रभु यीशुने प्रशंसा का उदाहरण अपने चेलों को सिखाया कि उनकी प्रार्थना की शुरूआत एवं समाप्ति प्रशंसा से होनी चाहिए। ठहरे न रहें कि विजय को प्राप्त करने पर ही प्रशंसा करेंगे। यह नीव को रखने का कार्य पवित्र आत्मा की इच्छा से विजय को रखने का स्थल है। आप यथार्थ में युद्ध, एक विजयी स्थान से करते हैं। (इफिसियों 1ः 20-22) पौलूस एवं सीलास का उदाहरण देखें।
और बहुत बेंत लगा कर उन्हें बन्दीगृह में डाला और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हे चैकसी में रखे। उसने एैसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पांव काठ में ठोंक दिए। आधी रात के लगभग पौलूस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे और बंधुए उनकी सुन रहे थे कि इतने में एका-एक बड़ा भूकंप आया, यहां तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, तुरन्त सब द्वार खुल गए और सब के बन्धन खुल पड़े। (प्रेरितों के काम 16ः 23-26)
और सिहासन में से एक शब्द निकला कि हे हमारे परमेश्वर से डरने वालो सब दासों, क्या छोटे क्या बड़े, तुम सब उसकी स्तुति करो। (प्रकाशित वाक्य 19ः 5)
मेरे मुंह से तेरे गुणानुवाद और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन, बहुत हुआ करे। (भजन संहिता 71ः 8)
जितने प्राणी हैं सबके सब याह की स्तुति करें, याह की स्तुति करो। (भजन संहिता 150ः 6)
प्रशंसा क्या करती है ?
- यह परमेश्वर को धन्य करती है। (भजन संहिता 66ः 8; लूका 24ः 52,53)
- यह आपको उसकी उपस्थिति में लाकर उसके निकट लाती है। (भजन संहिता 100ः 4)
- यह दरवाजों को खोलती एवं उबड़-खाबड़ जगह को समतल बनाती है (यशायाह 60ः 18; प्रेरितों के काम 16ः 25-26)
- यह शैतान को हराती है (भजन संहिता 149ः 5-9; 2 राजाओं का वृतांत 11ः 13-14)
- यह बेदारी लाती है। (2 इतिहास 31ः 2; 34ः 12; भजन संहिता 107ः 32)
- यह आपको प्रसन्न रख कर आन्नद देती है। (यशायाह 61ः 1-3; प्रेरितों के काम 2ः 45-47)
प्रशंसा शरीर द्वारा आराधना की क्रिया है। क्या कभी आपने अनुभव किया है कि जब आप परमेश्वर की आराधना कर रहे हैं तो आपका शरीर विभिन्न प्रकार की भावनाएं प्रदर्शित करता है।
शरीर की आराधना द्वारा प्रशंसा के उदाहरण:-
- जब आप ताली बजाकर अपने पांव को पटकते हैं तो अपनी उत्तेजना प्रदर्शित करते हैं। (2 राजाओं का वृतांत 11ः 12; भजन संहिता 98ः 8; यशायाह 55ः 12; विलाप 2ः 15, यहेजेकेल 6ः 11)
- जब आप खड़े होते, चलते या कदम उठाते हैं तो जाने को या सेवा हेतु तैयारी को प्रदर्शित करते हैं। (उत्पत्ति 13ः 17; व्यवस्था विवरण 11ः 22-25; यहोशू 1ः 1-5; भजन संहिता 68ः 7-8)
- जब आप हाथों को उठाते हैं तो आप परमेश्वर की आराधना करते और स्वयं का समर्पण करते हैं। (निर्गमन 17ः 8-16; 1 राजाओं का वृतांत 8ः 22-24; भजन संहिता 28ः 2; 63ः 3-4; 134ः 2; 141ः 2 लूका 24ः 50-51; 1 तिमुथियुस 2ः 8; इब्रानियों 12ः 12)
- जब आप नाचते हैं तो महान आनन्द प्रदर्शित करते हैं। (1 शामुएल 18ः 6-7; भजन संहिता 30ः 11; 149ः 3; यिर्मयाह 31ः 13; लूका 15ः 11-24)
- जब आप गाते हैं तो हृदय की प्रसन्नता दर्शाते है। (भजन संहिता 68ः 25; 100ः 2; 108ः 1; नीति वचन 29ः 6; यशायाह 26ः 19; 65ः 13-14; यिर्मयाह 31ः 7; जकर्याह 2ः 10; 1 कुरिन्थियों 14ः 15; याकूब 5ः 13; प्रका.वाक्य 15ः 3)
- जब आप निपुणता से बाजा बजाते हैं तो आप प्रशंसा प्रदर्शित करते हैं। (1 शामूएल 16ः 23; 18ः 6-7; 1 इतिहास 15ः 28; 16ः 42; 25ः 1,3,6; 2 इतिहास 5ः 13-14; 34ः 12; भजन संहिता 33ः 3)
- जब आप दंडवत करते हैं (मुंह के बल जमीन पर सीधे लेटकर) तो आप गहरे भावना और सम्पूर्ण समर्पण को दर्शाते हैं। (भजन संहिता 72ः 11; यशायाह 45ः 14)
- जब आप घुटने टेकते हैं, आप दीनता और परमेश्वर पर आलम्बन प्रदर्शित करते हैं। घुटने टेकना दया को मांगना है। (2घुटने टेकना दया को मांगना है। (इतिहास 6ः 13; मत्ती 17ः 14; मरकुस 1ः 40; लूका 22ः 41; प्रेरितों के काम 9ः 40)
- जब आप बैठकर या शान्त रहते हैं तो आप आराम और परमेश्वर पर भरोसा प्रदर्शित करते हैं। (निर्गमन 14ः 14; यहोशू 6ः 10; अय्यूब 2ः 13; नीति वचन 13ः 3; 17ः 27; आमोस 5ः 13; मत्ती 8ः 4; 12ः 16; 27ः 14; लूका 23ः 9; यूहन्ना 8ः 6)
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