संघर्ष के क्षेत्र को पहचाने

संघर्ष के क्षेत्र को पहचाने
धर्मशास्त्र सिखाता है कि मनुष्य तीन तंत्र अर्थात् शरीर, प्राण एवं आत्मा से मिल कर बना है।

शान्ति का परमेश्वर आप ही तुम्हें पूरी रीति से पवित्र करे और तुम्हारी आत्मा, प्राण और देह हमारे प्रभु यीशु के आने तक पूरी रीति से निर्दोष और सुरक्षित रहे। (1 थिस्लुनिकियों 5ः 23)

प्राण में बुद्धि, भावना और इच्छा का स्थान है। मनुष्य का मस्तिष्क सबसे, बड़ा लड़ाई का मैदान है। क्योंकि मस्तिष्क में ही सम्पूर्ण निर्णय होते हैं जो उसके दैनिक जीवन से ही नहीं परन्तु अन्नत जीवन से भी जुड़े हैं। 

जब परमेश्वर का वचन आपमें जागृत होता है और आप उस पर कार्य करते हैं तो वचन आपका हृदय एवं मस्तिष्क बदल देगा तथा आपकी कार्यशैली अच्छी और परमेश्वर की महिमा हेतु होगी। मसीह के द्वारा विश्वासी को आत्मिक रहस्यों का प्रकाशन एवं समझ प्राप्त होगा, जबकि अविश्वासी आत्मिक रूप से अंधा होता है। (इफिसियों 1ः 17-21 एवं 4ः 17-18 की तुलना करें) 
धर्मशास्त्र स्पष्ट सिखाता है कि प्रभु यीशु ने शैतान को परास्त किया है, उसके अधिकार को छीना है तथा सभी वस्तुएं मसीह के पांवो तले रख दिया है। (इफिसियों 1ः 19-22) शत्रु का प्रारंभिक आक्रमण आपके मस्तिष्क पर होता है। जिस प्रकार उसने हव्वा को बगीचे में और प्रभु यीशु को बियाबान में परखा था, उसी प्रकार वह आपके जीवन में परमेश्वर के वचन एवं विश्वास योग्यता हेतु शंका उत्पन्न करता है।

आपका मस्तिष्क तीन आवाजों पर प्रतिउत्तर दे सकता है। परमेश्वर की, शत्रु की एवं स्वयं की। परमेश्वर के वचन से आप जितना परिचित होंगे, परमेश्वर की आवाज पहचानने में आपको उतनी ही सरलता होगी, क्योंकि वह हमेशा अपने गुणों के अनुसार बोलता है, जैसा उसके वचनों का प्रकाशन है। पवित्र आत्मा की आवाज, प्रोत्साहन, आराम, निर्देशन और प्रकाशन परमेश्वर के प्रेम का आश्वासन एवं सुधार को बताती है।

इसके विपरीत शत्रु इस प्रकार बोलता है जिससे शंकापूर्ण विचार, अपराध बोध, भय, जलन, इर्ष्या, स्वयं को अपराधी सिद्ध करना तथा स्वयं की धार्मिकता उत्पन्न होती है।

शत्रु की आवाज पर अधिकार लेकर आप उसे बोलने से मना करें। इस हेतु परमेश्वर को सम्पूर्ण समर्पण करें। शैतान का सामना करो तो वह भाग निकलेगा (याकूब 4ः 7)। अपने मानवीय तर्क एवं इच्छाओं की आवाज को बांधे। तब अपनी आत्मा एवं मस्तिष्क को पवित्र आत्मा की आवाज सुनने हेतु खोलें। कई बार प्रार्थना हेतु पवित्र आत्मा का निर्देश मानवीय मस्तिष्क को तर्क संगत नहीं लगता। इसे अपनी आज्ञाकारिता और तत्परता में रूकावट न बनने देवें।
अत्मिक बातों की परख आत्मा से होती है। मानवीय तर्क शक्ति से सोचा नहीं वरन किया जा सकता है। पौलूस की शिक्षा को प्रमाणित करें ‘‘मुझमें मसीह का मन है’’ (1 कुरिन्थियों 2ः 14,16)

पहचानिये आपका युद्ध लहू और मांस से नहीं है परन्तु अंधकार की ताकत एवं इस युग के शैतान के अधिकारियों से है। यह युग (संसार) शैतानी ताकतों एवं मनुष्य जाति के मध्य युद्ध का मैदान बन गया है। इस कारण आप मनुष्यों से नहीं लड़ते, जिन्हें आप जानते हैं या जो प्रतिदिन हमारे सम्पर्क में आते हैं। शैतान आपको परेशान करने हेतु आपके मित्रों में फूट डालकर झगड़ा उत्पन्न करता है ताकि आपकी प्रार्थना एवं मध्यस्थता में रूकावट डाले। हमेशा याद रखें कि यर्थात् में युद्ध आत्मिक जगत में होता है, न कि आपके भौतिक परिस्थितियों में।
शैतान आपकी आत्मा, प्राण एवं शरीर के विरूद्ध काम करवाता है। यदि वह आपको उत्पीड़ित कर सके तो वह आपकी आत्मिक उन्नति एवं प्रभावशाली मध्यस्थ बनने से रोक सकता है। शत्रु के ऊपर अधिकार लेकर तथा परमेश्वर के वचन पर सही निर्णय लेने पर आप जय पाएंगे तथा आत्मिक उन्नति में बढ़ सकेंगे। सही निर्णय में गफलत, शारीरिक बीमारी, मानसिक समस्याएं एवं आत्मिक उन्नति में रूकावट आ सकती है।

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