क्षमा

क्षमा
जब आप स्वयं के लिये तथा अपने अपराघियों के लिए क्षमा मांगते हैं तभी आप स्वतंत्र होकर परमेश्वर तथा मनुष्यों के साथ सही संबन्घो में चल पाएगें। क्षमा दूसरे व्यक्ति को भी स्वतंत्र करती है और परिस्थितियों को अनुकूल बना देती है। यह पवित्र आत्मा को अपना कार्य करने एवं पाप, धार्मिकता तथा न्याय को प्रोत्साहन देती है।

यदि किसी को क्षमा करना आपको कठिन लगता है तो भी परमेश्वर के वचन को मानने का निश्चय करें। परमेश्वर से सही सम्बन्घ के बीच में घमंड को न आने दें। अपने दुखों, स्वधर्मीपन, गुणों एवं शत्रुता को छोड़ दें।

क्षमारहित जीवन से आपका सम्बंध परमेश्वर से टूट जाता है। कितना भी गंभीर पाप या अन्याय किसी व्यक्ति ने आपके साथ किया हो उसे क्षमा करें तब आप अपनी आत्मा में स्वतंत्रता पाएंगे तथा परमेश्वर से आपकी सहभागिता पुनः स्थापित हो जाएगी।

तीन क्षमा रहित क्षेत्र हो सकते है।
1. उन व्यक्तियों को क्षमा नहीं करना जिन्होंने आपको दुख दिया या अन्याय किया है।
2. परमेश्वरको क्षमा नहीं करना क्योंकि उसने आपकी समस्याओं का निदान आपके इच्छा या आपके परिमाण से नहीं किया।
3. स्वयं अपने को क्षमा नहीं करना जिन परिस्थितियों के कारण आपको दुख, ग्लानि, तिरस्कार, चिन्ता या निराशा मिली हो।

परमेश्वर का वचन बोलता है कि यदि तुम अपने अपराघियों को क्षमा करो तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करेगा। परन्तु यदि तुम उन व्यक्तियों को क्षमा नहीं करोगे तो पिता भी तुम्हारे अपराघ क्षमा नहीं करेगा। (मत्ती 6ः 14-15) कई बार दूसरों को या परमेश्वर को क्षमा करना स्वंय को क्षमा करने से आसान लगेगा, परन्तु सम्पूर्ण क्षमा आपकी प्रभावशील प्रार्थना हेतु आवश्यक है।
प्रत्येक सुबह निश्चय करना अच्छा है कि आप उस दिन भर क्षमाशील बन कर चलें। उस समय तक न ठहरें जब कोई व्यक्ति आपका सामना करके आपके विरूद्ध अपराध करे और आप उसे क्षमा करने का प्रयास करें। जैसे परमेश्वर ने आपको क्षमा किया है वैसे ही आप भी दूसरो को क्षमा करें और तत्काल ही क्षमा करें जैसे प्रभु यीशु ने किया था। (लूका 23ः 34)
क्षमा अपने में काफी नहीं है इसके साथ पश्चाताप भी करना है। पश्चाताप करने का अर्थ अपने विचारों और कार्यों के लिए इतना दुखी होना कि उन्हें छोड़ देना तथा उन बन्धनों से छुटकारा लेना जिसमें हम जकड़े हैं। इसे किये बिना आप स्वतंत्र नहीं होंगे। क्षमा एवं पश्चाताप साथ-साथ चलते हैं। (नीति वचन 28ः 13; मत्ती 3ः 6-8)
कई बार मनुष्य क्षमा एवं पश्चाताप नहीं करने के कारण भावनात्मक एवं शारीरिक तरीके से कमजोर एवं बीमार रहते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी यातनाएं एवं बीमारियां क्षमा एवं पश्चाताप नहीं करने से होती है परन्तु क्षमा एवं पश्चाताप परमेश्वर की चंगाई की सामर्थ को आपमें तथा दूसरो पर खोलते हैं।
पश्चाताप के समान क्षमा का भी भावनात्मक अनुभव नहीं होना चाहिए। यह केवल आपकी इच्छा का कार्य है। यह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से परमेश्वर के वचन का उत्तर है। एक बार जब आप दूसरों को, परमेश्वर को और स्वयं को क्षमा कर देते हैं, जानिये कि परमेश्वर आपके सब पापों और अधर्मों को धोने में विश्वाश योग्य एवं धर्मी है। (1 यूहन्ना 1ः 9) अपनी समझ पर भरोसा न करें परमेश्वर पर विश्वास रखें क्योंकि उसका वचन सत्य है।
किसी व्यक्ति को क्षमा हेतु चुनने के बाद यदि आपके विवेक में बार-बार नकारात्मक विचार उत्पन्न होवे तो अपने विचारों पर अघिकार करें। अपने विवेक को यीशु के नाम से आज्ञा दें कि सत्य, आदरणीय, सही, पवित्र, सुन्दर, प्रिय एवं प्रशंसा योग्य विचार उत्पन्न हों। (फिलिप्पियों 4ः 8-9) शत्रु को शान्त होने की आज्ञा दें तथा गलत विचारों का खंडन कर दें (2 कुरिन्थियों 10ः 5)। परमेश्वर के वचनों पर विश्वास कर अपनी विचारधारा बदल दें। जब तक आप विजयी न हों तब तक आयतें जोर से बोलने में पवित्र शास्त्र की भरपूर सहायता लें। तत्पश्चात सकारात्मक विचारों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद देना शुरू कर दें। उस व्यक्ति और उस परिस्थिति को सकारात्मक क्षेत्रों में रखने के लिए आशीष मांगे।

पश्चाताप एवं क्षमा का उपयोग
क्या आप शुद्ध होने के लिए तैयार हैं ? परमेश्वर के सामने अपने ह्नदय को पवित्र आत्मा द्वारा छान बीन करने दें। अपने विवेक से ह्नदय को न तलाशे परन्तु पवित्र आत्मा के द्वारा अपने स्वयं के हृदय को परखें। जब आप परमेश्वर के द्वारा सफाई एवं क्षमा ग्रहण करते हैं तो उसे पुनः पवित्र आत्मा से भरने हेतु प्रार्थना करें।

यहां बाइबल पर आधारित पाप स्वीकृति एवं क्षमा की प्रार्थनाएं आपकी सहायता हेतु दी जा रही है।

Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?