समस्त बातों का प्रमाणीकरण

समस्त बातों का प्रमाणीकरण
यह महत्वपूर्ण है कि आप न केवल परमेश्वर की आवाज सुनना सीखे परन्तु आप सम्पूर्ण बातों को जाँचें।
प्रत्येक बातों को सावघानीपूर्वक जांचो, केवल अच्छी बातों को दृढ़ता से थामे रहो। (1 थिस्लुनीकियों 5ः 1)

जब आप परमेश्वर की आवाज सुने तो अपने विचारों एवं भावनाओं पर भरोसा न करें। यह परमेश्वर के गुण एवं परमेश्वर के वचन के अनुरूप होगा। पवित्र आत्मा परमेश्वर के वचन को जो बोला गया तथा सत्य घोषित किया गया है, कभी गलत नहीं ठहराता।

यहां पर दिये कुछ उदाहरणों द्वारा आप परीक्षण या जांच कर सकते हैं कि जो आपसे या दूसरों के द्वारा आपको बोला गया सत्य है या नहीं । शुरू में इसमें समय लगेगा परन्तु जैसे-जैसे आप उसमे बढ़ते जाएंगे, यह सरल बनता जाएगा और आप अघिक दक्ष बन निश्चिंत होंगे तथा उनके मार्ग एवं वचन आपको सत्य लगने लगेंगे। यही सब कुछ सम्पूर्ण नहीं है परन्तु एक साधारण मार्गदर्शन है जो आपको गलती नहीं करने में सहायक होगा।

कभी भी मनुष्य की ओर न देखें परन्तु प्रभु यीशु की ओर देखें:-
कभी भी मनुष्य की ओर न देखे, ना ही उसके वचन को ढूढें और उससे प्रमाण प्राप्त करें (यिर्मयाह 17ः 5) कई बार परमेष्वर अपने बोले वचनों का किसी मनुष्य के द्वारा प्रमाणित करने हेतु प्रयोग करेगा परन्तु यह आपके पास दीनता से दिया जाएगा और देने वाला मनुष्य स्वयं इसे प्रमाणित करने का प्रयास नहीं करेगा। ?

कभी समय सीमा न बांधें:-
परमेश्वर का एवं आपका समय एक सा नहीं होता। बाइबल की कई भविष्यवाणियां अब तक अपूर्ण हैं परन्तु, चूंकि परमेश्वर उन्हें बोल चुका है वे पूर्ण होगीं। जब भी आप परमेश्वर से कुछ पांए यह उसके समयानुसार ही होंगी, इस कारण कभी इसे छोड़ना नहीं चाहिये। (1 इतिहास 17ः 11-12; यशायाह 2ः 2; 46ः 10-11 बी.; सभोपदेशक 3ः 11; प्रेरितों के काम 7ः 17; 11ः 28; प्रकाशित वाक्य 1ः 1)

प्रत्येक प्रगटीकरण हमेशा परमेश्वर के वचन से प्रमाणित करें:-
परमेश्वर आपको कभी भी अपने वचनों के बंधन से बाहर नहीं बताएगा। यदि आपका दर्शन परमेश्वर के वचनों से तालमेल न रखे तो इसे दूर हटा दें। यह केवल आपको धोखे की ओर ले जाएगा।

धर्मशास्त्र को संदर्भ से बाहर न लें:-
घर्मशास्त्र के सम्पूर्ण अर्थ को देखें ताकि आप स्वयं या दूसरो को चोट पहुंचाने या धोखे से बचाएं। लोग धर्मशास्त्र को केवल एक सदंर्भ के रूप में लेते हैं। कई बार वे अपनी स्थिति एवं परिस्थितियों को प्रमाणित करने हेतु धर्मशास्त्र का प्रयोग करते हैं परन्तु संदर्भ के रूप में नहीं। आपको सम्पूर्ण धर्मशास्त्र द्वारा जाँचना सीखना चाहिये। प्रत्येक मात्रा एवं बिन्दु महत्वपूर्ण है। (2 पतरस 1ः 20-21)

यदि आपको प्राप्त वचन पर धर्मषास्त्र की अगुवाई है परन्तु आपकी समझ के बाहर है:-
इसे दूर करें, इस पर प्रार्थना करें तथा प्रभु की आत्मा के द्वारा इसे पूरा होने दें। स्मरण रखें परमेश्वर भविष्य को जानता है और यही है जो आप प्रमाणित करना चाहते हो, इसे जाँच का समय दें। यही कारण है कि आपने इसे लिख लिया है। तब आने वाले दिनों में आपको शंका नहीं होगी।

दूसरों के वचन का न्याय न करें:-
केवल परमेश्वर ही मनुष्य के ह्नदय के विचारों एवं अभिप्राय जानता है। कई बार आप किसी मनुष्य की परिस्थिति को या कि वह किस गहराई के दौर से गुजर रहा है, समझ नहीं पाते। किसी मनुष्य को दिया गया वचन आपके लिये साघारण हो परन्तु उसके लिये सम्पूर्ण भिन्न अर्थ रखता हो। (नीतिवचन 14ः 10; रोमियों 14ः 4; 1 कुरिन्थियों 2ः 11)

कभी भी वचन या दृश्य के द्वारा न डरें और न घबराएँ:-
यदि ऐसा होता है तो यह परमेश्वर की ओर से नहीं है। परमेश्वर न ही घबराहट द्वारा और न ही वह डराने के तरीकों से आप पर काबू करता है। (यूहन्ना 14ः 27; रोमियों 14ः 17; 1 कुरिन्थियों 14ः 33; 2 कुरिन्थियों 2ः 11; 2 तिमुथियुस 1ः 7)

परमेश्वर ने जो वचन आपको दिया है क्या उसके लिए कोई शर्त है:-
‘‘मैं ऐसा करूँगा.... यदि तुम ऐसा करोगे....’’ कई बार परमेश्वर हम को प्रतिज्ञाएं देगा परन्तु पहले हमें उसकी शर्त पूरी करना जरूरी है। (नीति वचन 2ः 1-6; 4ः 4)

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