उपवास हमारे तलवार की चोखी धार

 उपवास हमारे तलवार की चोखी धार

उपवास हमारे फसल काटने के हथियार की धार है जिसे हमेशा गुप्त में प्रार्थना के साथ जोड़कर किया जाता है।


भोजन से वंचित रहने से भी ज्यादा यह उच्च कारणों हेतु स्वयं का इन्कार करने की क्रिया है। इसके पूर्व कि आप प्रार्थना एवं उपवास हेतु बैठें, यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी मंशा एवं हृदय के उद्देश्य को परमेश्वर के साथ जांच लें।

जब तुम उपवास करो तो कपटियों की नाई तुम्हारे मुंह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुंह उदास बनाए रखते हैं ताकि लोग उन्हें उपवासी जाने। मैं तुम से सच कहता हूँ कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। परन्तु जब तू उपवास करे, तो अपने सिर पर तेलमल और मुंह धो ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने, इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है तुझे प्रतिफल देगा। (मत्ती 6ः 16-18)

ध्यान दे कि यीशु ने नहीं कहा ‘‘यदि’’ तू उपवास करे परन्तु ‘‘जब’’ तू उपवास करे। वह अपेक्षा करता है कि मसीही उपवास के अनुशासन को अपने प्रार्थना जीवन में उपयोग करें। ‘‘उपवास’’ क्या है ? यह भोजन से वंचित रहने का एच्छिक या सच का प्रण है कि सधन प्रार्थना का कार्य होवे। प्रभु यीशु ने हमारे उपवास के बारे में कहा कि हमें दूसरो को प्रभावित करने हेतु उपवास नहीं करना चाहिए।

पवित्र आत्मा से पूर्ण होने का अर्थ यह नहीं है कि आप आत्मा की सामर्थ में चलते हैं। सामर्थ का एक रास्ता प्रार्थना एवं उपवास है। (लूका 4ः 1-2,14) जो आपको और अधिक आत्मिक रूप से संवेन्दनशील बना कर परमेश्वर के वचन के प्रति उसकी आवाज सुनने हेतु तैयार करता है। पवित्र आत्मा की यह संवेदनशीलता आपके जीवन को अधिक सामर्थ से भरकर शैतान की सेना से युद्ध करती है।

जब दुल्हा उठा लिया जाएगा तब चेले उपवास करेंगे। (मत्ती 9ः 14-15) यह एक आत्मिक अनुशासन है। (2 कुरिन्थियों 6ः 5) उपवास जो नये नियम में दर्याशा गया है, पवित्र आत्मा से निर्देशन पाने हेतु है यह आत्मा और मस्तिष्क को साफ करता है। (प्रेरितों के काम 13ः 1-3; 14ः 21-23)

उपवास से क्या कार्य होता है ? आपके ज्ञान से भी बहुत अधिक। यह तो आप स्वर्ग में पहुंच कर ही मालूम कर सकेंगे।

जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ, वह क्या यह नहीं कि अन्याय से बनाए हुए दासों और अंधेरा सहने वालों का जुआं तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और सब जुओं को टुकड़े टुकड़े कर देना। (यशायाह 58ः 6)

उपवास का दिन ठहराओ, महासभा का प्रचार करो। पुरनियो को, वरन देष के सब रहने वालों को भी उसकी दोहाई दो। (योएल 1ः 14)

उपवास के साथ प्रार्थना क्यों ?

  • प्रभु यीशु ने चालीस दिन का वियाबान में उपवास रखने का उदाहरण रखा है। (मत्ती 4ः2; लुका 4ः 2)
  • पिता को स्वेच्छा बलिदान, जो उसे प्रसन्न करता है। (1 शामूएल 7ः5-6; प्रेरितों के काम 14ः 23)
  • यह आत्मिक एवं शारीरिक अनुशासन उत्पादन करता है। (1 कुरिन्थियों 9ः 26-27; लूका 2ः 36-37)
  • यह आपको परमेश्वर के न्याय से बचाता है। (योएल 2ः 12,14; योना. 3ः5-8)
  • यह परिवार, कलीसिया एवं राष्ट्र हेतु चिन्ता प्रदर्शित करता है। (2 शामूएल 1ः12; 12ः16; एज्रा 8ः21; एस्तेर 4ः3,16; दानिय्येल 9ः3; मत्ती 9ः15; मरकुस 2ः18-20; लूका 5ः33-35)

उपवास से लाभ:-

  • सामर्थ एवं प्रार्थना को लागू करता है। (प्रेरितों के काम 10ः 30-31)
  • आज्ञाकारिता की आशीषें लाता है। (मत्ती 6ः 6,16)
  • पश्चाताप के द्वारा दीनता लाता है। (नहेम्याह 9ः 1-3)
  • आपके भविष्य हेतु परमेश्वर के मार्ग और इच्छा का प्रकाशन देता है। (दानिय्येल 9)
  • प्रार्थना और आत्मिक मल्लयुद्ध हेतु सामर्थ और अधिकार स्थापित करता है। (मत्ती 4ः 1-11)

उपवास कई महान विजय लाता है उदाहरण:- यहोशपात राजा ने चढ़ाई करती हुई शत्रु सेना के विरूद्ध राष्ट्रीय उपवास ठहराया और शत्रु आपस में लड़कर एक दूसरे को मार डाले। (2 इतिहास 20ः1-30)

उपवास आपको सही मानसिक व्यवहार देता है। उपवास को आप सजा के रूप में न देखें, चाहे शुरू में आपका शरीर उपवास का विरोध करे तो भी।

उपवास एक बहुमुल्य सुअवसर है जो हमें परमेश्वर के समीप लाता है। दैनिक खाने पर केन्द्रित हो रास्ते से न हटे। जब आप स्वेच्छा से दीनता ग्रहण करते हैं तो परमेष्वर आपकी लगनशीलता का प्रतिउत्तर देता है।

उपवास के मार्ग:-

  • 24 घंटे उपवास:- अस्ताचल से अस्ताचल। ठोस आहार से वंचित रहे।
  • आंशिक उपवास:- स्वादिष्ट भोजन से वंचित। केवल स्वच्छ सूप, फ्रूट-जूस, या प्रार्थना हेतु एक समय का भोजन छोड़ दें। (दानिय्येल 1ः8-18; 10ः2-3)
  • तीन दिन उपवास:- सम्पूर्ण भोजन से 3 दिन के लिए वंचित। (एस्तर 4ः 16)
  • लम्बा उपवास:- इसकी दो विधियां है। दोनों हेतु तैयारी करना चाहिए। शुरू करने के पूर्व यह सलाह दी जाती है कि भारी भोजन एवं कैफीन को सर्वप्रथम बन्द करें।
  • सम्पूर्ण उपवास:- सम्पूर्ण भोजन का निष्कासन परन्तु पानी का नहीं। उपवास को धीरे-धीरे तोड़ना चाहिए, केवल हल्के जूस प्रथम एक दो दिन लेना चाहिये। फिर धीरे से फल, साग-सब्जी, अनाज और अंत में मांस।
  • सम्पूर्ण उपवास नहीं:- कोई भोजन नहीं केवल हल्के फ्रुट जूस यदि आप किसी बीमारी का इलाज करा रहे है तो लम्बे उपवास में जाने के पूर्व अपने चिकित्सक से परामर्श ले। आप को केवल आंशिक उपवास ही करना ठीक लगेगा। पवित्र आत्मा के निर्देशन में उपवास रखें तथा आपके अनुशासित प्रार्थना जीवन के अनुसार। (यशायाह 58ः6; 1 कुरिन्थियों 9ः 26-27)

अपने उपवास को और अधिक प्रार्थना का सुअवसर बनाएं। इस दौरान आपकी आत्मा कहीं अधिक पवित्र आत्मा हेतु संवेदनशील रहती है और आपको बहुधा तीखे प्रकाशन परमेश्वर के वचनों में से मिल सकते हैं। उपवास न तो धार्मिक रिवाज है न ही सहन परीक्षण है। यह एक सुअवसर और आशीष है जो दीनता एवं सम्पूर्ण हृदय के विश्वास से परमेश्वर के पास ले जाता है।

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