प्रंशसा एवं धन्यवाद

प्रंशसा एवं धन्यवाद
इसे याद रखें कि प्रार्थना के पहले भाग में आप परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करते हैं। आप उससे बातें और दिल से सहभागिता करते हैं क्योंकि आप उसे प्यार करते हैं।
वचन हमें बताता है कि प्रशंसा और धन्यवाद महत्वपूर्ण चाबी है जिसके द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करते हैं।

उसके फाटकों से धन्यवाद और उसके आंगनो में स्तुति करते हुए प्रवेश करो। उसका धन्यवाद करो और उसके नाम को धन्य कहो। (भजन संहिता 100ः 4)

जब आप प्रशंसा में प्रवेश करते हैं तो मनन करें कि परमेश्वर ने प्रभु यीशु के लहू के द्वारा आपके लिये क्या-क्या किया है। उसका लहू आज आपको नई वाचा में चलने की अनुमति देता है। (इब्रानियों 10ः 19; 12ः 24)

प्रशंसा करें कि परमेश्वर कौन है!
प्रशंसा का साधन पवित्र आत्मा है जो आपकी आत्मा को उत्तेजित कर परमेश्वर की महानता केा दिखाता है। अपने प्रार्थना के समय में प्रशंसा की आदत को बढ़ावा देवें।

हे प्रभु, मेरा मुंह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूंगा। (भजन संहिता 51ः 15)

तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बार तेरी स्तुति करता हूँ। (भजन संहिता 119ः 164)

जब आप परमेश्वर की प्रशंसा कर उसकी महानता को उठाते हैं तो आपकी आत्मा आपके स्तर को ऊँचा उठाकर समझाती है कि परमेश्वर कौन है ? आपकी आत्मा प्रशंसा के दौरान सामर्थी बनती है क्योंकि तब आप जान लेंगे कि परमेश्वर के लिये कुछ भी कठिन नहीं है। (यिर्मयाह 32ः 17)

जो कुछ उसने किया है और जो वह करेगा
उसके लिए उसे धन्यवाद दें।
धन्यवाद करना आपके प्रेम को परमेश्वर के प्रति जगाता है और जब भी आप को महसूस होता है कि आप उसकी संतान हैं, धन्यवाद दें क्योंकि वह आपको सबसे अच्छा और उत्तम वरदान देता है। (याकूब 1ः 17) अपनी प्रार्थना में आनन्द पूर्वक धन्यवाद दें कि उसने अपनी संतान को अपनी मीरास का अधिकारी बनाया है।
उसी को स्मरण करके सब काम करना तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। (नीति वचन 3ः 6)

परमेश्वर ने मुझ पर जितने भी उपकार किए हैं उनका बदला मैं उसको क्या दूं ? मैं तुझ को धन्यवाद बलि चढ़ाऊँगा और परमेश्वर से प्रार्थना करूंगा। (भजन संहिता 116ः 12,17)

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