आधुनिक कलीसिया एक चूना पोती कबर
आधुनिक कलीसिया एक चूना पोती कबर
हमारी पहिली सदी की माता कलीसिया ने तीन सौ साल प्रीस्ट, आराधना भवन, संगीत यंत्र, रविवारीय आराधना, क्रिसमस, ईस्टर और गुड फ्राई डे इत्यादि के बिना काम चला लिया। पास्टर का अविष्कार करने में पूरे डेढ़ हज़ार वर्ष लगे।
रविवारीय आराधना कैसे शुरू हुयी ?
जब रोम के महाराजा काॅन्सटेन्टाइन ने एक भव्य भवन बनाकर आराधना आरम्भ की तो वहां प्रतिदिन एकत्रित होना असम्भव हो गया तो उसने रविवार को विश्राम दिन की घोषणा की परन्तु उसमें इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे ‘‘प्रभु का दिन’’ (Lord's Day) कहे क्योंकि उसकी प्रजा में बहुत से लोग थे जो उस दिन सूर्य की पूजा करते थे। इसीलिए आज भी यह दिन रवि अर्थात सूरज की पूजा के लिये निर्धारित है और इसलिए इसे रविवार कहा जाता है न कि ‘‘प्रभु का दिन’’। (प्रकाशित वाक्य 1ः 10)
न प्रभु जी ने रविवारीय आराधना में भाग लिया और न प्रभु के शिष्यों ने और न पौलुस ने रविवारीय आराधना के लिए आदेश दिया। वैसे भी सप्ताह के अन्य दिन यूरोप के अन्य देवी-देवताओं को समर्पित है जैसे Moon अर्थात चंद्रमा के पूजा के दिन को Monday, देवता से (Tiu) देवता से Tuesday, Woden देवता सेWednesday, Thor देवता से Thursday, Frigg देवता से Friday और Saturn शनि नक्षत्र से Saturday. हिन्दुस्तान में भी अनेक देवताओं को ये दिन समर्पित हैं।
रविवार के दिन और त्यौहारों में लोग अच्छे कपड़े पहन कर क्यों चर्च जाते हैं ?
हमारी पहिली सदी की माता कलीसिया में विश्वासी लोग खेतों से काम करके सीधे एक दूसरे के घरों में प्रार्थना, शिक्षा और प्रीति भोज के लिए एकत्रित होते थे। वे अपने साधारण वस्त्रों में ही एकत्रित होते थे। परन्तु जब राजा काॅन्सटेन्टाइन ने भव्य भवन बनाया जिसमें राजा को दिखाने के लिए अन्य जाति के उच्च शासक सजधज कर आते थे। उनका देखा देखी साधारण लोग भी अच्छे से अच्छा कपड़ा पहिनकर आने लगे। इसलिए लोग आत्मा और सच्चाई से आराधना करने के लिए कम और एक दूसरे को दिखाने के लिए ज़्यादा आते थे। आज भी यह दिखावटी परम्परा बनी हुयी है।
आराधना भवन में बाईबल के बाहर का शब्द पुलपिट कहां से आया ?
रोम और यूनान देशों के देवी देवताओं के मंदिरों में पुरोहित और पुरोहिता दुष्ट आत्माओं से प्रभावित होकर ‘‘एम्बो’’ अर्थात पुलपिट पर चढ़ कर ‘‘देववाणी’’(Oracle) करते थे। ये मूर्ति पूजक पुरोहित (Priest) और पुरोहिता (Prietstess) सफेद चोगा पहिनते थे। लम्बा सफेद चोगा इन मूर्ति पूजकों की देन है और आज भी हमारी कलीसियाओं में हमारे पास्टर सफेद चोगा पहिन कर एम्बो अर्थात पुलपिट पर से देववाणी सुनाते हैं। नए नियम की कलीसिया में हारून का चोगा नहीं पहिना जाता था क्योंकि परदा फटने के बाद उसकी महत्ता समाप्त हो गयी थी।
राजा काॅन्सटेंनटाईन ने कलीसिया को सुरक्षा एवं धन से मालामाल किया जिसको देखकर अन्य जाति के पुरोहितों ने बिना नया जन्म पाये अपने मंदिर और श्रद्धालु समेत अपने आपको ईसाई घोषित किया जिससे बिना उद्धार पाये मसीहियों की संख्या में विस्फोटक रूप से वृद्धि हुई। आज भी बड़ी कलीसियाएं ऐसे बिना उद्धार पाए सदस्यों से भरी पड़ी है। यह इसलिए है कि बड़ी कलीसिया में आत्मिकता का मूल्यांकन नहीं होता परन्तु छोटी कलीसिया में तुरन्त नामधारी ईसाई भी सक्रीय हो जाते हैं।
घरेलू कलीसिया में पुलपिट की ज़रूरत नहीं पड़ती थी परन्तु भवन बनने पर पुलपिट की ज़रूरत पड़ गई। हज़ार साल तक यह पुलपिट एक किनारे पर होती थी जहां से केथोलिक प्रीस्ट घोषणा करता था या इश्तिहार सुनाता था। परन्तु मार्टिन लूथर के धर्म संशोधन के बाद उसने पुलपिट को पीछे से सरका कर सामने ले आया और उसे ऊँचा उठा दिया जिससे व्याख्याता ऊपर हो जाता है और सुनने वाले नीचे हो जाते हैं। पुलपिट नए नियम में अनुमोदित नहीं है। यथार्थ में प्रभु इस निकोलई प्रथा से घृणा करते है। नए नियम की हमारी माता कलीसिया में सब एक साथ बैठकर आराधना करते थे। (प्रकाशित वाक्य 2ः 6)
धर्म व्याख्याता कहां से आए ?
एरिस्टाॅटल नामक एक नास्तिक ने ‘‘रेटोरिक’’ ;(Rhetoric) नामक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने सिखाया कि एक अच्छे व्याख्यान में तीन ख़ास मुद्दे होना चाहिए और एक अच्छा संक्षिप्त अन्त। यह पूरा नाटकीय तरीके से प्रस्तुत किया जाए। आज भी हमारे बाईबल काॅलेज में होमिलेटिक्स, हरमेन्यूटिक, सरमोनिक्स, ओरेटरी और रेटोरिक इत्यादि बाईबल के सिंद्धान्तों पर नहीं परन्तु नास्तिक लोगों की शिक्षा के अनुसार नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। प्रभु ने ऐसे नाटक करने वाले लोगो को पाखंडी (Hypocrite) कहा। (मत्ती 6ः 2)
न हमारे प्रभु और न उनके शिष्यों को कभी रविवारीय भवन और न पुलपिट की ज़रूरत पड़ी परन्तु घर-घर जाकर शिक्षा दी, सामथ्र्य के काम किया और दुनिया को बदल डाला। पुलपिट आज एक प्रतिष्ठा का स्थान बन गया है और स्थानीय पासबान उसकी कड़ी सुरक्षा, लेमेन और स्त्रियों और अन्य संस्थाओं के लोगों से, बड़े लगन से करता है। प्रभु यीशु मसीह की कलीसिया में पुलपिट का कोई प्रावधान नहीं है। यह मूर्ति पूजक पुजारियों की देन है।
नए नियम में पुलपिट से भाषण देने का कोई प्रावधान नहीं है। घर-घर सारी शिक्षा, वार्तालाप, आदान प्रदान, प्रोत्साहन, चेतावनी, समझाना, बाध्य करना इत्यादि तरीके से लोगों को प्रभु के शिष्य बनाना है।(कुलुस्सियों 3ः 16; प्रेरितों के काम 17ः 4; 20ः 20-28; 18ः 4,19,23; 19ः 8-9)
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