कलीसिया और दसवां अंश

कलीसिया और दसवां अंश


क्या बाईबल हम को वास्तव में सिखाती है कि केवल दसवांश देना अनिवार्य है ? इब्राहीम ने शालोम के राजा मल्कीसेदेक को दसवांश देकर एक परम्परा शुरू कर दी (उत्पत्ति 14ः 18-20; 28ः 20-22)। बाद में परमेश्वर ने इसका पुष्टीकरण किया मगर परमेश्वर ने स्वयम् यह नियम मूसा को नहीं दिया (मलाकी 3ः 8-12)। 

यदि मनुष्य ने इस रस्म को शुरू किया तो इसे ही पूरा कर ले। 

यहूदी दसवां अंश से कई गुना ज़्यादा देते थेे। क्योंकि वे अपनी फसल, दाख और फलों की बारी का पहला फल पूरा चढ़ा देते थे। इसी प्रकार अपने जानवरों के पहिलौठों को चढ़ा देते थे और अपने स्वयम् के पहिलौठों की छुड़ौती के लिए भरपूर दान करते थे। वैसे भी यहूदियों का विश्वास था कि हम जितना ज़्यादा देंगे, परमेश्वर यहोवा उतना ही अधिक देगा। वे गरीबों की भी देखभाल करते थे और गरीब के भूखे पेट या बिना गरम कपड़े के सोने को अपना कलंक मानते थे। (व्यवस्थाविवरण 15ः 7-11)

प्रभु यीशु ने दसवांश देने के लिये कभी प्रेरित नहीं किया। प्रभु यीश ने फरीसियों पर कटाक्ष करते हुये कहा कि तुम सौंफ-जीरे का भी दसवांश दिखाने के लिये देते हो परन्तु व्यवस्था की गम्भीर बातों को जैसे न्याय, दया और विश्वास को त्याग दिया है। (मत्ती 23ः 23) 

        प्रभु अब हमारे दसवांश की नहीं परन्तु सारी सम्पत्ति की अपेक्षा करते हैं। यहां तक भी नहीं, परन्तु वह चाहते हैं कि हम धन कमाना छोड़कर उनके पीछे हों लें (मत्ती 4ः 18-22)। क्या यह संभव है ? संभव या असंभव, प्रभु यही सिखाते हैं और पहिली सदी की प्रारम्भिक कलीसियाओं ने व्यवहारिक रूप से इसे अपनाया। प्रभु ने उस गरीब विधवा की तारीफ़ की जिसके पास केवल दो दमड़ी थी और उसने पूरा का पूरा दान में दे दिया (मरकुस 12ः 42-44)। धनवान जवान मूसा की दस आज्ञाओं को मानने का दावा करता था और दसवांश भी देता होगा। प्रभु ने उसे सलाह दी कि सब कुछ बेचकर गरीबों को बांट दे और मेरे पीछे हो ले। केवल यही एक पुरूष, प्रभु के पास आकर भी खाली हाथ चला गया क्योंकि कोई परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकता। इसके पहिले जितनो को प्रभु ने बुलाया वे सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (मत्ती 19ः 16-24)

प्रभु के शिष्यों ने भी अपना सब कुछ त्याग दिया और उसके पीछे हो लिए। प्रभु ने आश्वासन दिया कि जो कोई मेरे नाम से अपने घर, या माता-पिता या भाई-बहिन या स्त्री या बच्चे या ज़मीन को त्याग दे तो उसे सौ गुना अधिक और अनन्त जीवन और अन्त के दिन में न्याय करने का अधिकार मिलेगा (मत्ती 19ः 27-30)। प्रभु ने अच्छे मेहनती मछुओं को उनके काम से छुड़ाकर उन्हें मनुष्यों के मछुए बना दिया। (यर्मियाह 16ः 16)

पौलुस ने कहा जो काम न करें वह खाने भी न पाये (2 थिस्सलुनीकियों 3ः 8-12) परन्तु यह संदर्भ उस परिश्रम से है जो पौलुस प्रभु के लिए आत्मा जीतने के लिए करता था न कि पैसे कमाने के लिए। यहां सुस्त लोगों को प्रभु के लिए परिश्रम करने को कहा गया है। दूसरे संदर्भ में चोरों को चोरी करना मना किया और उन्हें कमाने और कुछ पैसे गरीबों के लिए भी रख छोड़ने को कहा। (इफिसियों 4ः 28)

नये नियम में दसवां अंश देने का न तो कोई प्रावधान है और न पुराने नियम का पुष्टीकरण। यथार्थ में परमेश्वर को केवल दसवां अंश नहीं परन्तु सम्पूर्ण समर्पण चाहिए।

लिखा है कि ‘‘तू अपने परमेश्वर से सारे मन, सारे प्राण, सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्रेम कर (लूका 10ः 27) और अपने शरीर को जीवित, पवित्र और ग्रहण योग्य बलिदान करके परमेश्वर को अर्पित कर। यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।’’ (रोमियों 12ः 1; यहेजकेल 18ः 4)

पहिली सदी की कलीसिया में नए विश्वासी जिनके पास एक से ज़्यादा घर थे और अतिरिक्त जमीन थी वे उसे बेच कर न केवल दशवांश परन्तु पूरा का पूरा पैसा चेलों के पैरों के पास रखते थे (प्रेरितों के काम 4ः 34)। हनन्याह और उसकी पत्नी सफीरा ने धोखा देने की कोशिश की और तुरन्त मर गए। जिनके पास घर और धन था उसको वह अपना नहीं समझते थे (प्रेरितों के काम 2ः 44-46) परन्तु कलीसिया की उन्नति के लिए काम में लाते थे। बरनाबास एक लेवी वंश का था इसलिए उसकी जमीन अवैध सम्पत्ति थी इसलिए उसने अपनी सब ज़मीन बेचकर चेलों के पैरों के पास रख दी और प्रेरित बन गया। (प्रेरितों के काम 4ः 34-37)

प्रेरितों ने कलीसियाओं से कभी नहीं कहा कि उनको दसवांश देना चाहिए। परन्तु बहुतायत के जीवन के लिए स्वेच्छा से देने का सुझाव दिया। (2 कुरिन्थियों 9ः 7-15)

आज हम कहां हैं और हमारी कलीसिया क्या शिक्षा दे रही है ? केवल दसवांश देने वाले कितने भ्रम में हैं ? धन के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण है ? कई लोगों को सरकारी नौकरी या विदेश में ख़ास कर अरब या पश्चिमी देशों में नौकरी मिल जाती है तो वह सोचते हैं कि उनका भाग्य खुल गया परन्तु नया नियम कहता है कि यह धोखा है (याकूब 4ः 13)। कई लोग तो सरकारी नौकरी पाकर इतने ख़ुश हो जाते हैं कि परमेश्वर को दूसरा स्थान देने लग जाते है।

परमेश्वर धन कमाने की सामथ्र्य एक विशेष कारण से देता है। वह यह है कि उस कमाए हुए धन से उसकी वाचा जो उसने इब्राहीम से बांधी थी पूरी हो। उस वाचा का सारांश यह है कि तू और तेरी सन्तान के द्वारा इस संसार के समस्त कुल उद्धार पाएं (उत्पत्ती 12ः 1-3)। जो लोग यीशु मसीह में हैैैं, वे इब्राहीम की सन्तान हैं (गलातियों 3ः 29)

आप इस धोखे में न रहें कि आपने अपनी मेहनत से कमाया है इसलिए यह धन आपका है।

परमेश्वर ने आपको इसलिए धन कमाने की सामथ्र्य दी है कि उस धन के द्वारा उन जातियों का उद्धार हो सके जो अंधकार में हैं और अभी तक इब्राहीम की संतान नहीं बन पाईं हैं। (व्यवस्थाविवरण 8ः 17-18)

यदि आप अपनी कमाई को अपने ही ऊपर खर्च कर रहें हैं तो ग़लत कर रहें हैं। आप केवल अपनी आवश्कताओं के लिये एक भाग उपयोग कर सकते हैं, शेष प्रभु के लिये है। यदि आपकी कमाई आपको पर्याप्त नहीं होती तो इसका कारण यह है कि आपकी कमाई आशिषित नहीं है। वैसे भी बाईबल सिखाती है कि जो व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में भला है उसको वह बुद्धि, ज्ञान और आनन्द प्रदान करता है, परन्तु पापी को उसने धन एकत्र करने का कार्य सौंपा है कि परमेश्वर उस मनुष्य को दे जो उसकी दृष्टि में भला है (सभोपदेशक 2ः 26)। 

पापी मेहनत करके कमाता है जिससे धर्मी का फ़ायदा हो। यह है परमेश्वर का न्याय।

आजकल कलीसिया के प्रायः सभी खर्चे फिजूल हैं चाहे वे ज़मीन ज़ायदाद के लिए हों या उन अगुवों पर खर्च जिन्हें आत्मा जीतने का कोई बोझ नहीं है। कोर्ट कचहरी में वकीलों और दलालों पर परमेश्वर के धन को बरबाद करने का कोई प्रावधान नहीं है। (1 कुरिन्थियों 6ः 1-9)

नया नियम केवल दो बातों के लिए खर्च करना सिखाता है। एक तो गरीबों की सुधि लेने के लिए और दूसरा मज़दूरों के लिए जो कलीसिया की बढ़ोत्तरी के लिए परिश्रम करते हैं। (याकूब 1ः 27; लूका 10ः 7; 2 तीमुथियुस 2ः 3-4)
अक्सर हमारी कलीसियाओं में इन दो विषयों को छोड़कर सब काम होते हैं। इसलिए गंभीरता से यह विचार करना होगा कि जहां आत्माएं नहीं जीती जातीं वहां अपनी मेहनत से कमाया धन देने का क्या औचित्य है ? यह पैसे बरबाद करने का एक अचूक तरीका है।

कलीसिया में कोई स्वावलंबी (Independent) नहीं होता परन्तु सभी एक दूसरे पर निर्भर (Interdependent) होते हैं। आज बहुत से जवान मिशनरी होकर गाँवों में जाने को तैयार हैं परन्तु भेजने वालों के अभाव में वे घर बैठे हैं। यह बड़े दुःख की बात है कि, आज परमेश्वर ने कई मसीहियों को आशिषित किया है, परन्तु वे अभी तक अन्य जातियों के लिए आशीष का कारण नहीं बन पाए हैं। (उत्पत्ति 12ः 1-3)

नए नियम में प्रचारक के गंदे, फटे पांव को अति सुंदर और सुहावना माना गया है क्योंकि वे परमेश्वर का सुसमाचार अन्य जातियों तक ले जाते हैं (रोमियों 10ः 15)। उन सुहावने पैरों को गतिशील करना हम सब का कर्तव्य और सौभाग्य है (3 यूहन्ना: 7-8)। उनको सबसे पहिले दुगुना देना चाहिए जो भटकी हुई भेड़ों को खोजने के लिए समर्पित हैं चाहे वह किसी भी संस्था से जुड़े हों। (1 तीमुथियुस 5ः 17-18)। ये आपके या किसी संस्था के नौकर नहीं हैं और न ही दया व भीख के पात्र, परन्तु परमप्रधान की सेना के योद्धा हैं (2 तीमुथियुस 2ः 3-4)। अतः बाईबल के आदेशानुसार प्रभु में उन्हें बड़े आनन्द के साथ स्वागत और उनको अधिक आदर दिया करो (फिलिप्पियों 2ः 29-30)

अनेक रूप से आप उनकी ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं - जैसे खाने की सामग्री, कपड़े, साइकिल, बाईबल या साहित्य, बच्चों की फ़ीस, बीमारी के समय का खर्च, घर का किराया, त्यौहार के समय उनकी ज़रूरतों को पूरा करने (3 यूहन्ना: 7-8) इत्यादि। हर रविवार को उनके लिए कुछ रख छोड़ने का आदेश है। धर्मशास्त्र के अनुसार आप जितना बोओगे उतना ही काटोगे। (1 कुरिन्थियों 16ः 1-2; 2 कुरिन्थियों 9ः 6-7)

अधिकारियों की तन्ख्वाह और कलीसिया के भवन, प्रोग्राम तथा कोर्ट कचहरी के लिए दसवा अंश देने का नए नियम में कोई प्रावधान नहीं है।

समय का बनाने वाला एक दिन हमारी प्रतिभा, वरदान और समय का भी हिसाब लेगा। हम सप्ताह के 168 घंटे में से मात्र एक या दो घंटे ही रविवार को देते हैं जिससे अन्य जातियों को कोई फ़ायदा नहीं होता। धन के साथ परमेश्वर को अपना समय देना भी आवश्यक है।

‘‘दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा, लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।’’ (लूका 6ः 38)

यदि आप अन्य जातियों में फलवंत सेवकाई करने वाले सेवक की ज़रूरतों को पूरा करने में सहायता नहीं कर रहें हैं तो यह मान कर चलिये कि आप पर्याप्त् दान नहीं दे रहे हैं। क्योंकि प्रभु के सेवक और उसकी पत्नी और बच्चों की कमी घटी हमारे लिए कलंक और श्राप साबित हो सकती है।

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