घरेलू कलीसिया और संगठन

घरेलू कलीसिया और संगठन


प्रभु यीशु ने कहा मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा (मत्ती 16ः 18)। यह कलीसिया कोई पंजीकृत संस्था नहीं है इसलिए पंजीकृत सदस्य और विधि-विधान का कोई औचित्य नहीं है। नये नियम में तीन सौ साल तक कोई औपचारिक संगठन नहीं था इसलिए मसीहत एक आंदोलन के समान विस्फोटक रूप से फैला। कान्सटेनटाइन राजा के समय संगठन का निर्माण हुआ और अधिकारी लोग विश्वासियों पर अधिकार जमाने लगे। उसके बाद कलीसिया का सही रूप और कार्य बदल गया। 

माता कलीसिया में कमेटी नाम की कोई चीज नहीं होती थी और न पाश्चात्य् पद्धति से आयात किए प्रेसिडेन्ट, चेयरमेन, सेक्रेटरी इत्यादि। शैतान इस लिए आया कि कमेटी बनाए और बहुतों को नाश करें परन्तु प्रभु इसलिए आऐ कि सब जीवन पाएं और बहुतायत का जीवन पाएं (यूहन्ना 10ः 10)। ऐसा कहा जाता है कि यदि मूसा के पास कमेटी होती तो यहूदी लोग आज भी जंगल में बहस करते हुये पाये जाते। इस कारण उसने वरदानी सेवक जैसे प्रेरित, भविष्यवक्ता, शिक्षक, रखवाले और  प्रचारक दिए। परन्तु हम इन पदवियों को छोड़कर चेयरमेन और सेक्रेटरी बनना पसन्द करते हैं जो कि सांसारिक पदवियां हैं। परन्तु हमारी माता कलीसिया में वरदानी पदवियों को ही मान्यता दी जाती थी और आज तो इन की सख्त ज़रूरत है।

नये नियम की माता कलीसिया में विभिन्न संगठन भी नहीं हुआ करते थे जैसे यूथ ग्रूप, महिला समिति, भ्रातृीय समाज, बच्चों का संडेस्कूल इत्यादि। आराधना, शिक्षा इत्यादि घरानों के बीच, बच्चों के खेलते हुए, स्त्रियों के खाना पकाते हुए, समय, असमय चलती थी। इसलिए सबको एक साथ शिक्षा मिलती थी। प्रताड़ित होने के कारण से प्रारम्भिक कलीसिया में न तो संगीत क्वायर होता था और न कोई सांस्कृतिक प्रोग्राम और न ही क्रिसमस और गुडफ्राइडे और ईस्टर का त्यौहार। ये तो बाद के अविष्कार हैं।

बहुत से पुराने नियम के रीति-रिवाज़ फिर से हमारी कलीसिया में आ गए हैं। जैसे भवन का निर्माण, हारून का चोगा, मंदिर के परदे के फट जाने के बावजूद वेदी की पवित्रता, प्रभु यीशु के बलिदान के बाद फिर से पास्टर को पादरी या रेव्हरेन्ड कहकर फरीसी की तरह मान्यता देना।

धर्म (Religion) मनुष्यों के द्वारा बनाए जाते हैं। रीति-रिवाज़ी धर्म, परमेश्वर की ओर से नहीं परन्तु शैतान का आविष्कार है। यही कारण है कि धर्म के नाम पर आज अनेक अत्याचार हो रहे हैं। आत्मा हमको स्पष्ट बताता है कि अन्तिम समय में अनेक लोग भरमाने वाली आत्माओं और दुष्ट आत्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाने के कारण विश्वास से भटक जाऐंगें (1 तीमुथियुस 4ः 1-2)। आज कलीसिया इन पाखंडियों से भरी पड़ी है। संसार से मेल मिलाप कर, सताव से बचने वाली कलीसिया, प्रभु की कलीसिया नहीं है परन्तु एक शैतानी संगठन है। (मत्ती 16-21-23; गलातियों 6ः 12-15)

इतिहास हमें बताता है कि बड़ी, संगठित और रीति-रिवाज़़ों में लिप्त कलीसिया ने छोटे झुंडों को हमेशा प्रताड़ित किया है और आज भी करती हैं। परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि कुछ कलीसियाओं में परिवर्तन आ रहा है और वे मिशनरी भेजने वाली बन रहें हैं और उनके अगुवे अड़ोस पड़ोस की बस्तियों में अपने सदस्यों को घरेलू झुंड (Cell or House Church) खोलने के लिये प्रोत्साहित कर रहें हैं।

हमारी संस्थाओं ने अपने विधि-विधानों, रीति-रिवाज़ों और कर्मकाण्डों से मसीहत को एक धर्म बनाकर उसकी हत्या की है। हमने बहुत से विधि-विधान का अविष्कार कर लिया है और इतने रूढ़ीवादी हो गये हैं कि अपनी विधियों और कार्यक्रमों में तनिक भी परिवर्तन नहीं सह सकते। यदि किसी आपात्कालीन स्थिति में कोई यह सुझाव दे कि रविवार की विधि को स्थगित करके केवल प्रार्थना की जाए तो शायद ही कोई सहमत होगा। इसके विपरीत जब पतरस जेल में डाल दिया गया तो सारी कलीसिया मरकुस की माता मरियम के घर में लौ लगाकर प्रार्थना कर रही थी (प्रेरितों के काम 12ः 5)।

         प्रभु यीशु भी आज आ जाएँ तो वह हमारी विधि को नहीं बदल सकेंगे। शायद उनको पुलपिट भी न दिया जाए क्योंकि वे हमारे डिनामिनेशन के नहीं हैं। आज भी हम नए विश्वासियों को अपने डिनामिनेशन या संस्था के रीति-रिवाज़ सिखाने में ज़्यादा महत्व देते हैं और धर्म के गूढ़ सिद्धान्तो में वे दूध पीने वाले बच्चे रह जाते हैं। (मरकुस 7ः 6-9)

कई लोग बहाना करते है कि हम अपने चर्च के नियम के विपरीत काम नहीं कर सकते इसीलिए प्रभु ने ऐेसे पाखंडियों की भत्र्सना करते हुए कहा कि तुम मनुष्य की परम्पराओं को मानकर परमेश्वर की आज्ञााओं को व्यर्थ ठहराते हो। (मरकुस 7ः 6-7, 9-13) यदि आप अपनी संस्था या कलीसिया के नियमों के बंधन में ऐसे फँसे हैं कि आप संगठन के नियमों को बाईबल के सिद्धान्तों से ज़्यादा महत्व देते हैं तो आपकी स्थिति सचमुच दयनीय है।

रविवारीय आराधना, क्रिसमस, ईस्टर, गुडफ्राईडे, भवन, पेशेवर पास्टर, बच्चों का बपतिस्मा, संगीत का यंत्रीकरण, भवन, चोगा, दसवां अंश, कमेटी इत्यादि नए नियम में अधिकृत नहीं हैं।

प्रभु यीशु बहुत कम मंदिर जाते थे। और कभी भूले भटके मंदिर गये तो प्रार्थना और आराधना नहीं किया पर कोड़े लेकर मंदिर को साफ किया और अधिकारियों को सबक सिखाया। उनके शिष्यों ने भी अपने स्वामी का अनुसरण किया। उन्होंने नगर-नगर में जाकर प्रचार किया और अपमानित होकर दुःख भोगा। छावनी के अन्दर यहूदी बड़े सुरक्षित होते थे और बाहर निकलते ही अन्य जातियों से दुःखद सम्पर्क होता था। मसीही अपने को चर्च में बड़े सुरक्षित पाते हैं परन्तु धर्म के मामले में अन्य जातियों के बीच गूंगे हो जाते हैं।

हमें चुनौती है कि अपने प्रभु के समान निन्दा और अपमान सहते हुए अपनी सुरक्षित छावनी अर्थात अपनी संस्था या डिनामिनेशन के व्यर्थ विधि-विधान से बाहर निकलकर प्रभु के लिए दुःख उठाएं। (इब्रानियों 13ः 12-13, फिलिप्पियों 1ः 29)

जिस प्रकार प्रभु और उनके शिष्यों ने यरूशलेम के धार्मिक संगठन (Sanhedrin) (प्रेरितों के काम 4ः 5-13) और आराधनालय (Synagogue) (लूका 13ः 14-7) तथा मंदिर (मत्ती 24ः 1-3) को योजनाबद्ध तरीके से तोड़ा वैसे आज के प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, शिक्षक, रखवाले एवं प्रचारकों को चुनौती है कि बाईबल के बाहर के मानवीय परम्परागत, विधि विधान, भवन, समितियां, त्यौहार इत्यादि जो परमेश्वर के राज्य की बढ़ोत्तरी में अवरोधक होती हैं उन्हें योजना बद्ध तरीके से तोड़ें। उन्हें उखाड़ दें, ढा दें, उनका तख्ता पलट दें और पुनः बाईबल के सिद्धान्तों के अनुसार कलीसिया को रोपें और निर्माण करें। (यर्मियाह 1ः 9-10)

इसलिए प्रभु कहता है उनमें से निकलो और अलग हो जाओ... तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा और तुम्हारा पिता होउंगा और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे। (2 कुरिन्थियों 6ः 17-18)

मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर-उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूंगा। (यशायाह 41ः 10)


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