आप याजक हैं लेमेन नहीं

आप याजक हैं लेमेन नहीं
यह तो कटु सत्य है कि क्रिसमस, ईस्टर गुड फ्राईडे, रविवारीय आराधना, पेशेवर पास्टर, आराधनालय, पुलपिट, सफेद चोगा, दशवांश, संगीत का यंत्रीकरण, बच्चों का बपतिस्मा इत्यादि नए नियम पर आधारित नहीं हैं। यदि कलीसिया इन चीज़ो को प्राथमिकता देती है तो वह कलीसिया सुसमाचार पर आधारित नहीं है। 

यह सब आडम्बर महान आदेश की पूर्ति में महान अवरोधक बन जाते हैं क्योंकि पवित्र याजकीय समाज के सदस्य गाँवों, मोहल्लों और पड़ोस में जाकर अपनी याजकीय सेवकाई नहीं कर पाते। इसके विपरीत वे मात्र ‘‘लेमेन’’ होकर भजनालय में बैठ कर बेंच गरम करने वाले बन जाते हैं।

 ‘‘लेमेन’’ शब्द एक यूनानी शब्द Priest)’ से होता है जिसका अर्थ ‘‘साधारण व्यक्ति’’ होता है। कलीसिया में ‘‘पादरी’’ या धर्मशासक (Priest) और ‘‘साधारण सदस्य’’ (Layman) का विभाजन पूरी तरह से ग़लत हैं क्योंकि हम सब पवित्र याजक हैं और हममें कोई ऊँच-नीच की भावना नहीं हो सकती। यथार्थ में लेमेन शब्द का मतलब होता है-शून्य, व्यर्थ, निरर्थक, निष्फल, अनुपयोगी इत्यादि। संसार में आप कितने भी सम्मानित इन्सान क्यों न हो परन्तु कलीसिया में आप, व्यर्थ, निरर्थक, निष्फल और अनुपयोगी है। आपका इतना काम है कि आप संख्या को बढ़ाएं और चंदा उदारता से दें।

यदि आपने ज़्यादा सक्रीयता दिखाई तो अपको चंदा उठाने की थैली पकड़ा दी जाएगी। यदि आपने और ज़्यादा दिलचस्पी ली तो आपको भ्राता या महिला समाज का सचिव बना दिया जाएगा। यदि आपने खरा-खरा बोलना शुरू कर दिया तो आपको कमेटी का सदस्य बनाकर चुप करा दिया जाएगा। परन्तु आपके आत्मिक वरदानों का सही उपयोग नहीं किया जाएगा।

हो सकता है कि इसके उपकार में वे जीते जी आपके लिए कुछ न कर पांए परन्तु मरने पर आपको अवश्य विधिवत गड़ा दिया जाएगा। परन्तु विधिवत गड़ाने के बाद भी स्वर्ग जाने का शुभ अवसर न मिले क्योंकि कलीसिया के कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण आत्मा जीतने का अवसर ही न मिल पाये। हम याद रखें कि हर एक विश्वासी अपने फलों से पहचाना जाएगा। (मत्ती 7ः 16-20)

हमेशा याद रखिए कि आप चुने हुए (Chosen) याजकीय समाज के सदस्य हैं (1 पतरस 2ः 9; निर्गमन 19ः 5-6)। आप इसलिए चुने गए हैं कि आप फल लांए और आपका फल बना रहे (यूहन्ना 15ः 16)। ‘‘चुना हुआ’’ (Chosen) एक यूनानी शब्द ‘‘एक्लीक्टाॅस’’ ;मसमाजवेद्ध से है जिसका अर्थ होता है कि आप परमेश्वर की सेवा के लिए ‘‘अलग किए गयें’’ हैं या ‘‘बाहर बुलाए गयें’’ है। आप यह जान लें कि परमेश्वर ने आपको एक उत्तम देश देने के लिए इसलिए नहीं चुना कि आप बड़े धार्मिक हैं और न परमेश्वर ने इस लिए आपको चुना कि आप संख्या में बड़ी जाति के हैं। (व्यवस्थाविवरण 9ः 5-6; 7ः 6)। परमेश्वर ने आपको इसलिए चुना क्योंकि उसने आपसे प्रेम किया और चुना कि आप याजक अर्थात पुरोहित होकर परमेश्वर के महान गुणों को प्रकट करें। (1 पतरस 2ः 9)
एक पवित्र याजकीय समाज के सदस्य होने के कारण प्रत्येक याजक चाहे स्त्री हो या पुरूष - आपके कम से कम तीन कार्य हैं।

1. मध्यस्थ (Intercessor) - यह एक यूनानी शब्द  “Paga” से सम्बंधित है जिसका अर्थ होता है कोई एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय को लेकर परमेश्वर से गिड़गिड़ाकर उस विषय के समाधान के लिये आग्रह करना है। परमेश्वर हमेशा मध्यस्थता करने वालों की खोज में है और न मिलने पर अत्यन्त दुःखी हो जाता है। (यशायह 59ः 16; यहेजकेल 22ः 30)

हमारा प्रभु महायाजक होकर आज दो हज़ार वर्षाें से मध्यस्थता की प्रार्थना कर रहे हैं इसलिए हमारा भी उत्तरदायित्व है कि हम भी याजक होने के नाते अन्य जातियों के उद्धार के लिए सदा मध्यस्थता की प्रार्थना करें (इब्रानियों 7ः 25)

2. बलिदान चढ़ाना - परमेश्वर ने कहा कि मेरा घर बलिदान का घर कहलाएगा (2 इतिहास 7ः 12)। नए नियम में प्रभु यीशु ने कहा मेरा घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा अर्थात अन्य जातियों के लिये यहां प्रार्थना की जायेगी जिससे वे चंगाई पाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे। (मरकुस 11ः 17)
पौलुस ने साफ लिखा कि मैं याजक होकर अन्य जातियों को आत्मिक बलिदान के रूप में चढ़ाता हूँ। (रोमियों 15ः 16)

यही कारण है कि प्रत्येक मसीही याजक को अन्य जातियों को आत्मिक बलिदान के रूप चढ़ाना आवश्यक है अर्थात शिष्य बनाना, बपतिस्मा देना और प्रशिक्षण देकर उन्हें महान आदेश की पूर्ति के लिये भेजना। यदि आप इस जिम्मेदारी को नहीं निभाएंगे तो आप अपने याजकीय अधिकार का उपयोग नहीं कर रहे है।

3. परमेश्वर के प्रवक्ता - क्योंकि आप याजक हैं इसलिए परमेश्वर के प्रवक्ता हैं। इस कारण आपके मुँह से परमेश्वर का ज्ञान छलकना चाहिए और लोगों को आपके पास परमेश्वर का ज्ञान सीखने के लिए आना चाहिए। यदि आप याजक होकर परमेश्वर के वचन में अज्ञान हैं तो आप और आपकी संतान के नष्ट होने की सम्भावना होती है। आप याजक हैं और आपको वचन की गूढ़ बातों का गहरा ज्ञान होना चाहिए। (मलाकी 2ः 7; होशे 4ः 6)
जब आप इन सारे आदेशों का पालन समर्पण से करते है तब सचमुच में परमेश्वर की आराधना और स्तुति (Praise & Worship) आत्मा और सच्चाई से होती है। अन्यथा कलीसिया एक प्रभु-प्रभु कहने वालों का जमघट हो जाती है जिनको एक दिन प्रभु कह देगा कि मैं तुम्हें नहीं जानता।
आप कभी न भूलें कि आप एक राजपदधारी याजक हैं इसलिए तुरन्त एक छोटा झुण्ड तैयार करके अपनी याजकीय सेवा आरम्भ कीजिए। आपका अभिषेक (Ordination) परमेश्वर ने स्वयं उस दिन कर दिया जिस दिन आपने प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किया।

तुमने मुझे नहीं चुना पर मैने तुम्हें चुन लिया है और नियुक्त (Ordination) किया है कि तुम जाकर फल लाओ और तुम्हारा फल बना रहे...(यूहन्ना 15ः 16)

फसल तो तैयार है:-
प्रभु ने दो हज़ार साल पहिले कहा कि फसल पक चुकी है। शिष्यों के समान हम भी गलत विचार करते हैं कि फसल आने में देर है। शायद उच्च जाति के हिन्दु और मुसलमान और जैन इत्यादि अभी तैयार नहीं है, यह गलत धारणा है क्योंकि यह प्रभु के वक्तव्य को नकारना है। इसीलिए प्रभु ने आदेश दिया कि ‘‘आँखे उठा कर देखो कि फसल कटनी के लिए पक चुकी है’’। केवल मज़दूरों की कमी है। 

अगर भारत की कलीसियाओं के मुट्ठी भर सदस्य रविवार के दिन बेंचो को शोभायमान करने के बदले प्रभु के खेत में मज़दूरी करने निकल जांए तो सारी फसल एक ही पीढ़ी में काटी जा सकती है, क्योंकि फसल तो पक चुकी है। (यूहन्ना 4ः 35; लूका 10ः 2)

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