घरेलू कलीसिया और प्रभु भोज

घरेलू कलीसिया और प्रभु भोज


इस्राएली लोग हर वर्ष फसह के पर्व को अपने घरों में मनाते थे, क्योंकि इसी रात को वे मिस्र देश से गुलामी की जंजीरों को तोड़कर मूसा के साथ कनान की ओर निकल पड़े थे। उसी रात को परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार हर इस्राएली घराने ने एक निर्दोष मेम्ने का वध किया, उसका खून दरवाजे के चैखट पर लगाया और उसका मांस खाया था। जिस घर के दरवाजे के चैखट पर लहू लगा था वहां मृत्यु की आत्मा प्रवेश न कर सकी पर मिस्त्रियों के हर घर का पहलौठा, क्या जानवर, क्या मनुष्य सब मर गए (निर्गमन 12)। यहूदी लोग आज तक इस परम्परागत रस्म को अदा करते हैं। 

       इसी फसह के पर्व पर प्रभु यीशु ने एक घर में अपने शिष्यों को अन्तिम रात में मेम्ने का मांस, मेथी की सब्जी और रोटी खिलाया और भोजन के पश्चात् दाखरस पिलाया। ‘‘प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया, रोटी ली, और उसने धन्यवाद देकर रोटी तोड़ी और कहा, ‘‘यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिए है: मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।’’ इसी प्रकार भोजन के पश्चात् उसने यह कहते हुए कटोरा भी लिया, ‘‘यह मेरे लोहू में नई वाचा का कटोरा है। जब जब तुम इसमें से पीओ तब तब मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।’’ (1 कुरिन्थियों 11ः 23-25)

      प्रभु यीशु मसीह के मेम्ने के समान बलिदान होने के बाद फसह के पर्व का रूप बदल गया है। अब रोटी का तोड़ना प्रभुजी की देह के टूटने को इंगित करता है और उस रोटी का खाना उनके मांस को खाने की याद दिलाता है (यूहन्ना 6ः 48-58)। उसी प्रकार से दाखरस का पीना उनके लहू की नयी वाचा है

       परन्तु पहिली सदी की माता कलीसिया में जिस तरह खाया और पिया जाता था, उसमें और आज की रीति रस्म में कोई ताल-मेल नहीं है। ‘‘...वे प्रतिदिन... घर-घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सिधाई से भोजन किया करते थे। (प्रेरितों के काम 2ः 46)

       विश्वासी लोग प्रायः प्रतिदिन घरों में मिलते थे और अपना भोजन साथ में लाते और मिलकर खाते थे, जिसे वे प्रभु भोज मानते थे। (1 कुरिन्थियों 11ः 20-23; प्रेरितों के काम 20ः 7)

        धन्यवाद करके एक रोटी तोड़कर बाँटी जाती थी, तत्पश्चात् भोजन किया जाता था और भोजन के अंत में एक कटोरे से दाखरस पिया जाता था। प्रभु भोज को अगापे भोज या प्रीति भोज कहा जाता था। माता कलीसिया में प्रभु भोज में बुजुर्ग, बच्चे आदि सभी भाग लेते थे। पहिली सदी की माता कलीसिया में साधारण भोजन को ही प्रभु भोज माना जाता था। अतः साधारण सदस्य, स्त्री या पुरूष, कोई भी रोटी तोड़ सकता था और दाखरस के कटोरे को दे सकता था। जहां-जहां प्रभु भोज का वर्णन नए नियम में आया है वहां किसी बिशप, पास्टर या प्राचीन, ‘दीक्षित’ अधिकारी द्वारा इस विधि की अगुवाई करने का वर्णन नहीं है क्योंकि यह एक संस्कार नहीं परन्तु संगति है।

आज हमने कलीसिया में बहुत ज़्यादा निष्क्रिय लोगों को एक भवन में इकट्ठा कर लिया है जहां पहिली सदी की माता कलीसिया की प्रभु भोज की रूप रेखा सम्भव नहीं है। सारे प्रचलित विधि-विधान हमारे अविष्कार हैं और प्रभु के उदाहरण के विपरीत हैं (1 कुरिन्थियों 1ः 1-2)। हमने इस प्रेम भोज का उद्देश्य और प्रथा को पूरी तरह बदल डाला है। 

       आज प्रभु भोज एक रीति-रिवाज़ी रस्म रह गई है जिसमें सदस्य बड़े गम्भीर चेहरे बना कर पवित्र वेदी के सामने, पवित्र रोटी का चूरचार और छोटे-छोटे पवित्र कप में पवित्र द्राक्षासव, एक पवित्र जन द्वारा, एक पवित्र-भवन में, पवित्र घुटनो पर अयोग्य रीति से ग्रहण करते हैं क्योंकी उसके बाद कलीसिया टूट कर प्रभु की मृत्यु का प्रचार नहीं करती। (1 कुरिन्थियों 11ः 26)

         कुछ रोमन केथोलिक संस्थाओं में तो यह हालत है कि पवित्र प्रीस्ट, रोटी और दाखरस को स्वयम् हज़म कर लेता है क्योंकि वह इसे एक पवित्र-सेक्रामेंट कह कर दूसरों को सर्वथा अयोग्य समझता है। ठीक इसी तरह हम भी स्वार्थी होकर प्रभु भोज ग्रहण कर रहें हैं जबकि हर कुल, गोत्र जाति और भाषा के लोगों का भी इस प्रेम भोज में सम्मिलित करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं।

शायद आप कहेंगे कि लिखा है यदि कोई अनुचित रीति से रोटी खाये और दाखरस पिये तो अपराधी ठहरेगा (1 कुरिन्थियों 11ः 27)। आज अधिकांश कलीसियाएँ कुरिन्थ की मण्डली की तरह अनुचित रीति से प्रभु भोज में सम्मिलित हो रही हैं। कुरिन्थियों की कलीसिया में कुछ कठिनाइयाँ थीं। उनमें फूट और दलबंदी थी (1 कुरिन्थियों 11ः 18-19)। लड़ाई झगड़े और फूट की स्थिति में प्रभुभोज अनुचित हो जाता है। वहां के धनी और स्वार्थी लोग अपना भोजन और दाखरस पहिले खा पी कर मतवाले हो जाते थे और कई गरीबो को भोज नहीं मिलता था। (1 कुरिन्थियों 11ः 21-22)

        सबसे प्रमुख बात यह है कि जब-जब हम प्रभु भोज को लेते हैं तो उसकी मृत्यु की घोषणा करते हैं। यदि घोषणा अन्य जातियों के बीच नहीं करते हैं तो अनुचित रीति से ग्रहण करते हैं। (1 कुरिन्थियों 11ः 26-27)

      इस मापदंड से आज हमारी अधिकांश कलीसियांए अनुचित रीति से प्रभु भोज में सम्मिलित हो रही हैं। आजकल पास्टर के भाषण को आराधना का केन्द्र बिन्दु माना जाता है जो गलत है। यथार्थ में कलीसिया रोटी तोड़ने अर्थात साथ में भोजन करने को संगति के लिए एकत्रित होती है। प्रभु भी जब आयेंगे तो खटखटांएगे और अन्दर आकर आपके साथ भोजन की संगति करेंगे (1 कुरिन्थियों 11ः 20; प्रकाशितवाक्य 3ः 20)। प्रभु भोज या अगापे भोज का प्रमुख भाग यह है कि उसकी देह अर्थात कलीसिया को बड़ी बारीकी से जांचना, परखना और पश्चाताप करना और उसकी मृत्यु की घोषणा करना है।(1 कुरिन्थियों 11ः 28; 31)

सन् 831 में रोम के एक प्रीस्ट ने घोषणा कर दिया कि जब प्रीस्ट लोग प्रार्थना करते हैं तो रोटी उसकी देह बन जाती है और दाखरस लहु में बदल जाता है (Trans-substantiation)। आज भी लूथरन, एंगलिकन आदि कलीसियाएं कैथोलिक चर्च के इस परिवर्तन पर विश्वास करती हैं जिसका बाईबल में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। 
       प्रभु भोज में एक रोटी तोड़ी जाती थी और भोजन के पश्चात् एक कटोरे से दाखरस पिया जाता था। एक कटोरे से दाखरस का पिया जाना प्रभु की कलीसिया की एकता को दर्शाता था (1 कुरिन्थियों 10ः 16-17)। एक रोटी के तोड़े जाने का मतलब था कि कलीसिया जो अब मसीह की देह है वह भी छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ी जाए जिससे अन्य कलीसियाएं उत्पन्न हों। जिस तरह रोटी टुकड़े-टुकड़े में तोड़कर बाँटी जाती है जिससे बहुतों को लाभ हो उसी प्रकार कलीसिया का टुकड़े-टुकड़े हो कर हर घर, मोहल्ले, गाँव, नगर, जातियों और पृथ्वी की छोर तक पहुँचना अनिवार्य है जिससे बहुतों का उद्धार हो और एक विश्वव्यापी कलीसिया बन सके। जो रोटी तोड़ी नहीं जाती वह बासी होकर अनुपयोगी हो जाती है। इसी तरह जो कलीसिया छोटे-छोटे टुकड़ो में बांटी नहीं जाती वह प्रभु के लिए अनुपयोगी हो जाती है।

रोटी तोड़ने का सही अर्थ प्रभु की देह का अर्थात कलीसिया का टुकड़े-टुकड़े होना। जब कलीसिया टूट-टूट कर दूसरे स्थानों में स्थापित होगी तब सारा संसार कलीसियाओं से भर जाएंगा। (1 कुरिन्थियों 10ः 16-17)

यदि हम राज्य का सुसमाचार प्रचार अन्य जातियों के बीच गवाही के रूप में नहीं करते हैं (मत्ती 24ः 14) और हम अन्य जातियों के बीच यह घोषणा नहीं करते हैं कि राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु, दुबारा न्याय करने को आ रहा है (प्रकाशित वाक्य 22ः 12) तो हम प्रभु भोज को अनुचित रीति से ग्रहण करते हैं और अपराधी ठहरते हैं।

यदि हम रविवार को गम्भीर धर्मी चेहरे बनाकर प्रभु भोज ग्रहण करते हैं और घर आकर हलाल वाला अपवित्र मटन खाकर सो जाते हैं और प्रभु के लिए अगले रविवार तक कुछ नहीं करते तो हम नये नियम के लोहू की वाचा का सरासर अनादर करते हैं।

भोजन घर में किया जाता है न कि मंदिरों-अराधनालयों में। इसलिए प्रथम शताब्दी की कलीसिया के अनुसार जब एक साथ एकत्रित होते हैं वहां भोजन की संगति करना चाहिये। विश्वासी लोग अपना-अपना भोजन लाएं और बांटे और मिलकर खाएं (1 कुरिन्थियों 11ः 25-26)। परमेश्वर की इच्छा यह है कि पहिली सदी के समान घर-घर प्रभु भोज मनाया जाए जिससे अन्य जातियाँ भी जिन सब के लिए प्रभु ने अपना बहुमूल्य लहू बहाया है वे भी इस मेज में सहभागी होने के योग्य बन सकें। यह महान आदेशीय प्रक्रिया हमारी जिम्मेदारी है। 

प्रभुजी की देह कभी नहीं तोड़ी गयी (यूहन्ना 19ः 36)। सिपाहियों ने डाकुओं की टांगे टोड़ी परन्तु प्रभु की नहीं तोड़ी क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी। रोटी तोड़ने का सीधा अर्थ उनकी देह अर्थात कलीसिया का टूटना है। यदि आराधना और प्रभु भोज के बाद कलीसिया टूट कर प्रभु का प्रचार नहीं करती तो उसने देह को ठीक से पहिचाना नहीं और इसलिए अयोग्य रीति से प्रभु भोज ग्रहण किया है। यदि देह अर्थात कलीसिया, मनुष्यों के उद्धार के लिये, प्रभु की मृत्यु की घोषणा करने के लिये नहीं टूटेगी तो वह बीमार हो जाएगी और मर भी सकती है। (1 कुरिन्थियों 11ः 29-30)

मिशनरियों के अपने देशों की कलीसियाओं से टूटकर आने पर ही हमारे देश में कलीसियाएं स्थापित हुईं। अब यदि ये कलीसियाएं नहीं टूटेंगी तो अन्यजातियों के मध्य नयी कलीसियाएं कैसे स्थापित होंगी ?

मूसा ने सत्तर पुरनियों को परमेश्वर के दर्शन के लिए पर्वत पर ले गया और उन्होंने परमेश्वर को देखा परन्तु परमेश्वर ने उन्हें खाली पेट वापस नहीं भेजा। शायद हम सोच भी न सके कि परमेश्वर की दावत में पुरनियों को क्या-क्या खाने और पीने को मिला होगा। (निर्गमन 24ः 9-11) परन्तु इतना तो पक्का है कि उन्हें डबल-रोटी के चूर-चार और द्राक्षासव का एक घूंट पिला कर परमेश्वर ने वापस नहीं भेजा होगा।

प्रभु ने शहीद होने से पहिले भुना गोश्त, मेथी की सब्जी और रोटी खिलाया और शुद्ध दाखरस पिलाया। जिन्दा होने के बाद उन्होंने शिष्यों को झील के किनारे गरम-गरम रोटी और भंुजी मछली का नाश्ता खिलाया (यूहन्ना 21ः 9-13)। उन्होंने आश्वासन दिया है कि जो अपना दरवाज़ा खोलेगा उसके साथ मैं भोजन करूंगा। उन्होंने प्रतिज्ञा किया है कि जो अपना क्रूस उठाकर उसके पीछे चलते हैं वे उसके राज्य में प्रभु की मेज़ पर बैठ कर खाएंगे और पियेंगे। अन्त में धन्य हैं वे लोग जो मेम्ने के विवाह के भोज में आमंत्रित हैं। (प्रकाशित वाक्य 3ः 20; लूका 22ः 28-30; 19ः 9)

एक समय था जब निकुलई लोगों ने ज़्यादा खा पी कर प्रभु भोज को नापाक किया (यहूदा: 12; 1 कुरिन्थियों 11ः 21-22)। इसके विपरीत कितने दुःख की बात है कि हमने आज प्रभु के प्रीति भोज को रोटी का चूरचार और द्राक्षासव का एक घंूट बना दिया है। न ये डबल रोटी सही है क्योंकि इसमें खमीर मिला रहता है जो फ़सह की रोटी में वर्जित था और न द्राक्षासव सहीं है क्योंकि ये दाखरस नहीं परन्तु एक दवाई है। (निर्गमन 23ः 15)

प्रभु भोज लेने और देने का अधिकार समस्त पवित्र याजकीय समाज का है। क्योंकि पुरूष और स्त्री दोनों इस समाज के सदस्य है इसलिए इस अधिकार का कलीसिया के अगुवों द्वारा हनन करने का धर्म शास्त्र में कोई प्रावधान नहीं है।


Comments

Popular posts from this blog

पाप का दासत्व

श्राप को तोड़ना / Breaking Curses

भाग 6 सुसमाचार प्रचार कैसे करें?