महान आदेश और बाईबल प्रशिक्षण केन्द्र

महान आदेश और बाईबल प्रशिक्षण केन्द्र


मार्टिन लूथर के आंदोलन के बाद बहुत से केथोलिक प्रीस्ट्स और नन्स ने शादी रचाई जिससे केथोलिक चर्च में अशांति आ गयी। लूथर के आंदोलन को रोकने के लिए पोप ने 1545 में एक महासभा बुलायी। वहां यह निष्कर्ष निकला कि केथोलिक प्रीस्ट्स ठीक से प्रशिक्षित नहीं है इसलिए वे भ्रम में पड़ कर शादी कर रहे हैं। इस कारण से धर्म शिक्षा केन्द्र (Seminary) खोले गए। यही कारण है कि आज भी बाईबल काॅलेज में प्रशिक्षित पास्टर शादी देने के अधिकार को बहुत महत्व देतें हैं।

डेढ़ हज़ार साल तक कलीसिया ने बिना इन प्रशिक्षण केन्द्रों (बाईबल स्कूल) के काम चलाया था। न प्रभु जी ने, न पतरस ने और न पौलुस ने किसी को प्रशिक्षण के लिए कोई विशेष संस्था में भेजा परन्तु कलीसिया रोपण का सारा प्रशिक्षण प्रत्यक्ष रूप से लोगों के मध्य में ही किया जिसके परिणाम स्वरूप कलीसिया विस्फोटक रूप से बढ़ी (प्रेरितों के काम 11ः 26)। यथार्थ में प्रभु ने यरूशलेम के मंदिर के धर्म विज्ञान में प्रशिक्षित विद्वानों का पूरी तरह से तिरिस्कार किया और झील के किनारे जा कर मछली पकड़ने वाले मछुवारों को अपने शिष्य बनाने के लिये चुुन लिया। प्रभु यीशु मसीह को रात-दिन कड़ी मेहनत करने वाले शिष्यों की जो हर परिस्थिति में चाहे भोजन मिले या न मिले और सोने के लिये बिस्तर मिले या न मिले, ऐसे समर्पित लोगों की ज़रूरत थी। (लूका 9ः 57-62)
इन बाइबल काॅलेजों में प्रशिक्षित अगुवों के स्थान पर यदि पतरस और यूहन्ना जैसे मेहनती लोगों के हाथ में कलीसिया की बागडोर होती तो आज वह पूरे विश्व में फैल चुकी होती। यही कारण है कि प्रभु ने पतरस जैसे अशिक्षित पर समर्पित जन को कलीसिया की नीव डालने के लिए चुन लिया और उसको कुंजी दे दिया। दुर्भाग्यवश आज ऊँची शिक्षा पाए हुए लोगों ने इस कुंजी को फिर से छीन लिया है और स्वर्ग में स्वयं प्रवेश नहीं करते और न दूसरों को प्रवेश करने देते हैं। (मत्ती 16ः 18-19; लूका 11ः 52; प्रेरितों के काम 4ः 13)

बाईबल काॅलेज का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वहां पेशेवर पास्टर तैयार किए जाते हैं  जो कलीसिया को ‘‘बोलने वाले’’ और ‘‘सुनने वाले’’ मूक दर्शकों में विभाजित कर निकोलई कलीसिया बना डालते हैं और पेट पूजा के लिये सदस्यों का दुरूपयोग करते हैं। (प्रकाशितवाक्य 2ः 6, 15; गलातियों 4ः 17)

पेशेवर पास्टरों के लिए नए नियम में कोई प्रावधान नहीं है।

समय आ गया है कि मज़दूर खेत में ही तैयार किए जाएं जिसमें उन्हें प्रभु के खेत में काम करने का प्रत्यक्ष ज्ञान रहेगा। प्रत्येक कलीसिया में कुछ समर्पित लोग होते हैं जो खेत में जाकर महान आदेश के कार्य को पूरा करने में सक्षम हैं। आज हमें धर्म व्याख्याताओं की ज़रूरत नहीं जो सालों-साल पुलपिट पर से ऐसे व्याख्यान देते हैं जिससे सुनने वालों में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रभु जी ने और उनके शिष्यों ने पुलपिट पर से कोई व्याख्यान नहीं दिया परन्तु घरों में जा जाकर सिखाया, समझाया, बाध्य किया और सामथ्र्य के काम किया जिससे नए-नए शिष्य प्रतिदिन तैयार होते थे और अपने क्षेत्र को बदल डालते थे। प्रभु को मज़दूरों की आवश्यक्ता है न की व्याख्याताओं की। प्रभुजी ने स्वयं कहा कि मैं तुम्हारे मध्य सेवक के रूप में आया हूं और वे प्रतिदिन 10 से 20 किलोमिटर चलकर सेवकाई करते थे।  (प्रेरितों के काम 17ः 5-6)

संत पौलुस एक धर्मशास्त्र के प्रचन्ड ज्ञानी होते हुए भी कहते हैं कि परमेश्वर ने मूर्खो, निर्बलों, नीचों, तुच्छों वरण व्यर्थ लोगों को चुन लिया है। एक धर्म विज्ञानी होते हुए भी उन्होंने बड़ी कठिनाई सहते हुए सेवकाई की (1 कुरिन्थियों 1ः 26-31)। संत पौलुस कहते हैं कि तुम्हारे पास हज़ारों शिक्षक हो सकते हैं पर मैं तुम्हें आत्मिक पिता की तरह सिखाता हूं (1 कुरिन्थियों 4ः 15)। आज किसी को बाईबल काॅलेज भेजना व्यर्थ है। योंकि वहां के शिक्षकों को स्वयं महान आदेश और कलीसिया रोपण (Church Planting) के बारे में कुछ अनुभव नहीं होता, तो वे सिखाएंगे क्या ? 

आज भारत में लाखों किसान हैं। जिन्होंने कभी कृषि विज्ञान केन्द्रों में कोई प्रशिक्षण नहीं लिया परन्तु सफल किसान है। उसी तरह आज भारत को लाखों आत्मिक फ़सल काटने वाले निपुण मज़दूरों की ज़रूरत है जिन्हें पाठशाला में नहीं परन्तु खेत में ही तैयार किया जाना हैं। इस कार्य के लिये छोटी-छोटी घरेलू कलीसिया ही उत्तम प्रशिक्षण केन्द्र हो सकती हैं क्योंकि उन्हें व्यक्तिगत प्रशिक्षण (प्राइवेट ट्यूशन) मिल सकता है। कलीसिया रोपण एक कला है जिसे किसी कक्षा में नहीं सिखाई जा सकती। जैसे मिस्त्री या बढ़ई या किसान बनने के लिए उस कला में दक्ष इन्सान के साथ काम करना पड़ता है वैसे ही सफल कलीसिया रोपक बनने के लिए फसल से लदे सेवकों के साथ काम करना, सहीं प्रशीक्षण है।

प्रभु को मज़दूरो की आवश्यक्ता है। मज़दूर काॅलेज में नहीं परन्तु खेतों में तैयार किये जाते हैं। (मत्ती 9ः 37-38)

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