भाग 1 घरेलु कलीसिया का परिचय
भाग 1 घरेलु कलीसिया का परिचय
नये नियम का नमूना बहुगुणित सभाओं का निर्माण
प्रिस्का और अक्विल्ला को जो मसीह यीुशु में मेरे सहकर्मी है, नमस्कार, जिन्होंने मेरे प्राण रक्षा के लिये स्वंय अपना जीवन जोखिम में डाल दिया। न केवल मैं वरन यहूदियों की सारी कलीसिया भी उन का धन्यवाद करती है। (रोमियों 16ः3-5)
एशिया की कलीसियाओं की ओर से तुमको नमस्कार। अक्विला और प्रिस्का तथा उन के घर की कलीसिया का तुम को प्रभु में हार्दिक नमस्कार। (1कुरिन्थियों 16ः19)
उन भाईयों को जो लौदिकिया में है, नमफास तथा उस कलीसिया को जो उसके घर में है नमस्कार कहना। (कुलुस्सियों 4ः15)
मसीह यीशु के बन्दी पौलुस तथा भाई तीमुथियुस की ओर से, प्रिय भाई एंव सहकर्मी फिलेमोन और हमारी बहिन अफकिया, हमारे साथी योद्धा अखर््िाप्पुस तथा घर में एकत्रित होने वाली कलीसिया को भी नमस्कार कहना। (फिलिप्पियों 1ः1,2)
उपरोक्त वचनों से स्पष्ट है कि प्रार्थानक कलीसिया घरों में मिलती थी, उनको हम घर की कलीसिया नही कह सकते है, मतलब की घर एक कलीसिया की सम्पत्ती थी। ये ऐसे घर थें जिन में लोग रहते थे और अपने घरों को खोलते थे जहां लोग एकत्रित होते थे।
प्राथमिक कलीसिया के पास कोई इमारत नही थी। इस प्रकार की विशेष ईमारत सन् 232 ए.डी. तक नही स्थापित हुई। सब से ज्यादा विस्फोटक रीति से इतिहास में कलीसिया की वृद्धि आज तक नही हुई जैसे शुरूआत के समय में हुई थी जब कोई विशेष भवन को चर्च कहते।
वर्तमान समय में, चीन जैसे देश में एक विचित्र प्रकार से परमेश्वर की आत्मा का आन्दोलन हो रहा है जो पहिली शताब्दी से बढ़ कर है और यह बिना किसी चर्च के भवन पर आधारित नही है। इस बढ़ोत्तरी को घरेलु कलीसिया का आन्दोलन कहते है।
निम्नलिखित चुने हुए अंश ‘‘केवल रीपोर्ट जनवरी / फरवरी 1990 प्रकाशित ‘‘मिनिस्ट्री मेग्ज़ीन‘‘ में हुई थी। यह रीपोर्ट ‘‘लोरेन कन्तीगहम‘‘ जो वए वअ के संस्थापक थे की गई थी, ‘‘यू एस सेन्टर फाॅर वल्ड मिशन‘‘ के अनुसार 22,000 चीनी लोग प्रभु यीशु को ग्रहण कर रहें हैं। जिस गती से यह चीनी लोग धर्म परिर्वतन कर रहे थे यह पेन्तेकुस्त की तुलना में सात दिन के बराबर में हर घण्टे के बराबर है। जब तक 3,000 लोगों ने यीशु को अपनाया था। यह नये बिश्वास का विस्फोटक एक ग्रामिण क्षेत्र से हो रहा था जहां चीन देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या रहती है।
‘‘जोनाथन चाओं जो चीनी कलीसिया का शोध का संस्थापक था उन्होंने कहा कि जवान बिश्वासी चीनी बेदारी को फैला रहें है। उनकी उम्र 15 से 19 वर्ष के बीच में है। ये जवान उन गांव क्षेत्रों में जाते है जहां सुसमाचार कभी भी नही सुना है।
जैसे नये बिश्वासी एक झुण्ड में जमा होते है यह जवान प्राचीन की नियुक्ती करते हैं जो कि उम्र में 20 वर्ष के होते है और उन्हें नई घरेलु कलीसिया को शिक्षा देने के लिये बुलाते है। तब ये जवान अगले गांव में पहुंच कर संन्देश देना शुरू करते है।
चीनी पास्टर और शिक्षक आर्थिक तंगी से मसीही सुसमाचार प्रचार में कोई रूकावट नही आने देते है। यह साधारण ग्रामीण किसानो के साथ हर नये गांव में रहते है और कोई नये भवन का निर्माण नही करते, उन के पास बहुत ही कम साधन होते है और उन की बहुत ही कम जरूरते होती है।
‘‘इन साधारण तरीकों से खुश खबरी छलांग मार कर खेतों और पहाड़ो को पार करती है‘‘
विस्फोटक कलीसिया निर्माण जो अभी चीन में हो रहा है की समानता पहिली शताब्दी की समान है जिसको हम प्रेरितों के काम में पढ़ते हैं। दोनो घरेलु कलीसिया का आन्दोलन है। उसी प्रकार की तेजी से बढ़ने वाली कलीसिया रोपण आज अन्य देशों में हो रहा है जहां चर्च भवन नही बना सकते है। यहां साधारण सिधान्त दिखाई देते हैं। पहिला जितनी साधारन हम कलीसिया रोपण करेगें उतने ही शीघ्र हम बढ़ोत्तरी देखेंगे। दूसरा सिधान्त यह है कि हम ‘‘लेमेन‘‘ का सामर्थीकण करेंगे, विशेषकर जवानो को, उतने ही जल्दी हम गुणात्मक वृद्धि देखेंगे। सब से विशाल फसल केवल छोटी घरेलू कलीसिया से मिल सकती है यह एक परस्पर विरोधी विचार क्यों न सुनाई दे।
मुझे कलीसिया रोपण और घरेलू कलीसिया की रखवाली करने का अनुभव है। मैं कुछ विशेष लाभ कलीसिया रोपण दिखते है जिससे कलीसिया गुणात्मक रीति से बढ़े।
घरेलु कलीसिया आरम्भ करना सरल है।
एक घरेलू कलीसिया स्थापित करने के लिये कोई जमीन खरीदने की ज़रूरत नही है। या एक मकान बनानें की आपको पुलपीटपर बेंन्च, गीत की किताब या हारमोनियम की ज़रूरत नही है।
आप कों किसी संप्रदाय का मेम्बर नही होता है या किसी सोसायटी में पंजीकरण की आपको कोई विशेष वस्त्र या वेश भूषा की आश्यक्ता नही कि प्रति रविवार इबादत करें और केवल एक ही स्थान में हर सप्ताह मिले। आपको एक क्रूस लगाने तथा अन्दर बाहर वचन लिखने की आवश्यक्ता नही है। वास्तव में आपकों मिलने की जगह कों चर्च कहने की भी आश्यक्ता नही है परन्तु यह ज़रूरी है कि जो लोग वहा एकत्रित होने है उनको मालूम है कि वे ही कलीसिया है।
ऊपर जितनी बातें लिखी गई हैं वे खराब और गलत नही है और ना ही वे आवश्यक है। पौलूस प्रेरित ने उपरोक्त बातों को अपनी कलीसिया रोपण सेवा में इस्तेमाल किया। अधिकांश वर्तमान समय की कलीसियाओं ने नये नियम की कलीसिया की सही पद्यती को छोड़कर अतिरिक्त सेवा को चुन लिया है जिन की ज़रूरत नही है। इसलिये एक नई कलीसिया चालू करना कठिन हो गया है।
आज आप किसी भी देश में जये जहां पालुस प्रेरित की कलीसिया स्थापित की थी और उस भवन को बनायें की देखो कुरिन्थि की कलीसिया या देखो वह सुन्दर इमारत वह इफिसियों की कलीसिया या देखो यह कलीसिया थिस्सनुनिकियों की है। जहां तक हम जानते है कि जो कलीसिया पौलुस ने आरम्भ की वह घरों में मिलती थी।
रेविलियम एक करीबी का दोस्त वह मेक्सीको में 25 साल तक मिशनरी था। परमेश्वर ने उसे इस्तेमाल किया कि उस ने बहुतसीं कलीसिया स्थापित की जिन्होंने ने सैकड़ो कलीसिया की जन्म दिया।
एक दिन उसने मुझे बताया कि उस ने कलीसिया गेंहू के खेत में चालू की वह कलीसिया बहुत बढ़ गई है। उस में से बहुत सी बेटी और नाती/पोते कलीसिया बनी जिनका दर्शन कलीसिया रोपण का है।
हम अपने कलीसिया को बहुत जटिल बना देते है। परमेश्वर हमें बुला रहा है कि सरल तरीके से बहुगुणित कलीसिया रोपण करे।
घरेलु कलीसिया अनौपचारिक और आरामदायक है कुछ साल पहिले में अपने परिवार को एक कलीसिया में ले गया जहां का पास्टर वरिष्ठ बाईबल शिक्षक था। मैं उस कलीसिया को पसन्द करता था और वहां संगती के लिये जाना चाहता था, परन्तु वहा पर सब लोग ऊंची स्टाईल के कपड़े पहिनते थे जो मेरे परिवार खरीद नही सकते थे। बहुत से लोग चर्च में आते है और अपनी कार दिखाने के लिये, मोटर बाईक कपड़े यहां तक ऊंची जाति आदि।
ये सब औरों के लिये रोड़ा बन जाती है। अब चर्च जाना एक औपचारिकता हो गई है। बहुत से लोग बड़ी कलीसिया में जाने के बजाय घरेलु कलीसिया में जाना पसन्द करते है क्योंकि वह आरामदायक वहां का वातावरण घर के समान है डोनाल्ड मेकगेवरन अपनी किताब ‘‘अन्उरस्टेन्डींग चर्च ग्रोथ‘‘ में एक सूची बताते है ‘‘आठ चाबी जों चर्च की बढ़ोत्तरी नगरों में‘‘ सबसे पहली चाबी दिखाती है कि डाॅ. मेकगेवरन कलीसिया रोपण को महत्व देते हैं, वे कहते है ‘‘आठ चाबी जो मैं बताने वाला हूँ वह केवल अन्दाज नही है, वह उन सिद्धान्तो का वर्णन करते है।
जो कि कलीसिया बढ़ोत्तरी पर विश्वास करनेवाले लोग सहमत है।
1. घरेलु कलीसिया पर महत्व।
2. कलीसिया को बढ़ाना ज़रूरी है।
3. हर कलीसिया को बार बार एकत्रित होना चाहिए।
4. हर सभा को अपनी परिस्थिती में मिलना चाहिए।
5. वह ऐसी जगह होना चाहिए जहां अबिश्वासी आसानी से आ सकते है।
6. इस सेवा के द्वारा नये बिश्वासियों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे सेवा को बढ़ाये।
7. सभा होने की जगह से आर्थिक बोझ नही होना चाहिए।
8. हर सभा में थोड़े सदस्य होना चाहिए क्योंकि वह विभाजित हो कर बहती जाती है।
घरेलु कलीसिया उपरोक्त आवश्यक्ताओं को पूरा करती है। घरेलु कलीसिया को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि यह प्राथमिक कलीसिया रोपण करती है और कहती जाती है।
घरेलू कलीसिया एक प्रचार करने का साधन है।
डाॅ. पीटर बैगनर बहुतो के द्वारा माना जाता है कि वह सर्व प्रथम अधिकारी/हाकिम कलीसिया बढ़ोत्तरी का है। वे कहते है ‘‘स्वर्ग के नीचे सब से आप प्रचार का तरीका ‘‘कलीसिया रोपण‘‘ है। इस से अच्छा तरीका कभी नही था और कभी भी नही होगा‘‘ ‘‘सघन कलीसिया रोपण‘‘ यह नाम दिया गया है इस दर्शन को संसार के सब बडे़ अगुओं को अपनाना है। एक विभाजित चर्च ताकि वह बहुगुणित हो, वे लोग अतिरिक्त लोगो को लाने का अनुभव करेंगे। अगर एक चर्च केवल अतिरिक्त लोगो पर दृष्टि कोण रखेंगे तब वे स्थगित, सीमित और दल दल में फंस जायेंगे।
बहुत से चर्च के अगुओं का लक्ष्य होता है कि वे एक बड़ी सभा स्थापित करें इस के बजाय बहुगुणित सभाए। परन्तु चर्च कोई भी नगर में बढ़ेगा और तेज़ी से बहुगुणित सभाए बन जायेगी इसके अपेक्षा कि आप एक बड़ी कलीसिया स्थापित करें।
संसार का सबसे बड़ा चर्च सीओल कोरिया में डाॅ. योगिन्चू की पास्टरी की अध्यक्षता में हे जिसमें गुणात्मक वृद्धि के सिद्धान्त को इस्तेमाल किया। उस की कलीसिया पूरो सीओन शहर में रचनात्मक रीति से प्रचार कर रही हैं और कलीसियायें बढ़ती जा रही है। इन बहुगुणित झुण्डों को कोशिका झुण्ड कहते हैं। वे विभिन्न होना मन्जूर करते है जिसमें वे बढ़ते है जो बिश्वासनीय है।
घरेलू कलीसिया अगुवों को प्रशिक्षण करने में सुसाध्य है। शिक्षकों ने इस बात को बहुत समय से पहिचाना है कि सबसे अच्छा प्रशिक्षणकाल इसमें एक के साथ और काम करते हुए सिखने की ट्रेनिंग है। यह इस प्रकार का प्रशिक्षण है जो लोहार, नल लगानेवाला और वकील सो सब पहिले लिया करते थे। वे देखकर करने के द्वारा सीखते थे और अपने मालिक को अपने काम धन्धे में पूरी जवाबदारी के साथ करते थे।
यीशु मसीह का भी शिक्षार्थी प्रशिक्षण तरीका था। उसके शिष्यों ने यीशु को कार्य करते हुए देखा, सुना और काम किया जैसे वे अपने गुरू के साथ जीवन बिता रहे थे।
घरेलू कलीसिया में अगुवों को प्रशिक्षण काम करते करते सीख कसते है। सीखने के साथ शिक्षक का नियंत्रण में भी बना रहता है। जैसे जैसे कलीसिया बड़ता जाता है। वैसे वैसे यह अगुवे भी बड़ते है। जिन अगुवों का अपना व्यापार, खेती या पूर्ण कालीन व्यवसाय है, वह सब में उत्तम अगुवे बनते है। वह कलीसिया पर आर्थिक बोझ नही बनते है। कुछ अगुवों के पास एक से ज्यादा कलीसिया होते है सो उनको मण्डली में मिलना केवल रविवार को नही हो पाता है। यह तो नया नियम का नमूना/ प्रतिरूप अगुवाई है। रिश्तों को दृढ़ करने में घरेलू कलीसिया सहायक है। छोटो घलेलू कलीसिया में ज्यादातर शर्मिले लोग अपने कार्य को करने में सक्षम हो जायेगा। हमारे कलीसिया में हम दोपहर का खाना साथ में मिलकर खाया करते थे। हर परिवार भोजन बनाने में और परोसने में सहयोग देते थे। घरेलू परिस्थिती में रिश्ते जल्दी बढ़ते है।
विन अरन एक सामाजिक पत्रिका कलीसिया की बढ़ोत्तरी की रिपोर्ट में यह कहते हैं ‘‘बढ़ोत्तरी का अजमाया हुआ सिद्धान्त - छोटा समुह प्रभावकारी। बड़ती हुई कलीसियाओं की छानबीन में एक खास विशेषता होती है जो उसके लोगो को बान्ध कर रखती है। वह गोंद को प्रेम दोस्ती ध्यान रखना......... कह लो वही है जो लोगो को आकर्षित करती है और जोड़ कर रखती है।
घरेलू कलीसिया कीफायती है।
एक घरेलू कलीसिया अपने सारे आर्थिक संसाधनो को सेवा में उपयोग करता है। क्योंकि सारी सभाए घरों में होती है तो सभाग्रह का खर्चा बच जाता है क्योंकि एक अगुवा एक से ज्यादा घरेलू कलीसिया का नीरिक्षण कर सकता है। तों एक ही कलीसिया से उस का पालन का खर्चा नही आता सप्ताह की सभा दूसरे घरों में हो सकती है और इतवार को भी मैंने यह सुना है कि एक अगुवा एक सप्ताह में 12 घरेलू कलीसिया लेता है।
नये नियम मेें कभी भी यह नही लिखा है कि 11 बजे सुबह सभा का समय है। वास्तव में प्रेरितों के काम पुस्तक में जो पद्यती थी वह हर दिन मिला करती थी सप्ताह का पहिला दिन बहुत कम उल्लेख है और अगर सप्ताह का पहिला दिन आया भी है तो उस को विशेष आराधना का दिन नही कहा गया है।
यह सत्य है कि घरेलू कलीसिया के अगुवे सब प्रशिक्षण के जरियें अगुवाई करते थे। इन अगुवों के पास विशेष नौकरी करते थे और साथ में घरेलू कलीसिया की अगुवाई भी करते थे जैसे जैसे उनके पास अवकाश रहता था। जो अगुवे पूर्वकालीन सेवा करते है उनको सम्मान ऐसी रीति लेना चाहिए जिसमें उनकी आय अच्छी होना चाहिए। और जो लोग आधे समय में सेवा करते है उनको भी आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। उनको भी प्रेम दान और कर चन्दे और चन्दें से सहायता करना चाहिए। ऐसा करने से उनके खर्चे मिल सकते है और सेवा के काम को उत्साह से कर सकते हैं। चाहे सेवक पूर्व कालीन या अर्धकालीन सेवा में हो उसको ‘‘मज़दूर की मज़दूरी मिलनी चाहिए। (लूका 10ः7)
घरेलू कलीसिया वृद्धि की समस्या को हल कर सकता है।
कुछ विश्वासियों को बड़ी जगह की व्यवस्था करना पड़ता है और ज्यादा भाड़ा देना पड़ता है या दो सभाओं में विभाजित करना पड़ता है। इस प्रकार बढ़ोत्तरी का अच्छा समाधान अच्छी समस्या का है। नये अगुवों को एक नगर के नये क्षेत्र के लिये तैयार करे। तब उनको कुछ परिवारों के साथ घरेलू कलीसिया आरम्भ करने के अभिप्राय से एक बच्चें वाली कलीसिया कर सकते हैं।
एक कलीसिया नई कलीसिया या बच्चे उत्पन्न करने के द्वारा एक जीवित कार्य करती है। बहुत कलीसियाओं का अन्त हो जाता क्योंकि उनके अगुवे अपनी कुर्सी पकड़े रहते हैं। परमेश्वर का उन कलीसियाओं को आशीषित करता है जो हर समय सब कुछ दे देता है यहां तक उभरते हुए अगुवों को भी।
प्रभु यीशु कहते है कि ‘‘दिया करो तो तुम्हें भी दिया जायेगा। (लूका 6ः38) एक देने वाली कलीसिया बढ़ने वाली कलीसिया है। माईकल ग्रीन सेन्ट जाॅन्स काॅलेज नौटिगंहम इग्लैण्ड के अधीक्षक है। 1974 में उन्हेंने इवेन्जलिस्म के तरीकों और रणनीति में जो प्रथम कलीसिया में चलाये जाते थे, उन्होंने कहा कि प्रथम कलीसिया में भवन कम महत्वपूर्ण नही था और ना ही भवन की आवश्यक्ता महसूस हुई कलीसिया मंे सब से ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई। आज भवन का महत्व सभी मसीहियों में है। भवन की देख रेख में पैसों का खर्च शकिृय बहूमूल्य समय गवाना/बर्बाद करना और लोगों में रूची रखना, इत्यदि, लोंगो को श्रण में डुबाता है औश्र जो कलीसिया में नही आते उन से अलग कर देता है।
कई जगहों में चर्च शब्द का मतलब ही बदल गया है। नये नियम की कलीसिया में चर्च का मतलब एक बिश्वासियों का झुण्ड होता है परन्तु आज कल चर्च एक भवन के रूप में देखा जाता है जो गलत है। घरेलू कलीसिया के बहुत से लाभ हैं सबसे महत्वपूर्ण यह है कि साधारण औश्र बहुगुणित होते है।
एक और हमत्वपूर्ण सच्चाई है कि विभिन्न धर्मो के लोग एक चर्च भवन में जाने से संकोच करेगें परन्तु वे एक घर में जाने से नही हिचकिचाएंगे। अगर जातियों को शिष्य बनाने का आदेश एक कलीसिया का है तब क्यों आप अपने साघन ऐसी जगह लगायेंगे जहां पर अनपहुंच लोग नही पहुच सकते।
सबमें ज़्यादा कलीसिया आन्दोलन इतिहास में देखा गया है जहां पर संस्था संगठन सम्बन्धीत खर्चे सब से कम है। सबसे सफल आन्दोलन में फोकस आधारभूत सिद्धान्त में रहा है।
लेखको के नाम
बाब फिट्स
फलोयड मक्लन्डा
वीटर बैगनर
योहान इंगलबे्रक्स
आन्डेर ल टूक्स
विक्टर चैधरी
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