भाग 10 नई कलीसिया क्यों रोपित की जाए?

भाग 10 नई कलीसिया क्यों रोपित की जाए?


चर्च सेवकाई और मिशन की रणनीति आयोजित करने में कलीसिया रोणन की केन्द्रीय स्थान है इसके बहुत से करार है। कलीसिया रोपण बाईबल आधारित है, कलीसिया रोपण सुसमाचार को आगे बढ़ाने का नए नियम का तरीका है। यह राज्य की गतिविधि है जिसका हमारे परमेश्वर और राजा के द्वारा दृढ़ता से समर्थन किया गया है, और एक राज्य का समुदाय होने के कारण यदि हम कलीसिया रोपण में असफल रहे तो हम यह अनुभव नही कर कसते कि हम परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए हमें इच्छा पूर्वक और बल पूर्वक कलीसिया रोपित करना है। 

कलीसिया रोपण नए अगुवों का विकास करती है।:
बहुत से अध्ययनो से प्रमाणित हुआ है कि स्थानीय कलीसिया के फैलाव का मुख्य कारण अच्छे अगुवे है, स्थानीय कलीसिया में विशिष्ट पास्टर ही सबसे मुख्य है जबकि वरिष्ठ पास्टर देखते है कि साधारण अगुवे भ्ज्ञी चर्च सेवकाई में जिम्मेदारी भूमिका निभाते है। 

कई मौजूदा कलीसियांए अन्जाने में सीमांए बांध देती है उन लोगो पर जो अगुवे की भूमिका को पूरा कर सकते है इसके फल स्वरूप नए लोगो के लिए कठिन हो जाता है कि वे सेवकाई में ऊपर उठे। 

दूसरी तरफ नई कलीसियांए सीमा बांधने के बदले नए लोगों के लिए द्वारों को खुला रखते है ताकि वे अगुवाई और सेवकाई की चुनौतियों में प्रवेश करें। फलस्वरूप यीशु की पूरी देह लाभान्वित होती है। 

कलीसिया रोपण मौजूदा कलीसियाओं को प्रेरणा देता है। कुछ लोग नए चर्च को बनाने में हिचकिचाते हैं। क्योंकि वे उस चर्च को जो पहले से उस शहर या गांव में है नुकसान पहँुचाना नहीं चाहते वे सोचते हैं ऐसा करने से भाईयों और बहनों के बीच में आपत्तिजनक प्रतिस्पर्धा को उत्पन्न करेंगें।

वास्तव में अधिकांश नए चर्च समुदाय में साधाणतः लोगो में आत्मिक रूचि को उत्पन्न करते है, यदि वे उचित रूप से चलाए जाए। एक नया चर्च मौजूदा चर्चो और समुदाय के लिए लाभकारी होता है। वह परमेश्वर के राज्य को आशीषित करता है और साथ ही उन चर्चों को भी जो वास्तव में राज्य के हिस्से है। 

कलीसिया रोपण उत्तम कार्य है, संसार को किसी भी क्षेत्र में कलीसिया रोपण बहुधा प्रायोगिक और सबसे कम खर्च वाला तरीका है विश्वासियों को प्रभु के पास लाने का, यह नई क्षेत्र और पुराने क्षेत्र दोनो ही में लागु होता है आईए इस पर ध्यान दे। 

नया क्षेत्र
नए क्षेत्र का मतलब दो बाते है।:
(1) संसार का वह क्षेत्र जहाँ अभी भी सुसमाचार नहीं पहुचा है।
(2) उन लोगों का समूह जिन तक सुसमाचार नहीं पहुँचा जो उस क्षेत्र में हैं जहाँ सुसमाचार पहुँच चुका। 
जब हम सुसमाचार के साथ नए क्षेत्र में पहुँचते है कोई भी असहमत नही होगा कि वहां नए चर्च की जरूरत है। हाल ही में बड़ी सुसमाचारीय सेवकाई ने महसूस किया है कि कलीसिया रोपण कितना आवश्यक है, कलीसिया रोपण बने रहने वाले प्रतिफल के लिए आवश्यक है। 

तीन कारण बनते है कि नए चर्च किस प्रकार नए क्षेत्र में सुसमाचार प्रचार के लिए आवश्यक है। 
पहला:- इसका कारण बाईबल है प्रारंभिक कलीसिया में प्रेरित और सुसमाचार प्रचारक उन क्षेत्रों में पहुँचे जहाँ सुसमाचार नहीं पहुँचा और वह नए चर्च बनाए। पौलुस प्रेरित ने कहा,‘‘मेरे मन की आकांक्षा यह रही है कि जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहां सुसमाचार सुनाऊँ ऐसा न हो कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊँ।’’ (रोमियों 15ः20)

पौलुस नए क्षेत्र में गया और उसने क्या किया नई कलीसियांए रोपा। 
दूसरा:- इसका कारण है कि दुनिया में चार बिलियन लोग है जो यीशु ख्रीष्ट को उद्धार कर्ता और प्रभु को नहीं जानते इन में से करीब 70 प्रतिशत अविश्वासियों के बीच जीवित सुसमाचारीय चर्च अनेक क्षेत्र में नही है। 

तीसरा:- नए क्षेत्र में नए चर्च की आवश्यक्ता एक प्रायोगिक मांग है। कुछ अन्तर्राष्ट्रिय मसीही सेवकाई केवल सुसमाचार प्रचार के लिए ही स्थापित की गई। इन सेवकाइयों ने यह खोजा कि कलीसिया रोपण सबसे प्रभावशाली सुसमाचार प्रचार का तरीका है। कुछ अन्तराष्ट्रिय संगठन सुसमाचार प्रचार सेवकाई के लिए ज्यादा विस्तत रूम में काम आए जैसे केम्पस क्रूसेड फाॅर क्राइस्ट यद्यपि उनकी प्रारंभिक योजनांए में कलीसिया रोपण नही था। 

उन्होंने काॅलेज के परिसर में समूह प्रारम्भ किए जो कलीसिया के बदले में थे। बाद में उन्होंने ‘‘रमेने’’ फिल्म का विकास किया और नए क्षेत्र में विश्वयापी ग्रामीण सुसमाचार प्रचार आरम्भ किया।

मैं विश्वास करता हूँ कि ‘‘रमेने’’ फिल्म बहुत ही शक्तिशाली सुसमाचार प्रचारकीय औज़ार है जो अभी इस्तेमाल में है जो अभी इस्तेमाल में है। जब कभी इसे दिखाया जाता है बहुत से लोग बचाए जाते है। बाद में कैम्पस क्रूसेड के प्रभुख बिल ब्राइट को एक समस्या नज़र आने लगी। यह फिल्म गांवों मंे दिखाई जाने लगी और बड़ी संख्या में लोगों ने यीशु को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना किया। तौभी विश्वासियों को मसीही चर्चों में एकत्र नहीं किया गया तब कैम्पस क्रूसेड ने ‘‘गृहसभागिता समूहों’’ का रोपण किया। यह शीघ्र ही स्पष्ट होने लगा की यह समूह अन्ततः चर्च में बदल जांएगें। आवश्यक्ता नुसार कलीसिया रोपण कैम्पस क्रूसेड का निश्चित उद्धेश्य बन गया।

बिल ब्राईट ने फिर एक कार्यक्रम ‘‘नया जीवन 2000’’ बनाया यह बहुत ही विशाल कार्यक्रम है जो कैम्पस क्रूसेड ने शुरू किया। इस कार्यक्रम के अन्र्तगत वे विश्व व्यापी रूप से मसीहियों के साथ कार्य कर रहे हैं ताकि 8 विशिष्ट उद्देश्यों को इस शताब्दी के अन्त तक प्राप्त करें आठवा उद्देश्य क्या है? यह है कि ‘‘जो डिनाॅमिनेशन अस्तित्व में हैं उनके साथ सहयोग करके दस लाख नए चर्च स्थापित करें।

कल्पना किजिये कि इसका प्रभाव संसार के सुसमाचार प्रचार में क्या होगा। उदाहरण के लिए थाईलैंड पर ध्यान दें कैम्पस क्रूसेड ने ‘‘जीजस फिल्म’’ के द्वारा 1980 तक उस देश में ज्यादा चर्च बनाए जो वह मिशन कार्य के पिछले 150 वर्षों में नही कर सके। पुराना क्षेत्र

पुराना क्षेत्र वह है जहाँ कलीसियाएं 100 या 1000 वर्ष के लिए अस्तित्व में है। कलीसिया रोपण सबसे प्रभावशाली सुसमाचार प्रचारीत तरीका पूराने क्षेत्र तथा नए क्षेत्र के लिए भी है। सबसे मजबूत विरोध जो कलीसिया रोपण का है उन लोगों से आता है जो पारम्परिक कलीसियाओं से नजदीकी से जुड़े है। पर इस साधारण तथ्य को याद रखिए। मुर्दो को जीवित करने से बच्चों को जन्म देना आसान है। 

यह सच है कि सभी मौजूदा चर्च मृत नही है नही उनमें से ज्यादा है।  अधिकार मृत कलीसियाओं को पवित्र आत्मा के द्वारा जीवित करना होना चाहिए। चिकित्सा का सबसे उत्तेजना पूर्ण हिस्सा जच्चा कक्ष है नए क्षेत्र में कलीसिया वह स्थान है जहाँ नए बच्चे पैदा होते है।

आपकी अपनी कलीसिया में बढ़ोत्तरी कैसे लाएँ?:
नये नियम की कलीसियाओं में कलीसिया में विकास के चिन्ह आसानी से दिखाई देते थे। प्रेरितों के काम नामक पुस्तिका हमें सबसे अच्छे तरीके से बताती है कि किस तरह से कलीसिया में बढ़ोत्तरी और गुणात्मक वृद्धि होती है। 

जब हम प्रेरितों के काम पढ़ते है हम स्पष्ट देख सकते है कि किस तरह प्रारम्भिक कलीसिया जो ख्रीष्ट की देह है। आत्मिक रूप से परिपक्व हुई। उनमें ज्यादा सदस्य जुड़े और ज्यादा कलीसिया आरम्भ हुई। (प्रेरितों के काम 2ः46,47;16ः5)

यरूशलेम में पहली कलीसिया एक उपरी कोटरी में आरम्भ हुई। इसमें कुछ ही सदस्य थे - 120 शिष्य। (प्रेरितों के काम 1ः15)

पिन्तेकुस्त के दिन 3000 लोगों का बपतिस्मा हुआ। उन्हें वचन की शिक्षा दी गई और कलीसिया में मिलाए गए। (प्रेरितों के काम 2ः41,42) यरूशलेम की कलीसिया में शीघ्र ही 5000 सदस्य थे। (प्रेरितों के काम 4ः4) अन्यजातियों में से भी बड़ी भीड़ जुड़ गई (प्रे.काम 15ः14) उसके बाद यरूशलेम में बहुत अधिक शिष्य बने (6ः1) याजकों का एक बड़ा समूह विश्वास के प्रति आज्ञाकारी थे (6ः7) सामरिया में बड़ी जागृति आरंभ हुई। (8ः5-25) जब और अधिक कलीसिया रोपण हुआ और इनमें अधिक संख्या में सदस्य जुड़ते गये। नए चर्च यहूदा, गमीस और सामरिया में बनाए गए। वास्तव में नए चर्च प्रतिदिन रोपित होने लगे (प्रेरितों के काम 9ः31, 16ः5) 

जब हम इस वृद्धि की रिपोर्ट प्रेरितों के काम में पढ़ते है हम केवल आनन्द मना सकते है यीशु ने कहा ‘‘मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे’’ (मत्ती 16ः18)

नई प्रारम्भिक कलीसिया में उसके वचन पूरे हुए। आपने यह भी कहा ‘कि स्वर्ग में एक पश्चाताप किए हुए पापी के लिए आनन्द मनाया जाता है। (लूका 15ः7) हम भी उस आनन्द का अनुभव करते है। 

क्या परमेश्वर संख्या में रूची लेता है?:
कुछ लोगो का कहना है कि परमेश्वर संख्या में रूचि नहीं रखता है वे यह सिद्ध करने की कोशिश करते है कि परमेश्वर सदस्यों को प्राप्त करने से ज्यादा उन्हें खोना पसन्द करेगा यदि थोड़े ही ज्यादा परिपक्व हो जाए। 

यह सच है कि यह खतरनाक है यदि चर्च संख्या में बढ़ता है और आत्मिक परिपक्वता में नहीं बढ़ता। और यह भी ज्यादा खतरनाक होगा जबकि वह चर्च संख्या में न बढ़ने के लिए बहाने बनाए। क्योंकि ऐसा करने से हम महान आदेश के लिए विश्वास योग्य नहीं ठहरते। 

हाल ही के वर्षों में कलीसिया वृद्धी आन्दोलन परमेश्वर का एक प्रभावशाली औजार बन गया है। आज कलीसिया वृद्धि में रूचि ले रहे है। पूरे संसार में संगठन कलीसिया वृद्धि का अघ्ययन कर रहे है। इनमें से कुछ संगठन सेमिनार और काॅलेज कोर्स देते है दूसरे बहुत सी पुस्तकें छापते है। 

कई सौ मण्डलिया नीचे गिर रही है और तब उन्होंने कलीसिया वृद्धि के सिद्धान्त का अनुसरण लिया उन्होंने पाया कि सिद्धान्त काम करते है। आत्मिक सूखापन आत्मिक उत्तेजना में बदल गया। फलस्वरूप सदस्य क्रियाशीलता के साथ सेवा में लग गए। 

कलीसिया वृद्धि के बहुत से सिद्धान्त है हम उनमें से कुछ का अध्ययन करेंगे।:
1. पवित्रात्मा के प्रति आज्ञाकारिता और ख्रीष्ट ने अपने शिष्यों से कहा, ‘‘स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है (मत्ती 28ः18) देखो, जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उण्डेलूंगा, परन्तु जब तक तुम स्वर्गीय सामथ्र्य से परिपूर्ण न हो जाओ, इसी नगर में ठहरे रहना। (लूका 24ः49) सुसमाचार प्रचार और कलीसिया वृद्धी पवित्रात्मा का कार्य है। ख्रीष्ट की देह जीवित है। इसलिए नये नियम के जीवन का आत्मिक उत्पादन केवल पवित्रात्मा से होता है।

पवित्रात्मा हमें यीशु की शिक्षाओं को स्मरण दिलाने आया (16; 12ः12,13) स्थानीय चर्च में जीवन और सामर्थ को लाना है वह निर्देश देता है और अपने लोगों का सेवा के लिए अभिषेक करता है। 

पवित्रात्मा के बिना कोई कलीसिया वृद्धि या सुसमाचार प्रचार नहीं पवित्रात्मा की सहायता से यीशु ख्रीष्ट का चर्च दोनो रूप से आकार और आत्मिक परिपक्वता में बढ़ेगा प्रेरित की किताब में सिलसिलेवार घटनाओं पर ध्यान दे। 

पहिला: 120 शिष्यों ने पश्चाताप और क्षमा का संदेश सुना।
दूसरा: उनको सब जाति के लोगों के साथ सुसंदेश को बाॅटने का आदेश मिला।
तीसरा: वे उपरौती कोठरी में ठहरे रहे जब तक कि उन्हें वह सामर्थ जिसके द्वारा वे आदेश प्राप्त करने नहीं मिला और वह पवित्रात्मा का दान है।

बाईबल आधारित दृढ़ अगुवाई:
दृढ़ अगुवाई का मतलब ने केवल पास्टर परन्तु पूरी अगुवाई करने वाली टीम। इसमें एल्डर्स, डीकन, सन्डेस्कूल, शिक्षक है, सुसमाचार प्रचार की कमेटी, युवा कार्यकर्ता आदि शामिल है। 

इन अगुवों को समझना है कि परमेश्वर ने उन्हें जातियों को शिष्य बनाने के लिए बुलाया है उन तक पहुँचने के लिए जो मसीह को नहीं जानते। अच्छे अगुए संभावनाओं को देखते और सुअवसरों का उपयोग करते है। 

बाईबल आधारित अगुवाई ख्रीष्ट के प्रति विश्वास योग्य है। अगुवों का एक दूसरे के प्रति भी समर्पण होना चाहिए अगुवाई कलीसिया वृद्धी की कुंजी है। शुकर कहता है ‘‘अगुवाई पहले से सोचना और भविष्य की योजना बनाना है सारी संभावनाओं में लगे रहना समस्याओं का पूर्व दर्शन होना और उनकी सुलझाने को स्वप्न देखना है और तब सभंावनाओं और समस्या सुलझाने वाले विचारों के निर्णय लेने वालों तक पहुँचना।

सकारात्मक अगुवाई बाधाओं के आने पर पीछे नहीं हटती नहीं वह विश्वास के द्वारा इन बाधाओं को तोड़ती ताकि वह फसल काटने के आनन्द को प्राप्त करे।

साधारण लोगों का काम:
संसार में कलीसिया वृद्धी का अध्ययन करने वालों ने दिखाया कि नये नियम के सिद्धान्तों का अनुसारण करना सही है। चर्च बढ़ते हैं जब उनके सदस्य ख्रीष्ट की सेवा के लिए जुट जाते हैं। प्रत्येक मसीही परमेश्वर के लोगों का प्रतिनिधि करते है, और पवित्रात्मा के द्वारा बुलाया गया है कि सेवा में लगे।

जब डाॅ. डब्लू आर्न ने अमेरीका में नए मसीहियों का अघ्ययन किया उन्होंने ज्ञाता किया 70 से 80 प्रतिशत लोग चर्च जाने लगे। क्योंकि वे सम्बन्धियों और मित्रों के द्वारा आमंत्रित किए गए।

यही पूरे विश्व के लिए सत्य है यदि कोई स्थानीय चर्च सेवकाई करता और साधारण सदस्य इसकी सेवकाई और गतिविघि को गम्भीरता पूर्वक लेते है तब यह सुसमाचार प्रचार और शिष्यता कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो जाता है। 

कुछ सेवक नए नियम के सिद्धान्त का विरोध करते हैं वे चर्च को एक प्रचारीय केन्द्र के रूप में देखते हो वे इतना डरा हुआ महसूस करते कि वे अयोग्य और अनइच्छुक कि वे साधारण लोगों के एक जुट करने में दक्ष नही हैं इसके फलस्वरूप अधिकतर चर्च 200 सदस्यों से आगे नही बढ़ते छोटे चर्च में पास्टर पूरा काम करते है के योग्य है। वह मण्डली के सदस्यों के घर जा सकता है हास्पिटल में मरीजों को देखते जा सकता है आवश्यमन्दों के लिए प्रार्थना करे और हर संदेश प्रचार करें।

वह एक रखवाला हो सकता है चर्च की खिड़कियों धोए और चर्च में सब सब क्षेत्र काम करें।
इसके विपरीत बढ़ते हुए चर्च के पास्टरों ने सीखा है कि वे अपने सदस्यों की इस तरह सहायता करें कि वे आत्मिक वरदानों को ढूढ़े। 

वे अपने सदस्यों को अर्थ पूर्ण रीति से क्रियाशील और उत्पादित होने के लिए अनुमती देते हैं। वे दूसरों की वही काम करने के लिए प्रशिक्षित करते है जो वे स्वंय कर चुके है। 

प्रेरित पौलुस की ख्रीष्ट की पूरी देह।:
स्थानिय कलीसिया के कार्य की शिक्षा को समझना महत्वपूर्ण है मैंने यह देखा है कि बहुत से लोग साधारण सदस्यों की सेवकाई को नही समझते। अक्सर चर्च के सदस्य अपने आप को मण्डली में दूसरे दर्जे का समझते है। खेद का विषय है संतो को तैयार करने और उन्हें एकजुट करने कार्य स्थानीय कलीसिया में ऊँची प्राथमिकता नहीं रखता।

प्रभावशाली सुसमाचार प्रचार :
कलीसिया वद्धी आन्दोलन ने पूरे विश्व में चर्च को चुनौती दिया है कि सुसमाचार का प्रचार जो खोए हुओं के लिए है उसे गम्भीरता पूर्वक लें और शिष्य बनाना भी, यदि कोई डिनोमिनेशन या स्थानीय चर्च सुसमाचार प्रचार को गंभीरता पूर्वक नहीं लेता तो यह हो जाएगी और अंत में आ जाएगी। चर्च आसानी से अपने आप को संसार से अलग कर सकता है और आपने चारों ओर ऊँची दीवार बना के इसे सुरक्षित रख सकता है। 
सुसमाचार प्रचार के लिए एक और खतरा है - चर्च की कमजोर 

परिभाषा: 
सुसमाचार प्रचार निर्णयों को लेना नही यह पुलपिट से एक और अच्छा उपदेश नही। सुसमाचार प्रचार का उद्धेश्य शिष्य बनाना और जिम्मेदारी लेना कि वे सदस्य स्वर्ग के राज्य के हकदार हो जाएँ। 

पिछले दशकों में करोड़ों रूपये वृद्ध सुसमाचार प्रचार में खर्च हुए बड़ी भीड़ की उपस्थिति और निर्णयों की संख्या प्रभावशाली रही परन्तु इससे चर्च में बहुत थोड़ी वृद्धी हुई। मैं डाॅ. पीटर बैगनर के संग सहमत हूँ जो कहते है‘‘ यदि प्रभावशाली सुसमाचार प्रचार होता तो इसे स्थानीय चर्च के साथ आरम्भ अन्त होना है।

तरीके यह महत्वपूर्ण प्रत्येक स्थानीय चर्च को यह पता लगाना और किसी विशिष्ट समाज तक पहुँचने और उनकी आवश्यक्ता को निशाना बनाना। कोई एक ही तरीका सब जगह काम नहीं करेगा या उसी डिनोमिनेशन में सिद्धान्त यह है हर एक स्थनीय चर्च का सुसमाचार प्रचार का दूसरों तक पहुँचने का कार्यक्रम होना चाहिए ताकि हम ख्रीष्ट के प्रेम के मानवीय उदाहरण को समाज के हर एक टुकड़ों मे ला सकें।

विश्वासियों की संगति।:
सच्ची बाईबल आज्ञाकारिता संगती चर्च वृद्धी का सिद्धान्त है जिस पर अकसर ध्यान नहीं दिया जाता कई कलीसियाओं में कई निश्चित ढांचा नहीं है कि संगती को उत्साहित किया जाए। एक दूसरे की चिंता जो हम नए नियम के चर्च में देखते है। हर एक स्थानीय चर्च में विकसित होना चाहिए। सच्ची बाईबल आधारित सामुदायिक जीवन का कोई और विकल्प नहीं है। 

इस प्रकार की संगती चंगाई और एकता को लाती है, यह सेवा करने और सेवकाई को विकसित करने का सुसमाचार प्रदान करती है। चर्च के लिए ऐसे चर्च की आवश्यक्ता है जो नए नियम की वास्तविक देखभाल करने वाला समुदाय है। यीशु ने कहा ‘‘इस से सब लोग जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो यदि तुम एक दूसरे से प्रेम करते हो।’’ (यूहन्ना 13ः35) यीशु ने यह वचन चर्च के अंतर स्पष्ट करने वाला (विभेदकारी) चिन्ह होने चाहिए।

सम्भवतः चर्च सदस्यों की संगती की वृद्धी छोटे समूह या ‘‘केर समूह’’ के द्वारा उत्तम उपाय है। 
यह इस रीति से विकसित हो सकता है कि विभिन्न आवश्यक्ताओं को पूरा करें और सुसमाचार प्रचार और शिष्यक्ता के लिए उत्साहित करें। 

आराधना उत्सव मनाना वृद्धी की कुंजी (प्रेरितों के काम 2ः47) विशेषतः एक परमेश्वर के लोग इकट्ठे हो और आराधना का विशेष कारण हो जो परमेश्वर ने पूरे हफ्ते में उनके लिए किया है। दक्षिण अमेरिका मंे डॅ. वैगनर यह पहचाना है कि आराधना एक कुँजी है। 

‘‘सबसे पहली बात जो आप ध्यान देंगे जबकि आप लैटिन अमेरिका पेन्तेकास्टल चर्च की आराधना में जाते है। कि आराधना में लोग कितना आनन्द उठाते हैं जबकि लोग चर्च जाने में आनन्द पाते है, वे दूसरे को चर्च लाने में हिचकिचाते नही है। 

एक बढ़ती हुई कलीसिया में आराधना एक विशेष स्थान रखती है, राजाओं का समुदाय आराधना करने वाले और उत्सव मनाने वाले ख्रीष्ट के राज्य करने वाले है। जितने ज्यादा लोग आराधना में शामिल होते है तो बड़ी आराधना बड़े परिणाम लाती है। 

कलीसिया में कुछ गाने की अगुवाई करने वाले है। कुछ वचन पढ़ते हैं कुछ वद्य यंत्र बजाते हैं कुछ प्रार्थना निवेदनों में अगुवाई करते है, कुछ गवाही देते हैं। कुछ चर्च को फूलों से सजाते ध्वनि को चलाते और टेप रिकार्डिंग करते। कुछ कलीसिया और अतिथियों का स्वागत करते और कुछ आवश्यक मंदो के लिए प्रार्थना करते है। 

बढ़ते हुए चर्च में व्यक्तिगत सेवकाई के लिए सुअवसर आराधना के दौरान प्राप्त होते है। एक विशेष समय में जबकि कलीसिया राह देखती है नकि उनकी मांगे पूरी होंगी। जब लोग प्रभु से नए उत्साहवर्धक बचन सुनते हैं और एक सुअवसर प्राप्त करते हैं कि परमेश्वर के लिए उपयोग आए यह पूरी कलीसिया की वृद्धी को स्फूर्ती प्रदान करता है। 

बन्धन मुक्त:
सब विश्वासीयों के पास दो स्त्रोत है। पैसा और समय। यह दोनो स्त्रोंतों की चर्च वृद्धी में एक मुख्य स्थान है यदि वे स्त्रोत प्रभु को समर्पित हैं। दश्वा अंश और दान मिशन के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है जिस परमेश्वर ने अपनी कलीसिया कहा है, वे सदस्य जो मिशन कार्य के देने के लिए समर्पित है और स्थानीय चर्च की गतिविघियों के लिए वे अपने स्वंय के जीवन में परमेश्वर की आशीष का अनुभव करेंगे। 
कंजूसी से देने वाले बढ़ते हुए चर्च के सदस्य खुशी से देते है। 

प्रारम्भिक चर्च का एक विरोध गुण था उनके विश्वासियों के समर्पण का स्तर। प्रेरित दान देने के इच्छुक थे समय, सोते और श्रम का दाम इस समर्पण के लिए।

अनेक लेख स्पष्ट बताते है कि उन्हेंने कर एक विश्वासी से आशा रखी कि वे दाम चुकाएँ। परमेश्वर के राज्य के चिन्ह बाईबल में स्पष्ट प्रकट है पौलूस ख्रीष्ट का बंधुआ दास उससे चर्च का यह याद दिलाता है कि हम अपने लिए न जीएं पर उसके लिए जो हमारे लिए मरा ख्रीष्ट ने अपनी शिक्षाओं में चेलों को याद दिलाया ‘‘ कि पहले उसके राज्य और धर्म की खोज करें।’’ रोमियों 6ः18 आप और आपका चर्च कटनी की फसल बटोरने में साथ दें सकते है। 

यह क्या ही सुसमाचार है, सुसमाचार स्पष्ट बताता है कि हमारा परमेश्वर अपने राज्य में वृद्धी चाहता है एक बढ़ता हुआ बीज जो एक विशाल वृक्ष बन जाता है। सुसमाचार यह भी बताता है कि वृद्धी प्रायोगिक के साथ आत्मिक भी है यह बिना समर्पण और बलिदान के नहीं होता। शिष्यता मूल्यवान है प्रभावशाली सुसमाचार प्रचार भी मूल्यवान है। हम कितना सौभाग्यशाली है कि जातियों को शिष्य बनाने के उत्तेजना पूर्ण कार्य का हिस्सा है। 

चर्च की बुलाहट दो आज्ञाओं को पूरा करने लिए है। ‘‘कि अपने पड़ोसी को प्यार करें और शिष्य बनाएँ। हमें एक निश्चित योजना और स्पष्ट उद्धेश्य की आवश्यक्ता है कि पूरे जगत में जा सकें परमेश्वर ने हमें उसके साथ और एक दूसरे के साथ सहकर्मी होने को बुलाया है। कुछ बीज बोने कुछ पौधों में पानी डालते। परमेश्वर बढ़ाता है। (1कुरिन्थियों 3ः5-7) यदि हम परमेश्वर पर भरोसा रखें और इस महान चुनौती का हिस्सा बनें। कि हम चर्च में वृद्धी देखे।

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