विश्व कटनी दिवस फसह के पर्व से पेन्तीकोस्ट तक

50 दिनों का विश्व कटनी दिवस


फसह के पर्व से पेन्तीकोस्ट तक

राजनैतिक, सामाजिक और आत्मिक उथल-पुथल व परिवर्तन का समय

(1) फसह के पर्व के दिन येशुआ मसीहा का क्रूस पर चढ़ाया जाना।
(2) प्रथम फलः येशुआ का सप्ताह के प्रथम दिन जी उठना।
(3) चेलों को 40 दिनों तक स्वर्ग के राज्य की शिक्षा। (प्रेरितों 1ः1-2)
(3) येशुआ का स्वर्गारोहण।
(5) दस दिनों तक 120 लोगों का घर में लवलीन होकर प्रार्थना करना।
(6) 14 नई भाषा में बोलने पवित्र आत्मा का अभिषेक एवं
(7) प्रेरिताई शिक्षा, पश्चाताप की बुलाहट एवं अभिषेक के द्वारा सामर्थ के कामों की प्रतिज्ञा। (प्रेरितों के काम 2ः37-39)
(8) 3000 आत्माओं का शुद्धिकरण का स्नान (बपतिस्मा)। (प्रेरितों 2ः41)
(9) पेन्तीकोस्ट का दिन कलीसिया का जन्म दिवस है। भोजन की संगति करना, जल संस्कार लेना व देना, सुसमाचार की चर्चा तथा गुणात्मक वृद्धि, पृथ्वी के छोर तक पहुँचने का आव्हान। (प्रेरितों 2ः42-47; 1ः8)

नये नियम के विश्वासियों की कलीसिया लगातार चेला बनाने, बपतिस्मा देने, एकत्रित होने, प्रेरतीय शिक्षा एवं सुसज्जित करने, विश्वसनीय सलाहाकार, बहुजातीय, बहुउद्देशीय विश्वासी परिणाम स्वरूप बहुसंख्या में ”प्रतिदिन“ लोग जुड़ गये ओैर कलीसिया विश्वास और संख्या में प्रतिदिन बढ़ती गई (प्रेरितों 2ः46,47; 16ः5)। यह पवित्र आत्मा का महान कार्य था जिसे यशुआ ने यूहन्ना 14ः12-17 में प्रतिज्ञा की थी।

परमेश्वर ने आदम को आदेश दिया ”फूलो, फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो (उत्पत्ति 1ः28)। निमरोद ने याहवे की आज्ञा का पूर्ण रूप से बगावत किया, निमरोद ने बाबेल का गुम्मट (मीनार) बनाया जिससे वे पृथ्वी पर तितर-बितर न हो जायें। हम लोग निमरोध की आत्मा से पीड़ित हैं और अपने लिये गुम्मट बनाकर कलीसिया के विश्वासियों को बँधुआ बना लेते हैं।

पेन्तीकोस्ट ने सब बदल दिया। पिता ने अपनी आत्मा हर एक मनुष्यों पर उण्डेल दिया; पुरूषों पर, स्त्रियों, यहूदियों, यूनानियों, पारथी, मेदी, ऐलामी, मेसोपोटामिया के लोग, कपदूकिया और पुन्तुस और एशिया और हर एक भाषा, गोत्र और जाति जो आकाश के नीचे है।

उन्होंने बिना भेद-भाव के स्त्री-पुरूष, ऊँच-नीच, समाज और जातीय असमानता को त्यागकर एक मन हो कर घर-घर जाकर रोटी तोड़ी, हजारों विश्वासी पृथ्वी के छोर तक सुसमाचार प्रचार करते, चेले बनाते, बपतिस्मा देते और कलीसिया रोपण करते आगे बढ़ते गये।

मरियम, लुदिया, प्रिसकिल्ला, फिबे, जूनिया, निम्फा और अन्य स्त्रियों ने विस्फोटक रूप से सुसमाचार प्रचार की बढ़ोत्तरी में आग लगा दी। यहूदी रूढ़िवादी (कट्टरवादी) याजकों को स्त्रियों को छूने का विरोध करते थे यहाँ तक कि वे स्त्रियों की ओर देख भी नहीं सकते थे। इसलिये पुरूष, पुरूष को बपतिस्मा देते थे और स्त्रियाँ एक-दूसरे को पानी का बपतिस्मा दिया करती थीं और यशुआ ने सब को आग का बपतिस्मा दिया (प्रेरितों 1ः14; 2ः5-11; मत्ती 3ः11; 5ः28)

सन् 1906 में अजूसा स्ट्रीट में आज के संदर्भ में पेन्टीकोस्ट की आत्मजागृति की सभा नेली टेरी जो कि एक महिला थी, आरम्भ की। जिसकी अगुवा जूलिया हचचिन्स नाम की एक महिला वहां पासबान थी। बाद में यह कलीसिया रूथ एसबरी के घर में स्थानान्तरित हो गई। जब यह घर धराशायी हो गया तब अजूसा स्ट्रीट में स्थानान्तरित हो गया।

विलियम सेयामूर रूथ के घरेलू कलीसिया में पहली बार अन्य भाषा में बोला। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नि जेनी अजूसा स्ट्रीट कलीसिया की पासबान बनी। स्त्री-पुरूष, काले-श्वेत, हिसपेनिकस, चीनी, अमीर-गरीब एक देह होकर स्वतन्त्र रूप से आराधना करते थे। वहाँ न तो कोई गायन मण्डली थी, न बाजे-गाजे थे, न उपदेश और न ही चँदे की पेटी थी, सैंकड़ों लोग रोज आते थे। 18 महिलाओं का एक केन्द्रीय समूह ने इस आन्दोलन को चलाया। अब यह दुनिया का सबसे बड़ा और तेजी से बढ़ने वाली कलीसिया है जिसमें 50 करोड़ पेन्टीकोस्टल और कैरिसमेटिक्स हैं हालाकि वर्तमान में इन कलीसियाओं ने पौलुस के कुछ वचनों का तोड़ मरोड़ अनुवाद करके महिलाओं के सारे अधिकार का हनन किया है। महिला सामर्थीकरण सघन कलीसिया रोपण आन्दोलन को तीव्र गति से चलाने की कुंजी है।

पिता यह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो. किन्तु सत्य को जाने और उद्धार पाये (2 पतरस 3ः9; 1 तीमुथियुस 2ः4)। खेद की बात है कि लाखों करोड़ों मसीही कलीसिया के नियम कानूनों मेे फंसकर बंदी हो गये है। बाईबिल पठन कक्षा, अनगिनित सभाओं, फलहीन कलीसियाई कार्यक्रम, इन सब कार्यक्रम से क्या लाभ ? जब तक हम अगले स्तर पर नहीं बढते और तैयार फसल को नहीं काटते (यूहन्ना 15ः16)। पिता ने प्रत्येक विश्वासी को जन और जमीन देने की प्रतिज्ञा की है (भजन 2ः8)। हमें पेन्तीकोस्ट नमूने को अपनाना है और फलरहित मसीहियों को फलवंत चेला बनाने वाले, बपतिस्मा देने वाले, तैयार करने वाले और भेजने वाले (महान आदेशी) में बदलना है। तभी चार अरब अशुद्ध लोगों को शुद्धिकरण का स्नान देकर अनन्त नरक जाने से बचा सकेंगे। 

येशुआ पर दोष लगाया गया कि वह यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से ज्यादा बपतिस्मा देता है (यूहन्ना 4ः1)। पतरस ने अपना खाता 3000 बपतिस्मा से खोला। याहवे ने छः लाख परिवारों को लाल समुन्दर में बपतिस्मा दिया यह सब जानते हुए कि ये पीछे हट जायेंगे और नाश हो जायेंगे (निर्गमन 12ः37; 1 कुरिंथियों 10ः1-5)। इस्राइली अपने विश्वास तथा परमेश्वर के महान कार्यों पर विश्वास द्वारा बपतिस्मा लिया था न कि मूसा के महान उपदेश द्वारा (निर्गमन 14ः3)।

बपतिस्मा देने मे विलम्ब करना बाईबिल नहीं सिखाती (मरकुस 16ः16)। नये नियम के अनुसार प्रत्येक जन जिस दिन पश्चाताप करके येशुआ को प्रभु मानकर ग्रहण करते थे उसी दिन बपतिस्मा लिया करते थे। येशुआ, पतरस और पाॅलूस स्वयं नहीं परन्तु बपतिस्मा अपने संगी साथियों के द्वारा दिलवाते थे। (1 कुरिंथियों 1ः14-17)।

नये नियम के बपतिस्मा में कोई भी विश्वासी याजक के द्वारा डुबाया नहीं गया। येशुआ का बपतिस्मा नदी में हुआ, यही लुदिया के साथ हुआ और कुश के खजाँची का बपतिस्मा एक कुण्ड़ में और फिलिप्पि जेलर का जेल की ही टंकी में और कुरनेलियुस का सेना के मुख्यालय में बपतिस्मा हुआ।

बहुत से विदेशी यहूदी व्यापारी और धंधा करने वाले पेन्तीकोस्ट के दिन यरूशलेम मंे उपस्थित थे, उन्होंने वापस जाकर फारस (ईरान), भारत और चीन जो सिल्क रास्ते (प्रेरितों 2ः5-11) से आये थे, अरबेला और इदीस्सा जो कि मेसोपोटामिया के उत्तर में है, उरफा जो टर्की में है, बगदाद जो कि इराक में है, और केरला जो भारत में है, यह सब व्यापार करने वाले स्थान थे, वहां जाकर प्रचार किया, बपतिस्मा दिया और कलीसियाएं स्थापित की। इन व्यापारियों ने मसीहियत को विस्फोटक रूप से फैलाया। पश्चिम यहूदी फारस (इराक) मसीहियत में बदल गया। 

खादिजा एक व्यापारी महिला ने मोहम्मद, ईस्लाम धर्म के स्थापक से विवाह कर लिया। 7वीं शताब्दी में उसने उस क्षेत्र को पूरी तरह से धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम देश बना दिया। यह इसलिये हुआ क्योंकि कलीसिया पूरी तरह से रूढ़िवादी थी और उसमें कोई आत्मिक सामर्थ नही था। तब कलीसिया सीरियाई भाषा जो विदेशी भाषा थी उसका उपयोग करती थी। इतना ही नहीं उनकी रूढ़िवादिता, धार्मिक कर्मकाण्ड़, असहनिय (असह्य), बेरहमी, शोषण इतना खराब था कि इस्लामी कानून (शारिया) एक तरह से छुटकारा के रूप में आया।

इश्माइल के पुत्र (मुसलमान) बाईबिल के देश में यहाँ तक की यरूशलेम (ए.डी. 638) में चढ़ गये और ईसा बिन मरियम (मसीहियों) के अनुयायियों को हजार वर्षों के लिय खत्म कर दिये (हबक्कूक 1ः5-11).

याह की स्तुति हो कि पवित्र शास्त्र के इब्राहिम के देष, दानियेल, एस्तेर, नहेम्याह, युसुफ जैसे ईरान, ईराक, मंगोलया, तुर्की, अफगानिस्तान, मिस्र, साउदी अरेबिया और पाकिस्तान में एक बार फिर से हलचल मचा दी है जिसमें हजारों इश्माइल की सन्तान दर्शन और स्वप्नों के द्वारा ईसा अल मसीह के अनुयायी बन रहे हैं। अब समय आ गया है कि इब्राहीम की तीसरी पत्नि कतूरा और उसकी रखेलियों से जन्मे पुत्र और पुत्रियों को जिन्हें उसने पूर्व दिशा की ओर भेज दिया था जैसे भारत, चीन और आगे, उन्हें आशीषित करने का समय आ गया है (उत्पत्ति 25ः1-5)। भारत को प्रतिदिन एक लाख लोगों को शुद्धिकरण का स्नान देना आवश्यक हैं। वर्तमान में सिर्फ 5000 ही हो रहे हैं और सम्पूर्ण जगत को चाहिये कि दस लाख लोगों को डुबायें (वर्तमान में 1,80,000 हो रहे हैं)। प्रतिदिन जन्म दर के हिसाब से एवं जो लोग पहले से ढहरे हुए है उन्हें शिष्य बनाकर, पश्चाताप कराकर, डुबाने की आवश्यकता हैं।

मसीहियों ने पेन्तीकोस्ट अर्थात पचास नाम रखा है। यहूदी इसे ”शावुत “ (सप्ताह) और सही रूप से ”हाग हा कतसिर “ अर्थात् कटनी और बटोरने का पर्व, ( निर्गमन 23ः16)। यहूदी यह विश्वास करते हैं कि याहवे ने ”तोराह“ (नियम) पेन्तीकोस्ट के दिन सीने पहाड़ पर दिया था। रूत की पुस्तक का अध्ययन पूरी रात किया जाता है क्योंकि उसका जीवन-कटनी के सीला बीनने से संबंधित है। यह वह दिन है जब रूत जो एक श्रापित मोआबीन थी कहाॅ, ”तेरे लोग मेरे लोग और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा“ उसी प्रकार अन्यजाति के लोग आपसे कहे कि तुम्हारे लोग मेरे लोग होंगे और तुम्हारा परमेश्वर हमारा परमेश्वर होगा (रूत 1ः16)।

यरूशलेम में पूरे संसार से हजारों लोग अपने पशु, अन्न और प्रथम फल का बलिदान चढ़ाने के लिये पेन्तीकोस्ट के दिन एकत्रित होते थे। येशुुआ ने इसे आत्माओं की कटनी एकत्रित करने में बदल दिया। चेले पवित्र आत्मा का अभिषेक पाकर, एक भवन के अन्दर हालिल्लूयाह चिल्लाते, परमेश्वर की स्तुति हो, और अन्य-अन्य भाषा नहीं चिल्लया, परन्तु पूरे संसार से आये हुए लोगों को सुसमाचार उन्हीं की भाषा में सुनाया, पश्चाताप कराया और उसी दिन पास के कुण्ड़ों में बपतिस्मा दिलाया। प्रभु ने पवित्र आत्मा कलीसिया को बहुतायत से आत्माओं की कटनी काटने और बटोरने के लिये दिया है। खेद की बात है कि बहुत सी कलीसियायें आत्मिक फसल काटने के बदले धन की कटनी काट रहे हैं।

हमसे प्रभु ने नहीं कहा कि जाओ और बपतिस्मा पाओ और चर्च की बेंचों को सजाओ। उन्होंने आदेश दिया कि चेला बनाओ, बपतिस्मा दो, तैयार करो और भेज दो। (मत्ती 28ः19; प्रेरितों के काम 1ः8)

यदि आप अपने को मसीही कहते है तो आप चैबिस घंटे और सातों दिन उसका नाम एवं अधिकार लेकर चलते है। आप घर में है या नौकरी के स्थान पर या बाजार में या कहीं पर भी, आप प्रभु के राजदूत है और आप को हर जगह उसकी आज्ञा का पालन करना है। महान आदेश का पालन करना हरएक मसीही का बुनियादी कर्तव्य है। 

महान आदेशः इसलिये जाओ और सब जातियों के लोगों को चेले बनाओ तथा उन्हें पिता, पुत्र ओर पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो और जो आज्ञाएं मैने तुम्हे दी है उन्हें मानना सिखाओं। (मत्ती 28ः19)

प्रभुजी ने नहीं कहा कि तुम बपतिस्मा लेने वाले बनों परन्तु देने वाले बनो।

हमारे आफ्रीकी देश के मित्र ”विश्व प्रार्थना दिवस“ मनाने के लिये सभी महाद्वीपों में पहुँच रहे हैं। यह खोजी लोगों की कलीसिया के लिये बड़ी मदद होगी। निश्चय सभी विश्वासी 50 दिनों को जो फसह के पर्व से आरम्भ होकर पेन्तीकोस्ट के दिन तक इसे ”विश्व आत्माओं की कटनी“ के दिनों मे चेला बनाने, बपतिस्मा देने, तैयार करने और हजारों आत्माओं के उद्धार के लिये मनायें।

स्मरण रखें: 50 दिनों का विश्व कटनी दिवस है।

पृथ्वी जीने के लिये ऐसा बुरा स्थान है, इसलिये नहीं कि शैतान क्या कर रहा है किन्तु मसीही लोग वह नहीं कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिये जो पूर्ण और अपूर्ण आदेश है।

कृपया स्वतन्त्रता के साथ इस पत्र की काॅपियाँ बनाकर अपने मित्रों को बाँटें।

https://www.prarthnayoddha.com/2020/06/blog-post_22.html

द्वारा वि. चैधरी
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