नये नियम की कलीसिया के 16 सिद्धान्त

नये नियम की कलीसिया के 16 सिद्धान्त


प्रेरितों की पुस्तक और साथ ही नये नियम के अन्य भागों से हम नये नियम की कलीसिया के सिद्धान्त अथवा अधिकारपूर्ण स्तर का ज्ञान प्राप्त करते है। 

1. सर्वप्रथम एक कलीसिया लोगों के  स्थानीय झुण्ड के रूप में जो पवित्र आत्मा द्वारा एक किए गए जो गम्भीरता के साथ प्रभु यीशु मसीह के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ते की खोज में बढ़ते रहते हैं (प्रेरितों के काम 13ः2; 16ः5; 20ः7; रोमियों 16ः3-4; 1कुरिन्थियों 16ः19; 2कुरिन्थियों 11ः28; इब्रानियों 11ः6)

2. कलीसिया की सामर्थ पूर्ण गवाही के द्वारा पापी उद्धार पाकर, नया जीवन व बपतिस्मा लेकर मण्डली में जुड़ जाएंगे; वे प्रभु भोज में सहभागी होंगे तथा मसीह के पुनरागमन की बाट जोहते रहेंगे (2ः41-42; 4ः33; 5ः14; 11ः24; 1कुरिन्थियों 11ः26)।

3. आत्मा के बपतिस्में का प्रचार नये विश्वासियों में किया जायेगा (2ः29)। तथा आत्मा की उपस्थिति तथा सामर्थ्य  प्रकट होगी।   

4. पवित्र आत्मा के वरदान उन में कार्य करेंगे (रोमियों 12ः6-8; 1कुरिन्थियों 12ः4-11; इफिसियों 4ः11-12;) इसके साथ ही अद्भूत कर्य, चिन्ह, चमत्कार व चंगाई भी (प्रेरितों के काम  2ः18;43; 4ः30; 5ः12; 6ः8; 14ः10; 19ः11; 28ः8; मरकुस 16ः18)।  

5. सेवकाई के कार्यो को सिद्ध करने के लिये परमेश्वर कलीसिया को पाँच गुनी नेतृत्व प्रदान करता है (इफिसियों 4ः11-12)।  

6. विश्वासी दुष्टात्माओं को निकालेंगे (प्रे. 5ः16; 8ः7; 16ः18; 19ः12; मरकुस 16ः17)। 

7. सुसमाचार के प्रति पूर्ण विश्वासयोग्यता होगी अर्थात मसीह तथा प्रेरितों की मूल शिक्षांए (प्रेरितों के काम 2ः42; इफिसियों 2ः20) लोग अपने आप को परमेश्वर के वचन के अध्ययन तथा पालन के लिये समर्पित करेंगे। (प्रेरितों के काम 6ः4; 18ः11; रोमियों 15ः8; कुल. 3ः16; 2तीमु.2ः15)

8. सप्ताह के प्रथम दिन (प्रेरितों के काम 20ः7; 1कुरिन्थियों 16ः2), स्थानीय कलीसिया परस्पर आत्मिक उन्नति तथा संगति के लिखित वचन द्वारा एकत्रित होगी।  (1कुरिन्थियों 12ः7-11; 14ः26; 1तीमुथियुस 5ः17)

9. कलीसिया पवित्र परमेश्वर के सन्मुख नम्रता, भय तथा आदर के साथ खड़ी होगी (प्रे. 5ः11), लोग व्यापक रूप से कलीसिया की पवित्रता, पाप करने वाले सदस्यों को अनुशासित करने और जो शिक्षक वचन के प्रति वफ़ादार नहीं है उनके प्रति चिन्तित होगी (प्रेरितों के काम  20ः28; 1कुरिन्थियों 5ः1-13; मत्ती 18ः5)

10. जिन्होंने भक्तिमय जीवन का जीवन का पीछा किया है जो प्रेरितों द्वारा बताया गया वे कलीसिया की देखभाल के लिये प्राचिन के रूप में नियुक्त किये जायेंगे, तथा अपना आत्मिक जीवन बनाए रखेंगे। (मत्ती 18ः15, 1कुरिन्थियों 5ः1-5; 1तीमु. 3ः1-7)

11. इसी तरह मण्डली में भौतिक मामलों की देखभाल के लिये उपयाजक भी होंगे (1तीमुथियुस 3ः8)

12. सदस्यों के मध्य देखने योग्य प्रेम तथा संगती होगी (प्रे. काम 2ः42, 44-46; 13ः34) न केवल स्थानीय मण्डली में बल्कि अन्य मण्डलियों में भी जो वचन को मानती हैं (प्रे.काम 15ः1-31; 2कुर. 8ः1-8)।

13. मण्डली उपवास और प्रार्थना करने वाली होगी (प्रे.काम 1ः14; 6ः4; 12ः5; 13ः2; रोमियों 12ः12; कुलस्सियों 4ः2; इफिसियों 6ः18)।

14. विश्वासी अपने आप को प्रचलित विश्वदृष्टिकोण से अलग करेंगे और साथ ही चारों तरफ़ की सांस्कृतिक आत्मा से भी दूर रखेंगे (प्रे.काम 2ः40; रोमियों 12ः2; 2कुरिन्थियों 6ः17; गल.1ः4; 1यूहन्ना 2ः15-16)।

15. संसार तथा संसार के मार्गो से सताव होगा (प्रे.काम 4ः1-3; 5ः40; 9ः16; 14ः22)।

16. कलीसिया दूसरे राष्ट्रों में मिशनरी भेजने में सक्रिय सहायता करेगी (प्रे. काम 2ः 39; 13ः2-4)।

कोई भी कलीसिया जिसमें ये उपरोक्त 16 गुण नहीं हो, तो वह नये नियम की कलीसिया नहीं कहलाएगी।    

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