भाग 5 कलीसिया हर पड़ोसी इलाके में

भाग 5 कलीसिया हर पड़ोसी इलाके में 


यीशु नें कलीसिया को हुकुम दिया कि पूरे संसार में जा कर सारी जातियों को शिष्य बनाओं। बाईबिल में ‘‘नेशन अर्थात जाति‘‘ का मतलब है जाति समूह या ऐसा झुण्ड जिसमें लोग एक भाषा और संस्कृती के होते है। मिशनरी लीड़रो के मुताबिक 6000 जाति अभी भी है जिनके बीच में कोई चर्च नही है। 

एक से अधिक चर्चो के द्वारा जातिया को शिष्य बनाया जा सकता है। अगर एक जाति को शिष्य बनाना है तो उस में बहुत से चर्च रोपित करना होगा। इस कार्य को करने के लिये सघन कलीसिया रोपण करने की रणनीति तैयार करना पड़ेगा इस का यह मतलब है कि कलीसिया हर नगर या वहां की जनसंख्या 500 से 1000 के बीच में। 

सघन कलीसिया रोपण का दर्शन केवल पीछड़े देशो के लिये ही नही है परन्तु यह देशो के लिये है जैसे यूरोप लतीनी अमेरिका, उत्तरी, अमेरिका, आफ्रिका इत्यादि।
बहुत से चर्च के अगुवे घरेलू कलीसिया के विषय में सुन कर नही घबरातें क्योंकि घरेलू कलीसिया का आन्दोलन उन के जगत में नही है कि चीनी लोग घरेलू कलीसिया के माध्यम से उद्धार पा रहे है। किन्तु आनन्द भरा शोर शान्त हो जाता है और कभी गुर्राना में बदल कर विरोध में बदल जाता है अगर यह क्रान्ति उन नगर में आ जाती है। 

यह क्यों? बहुत से लोग डरते हैं कि कलीसिया में विभाजन आ जायेगा और उन के लोग छोड़ कर चले आयेगें। यह अच्छा होगा यदि घरेलू कलीसिया का आन्दोलन सारी चर्च सभाओं की संख्या बढ़ा दे। तब सब कलीसियायें एक नगर के अन्दर सक्रिय होकर गुणात्मक कलीसिया में बनायें इसके बजाय एक विशाल कलीसिया बनाये। हमें नये अगुवे तैयार करने के क्षेत्र में चुनौती लेना चाहिए। सभों को नये अगुवों को तैयार करना का बेड़ा यो लेना चाहिए। 
मत्ती 13ः38 कहता है कि ‘‘खेत संसार है हर समय ठीक समय है जब संसार के सब लोगो को उद्धार पाने के लिये पहूँचना है।
 
प्रभु यीशु ने आखिरी काम क्रूस पर मरने से पहिले किया जब उसने एक चोर को शिष्य बनाया ताकि वह स्वर्गलोक में जा सके और जी उठने के बाद पहिला काम यीशु ने उन दो लोगो के साथ किया जो इमाऊस को जा रहे थे यीशु ने उनकी आखों को खोला और वे यीशु को पहिचान गये। यीशु शिष्य बनाने की प्रथा बड़ी गंभीरता से ले रहे थे और यीशु यह ही हम से अपेक्षा करते है। 
किसी को यह नही कहना चाहिए ‘‘कि तुम यह चर्च नही बनाओं यह मेरा क्षेत्र है‘‘ कोई भी ऐसा चर्च नही है जों उन लोगो तक पहुंच रहा है। जिन्होंने उद्धार नही पाया है आपने ही पड़ोस में या नगर में। हमें सारी सहायता की जरूरत है। कि हम उन लोगों तक पहुंच जिन्हें जरूरत है। अगर घरेलू कलीसिया के द्वारा मेरे नगर में प्रचार के काम को तेजी से बढ़ायेगा तो मैं यह चाहूंगा कि मैं जितनी घरेलू कलीसिया चालू कर सकता है जो वह मैं करूं। मैं यह देखना चाहता हूँ कि वे संख्या में बढ़े। इसी तरह मैं और दूसरे पास्टरों को भी उत्साहित करना मांगता हूँ जो यीशु से प्रेम करते है। मैं उन को प्रोत्साहित करूंगा कि वे अनेक कलीसिया स्थापित करें चाहे मेरे शहर में और दूसरे शहरो में।

बिना तनख्वाहधारी प्राचीन तैयार करें।: कुछ लोग चिन्ता करते है कि बहुगुणित कलीसिया के चलते अयोग्य लोग अगुवे बन जायेंगे। हय चिन्ताजनक विषय है कि अनुचित अगुवे अपनी अज्ञानता से विधर्मी। पाखण्डी लोग आ जायेंगे। 
आखिरी 2000 वर्षो के इतिहास हमंे नही भूलना चाहिए जब चर्च के प्रबल अगुवे और उन झुण्डों के जो परमेश्वर पर बिश्वास करते थे और वे सोचते थे कि परमेश्वर ने उनके ही द्वारा बोला/प्रगट किया और वे अपने घमण्ड में लोगो को सताया और हजारो निर्दोष बिश्वासियों को मरवाडाला यह बोल के कि वे पाखण्डी है। आज तक एक आत्मिक घमण्ड की आत्मा देखते है जों लोगों को बन्धिश में रखती है और अगुवे सोचते है कि ज्यादा संख्या में बढ़ने से अयोग्य लोग निकलेगें जिनको परमेश्वर नही इस्तेमाल करेगा। परन्तु इतिहास इस के विरूध बोलता है। 
हमें याद रखना चाहिए कि यीशु धार्तिक संस्थाओं में अपने अगुवे चुनने के लिये नही गया। उन्होंने साधारण परन्तु कठिन परिश्रम करनेवाले मनुष्यों को चुना, वे अशिक्षित मछुवारे और साधारण प्रतिदिन काम करने वाले सामान्य लोग को चुना। ध्यान दे कि पौलुस ने प्राचिन नियुक्त किया जब चर्च स्थापित हो घर आदि सम्भालने लग गया था। उसने इन प्राचिनों को प्रभु के हाथ में सौप दिया जिस पर इन्होेने बिश्वास किया था। हमें प्रभु पर बिश्वास होना चाहिए कि वह अपनी कलीसिया की देख रेख करेगा। (प्रे.काम14ः23)
परमेश्वर छोटी और कमजोर वस्तुओं को इस्तेमाल करने से प्रेम करता है नीचे लिखे व्याकांश को ध्यान से पढ़े:- 
‘‘हे भाइयो, अपने बुलाए जाने पर तो विचार करो कि शरीर के अनुसार तुम में से न तो बहुत बुद्धिमान, न बहुत शक्तिमान और न बहुत कुलीन बुलाए गए, परन्तु परमेश्वर ने संसार के मूर्खो को चुन लिया है कि ज्ञानवानों को लज्जित करे, और परमेश्वर ने संसार के निर्बलों को चुन लिया है कि बलवानों को लज्जित करे, और परमेश्वर ने संसार के निकृष्ट और तुच्छो को, वरन उनको जो है भी नही चुन लिया, कि उन्हें जो हैं व्यर्थ ठहराए, जिससे कि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करे, परन्तु उसी के कारण तुम मसीह यीशु में हो, जो हमारे लिए परमेश्वर की ओर से ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता और छुटकारा ठहरा, कि जैसा लिखा है, यदि कोई गर्व करे तो वह प्रभु में करें।‘‘ (1कुरिन्थियों 1ः26-31)
सम्पूर्ण जगत में बहुत से महत्वपूर्ण क्रान्तिकारी आन्दोलन सुसमाचार प्रचार कलीसिया के इतिहास में हुआ है। हर एक आन्दोलन में साधारण, रोजमर्रा के पुरूष और महिला का बड़ा भाग है। 
जाॅन वेसली एक महान प्रशिक्षित व्यक्ति है जिसकी वर्षो से पढ़ाई और धार्मिक ट्रेनिंग थी। वह एक बड़ी बढ़ोत्तरी का अगुवा था जो आन्दोलन का रूप बना और इतिहास में कलीसिया रोपक बना। परन्तु वेसली अपने पास्टर और अगुवे ढूढ़ने धार्मिक स्कूल और ट्रेनिंग सेन्टर में नही गया। 

उसने कहा मुझे 12 पुरूष दिजिये जो यीशु से पूरे दिल से प्यार करते हैं और वे मनुष्यों और शैतान से नही डरते है। मैं इसकी परवाह नही करता कि वे पास्टर या साधारण चर्च के मेम्बर है, इनके साथ में संसार को बदल दूगाँ। ओर ठीक वही वसली ने किया। 
सुसमाचार प्रचार खुल जगह में आधार्मिक माना जाता था और स्थानिय चर्च प्रत्यक्ष अपमान और गम्भीर समस्या माना जाता था। नासमझी से लोगो का विचार था। कि पवित्र वचन चर्च के बाहर से नही प्रचारा जा सकता है। 

वेसली भाई ने और जज़िविटफील्ड ने सालो साल सताव उन कलीसिया से सहा जो परम्परागत कलीसियाओं से हुआ। परन्तु इतना होते हुए भी इन भाईयों ने खुली सभा बन्द नही की उनको परमेश्वर का वचन मालूम था। उन को पूरा चकीन था कि यदि यीशु ने अपने समय के परम्परा तोड़ा तो उनको मन्जूर था कि वे भी वही करे। 
अब हम फिर से चर्च बढ़ोत्तरी आन्दोलन के पिता डाॅ. मेकगेवरन की ‘‘चर्च बढ़ोत्तरी को समझना‘‘ से एक हवाला खिलते है, जहां वे कहते है ‘‘बिना वेतन वाले अगुवे तैयार करो, साधारण चर्च के बिश्वासियों ने एक बड़ा भाग निभाया है कलीसिया को शहरो में विस्तारित करने में।
लेटिन अमेेरिका (दक्षिण अमेरिका) में शुरू से साधारण लोगों ने जिन्हें तनख्वाह नही मिली थी उन्होंने सभाये चलाई, कुछ स्थानों में, मेकेनिक, मज़दूरी और प्रार्थना में अगुवाई की, अपनी गवाही से बताया कि परमेश्वर ने उनके जीवन में क्या किया है और लोगो को चेतावनी दी। इन स्थानों में मसीहियत पैदायशी और सुनने में लोगों में असली दिखाई देती है। 

जितने ज्यादा श्रीमान और श्रीमती सामान्य मसीही चर्च की अगुवाई करते है उतने ही जल्दी एक साधारण अबिश्वासी प्रभु को ग्रहण करते है। 

सामान्य चर्च मेम्बर जो सेवा करते है उनको कई उलझनो और काम करने का समय अपनी कलीसिया के मेम्बरों का सामना करना पड़ता है। शायद उन्हें सही बाईबल की शिक्षा नही आती है और सुन्दर प्रार्थना करना नही आता परन्तु इन सब खामियों को वे दूर करते हुए लोगो से आपसी समबन्ध से अपने काम में सफल होते है। 
कोई भी तनख्वाधारी एक इलाके के लोगो को ऐसा जानता है जैसा वह पुरूष जिसको दरजनो नीति दोस्त और रिश्तेदार उस इलाके में रहते है।
यह सत्या है कि एक नये स्थान में बाहर से आये लोगो को काम शुरू करना पड़ता है और कोई नही कर सकता। परन्तु यह अच्छा होगा जब वह नये चर्च की एक स्थानीय पुरूष के हांथ में सौप देगें। 

डेविड वीमैक अपनी किताब ‘‘ब्रेकिग द स्टेनड ग्लास विन्डों‘‘ में कहते है केवल एक ही जरिया है जिससे महान आदेश पूरा हो सकता है और वह एक सुसमाचार प्रचार करने वाली समाज को तैयार कर इस पृथ्वी पर करे।‘‘ 
रोजर ग्रीनवे एक विशेषज्ञ जो शहरों में पहुंचने का काम करते है वे आनी किताब ‘‘डिसाईपलिंग द सीरी‘‘ चर्च का प्रचारकीय काम यह अपेक्षा करता है कि हर समाज, अर्पाटमेन्ट बिल्डिंग, पड़ौस इलाकों में एक ऐसा चर्च होना चाहिए जों परमेश्वर के वचनों में बिश्वास है‘‘

इसलिये एक घरेलू कलीसिया हर एक के चलने की दूरी में होना चाहिए ताकि वे सुसमाचार सुनके उद्धार पा सकें। 

लाखो में कलीसियायें : कुछ दिन पहिले में जिम मान्टगमरी के द्वारा एक किताब जिस का शीर्षक ‘‘डाॅन 2000 था। उसका एक छोटा शीर्षक कुछ ऐसा था जिसको मैं बिश्वास नही कर रहा था ‘‘सेवन मिलियन चर्च टू गो‘‘ अर्थात 70 लाख चर्च और बनाना है मैंने सोचा यह कैसे हो सकता है जो लाख चर्च के विषय सोच सकता है।‘‘ किताब को थोड़ी देर पढ़ने के बाद मैं भी सात मिलियन चर्चेस के विषय में सोच सकता हूँ जो पूरे संसार में भविष्य में रोपित किया जा सकते है। 

यह इसलिये है कि इतिहास में वर्तमान समय में मिशनरी क्रान्ति सब से बढ़ कर है। अब लोग सब भाषा, जाति, कुल और लोग तक पहुचंने में रूची ले रहे जैसे यीशु के स्वर्गारोहण के बाद। 
पूरे संसार में एक बड़ी आवाज उठ रही है। हमें काम पूरा करना है। इसलिये हम यीशु ख्रीष्ट की महान आदेश का सुसमाचार प्रचार करे हर सृष्टी की करें। इसलिये हम उस के हुकुम का पालन करें।
चलिए हम यीशु को धार्मिकता से राज्य करने के लिये और चलिये देखें जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया हैं। और वह युगानयुग जीवित है।
पृथ्वी से एक बड़ी हवा तेजी से प्रति दिन बढ़ती जा रही है। आईये हम प्रार्थना करें की हर एक बिश्वासी कलीसिया रोपक और हर बिश्वासी का घर घरेलू कलीसिया और हर एक घरेलू कलीसिया एक टेªनिंग सेन्टर बन जाये।

सत्य है कि एक छोटा पत्थर पहाड़ से कटकर बिना किसी हाथो द्वारा जो दानियल नबी ने दर्शन में देखा था वही एक चर्च है। दानियल बताता है कि कैसे यह पत्थर ढुलकते हुए आया और उस मूर्ती के पैरों से टकराया जो संसार के बड़े शक्तियों का सूचक हैं। यह छोटा पत्थर ही चर्च है और यह बढ़ता जा रहा है और तेजी से बढ़ रहा है। यह छोटा पत्थर संसार के शक्तियों से टकरा चुका है। शीघ्र ही वह एक बड़े पहाड़ सा होकर पूरे संसार में फैल जायेगा। दानियल 2ः34ः35, यशायाह 11ः9 ‘‘क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जायेगी जैसा जल समुद्र से भरा रहता है।‘‘ 
महान आदेश को पूरी करने की कुन्जी एक घरेलू कलीसिया स्थापित करना। 

एक ऐसी रणनीति है जो मिशन संस्था की योजना बनाने वाले के ध्यान में आ रही है और वह यह है कि एक बिश्वासियों की सभा हर समाज में रोपित की जाय जहां 500 से 1000 लोग रहते है। इसीको ‘‘सघन कलीसिया रोपक‘‘ कहते है।
हम को स्टेनड ग्लास विन्डो विचार धारा को ताड़ना पडे़गा अब हम को चर्च को एक इमारत के रूप में नही सोचना है। 
हम को चर्च को लोगो के रूप में देखना है। उसका यह मतलब है लोग यीशु के नाम से आते है। लोग अब घरो में, किचन में, दूकानों में, आफिस में,य खेतो में, फेक्टरी में, सड़क के किनारे, स्कूल में, चाय की दूकान पर, पार्क में जेल में, अस्पताल में, झुग्गी झोपड़ी में, पक्की सड़क पर, रेल्वे प्लेटफार्म, कार में, बस में, बैलगाड़ी में यहां तक की ऊंट के ऊपर जहां दो या तीन उसके नाम से जमा होते है। पूरा संसार परमेश्वर का खेत है और चर्च/कलीसिया उसके खेत में रोपित करना जरूरी है। 

उ़द्योग सीखनेवाला / नौसिखिया
सबसे प्रभावशाली प्रश्न है, कि कहां से इतने सारे पास्टर मिलेंगे जो नये चर्चो को चलायेंगे? एक बात ध्यान देना आवश्यक है कि नये नियम की कलीसियाओं को पास्टर का दबाव नही होता था। पास्टर शब्द संज्ञा के रूप में केवल एक बार नये नियम में आता है इफिसियों 4ः11 जितनी कलीसिया थी वे सब स्थानीय प्रचीनो के द्वारा चलाई जाती थीं।
कुछ साल पहिले लैरिन अमेरिका में कुछ पास्टरों ने मिलकर योजना बनाई कि जवान पुरूषों को सेवा के लिये तैयार करे। अधिकांश लोग उन क्षेत्रो में बहुत गरीब थे। इसलिये यह संभव नही था कि उस क्षेत्र के पुरूषों को शहर में पढ़ाई के लिये थियोलाॅजिकल स्कुल में भेंजे।

इन मिशनरियों ने एक योजना बनाई और उसका नाम ‘‘टी‘‘ याने ‘‘थियोलाॅजिकल एजुकेशन बाई एक्सटेनशन‘‘ यह पढ़ाई ऐसी थी कि जवान पुरूष अपने घरों में कर सकते थे। इस योजना का समय था और बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ। 
कुछ समय बाद एक और मिशनरी जिन का नाम जार्ज पैटरसन था उन्होंने ‘‘टी‘‘ में एक और इ लगा दिया और उस का नाम ‘‘थियोलाॅजिकल एजूकेशन एण्ड ईवेन्जजिस्म बाई एक्सटेनशन‘‘ कहले लगे। इस योजना के तहत शिक्षक पुरूषों को ट्रेन कर सकते थे नौसिखिया के परीके से। 
योजना में प्रत्येक पास्टर कों व्यक्तिगत रीति से नौसिखिया की टेªनिंग में जिम्मेदारी लेना जरूरी था। एक पास्टर को अपने नैसिखिया को एक प्रयोगशाला देना जरूरी था जहां वह एक चर्च की पास्टरी करे। यह प्रयोगशाला वास्तव में चर्च था, एक छोटा झुण्ड जो एक घर में मिलते थे या किसी और जगह। 
उस नौसिखिया को एक झुण्ड में अगुवाई करना था समय बे समय नौसिखिया को विशेष आदेश दिया जाता था अपने भेजने वाली चर्च से। जो काम दिया जाता था वह कुछ किताबों को पढ़ना, टेप को सुनना, मिटिंग में जाना, और सेमिनार में भाग लेना। हर सप्ताह वह अपने निर्धारित काम को पूरा करता था जो उसके पास्टर टीचर द्वारा दिया गया था, इस तरह से वह केवल ज्ञान ही नही प्राप्त करता था पर कलीसिया रोपण में निपुण हो जाता था। इस नौसिखिया को कलीसिया को विस्तारित करने का दर्शन दिया जाता था और उस को अपनी सभा में से एक और व्यक्ति को तैयार करना था, इस तरह कलीसिया रोपण का दर्शन पूरा होता जाता था। 

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