दशमांश
दशमांश
1. परमेश्वर स्वंय सक्षम हैं और उन्हें हमारे पैसों की आवश्यक्ता नहीं है,तथापि वे खोई हुई आत्मांए चाहते हैं। कलीसिया का सबसे बड़ा पाप यह है कि उसने खोई हुई आत्माओं की उपेक्षा की है और प्रभु का पैसा अपने उपर व्यर्थ गवाया है।
2. पुराने नियम में दशमांश केवल भूमि की उपज के रूप में दिया जाता था और प्रत्येक दसवां पशुु भी जो छड़ी के नीचे से निकलता था। बढ़ई प्रत्येक दसवीं कुर्सी नहीं देता था और मछुवारा भी पकड़ी गई मछलियों मेसे प्रत्येक दसवी मछली दशमांश में नही देता था। यदि भूमि नहीं है तो दशमांश भी नहीं। (लेव्य.27ः30-32)
3. दशमांश का अर्थ पैसा नही था, उसका अर्थ भोजन था,‘‘सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजन वस्तु रहे’’। दशमांश देने वाले अन्न,दाखमधु और पशुु लाते थे और अपने दशमांशो को, यरूशलेम में परमेश्वर की उपस्थिति में अपने घराने, गरीबों, अन्यजातीय सेवकों और लेवियों के साथ खाते थे। दशमांश देना परमेश्वर द्वारा की गई भलाईयों का उत्सव होता था। यहूदी प्रति वर्श 20 प्रतिशत दिया करते थे, और प्रति तीसरे वर्श 30 प्रतिशत दिया करते थे।
4. नई वाचा के आधीनः विश्वासीगण दशमांश नहीं देते, परन्तु वे अपना कत्र्तव्य कर्म (स्ंजतमपंत्र लेट्रिआ त्र आराधना) जानकर अपना सब कुछ अर्पण करते हैं (रोमियों 12ः1) मलिकिसिदेक की रीति पर राजकीय याजक होने के नाते हम लेवीय याजकों से अधिक ऊंचे पद पर है। (1पतरस2ः9; प्रे.काम7ः48-49)
5. हम अन्यजातीय विश्वासियों को कभी भी दशमांश देने की शिक्षा नहीं दी गई है। आप पौलूस प्रेरित की पूरी अन्यजातियों को लिखी गई पत्रियों को पढ़कर ढूढ़िये, क्या कहीं, उसने एक पैसा भी दशमांश देने के लिये लिखा है? (प्रे.काम15ः20)
6. पुराने नियम का दशमांश देना, परमेश्वर की ओर से नियुक्त थाः कलीसिया की चंदे की पेटी मनुश्य का अविश्कार है। यदि आप इब्राहीम के नमूने पर चंले तो आपको अपने जीवन में एक बार अपनी लूट का दशमांश देना होगा और उसके साथ खतना कराना, बलिदान चढ़ाना और बहुविवाह भी करना होगा। (उत्पत्ति17ः10-14; 22ः5-13; 25ः1-6)
7. नये नियम की कलीसिया का दशमांश देना,‘‘घर घर रोटी तोड़ना और आनन्द और मन की सीधाई से भोजन (दशमांश) करना था....... और जो उद्धार पाते थे उन्हें प्रभु प्रति दिन अनमें मिला देता था’’। (प्रे.काम 2ः46-47)
8. उन पवित्र सन्तों को देना जो यात्रा करके खोए हुओं के पास सुसमाचार ले जाते हैं, भक्ति पूर्ण उपासना हैं, ‘‘जो परमेश्वर को भाता है’’। प्रभु येशुआ ने दशमांश देना नहीं बरन भरपूरी से देनेवाली उदारता सिखाए हैं। (1कुरि.16ः15यरोमियों10ः15यफिलि.4ः18)
9. परमेश्वर ने हमें धन कमाने की शक्ति देते हैं ताकि हम परमेश्वर की वाचा पूरी कर सकेंय जो इब्राहीम से बान्धी गई थी, कि वह अन्यजातियों लिये आशीष ठहरेगा। भेंट चढ़ाई गई चर्बी परमेश्वर का भाग थी और चिकनाई रहित मांस ही भक्त उपासकों का भाग था। सम्पत्ति हमारी ‘‘रोज की रोटी’’ के लिये है, जबकि अतिरिक्त बढ़ती वाला भाग (चर्बी), हमरी मीरास खोई हुई आत्माओं के छुटकारे के लिये है। (उत्पत्ति12ः3यव्य.वि.8ः17-18; लैव्य.3ः16)
10. नये नियम ने यह नहीं सिखाया कि भेड़ों के झुण्ड का ऊन हर हफ्ते कतरना चाहियेः पौलूस ने अकाल ग्रसित यरूशलेम के विश्वासियों के लिये, सप्ताह के पहिले दिन (शनिवार संध्या) दान एकत्रित किया था। उसने यह काम केवल एक बार किया था परन्तु कोई नियम नहीं ठहराया। (1कुरि.16ः1-4)
11. यह केवल देना ही नहीं है परन्तु प्राप्त करना भी हैः ‘‘दिया करो तो तुम्हें भी दिया जाएगा, लोग पूरा नाम दबा कर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे।’’ यहूदी अपना कत्र्तव्य कर्म जानकर देते थे, परन्तु हम स्वतंत्र इच्छा से भेंट चढ़ाते हैं, ‘‘हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे।’’ (लूका 6ः38; 2कुरि.9ः7)
12. यहूदी अपने उद्धार के लिये देते थे, परन्तु हम अधिकाई के साथ विष्वास के बीज बोते हैं ताकि बहुतायात के साथ आत्माओं की कटनी काटें। (2कुरि. 9ः6)
13. विश्व में सुसमाचार प्रचार कभी भी, ‘‘दशमांश द्वारा चलायमान’’ नहीं रहा। प्रेरित कभी भी घन संपत्ति के पीछे नहीं भागे, परन्तु सभी जरूरी संसाधन उनके पावों के पास आते थे। (प्रे.काम 4ः34-37; 1पत. 5ः2; मत्ती 6ः24)
14. परमेश्वर की उपस्थिति में अपना दशमांश, खोए हुओं को खिलाना और उसे यात्री सुसमाचार प्रचार व राजकीय याजकों को देना, यह मलिकिसिदेक की रीति पर है। यही सेवा बाईबिल अनुसार है और इसीसे सुसमाचार प्रचार का उद्धेष्य और कलीसिया संरचना का तात्पर्य पूरा होता है।
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