बड़ी विशाल कलीसिया से रूपान्तरित अलौकिक छोटी कलीसिया।
बड़ी विशाल कलीसिया से रूपान्तरित अलौकिक छोटी कलीसिया।
विक्टर चौधरी
बांझपन से आत्माओं के करोड़पति बनने के लिये, 25 कदम
1. पेशेवर पादरियों के कामों को फिरसे लिख दें और उन्हें पुलपिट भाषण बाजी, साक्रामेंट प्रदान करने वाले और दसमांश इकट्ठा करने के काम से निकालकर, ऐसे चरवाहे बनाएं जो अपने झुण्ड को खूब अच्छी तरह चराते हैं ताकि भेडे़ स्वस्थ हों और वंश उत्पन्न करें,और उन्हें बपतिस्मा देने,रोटी तोड़ने, मनुष्यों के मछुवारे बनाने के अधिकार देने के द्वारा, ‘‘सभी विश्वशियों के याजकत्व’’ के लिये प्रोत्साहित करें । इसके लियेे एक समतल कलीसियाई ढ़ांचे का नमूना बनाना होगा जिसमें झुण्ड के सभी सदस्य एक दूसरे की अधीनता में हो एक दूसरे के लिये प्रार्थना करें ,एक दूसरे की सेवा करें ,एक दूसरे को उत्साहित करें , क्षमा करें और प्यार करें ।(यूहन्ना 13ः34-35, मत्ती 18ः21-22,इफि.5ः21)
2. माण्डलिक भव्य आराधनालयों से निकलें और प्रभु की देह वाले ‘‘शान्ति के घरों’’ में जमा हों। परमेश्वर मनुष्यों के हाथों के बने घरों में निवास नहीं करते हैं ’’,परन्तु वे तो मनुष्यों के हृदयों में वास करते हैं । आप मसीह की सुगन्ध है ,नाश होने वालों, दुष्टों और बदमाशों के मध्य जीवन की खुशबू है। आप यहां पर अपना लाभ उठाने के लिये परमेश्वर के वचन का उपयोग करने के लिये नहीं हैं परन्तु इसलिये हैं कि पापियों और दुर्जनों को परमेश्वर के प्रिय पुत्र के राज्य में ले आएं, क्योंकि आप जीवित परमेश्वर के चलते ,फिरते और बात करते हुए मन्दिर है, जिनमें प्रभु की देह के अंग होना तो अधिकाई के साथ है परन्तु संगठन व्यवस्था नहीं के बराबर है । जो कुछ आप पुलपिट पर से सुनते हैं वह कोरे भाषण मात्र है, परन्तु व्यवहारिक क्रिया शीलता तो बाहर है । (लूका 10ः5-9, मत्ती 10ः11-13,प्रे.काम 7ः48-49, 2कुरि.2ः14-17, 6ः16)
3. निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार चलने वाली रविवारीय ‘‘सर्विस’’ (आराधना) की दिशा बदलकर अनौपचारिक, अनियमित,छोटे समूहों को कार्यान्वित करें। मसीह की दुल्हिन को अपने प्रभु के साथ प्रतिदिन अपना आत्मीय प्रेम सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए, उसे उनके साथ मात्र कुछ घन्टों का सम्बन्ध रखने वाली नहीं बनना चाहिये,वरना वह अविश्सवास योग्य भी हो सकती है। तौभी विपरीत लिंग के साथ मिलकर शिष्य बनाने को हतोत्साहित करें ताकि कोई गलती न होने पाए। मसीह ने अपनी दुल्हिन को और कोई वस्तु नहीं दिये परन्तु अपने आपको ही दे दिये ताकि वह जाकर सृष्टि के मूल आदेश को पूर्ण करे, ‘‘फूलो फलो, और पृथ्वी में भर जाओ और उसको अपने वश में करलो, और उन सब पर अपना अधिकार रखो’’। विश्वास कीजिये कि परमेश्वर आपके द्वारा, देशों के मध्य में एक ऐसा काम करने जा रहे हैं जिससे आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे, और वे इस कार्य को पूर्ण करने के लिये आपको आवश्यक संसाधन भी देंगे। (प्रे.काम 2ः46-47, इब्रा.3ः13,उत्पत्ति 1ः28, हब.1ः5)
4. व्यवस्था विधि अनुसार दसमांस देने के स्थान पर असीमित योगदान को आने दें । पुराने नियम में, दशमांश हमेशा ‘‘खाद्य पदार्थ’’ के रूम में होते थे जिन्हें खाया जाता था, जानवरों के पहिलौठे, अनाज,पहिले फल, दाखमधु और तेल इत्यादि। हो सकता है आप बहुत दूर से आए हों, परन्तु तौभी आपको वहां के स्थानीय बाजार से जानवर खरीदना होगा क्योंकि प्रायश्चित के लिये वेदी पर नगदी पैसे नही चढ़ाए जा सकते । दान और भेंटें चाहे वह नगदी में हो या और किसी प्रकार की, सब, प्रेरितों के पांवो के आगे लाकर रखना चाहिये, जिनसे कलीसिया के प्रेरितीय कार्य व गतिविधियां चलें, न कि वह पैसा भवन निर्माण या अन्य बाईबिल से अलग कार्यक्रमो में खर्च हो। अब दसमांश घर घर रोटी तोड़ना है। मसीही घरों में उपलब्ध विषाल आर्थिक संसाधनों, पहुनाई और सद्भाव को संयोजित करें। (व्य.वि. 8ः17-18, 14ः23, लूका 6ः38, प्रे. काम 4ः34-35, मलाकी 3ः10)
5. छोटी सी पतली रोटी (वेफर) और एक घूंट वाली पवित्र बियारी की पद्यति को घर - घर में किये जाने वाले रोटी तोड़ने के साधारण प्रेम भोज में, बदल दें, जिसे विश्वाशी बड़े आनन्द और मन की सीधाई के साथ करते थे ‘‘और जो उद्धार पाते थे उनको प्रभु प्रति दिन उनमें मिला देता था’’ प्रभु ने अन्तिम बियारी ‘‘एक घर में’’ भुना हुआ मेम्ना, कड़वा सागपात, रोटी और दाखरस देकर दिया। मलिकिसिदक ने अब्राहम को सड़क के बीच में रोटी और दाखमधु दिया। परमेश्वर पिता ने इब्राहीम के साथ पेड़ के नीचे दोपहर का भोजन किया और वहां सारा के गर्भधारण करने, सदोम के नाश किये जाने और लूत के बचा लिये जाने के विषय वार्तालाप किये। (प्रे. काम 2ः46-47, 20ः7, 1कुरि.11ः20-23, निर्गमन 12ः8,उत्पत्ती 18वां अध्याय )
6. पेशेवर संगीत को शिष्यों की आपस में भजन कीर्तन, स्तूतिगान की बातचीत में बदल दें,और वे अपने अपने मनों मेेें प्रभु के लिये आत्मिक गीत गाते रहें । पुराने नियम में ‘‘आराधना’’ करने के लिये एक तलवार,आग और बलि के लिये चैपाए जानवर की आवश्यकता होती थी । नये नियम में ‘‘आराधना’’ के लिये तलवार (परमेश्वर का वचन ), आग (पवित्रआत्मा) और दो पैरों वाला ‘‘टूटा और पिसा हुआ मन’’ चाहिये जो एक जीवित बलिदान के रूप में होगा । रूपान्तरित छोटी कलीसिया एक शिष्य बनाने का केन्द्र है, वह गीत गाने का स्थान (अड्डा ) नहीं है । केवल एक भेड़ ही भेड़ को जन्म दे सकती है और केवल एक शिष्य बनाने वाला ही दूसरे शिष्य बनाने वाले को उत्पन्न कर सकता है ।शिष्यों का बहुतायत के साथ बनाया जाना ही परमेश्वर को महिमा देता है, जो सच्ची आराधना है। आत्मा और सच्चाई से आराधना करना अब मन्दिरों और आराधनालयों में सीमित नहीं रह गई है, परन्तु वह कहीं भी हो सकती है, जहां भी आप शिष्य बनाते हैं। (उत्पत्ती 22ः5-7, भजन संहिता 51ः17, 2इति.7ः12, इफि.5ः19, कुलु.3ः16, रोमि.15ः16, यूहन्ना 4ः20-24, 15ः8, 16)
7. केवल दर्शक - स्थिति में बने रहने वाली कलीसिया से स्थान्तरित होकर सुसमाचार का संक्रमण फैलाने वाली,परस्पर काम और सहयोग करने वाली, लिंग भेद न करने वाली, भविष्यवक्ता के कथन अनुसार कलीसिया बन जाएं, जहाँ हर एक जन भजन , शिक्षा, प्रकाशन ,भिन्न भिन्न भाषा, गवाही, स्वप्न या दर्शन को सबके साथ बांट सके। जैसा येशुआ ने अपने शिष्यों को पदनाम देकर पहिले ही दिन से स्थानीय प्रेरित (भेजे हुए )कहा । अजगर शैतान आज विश्व को अपराध के द्वारा चला रहा है । साधारण विश्वशियों को बहुत ऊंचा उठाकर और उनके वरदानों और गुणों का उपयोग करके उन्हें विजेता सुधारक बना दें ताकि वे अजगर शैतान को चालक कुर्सी से हटा दें । हम जो इब्राहीम के वंश है धन्य है, ‘‘मै निश्चय तेरे वंश को आशीष दूंगा,और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों (फाटकों) का अधिकारी होगा । (1कुरि.14ः26-32, लूका 6ः13, 1यूहन्ना 5ः19, उत्पत्ती 22ः17-18 )
8.आपके प्रभु येशुआ ने कभी भी एक पुलपिट से दूसरी बार प्रचार नहीं किये । फिर आप क्यों ऐसा कर रहे हैं जबकि करोड़ो लोग ऐसे हैं जो अभी भी सुसमाचार को पहली बार सुनने के लिये तरस रहे हैं। पौलूस ने कार्य को तुरन्नुस की पाठशाला में स्थानान्तरित कर लिया और अपने ग्राहकों को शिष्य बना लिया। यह भ्रमणशील कारीगर तम्बू बनाने का काम करते थे, वे वहां से गए और उन्होंने सारे जगत को उलटा पुलटा कर दिया। शक्तिशाली सहक्रिया के लिये, शहरों की बड़ी और भव्य कलीसियाओं का रूप बदलकर उन्हें रूपान्तरित छोटी कलीसिया के क्षेत्रीय और राष्ट्रिय नेटवर्क (जाल) बना देना चाहिये । एक छत के नीचे जमा होने के बदले प्रोत्साहित कीजिये कि वे हजारों छतों के नीचे बहुत सारे स्थानों में जमा हों,जिस प्रकार यरूशलेम की बड़ी कलीसिया ने बहुत सी छोटी छोटी कलीसियाओं को जन्म दिया, जो यहूदिया, सामरिया, अन्ताकिया, कुरिन्थ और रोम के क्षेत्रों में थीं और इसके अलावा वे विश्वास में और संख्या में (गुणांक और संख्या दोनों में) प्रतिदिन बढ़ती जाती थीं। (रोमियों 16ः3-15, प्रे.काम 1ः8, 16ः5, 17ः6, 19ः8-10 )
9. अनुपजाऊ व बांझ दुल्हिन के अन्दर तेज गति से वृृद्धी करने वाले डी. एन. ए . का रोपण कर देना चाहिये, ताकि उसकी पैदा करने की दर बढ़ जाए। एक स्वस्थ और परिपक्व स्त्री (दुल्हिन ) दर्शाती है कि वह वंश उत्पन्न करने के लिये तैयार है। इसहाक की दुल्हिन रिबका को उसके कुटुम्बियों ने आशीर्वाद दिया कि वह हजारों और लाखों की आदिमाता हो। मसीह की दुल्हिन को अधिकाई के साथ पैदा करने वाली होना चाहिये, और उसे अपने तम्बू को दहिने, बाएं और उत्तर और दक्षिण फैलाते जाना चाहिये, कि वह हजारों और लाखों छोटी कलीसियाएं उत्पन्न करे और सारी पृथ्वी को भर दे । (उत्पत्ती 24ः60,यषा.54ः1-5)
10. महिलाओं को अधिकार दें। पापों से छुटकारा प्राप्त की हुई एक महिला, मगदाला की मरियम, प्रथम प्रेरित (भेजी हुई ) थी जो प्रेरितों (भेजे हुओं )के पास गई । प्रिस्किल्ला, फीबे, लुदिया,अफफिया, नीम्फे और बहुत सी दूसरी स्त्रियां थीं जो प्रेरित, शिक्षक और गृह कलीसियाओं की स्थापना में मददगार थीं। पौलूस ने कभी यह नहीं कहा कि स्त्रियां अपना मुंह बन्द रखें, उसने केवल पत्नियों से कहा था कि वे अपने पतियों को सार्वजनिक स्थानों में परेशान न करें, परन्तु जो भी प्रश्न पूछना हो तो उन्हें घरों में पूछें। ग्रीक भाषा में गुने शब्द का अर्थ, स्त्री और पत्नी दोनों ही हो सकता है जैसा कि ग्रीक भाषा में एनेर शब्द का अर्थ पुरूष और पति दोनों हो सकता है। येशुआ के लोहू ने हव्वा के श्राप को हटा दिया है और अब परमेश्वर अपने आत्मा को सब प्राणियों पर उण्डेल रहे हैं, पुरूष, स्त्री, जवान, बूढ़े, यहूदी और अन्यजातियों पर, कि वे भविष्यवाणी करें, और उसकी कलीसिया उन्नती करे। महिलाओं को अधिकार नहीं देना, उन्हें बन्धन में रखना और कलीसिया की आधी कार्यक्षमता व शक्ति को उसके न्यायोचित अधिकार से वंचित करना होगा । (प्रे.काम 2ः17-18, गल. 3ः27-29, 1कुरि. 14ः34-35)
11.पति,पत्नी,आपकी वास्तविक शादी तो प्रभु के साथ हुई है। पति और पत्नी का सम्बन्ध केवल एक सांसारिक नमूना है ,यह देखने के लिये कि आप उसे कैसे निभाते हैं । यदि आप इसे नहीं निभा सकते हैं,तो हो सकता है आपको मेम्ने के विवाह का निमंत्रण नहीं मिलेगा। बेटे और बेटियों, यदि तुम लम्बा जीवन जीना चाहते हो तो अपनी माता और पिता का आदर करो । इब्रानी का शब्द कबद और यूनानी का टाईम जो आदर के लिये उपयोग में आते हैं, का अर्थ है, ‘‘धनवान बनाना ’’ या ‘‘पैसा चुकता कर दिया गया’’। अपने बूढ़े माता पिता को बहुतायत का जीवन देने को कोर्बान (दसमांश) से भी बढ़कर आंका गया है,जिसे आप अपनी कलीसिया को देते हैं, और जो दस आज्ञाओं का भाग भी नहीं है। पिताओं -अपने पुत्रों के साथ अपने व्यवहार को बहुत अच्छे बनालो, नहीं तो प्रभु याहवेह श्राप के द्वारा पृथ्वी को मारेंगे । (प्रका.वा.19ः9, निर्ग. 20ः12, मलाकी 4ः5-6)
12. मसीह में अपनी पहिचान को जानिये। आप मसीह के एक राजदूत हैं, परमेश्वर की सरकार के सबसे ऊंचे पद वाले प्रतिनिधि, चाहे आपको किसी भी स्थान पर तैनात किया गया हो । आप एक राजपदधारी याजक हैं, आपको मेम्ने के लोहू के द्वारा ऐसा बनाया गया है। ‘‘रेव्हरैंड’’ संस्कृति को निकाल फेंकिये जो प्रभु के सेवक और सामान्य जन को एक दूसरे से अलग करती है। मलिकिसिदक की तरह जो यरूशलेम (शान्ति के नगर) का राजकीय - याजक था, जिसने रोटी और दाखमधु दिया, दसमांश लिया और अब्राम को आशीर्वाद दिया, अपने नगर में ईश्वरीय शसन लाईये। प्रत्येक नगर के लिये राजपदधारी याजक पैदा करने के दर्शन को थाम लीजिये और उसे लेकर दौड़िये। स्मरण रखिये कि प्रत्येक राजपदधारी याजक को यह आज्ञा दी गई है कि वह प्रभु की बियारी दे। (इफिसियो 6ः20, 1पतरस 2ः9, हब.2ः1-3 ,यशा. 9ः6-7, उत्पत्ती 14ः18, लूका 22ः19, कुरि.11ः24, 25)
13. पौलूस की उमंग यह थी कि वह सुसमाचार से सराबोर कर देने वाले एक तुफानी हमले का संचालन करे, उन स्थानो में जहां अब तक मसीह का नाम नहीं लिया गया है, केवल वचन और बातों में ही नही वरन सामर्थी चिन्हों और कार्यो के साथ। आपकी उमंग क्या है ? अभिप्राय रहित चर्चो को चुनौती दें कि वे एक स्पष्ट दर्शन को घोशित करें और उसे कार्य रूप में परिणित करने के लिये योजना तैयार करें और ‘‘इनसे भी बडे़ काम करने’’ के लिये लक्ष्य निर्धारित करें । नक्से, सांख्यकीय आंकडे़, और महान आदेश से सुसज्जित होकर दो दो करके जाएं ‘‘ शान्ति के पुरूष को खोज निकालें ,बीमारों को चंगा करें दुश्टात्माओं को निकालें और इसके बाद उन्हें शिष्य बनाने का ईश्वरीय गणित सिखाएं, केवल एक आत्मा प्रतिमाह, और बहुत जल्द सबसे कमजोर जन के पास आत्माओं के बचाने के खाते में एक हजार आत्माएं जमा हो जाएंगी । (युहन्ना 14ः12, रोमियों 15ः19-20, प्रे.काम 16ः5, लूका 10ः1-9, यशा.60ः22)
14. क्या आप ऐसे चर्च जाने वाले या विश्वासी हैं, जो सामर्थ रहित है? ‘‘और विश्वास करने वालों में ये चिन्ह होंगे कि वे दुष्टात्माओं को निकालेंगे.....बीमारों को चंगा करेंगे ’’परन्तु एक विश्वासी उसे स्वर्ग नहीं पहुंचा सकेगा वह उस छुटकारा पाए हुए को शिष्य बनाने में असफल होता है । येशुआ ने आपको विश्वाशी बनाने के लिये नहीं,परन्तु शिष्य बनाने वाले, बनाने के लिये कहें है। उन सब गुन गुने चर्च जाने वालों को जो प्यूज (चमूे) की बेन्चों से चिपके हुए है उठाईये, जो बैठते, सोखते और निश्क्रिय पडे़ रहते हैं और उन्हें भेजिये कि वे जाकर बीमारों को चंगा करें, मुर्दो को जिलाएं, सापों और बिच्छुओं को रौंदें (दुष्टात्माओं को निकालें ) ‘‘बलवंत’’ को बांधे, उसके माल को लूट लें, अधोलोक के फाटकों को ध्वस्त करके शिष्य बनाएं । शैतान के कार्यो का विनाश और शिष्य बनाने का कार्य बडे़ दृढ़ निश्चय और तत्परता के साथ करते जाएं जब तक ‘‘जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का न हो जाए । (मरकुस 16ः17-18, मत्ती 7ः21-23, 11ः12, 12ः29, 16ः18-19, लूका 10ः19, प्रका.वा. 11ः15)
15. मृतक ‘‘संगठन व्यवस्था’’ से पुनर्जीवित होकर, जीवित सक्रिय अंग बन जाएं। मिशन कार्य तो बहुत ही महत्वपूर्ण है इसे उनके भरोसे छोड़ देना चाहिये जो बाईबिल से अलग तरह के पेशेवर हैं। और जो बडे़ खुषबूदार, सौंदर्य प्रसाधन नुमा पद पर आसीन हैं, जैसे डायरेक्टर चेयरमैन, और सी. ई. ओ. इत्यादि । इन्हें पांच तरह की वरदानी सेवकाईयों वाले प्राचीनों से बदल दीजिये - प्रेरित, भविश्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, रखवाले और शिक्षक, ये सब कार्य कर्ताओं को सेवा के लिये सुसज्जित करते हैं ।क्या आपने कभी सुना है कि कोई रखवाला, अपनी भेंड़ों को भेड़शाला की दीवारों के अन्दर ही चराता है? सच्चा रखवाला प्रतिदिन अपनी भेड़ो को अच्छी से अच्छी चरागाही में चराता है, ताकि वे खूब चरें, मिलें और वंष वृद्धि करते हुए बढ़ते जाएं। स्वस्थ्यवर्धक चराई और अगुवाई , झुण्ड को फलने फूलतने और वषं वृद्धि के योग्य बनाए रखता है, जिससे वे पुल बनाकर उन भेड़ों से सम्पर्क साधते हैं जो इस भेड़शाला की नहीं हैं । (इफिसियों 4ः11, तितुस 1ः5-9, यूहन्न्ना 10ः16)
16. नंगे पैर चलने वाले प्रेरितों और अशिक्षित कहानी कहने वाले मुखाग्र परम्परा वादियों का मजाक उड़ाना बंद करें क्योंकि वे ही हैं जो राज्य के सच्चे फैलाने वाले हैं । छोटे प्रचार-लक्ष्य वाले अगुवों और उनके छोटे छोटे कुटीर लघु उद्योगों पर धन लगाईये ताकि वे इस सेवा में और बढ़ सकें। प्रत्येक सन्डे स्कूल, बाईबिल स्कूल, प्रार्थना झुण्ड, महिलाओं की सहभागिता और घर घर की जाने वाली सभाओं को प्रोत्साहित करके बढ़ाएं ताकि वे बढ़कर सम्पूर्ण वास्तविक कलीसिया के रूप में आ जाएं। उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे शिष्य बनाएं, बपतिस्मा दें, रोटी तोड़ने, कार्यकर्ताओं को तैयार करके सुसज्जित करें और उन्हें कार्य क्षेत्रों में भेजें, स्थानीय और दूसरी संस्कृतियों में भी, कि वे उनके नगरों की आत्मिक जनसांख्यिकी को बदल डालें । परमेश्वर की आज्ञाओं की अवहेलना करके, मनुष्यों के बनाए हुए रीतिरिवाजों को थोपना आपके नामों को जीवन की पुस्तक में से हटवा सकता है । (1कुरि.16ः19, प्रे.काम 4ः13, 19ः8-12, प्रका.वा.3ः2, 5, गलतियों 1ः8-11)
17. निष्क्रिय बकरों को छानकर दूर करदें जो केवल अन्डे सेने (बाल बपतिस्मा देने) शादियों के जोडे़ बनाने और मुर्दो को गाड़ने आते हैं,और उन्हें ऐसी भेड़ों से बदल दें जो भूखों, प्यासों, नंगों, परदेशियों, बीमारों, बंन्दियों और निकृश्टों की सुधि लेते है। कलिंग अर्थात उन भेड़ों से निजात पाएं जो बांझ हैं और उन्हें पिन्तेकुस्त आधारित कलीसिया को दान दे दें यह कार्य आपको स्थानीय पास्टरों की सहभागिता में अच्छा स्थान देगा। कलिंग भेड़ पालने का एक बहुत उपयोगी और हमत्वपूर्ण व्यवहार है, ताकि गड़रिया अपनी सबसे अच्छे संसाधन का उपयोग अच्छा उत्पादन देने वाली भेंड़ो पर कर सके। परमेश्वर ने दाऊद को चुना कि वह इस्त्राएल की रखवाली करे क्योंकि वह भेड़ों के कार्याे में पारंगत था और छोटी बड़ी सभी भेड़ों की ठीक से देखभाल कर सकता था। (मत्ती 25ः31-46, भजन संहिता 78ः70-72)
18. शिष्यों बनाने की प्रक्रिया को सरल बनाईये। एक बाईबिल लीजिये और एक दो सत्य के खोजियों को भोजन पर आमन्त्रित करें, जहाँ मुख्य पकवान-मेम्ना (यीशु) हो। प्रामाणिक कलीसिया को पुनः परिभाशित कीजिये कि वह वहीं है जहाँ दो या तीन भोजन करते, मिलते, और सुसमाचार की बातचीत करते हैं तथा संख्या में बढ़ते जाते हैं। पौलूस की तरह पहले तर्क वितर्क करना प्रारम्भ कीजिये, यदि यह उपाय काम नहीं करता है तो उन्हें उभारें और प्रतीति दिलाएं, यदि यह भी असफल रहे तो वाद विवाद पर आ जाईये और जब अन्तिम दबाव डालने की स्थिती बन जाए तो कोई असाधारण आश्चर्य कर्म कर दीजिये जिसका वे इन्कार नहीं कर सकेगें। रूपान्तरित छोटी कलीसिया किसी नगर में सुसमाचार प्रवेश कराने और दुनिया के छोर तक पहुंचने की सबसे किफायती रणनीति है। मसीह की दैहिक कलीसिया और परम्परावादी चर्च, की संरचना में जमीन आसमान का फर्क है। यह न केवल अलग दिखाई देती है वरन उसके काम करने का तरीका भी अलग है। (प्रे.काम 2ः46-47,4ः16,17ः2,18ः4,19ः8, मत्ती 18ः18-20)
19. सेमिनरी प्रशिक्षण से बचें व दूर रहें यह भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है जो अनाज्ञाकारिता द्वारा चलायमान है। इसके बदले, जीवन के वृक्ष बनिये, जहां कहीं भी आप लगाए गए हैं और नये नये फल उत्पन्न करें, यहां तक कि आपकी पत्तियां भी दोषी और जातियों की चंगाई के लिये होनी चाहिये। परमेश्वर के सारे ज्ञान को घर - घर बांटिये और शिष्य बनाने की श्रंखला की, न रूकने वाली गति का संचार करें। चाहे वे कर्तव्य हीन दोशी मसीही हैं या दूसरे विश्वशियों के अवज्ञापूर्ण अनुयाई, सत्य सिद्धान्त, प्रवचन, मंच या पुलपिट पर से कहने से नही हैं, परन्तु वह तो कायल करने, दोश स्वीकार करवाने और दुर्दान्त उद्दण्डों को पश्चाताप की स्थिति में लाना है। संसार के खोए हुओं को विद्वानों की आवश्यक्ता नहीं है, उन्हें तो आत्मिक पिताओं और माताओं की आवश्यक्ता है, ‘‘जो बहुत से आत्मिक पुत्रों और पुत्रियों को पाल पोस कर महिमा में पहुंचाते है’’। (तीतुस 1ः9, 1कुरि. 4ः15, 14ः24, 25, प्रे.काम 20ः20, 27, 2तीमु. 2ः2, इब्रा. 2ः10, प्रका.वा. 22ः1-3)
20. परमेश्वर ने आदम को अदन के बगीचे मेें काम करने और उसकी रक्षा करने के लिये रखा था। यह महत्वपूर्ण है कि काम करने के लिये आया इब्रानी भाशा का शब्द ‘‘अवोदाह’’ का अनुवाद ‘‘आराधना’’ भी हो सकता है। आदम को बगीचे में अपने काम के द्वारा परमेश्वर की आराधना करना था और उसे दुष्टात्माओ के हमलों से बचाना था। परमेश्वर इसका लेखा जोखा लेने प्रतिदिन संध्या के समय बगीचे में घूमते और देखते थे, कि आदम इसे कैसे कर रहा है? दुःख की बात है कि आदम ने आज्ञा का उल्लंघन किया और भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष पर चढ़ गया और असफल हो गया। वह उसी समय मर गया परन्तु उसे 930 वर्षों के बाद मिट्टी दी गई । परमेश्वर ने अपनी योजना के अन्तर्गत आप को, जहां कहीं भी है, रखा हैं ताकि आप अपने छुटकारे के कार्यो को करके उनकी आराधना करें । (उत्पत्ती 3ः15)
21. अपना आदर्श प्रतिमान फिर से तय कीजिये। आपका व्यापार, धन्धा, काम की जगह या घर, जहां कहीं भी आप अपना ज्यादा समय व्यतीत करते हैं, वही आपकी ‘‘प्राथमिक नाभिक केन्द्रीय कलीसिया ’’ है। यह बहुत कम मायने रखता है कि आप सी. ई. ओ. है या द्वारपाल हैं या रसोई की रानी हैं, आप काम करने के स्थान के पूर्ण कालिक प्रभु के सेवक हैं और आपसे इसका लेखा लिया जाएगा। उद्धार पिता के साथ आपके सम्बन्धों को पुनस्र्थापित करता है। परन्तु शिष्यता आपको परमेश्वर के स्वरूप में पुनस्र्थापित करता है। केवल उद्धार पाना काफी नहीं है, क्योंकि मसीह जो आपमें है, वह आपको क्रियाशील बनाता है, कि आप सक्रियता के साथ खोए हुओं को ढूढें और उन्हें बचाएं। (रोमियों 12ः1-2, इफिसियों 3ः6)
22. आप जीवित परमेश्वर के मन्दिर हैं। परमेश्वर का मन्दिर कैसे चर्च जा सकता है? चंगाई सभाओं और प्रार्थना केन्द्रों या टावरों में जाना, आपमें मसीह का मान कम कर देता है, जो आपके हृदयों में वास करते हैं और अन्यजातियों की महिमा की आशा हैं। मात्र हाय, हेल्लो और हाथ मिलाने की रविवारीय सर्विस को इतनी ही मान्यता दें कि वह आपकी दूसरी वैकल्पिक कलीसिया है, एक अन्जीर के पत्तों की लंगोटी जो अपको केवल एक अस्थाई, हल प्रदान करती है। एक चर्च जो आपको ‘‘हर जगह जाकर आपके पवित्र हाथों को ऊपर उठाकर प्रार्थना करने’’ नहीं भेजता, विषेश कर आपकी काम करने की जगह पर और आपके पड़ौस में, तो उस चर्च में जाने का कोई औचित्य नहीं है । एक लक्ष्य प्रतिबद्ध चर्च को, एक ‘‘लक्ष्य को पूरा करने के लिये कटिबद्ध’’ की तरह ही सोचना और कार्य करना चाहिये चाहे वह कार्य घर पर हो या विदेश में। (1कुरि. 3ः16, कुलु.1ः26-27, 1तीमु.2ः8, यशा.6ः1 )
23. बहुत से अच्छे धर्म प्रचारक या मिशनरी, बुरे तरीकों को अपनाते हैं, आप अन्य जातियों के हृदयों को बदलिये और उनमें जो कुछ षैतान के अनुसार है, उसे निकालिये लेकिन उनकी संस्कृति को क्षति मत पहुंचाईये और न ही उनके आराधना करने के तरीके को, केवल इसलिये बदलिये कि वह अलग तरह का है और आपके अनुसार नहीं है। मसीह के किसी भी नये अनुयाई को जल्दी से अपना चर्च सदस्य न बनांए, जहां उसे भाषण तो खूब सुनने को मिलेंगे लेकिन उसे शिष्य नहीं बनाया जाएगा। मसीहियों में से अधिकांश को यह मालूम ही नही है कि किसी को मसीह के पास कैसे लाया जाता है, और यदि संयोग से ऐसा हो जाए, तो उन्हें यह मालूम नहीं है कि उसे ‘‘शिष्य बनाने वाला’’ कैसे बनाएं, इसका साधारण सा कारण यह है, क्योंकि वे स्वयं भी कभी शिष्य नहीं बनाए गए ।किसी शास्त्र के जानकार या सिद्धान्त वादी को मत खोजिये परन्तु ऐसे परामर्शदाता और शिष्य बनाने वाले को खोजिये जो फलों (शिष्यों) से लदा हुआ है। पौलूस, अन्यजातियों के मन्दिरों में गया, उनके धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया और उन्ही का संदर्भ बताकर अथेने के रहने वालों को शिष्य बना लिया । (मत्ती7ः16-20, प्रे.काम 17ः17-28)
24. क्या आप प्रभु यीशु के द्वितीय आगमन के लिये तैयार हैं? उस समय तक का इन्तजार न करें, ‘‘जब तक मृत्यू हमें अलग न करे’’ परन्तु मसीह को अपनी ही पीढ़ी में पृथ्वी पर वापस लाने के लिये जो कुछ भी उनके जल्द आगमन के लिये आवश्यक है, उसे करें। मसीह का उन स्थानों पर प्रचार करने के लिये जहां अब तक उनका नाम नहीं लिया गया है, पुनः अपनी प्राथमिकताएं तय कीजिये। आप एक दीपक हैं, जिसमे इतनी शक्ति निहित है कि हजारों दीपकों को जलाकर अजगर शैतान के पूरे राज्य के अन्धकार को हटादे। इस कार्य को करने के लिये आपको प्रति रविवार चर्च जाने की आवश्यकता नही हैं और ना ही, एक वेतन से दूसरी तनख्वाह मिलने तक काम करनी की आवश्यकता है। आप ‘‘अभिशिक्त’’ किये गये हैं, फलवन्त बनने, गुणात्मक वृद्धी करने और इस पृथ्वी को याहवेह की महिमा के ज्ञान से ऐसी भरने के लिये जैसे समुद्र जल से भर जाता है। (1कुरि.15ः52 , मत्ती 6ः33, लूका 11ः33, हबक्कूक 2ः14)
25. अपने लिये ‘‘निश्लचित लक्ष्य वाली मनोवृत्ति’’ का निर्माण कीजिये। अपनी सेवकाई का मूल्यांकन महान आदेश के वचन से कीजिये की आपने कितनी संख्या में शिष्य बनाएं है, बपतिस्मा दिये हैं और उन्हें सुसज्जित करके सेवकाई हेतु भेजा है, यही आपका मापदण्ड होना चाहिये। लक्ष्य बनाईये कि आप बचाई गई आत्माओं के लखपति बन जाएं। और क्यों नहीं? आखिर आप ऐसे महान और अद्भुत परमेश्वर पर विश्वाश करते हैं जिसके लिये कुछ भी असम्भव नहीं है। कम से कम पतरस की तरह प्रत्येक पिन्तेकुस्त के दिन तक 3000 बपतिस्मों का निशाना साधें या पौलूस की तरह प्रतिदिन एक गुणात्मक वृद्धी करने वाली छोटी कलीसिया की स्थापना करें जब तक आप यह दावा न करने लगें कि मुझे इन देशों में और जगह नही रही जहां ‘‘सुसमाचार को पूरी तरह सुनाया जाए’’। आपकी बहुत सी हमत्वकांक्षाएं होंगी परन्तु मन्जिल एक है - कि आप अपना नाम मेम्ने की पुस्तक में लिखवा लें। (प्रे.काम 2ः41, 16ः5, रोमियों 15ः19, 23)
शालोम और शालोम ।
विक्टर चैधरी
Email: greettheekklesia@gmail.com
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