अगले दशक में कलीसिया में बदलाव
अगले दशक में कलीसिया में बदलाव
परमेश्वर का घराना
वि. चौधरी
1.प्रभु येशु ही राज्य का सुसमाचार हैं: प्रभुजी ने राज्य के सुसमाचार की घोषणा की कि प्रवेश पश्चाताप और पुनर्जन्म से ही संभव है (मत्ती 4:17; यूहन्ना 3: 3-5)। उन्होंने अपने शिष्यों को राज्य का प्रचार करने की सामर्थ और अधिकार देकर आज्ञा दी कि सभी जातियों को चेला बनाओ (लूका 9: 1-3; मत्ती 28:19)। उन्होंने राज्य की प्रार्थना सिखायीं, “तेरा स्वर्गीय राज्य पृथ्वी पर आये” (मत्ती 6:10)। जैसे परमेश्वर ने 40 दिनों तक मूसा को तौरेत (शरिया) सिखाया था, वैसे ही प्रभुजी ने अपने शिष्यों को 40 दिनों तक राज्य के बारे में सिखाया (प्रेरितों के काम 1: 3)। उन्होंने राज्य की प्राथमिकता बताई, "सबसे पहिले परमेश्वर के राज्य की खोज करो" (मत्ती 6:33)। उन्होंने राज्य को परिभाषित किया, "जहाँ मै हूँ, चाहे केवल 2 या 3 मेरे नाम से हों" और उद्देश्य बताया कि “मसीह जो तुम में है वो अन्यजातियों में महिमा के लिए है” । (मत्ती 18:18-20; लूका 17:21; कुलु. 1:27)
"परमेश्वर का राज्य" नए नियम में 162 बार वर्णित है जबकि प्रभुजी ने केवल 3 बार "चर्च" शब्द का उपयोग किया (मत्ती 16:18;18:17)। एक राज्य में एक राजा और उसकी प्रजा होते हैं, जो उनके संविधान का पालन करते हैं (युहन्ना 14:15) । प्रभुजी और उसके चेलों ने उनके दैनिक रोड शो में सामर्थ के काम, चंगाईयां, बदरूहों का निकालना और शैतान के गढ़ों को ध्वस्त करके राज्य का प्रदर्शन किया (मत्ती 11:5; 12: 28,29)। उन्होंने भविष्यवाणी की, "परमेश्वर के राज्य का यह सुसमाचार सारी दुनिया में प्रचारित किया जाएगा ... और फिर अंत होगा" (मत्ती 24:14)। वे परमेश्वर के नए राज्य में चेलों के साथ भोजन करेंगे (मत्ती 26: 29) । उन्होंने अपने राज्य को विश्व्यापी बनाने के लिए परमेश्वर के घराने को एक मंच के रूप में मनोनीत किया । (इफिसियों 2: 19,20)
2. प्रभु येशु एक कुशल प्रशिक्षक : क्योंकि परमेश्वर हर एक आत्मा को अपने स्वरूप और समानता में बनाया है इसलिए वो हर एक आत्मा को, चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो, वह उसे इस दुनिया के सभी अरबपतियों के सारे धन और दौलत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझता है (मत्ती 16:26)। इसलिए, उसने खोई हुई आत्माओं को खोजने और उनका उद्धार करने के लिए प्रभु येशु को भेजा (लूका 9:1-3)। उसने कहा कि 99 धर्मी लोगों के स्तुति आराधना से कहीं ज्यादा एक खोई हुई आत्मा को बचाने से स्वर्ग में आनंद होता है (लूका 15:7, 10)। इसलिए परमेश्वर के घराने (कलीसिया) का सबसे प्रमुख और एकमात्र काम आत्माओं को बचाना है। इस उद्देश्य की पूर्ती हेतु प्रभुजी ने कहा, "मैं अपनी कलीसिया का निर्माण करूंगा।" उन्होंने संतों (आत्मा जीतने वालों) को प्रशिक्षण देने के लिए अपनी कलीसिया में प्रेरित, नबी, प्रचारक, चरवाहा और शिक्षक जैसे वरदानी सेवक नियुक्त किये कि वे मिलकर सफल शिष्य बनानेवाले कलीसिया रोपक तैयार करें जिनमे परमेश्वर के राज्य को पृथ्वी की छोर तक ले जाने की क्षमता हो। इस आन्दोलन के समाप्ती पर प्रभु दोबारा न्याय करने वापस आएंगे। (इफि. 4: 11-13; 2 तीमुथि. 2:2; प्रे. के काम 6:7; 16:5)
3. परमेश्वर के घराने की घर वापसी: कालांतर में प्रभु के इस ढांचें को मनुष्यों ने संस्थावादी रविवारीय चर्च में बदल दिया गया। इसमें वरदानी सेवकों को पासबानों से और आत्मा बचानेवाले संतों को नामधारी मसीहियों में बदल दिया। यहाँ संतों को खोई हुई आत्माओं को बचाने की प्रशीक्षण के बदले गीत संगीत और भाषणबाजी में बदल दिया। मनुष्य-निर्मित ये नमूना, पवित्र शास्त्र की 31,102 की एक भी आयत में कहीं नहीं पाया जाता। इस ढाँचे को खोई हुई आत्माओं का कोई बोझ नहीं होता और जो कलीसिया खोए हुओं को बचाने का प्रयास नहीं करती, वह खुद ही भटकी हुई नकली कलीसिया बन जाती है क्योंकि वो अपने निर्धारित लक्ष्य से पूरी तरह भटक चुकी होती है। अब वो सदस्यों के लिए मनोरंजन और पेशेवर अगुवों के लिए एक कमाई का साधन बन गयी है।
अब अंत का समय बहुत निकट आ गया है, इसलिए, सदियों तक धैर्य रखने के बाद, अपने राज्य को पूरे विश्व में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध, प्रभुजी फिर से परमेश्वर के घराने (गृह कलीसिया) को हर जाति, कुल और भाषाओं के उद्धार के लिए उनके मध्य वापस ला रहे हैं। इस आन्दोलन का एक मात्र लक्ष्य है कि खोई हुई आत्माओं को खोजकर उनका उद्धार कराये जिससे हर गाँव, बस्ती, नगर और मानव निवास स्थान में परमेश्वर की गवाही हो । (इफि.2: 19,20; मत्ती 28: 18-20)
4. दिखाये गये नमूने के अनुसार: चूंकि यह संस्थावादी कलीसिया विफल रही है, इसलिए प्रभुजी अब अपनी कलीसिया को उसके अगुओं से वापस लेकर इसे आत्मा जीतने वाले संतों को वापस दे रहे हैं, ताकि वे उनके द्वारा निर्धारित पद्धति के अनुसार पृथ्वी की छोर तक पहुँचने के उद्देश्य को पूरा कर सकें। प्रभुजी चार दीवारों के अन्दर मात्र मुंह से स्तुति और आराधना को बदलकर अब विजातियों के घरों में पश्चातापी दिलों को जीवित बलिदान की तरह अर्पण कर रहे हैं। वे रीति-रिवाजों से बदलकर पारिवारिक रिश्ता कायम कर रहे हैं। तथा प्रभुभोज की औपचारिकता को बदलकर घर-घर रोटी तोड़ रहे हैं; पुल्पिट की प्राथमिकता से बेंचों तक; एकतरफ़ा उपदेश से बदलकर वार्तालाप; मुक-दर्शक से बदलकर चर्चा करनेवाले सदस्य; गीत संगीत से मनोरंजन करने के बदले आत्मा जीतनेवाले संतों का प्रशिक्षण; पुराने नियम के दस्वांश के अवैद वसूली से बदलकर, नए नियम के स्वेच्छादान; पेशेवर अगुओं से बदलकर आत्मनिर्भर सेवक; मृतक संस्था से जीवित प्राणी (दुल्हन) और बेफल से बदलकर बहुतायत से फलदायक, में बदल रहा है । (मत्ती 16:18; मलाकी 1:11; भजन 51: 15-17.
5. आराधना स्थल बदला : यहूदियों का विश्वास था कि आराधना (worship) केवल येरुशलेम के मंदिर में पशु की कुर्बानी से ही संभव है। लेकिन कुछ 2000 साल पहले, प्रभुजी ने आराधना (worship) स्थल को चार दीवारों से बाहर निकालकर जक्कई जैसे पापियों के निवास स्थान पर पश्चातापी लोगों को जीवित बलिदान करके, एक नये तरीक़े से आराधना का शुभ आरम्भ किया। चार दीवारों में सीमित मसीहियों के लिए, यह समझना जरूरी है कि सामरी स्त्री ने पूरे गांव का उद्धार दिलाकर "आत्मा और सच्चाई की आराधना", खुले आम कर के दिखाया यूहन्ना (4:23)। उस बदनाम महिला को बहुत कम ज्ञान था लेकिन सीमित ज्ञान से अपने पूरे गाँव को बदल दिया। आज, विभिन्न धर्मों से निकले नए विश्वासी केवल थोड़े ज्ञान से अपनी दुनिया को बदल रहे हैं।
विश्वासी अब साधारण घरों, व्यापारिक परिसरों, स्कूलों, अस्पतालों, खेतों, कारखानों, चाय कॉफी की दुकानों, यहां तक कि जेलों, वेश्यालयों को प्रार्थना और शिष्य बनाने के केंद्रों में बदल रहें है। संस्थावादी लोग कलीसियाओं के बंधन से निकलकर खोये हुओं को ढूँढने और उनका उद्धार कराने में संलग्न होते जा रहें हैं। प्रभुजी ने अपने शिष्यों से कहा था कि "जैसा कि पिता ने मुझे भेजा है वैसा ही मैं तुमको भेजता हूं। (युहन्ना 20:21)" कलीसिया में अब जगह जगह इकट्ठा होकर शिष्य बनाने और कलीसिया रोपण का प्रचलन दिखाई दे रहा है। वे केवल ये प्रार्थना नहीं करते कि मुझे आशीश दे, बल्कि याबेस की तरह प्रार्थना करते हैं कि "मेरे क्षेत्र का विस्तार कर"। (1 इतिहास 4:10; प्रे.का.4:29,30)
6. विश्व जनसांख्यिकी में बदलाव : गृह कलीसिया स्थापित करना एक बहुत सरल और सफल योजना है जिसे कोई भी जन, चाहे पुरुष हो या स्त्री या जवान, बड़ी आसानी से कर सकता है। ये "कहीं भी और कभी भी" साधारण लोगों के द्वारा जो ज्यादा शिक्षित नहीं हैं और न धनि हैं, और न समाज में जिनका मान सम्मान है, पर जिनमे सिर्फ सरसों के बीज के बराबर आत्म-विश्वास है, उनके नेत्रित्व में ये गृह कलीसिया आन्दोलन, उन बाइबल पढ़नेवाले, प्रार्थना करनेवाले और चर्च जानेवाले येशु भक्तों से, जो जीवन पर्यन्त एक भी आत्मा नहीं जीतते, उन नामधारियों को पीछे छोड़ कर, तेज रफ़्तार से, समापन रेखा की ओर दौड़ रहा हैं। विभिन्न धर्मों, भाषाओँ और जनजातियों जैसे हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जनजाती और नास्तिक लोगों में से हाल ही में आये नए विश्वासी, मात्र शब्दों का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन चंगाई और बदरूहें निकालने जैसे सामर्थ के कामों से, जहां लोगों ने मसीह का नाम नहीं सुना है, सताव सहते हुए बड़ी दिलेरी से सुसमाचार सुनाते हैं। वे प्रभु के राज्य के प्रति वैश्विक आंदोलनों को बढ़ावा दे रहे हैं और विश्व के आध्यात्मिक नक्शा को बदल रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शीघ्र ही वामपंथी (कम्युनिस्ट) चीन, हिंदू भारत, इस्लामिक मुल्क, अफ्रीका और अन्य ख्रीष्ट विरोधी राष्ट्र, मसीहत के प्रमुख़ केंद्र बन जाएंगे। (रोम. 15: 19-20)
7. बाइबल स्कूलों के बदले फसल के खेत में प्रशिक्षण : प्रभुजी ने शिष्य बनाने का तरीका घरों में, सड़क पर और बाज़ार में प्रत्यक्ष में करके सिखाया। इसके विपरीत हमारे धर्म के शिक्षक चार दीवारों के अन्दर व्याख्यान देकर सिखाते हैं, जो कि सबसे अप्रभावी तरीका है। इस पद्धति से पुल्पिट से भाषण देने वाले पादरी तैयार होतें हैं जो सुंदर प्रवचन जरूर देतें हैं लेकिन उनमें विजातियों से शिष्य बनाने की कोई खास शिक्षा न सामर्थ नहीं रहती। इसलिए वे प्रवचन कलीसिया परमेश्वर के राज्य को आगे बढाने में पूरी तरह अक्षम होते हैं। इसके विपरीत आत्मा बचानेवाले संत प्रत्यक्ष प्रशिक्षण देकर ऐसे शिष्य बनाते हैं जिनमे आत्माओं को जीतकर परमेश्वर के साम्राज्य को आगे बढ़ाने की योग्यता होती है। उनका सिद्धांत, "मेरा अनुसरण करो जैसा कि मैं मसीह की अनुसरण करता हूं।" वे अनुपियोगी विषयों के बदले “महान आदेश, आत्मिक युद्ध, शिष्य बनाने के गुर, शिष्यों और कलीसियाओं के गुणन के सिद्धान्त, विधर्मियो से कैसे वार्तालाप करना, विरोधियों को मुहतोड़ जवाब देना” इत्यादी विषयों पर जोर देतें हैं। परमेश्वर के घराने में विश्वासियों और खोजियों के मिश्रित समूह में खुले वार्तालाप और वाद विवाद से अनुभव प्राप्त करके दूसरों को समझाने और परिवर्तित करने की क्षमता बढ़ जाती हैं। एक स्वस्थ कलीसिया में दो किस्म के लोग होते हैं, प्रशिक्षक और प्रशिक्षित, बाकी मुक दर्शक होते हैं । (इफिसियों 4: 11,12; प्रे. का. 18: 4; तीतुस 1: 9)
8. नया दाखरस पुराने मशकों को फाड़ देगा: एक विश्वासी अब मात्र एक कलीसिया का सदस्य नहीं लेकिन एक शिष्य बनानेवाला और कलीसिया रोपक की पहचान बनाता है । ये सफल आत्मा जीतनेवाले ऐसे विशाल आंदोलन ला रहें हैं जो वर्तमान के मेगा-चर्चों को बौना कर रहें हैं। प्रभुजी ने कहा, नए दाखरस को पुराने मशकों में स्थानांतरित करना असंभव है। एक छत के नीचे नहीं लेकिन हजारों छतों के नीचे इकट्ठा होते हैं, एक सुपरस्टार प्रचारक के बजाय उनके अनेक मार्गदर्शक होते हैं, बड़ी पूंजी के बजाय, वे स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं, और अंत में हाथी के समान बाँझ विशालकाय मेगा-चर्च के विपरीत, मिनी गृह कलीसिया, खरगोश की तरह बच्चे पैदा करती है।
9. बुलाहट बदली : पेशेवर पादरी, रेवरेंड, बिशप और पोप, आदि, बाइबिल से परे, उपाधियां लेकर प्रभु को कलीसिया के सिर के स्थान से विस्थापित करनेवालों के बदले; फसल काटनेवाले मजदूर; मनुष्यों के मछुआरे; बीज बोने वाले; फल इकट्ठा करने वाले और खोई हुई भेड़ों को खोजकर उद्धार करने वाले बनना चाहते हैं। प्रभु ने कहा कि, “मेरी और भी भेंड़े हैं जो इस भेड़शाला की नहीं, उन्हें भी लाना आवश्यक है” (यूहन्ना 10:16) इसलिए वे पूरे नगर को अपना कार्य क्षेत्र मानते हैं। वे अपने भेड़शाला के लोगों को प्रशिक्षण देकर उनको बाहर की भेड़ों का उद्धार करने के लिए भेज देतें हैं। उनकी पहचान, महान आदेशक, कलीसिया रोपक, शिष्य-बनानेवाले, प्रेरित, भविष्यवक्ता, राजदूत, आध्यात्मिक पिता और राजपदधारी याजक इत्यादि बाइबिल के उपाधियों से सुसज्जित हैं।
10. सताव में बढोतरी: परमेश्वर के राज्य में अभूतपूर्व बढोतरी के साथ सताव में भी लगातार बढोतरी होती जा रही है । प्रभुजी के दोबारा आने तक सताव येरूशलेम से फैलकर सारी दुनिया में भयानक रूप ले लेगी जिससे बहुत से मसीही शहीद हो जायेंगे, बाकी मुकर जायेंगे । सताव की वजह से कलिसियांये तितर बितर होकर छुपकर छोटे छोटे झुण्ड में एकत्रित होने लगती हैं, जिससे सुरक्षा मिलती है और ज्यादा फलदायक भी हो जाती है। सताव एक आशीर्वाद है क्योंकि वह राज्य को आगे बढाने में ईंधन का काम करती है। जिन्होनें सताव सहा है वे खुद निर्भीक गवाह बनकर बहुत से विरोधियों को प्रभु में लाने में सफल होते हैं। शर्म की बात ये है कि मसीही लोग पीड़ितों के लिए किसी किस्म की आर्थिक या न्यायिक या चिकत्सा या उनके शहीद हो जाने पर विधवाओं और अनाथों की कोई सहायता नहीं करते जबकी प्रभुजी ने हिदायत दी है कि जिस नाप से तुम नापोगे उसी नाप से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा । (मत्ती 7:2; बाब 24; युहन्ना 15:18; लूका 6:38)
11. दशमांश रुपये से भोजन में बदल रहा है: चर्च ने धोखेधड़ी से अज्ञानी विश्वासियों से दशमांश लूटा है। यहूदी किसान साल में तीन बार मंदिर में दस्वांश (पशु, अनाज, पहला फल, तेल और दाखरस आदि जैसे खाद्य पदार्थ) चढ़ाकर, वे उसे विधवाओं, अनाथों, दासों और लेवियों के साथ खाया करते थे। याजकों को केवल दशमांश का दशमांश मिलता था (व्यवस्था. 14: 22-29; नहेम्याह 10:38)। बाकी लोग आधा शेकेल टेम्पल टैक्स साल में एक बार (निर्गमन 30:13) और कमाई का स्वेच्छादान फसल बोने और काटने के लिए देते थे (१कुरुन्थिओ 9:6,7)। अब गृह कलीसिया में विश्वासी आत्मिक फसल काटने के लिए घर घर रोटी तोड़ते हैं अर्थात् जरुरतमंदों के साथ मिलकर भोजन करते और उनकी भौतिक जरूरतों को भी पूरा करते हैं । (प्रे. का. 2:46,47; 4:34,35; याकूब 1:27)
12. जातिवाद, लिंगभेद, रंगभेद रूढ़िवादी अगुवे बाहर: परमेश्वर ने वायदा किया था कि अंतिम दिनों में वह अपनी आत्मा सब लोगों पर उन्डेलेगा, “तुम्हारे पुत्र और पुत्रियां, तुम्हारे दास और दासियां भविष्यद्वाणी करेंगे...।“ प्रभुजी ने प्रत्येक विश्वासी को प्रचुर मात्रा में फल लाने के लिए चुना है। परमेश्वर के घराने में क्या पुरुष, क्या महिला, क्या युवा, सभी समानता से भाग ले सकतें हैं, “न तो कोई यहूदी हैं और न यूनानी, न गुलाम और न स्वतंत्र, न नर और न नारी, सब प्रभु में एक हैं। और यदि आप मसीह के हैं, तो आप अब्राहम के वंशज और प्रतिज्ञा के अनुसार उत्तराधिकारी हैं। “डिग्रीधारी, चोगाधारी, रूढ़िवादियों में व्यापक भ्रष्टाचार के कारण बहुत सी परंपरागत कलीसियायें अंतर कलह से बंद होने पर हैं। इसके विपरीत गृह कलीसिया में जमीनी प्रशिक्षण प्राप्त आम लोगों द्वारा नए नए झुण्ड संचालित हो रहे हैं । (योएल 2: 28,29; यूहन्ना 15: 8,18; गल. 3: 27-29)
13. डिजिटल चर्च: डिजिटल पागलपन की बीमारी, संतों और पापियों दोनों में समान रूप से फ़ैल रही है। प्रभजी ने कहा था कि “यदि तुम चुप रहोगे तो पत्थर (कंप्यूटर का सिलीकोन चिप) चिल्ला उठेंगे” । इसलिए जमीन पर पत्थर से निर्मित चर्च का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, यूट्यूब और स्काइप आदि के माध्यम से पूरे विश्व में स्थानांतरित हो रहा है। अब आप परमेश्वर से सीधे अपनी प्रार्थना ईमेल से कर सकते हैं। एक साधारण मोबाइल फोन से, शिक्षा, शिष्य बनाना; चंगाई, दुष्ट आत्मा निकालने जैसे सामर्थ के काम हो रहे हैं। टीवी, सोशल मीडिया चर्च को पुनर्जीवित कर रहे हैं और लाखों गुमराह लोंगों तक पहुँचने का एक सशक्त माध्यम बनते जा रहे हैं। इससे परमेश्वर के राज्य को आगे बढ़ाने में आत्याधिक सहायता मिल रही है यहाँ तक कि ऐसे लोगों के पास जो कभी भी चर्च नहीं आएंगे और कट्टर विरोधी देशों में भी आप आसानी से शुभ सन्देश के साथ पहुँच सकते हैं। दु:ख की बात यह है कि भटके हुए लोंगों के बदले, इसाई लोग, इसाई लोगों को ही इस माध्यम से समाचार भेज भेजकर परेशान करते हैं। लूका 19:40
14. विवाह के भोज की तैय्यारी: अन्य धर्मों के लोग, विशेष रूप से इश्माएल के पुत्रों को सपनों में दर्शन के माध्यम से खुदावंद ईसा सीधा अपने को जाहिर कर रहे हैं। यह कोई ख़ास बात नहीं कि आपके चर्च में कितने लोग आते हैं; बल्कि कितने लोग शिष्य बनाने के लिए प्रशीक्षित होकर बाहर भेजे जाते हैं। वे न केवल ढोलकबाजी करते और न खाली शब्दों को बाटते हैं, बल्कि घर-घर जाकर वचन के साथ रोटी भी तोड़ते और प्रीतिभोज भी करतें हैं। ये प्रभुजी के दुबारा आने पर कलीसिया से विवाह उत्सव के भोज की तैयारी में हो रहा है। ईसाईयों को धोखा है कि वे सताव से पहिले पलक मारते ही उठा लिए जायेंगे (rapture)। लेकिन इस भोज में सिर्फ उनको नेवता मिलेगा, जो आत्मा बचाकर प्रभु के राज्य का विस्तार कर रहें है; जिनके नाम मेमने की पुस्तक में लिखे हैं।
15. अगुए नम्रता से बदलाव के साथ बदलें अन्यथा अगुवाई करने के लिए कुछ नहीं रह जायेगा: यदि आप विश्व की 16,700 जातियों, 6,500 भाषाओं और 25 लाख गाँवों में परमेश्वर के घराने को स्थापित करने के आदेश को पूरा करने की उम्मीद करते हैं, तो परिवर्तन आपका मित्र और एकमात्र विकल्प है। प्रभुजी इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपने कलीसिया के ढांचे का पूरी तरह से पुनर्गठन कर रहें हैं। वह पृथ्वी के हर एक मानव बस्ती में प्रेम, आनंद, शांति, न्याय, समानता और गरिमा का राज्य लाने के लिए गृह कलीसिया को प्राथमिकता दे रहें हैं और तब जिनके नाम मेमने की किताब में लिखें वे उनके साथ इस पृथ्वी पर राज्य करेंगें । (प्रकाशितवाक्य 11:15) । शलोम
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