पेंतेकुस्त महान आदेश का अन्तर-राष्ट्रीय वर्ष

पेंतेकुस्त से शुरुआत महान आदेश का अन्तर-राष्ट्रीय वर्ष


“जाओ सब जाति के लोंगो को शिष्य बनाओ,

उन्हे बप्तिस्मा दो और आज्ञाकारी बनाकर भेज दो.” (मत्ती 28:18-20)

“जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा,

तो तुम सामर्थ्य पाकर पृथवी कि छोर तक मेरे गवाह होगे” (प्रेरितों के काम 1:8)


महान आदेश हमारे प्रभु येशु मसीह का सबसे प्रमुख और अन्तिम आदेश है इसलिए हर एक मसीही को इसका पालन करना आवश्यक है।  संसार में 16,700 जातियां और 6500 भाषायें और हज़ारों गोत्र हैं जिनको शिष्य बनाने का दायित्व कलीसिया को सौंपा गया है। जब तक ये काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक प्रभु येशु मसीह वापस आकर पृथवी पर अपने हज़ार साल का महिमा- युक्त राज्य स्थापित नहीं कर सकते ।  

पेन्तेकुस्त का दिन कलीसिया का जन्मदिवस और कलीसिया युग की शुरुवात है । 2019 वर्ष पहिले पतरस प्रेरित ने इसी दिन 3000 बपतिस्मा देकर अपना खाता खोला था, जिन्होंने पश्चाताप किया, पानी और पवित्रात्मा का बपतिस्मा पाया और शीघ्र हजारों हज़ार नए बिश्वासी जुड़ते गए । (प्रे.के काम 2:41, 21:20


नए नियम की कलीसिया का विस्फोटक और गुणात्मक वृद्धि :

प्रे.के काम 2:47 – प्रभु प्रतिदिन नए विश्वासियों को जोड़ते जाता था। 

प्रे.के काम 4:4 – 5000 और अन्य विश्वासी जुड़ गये। 

प्रे.के काम 5:28 – येरूशलेम शहर छोटी छोटी गृह कलीसियाओं से संतृप्त हो गया। 

प्रे.के काम 6:1,7 - शिष्यों के संख्या में विस्फोटक वृद्धि। 

प्रे.के काम 8:12 – फ़िलिप जो एक साधारण भोजन परोसने वाला इंसान था उसने सामरिया में बहुत से दुष्टात्मायें निकाली और बपतिस्मा दिया। 

प्रे.के काम – 9:31 – य़ेरुशालेम, यहूदिया और गलील में कलिसियायें उन्नति पर। 

प्रे. के काम 16:5 – परिपक्व कलीसियाओं की संख्या में प्रतिदिन उन्नति। 

प्रे.के का. 19:8-10 – सारे आसिया में सुसमाचार फ़ैल गया। 

रोमियो 15:19,20 – य़ेरुशालेम से इल्लिरिकुम तक (2000 कि.मी.) सुसमाचार, सामर्थ्य के चिन्हों और चमत्कार के द्वारा पूरी तरह प्रचारित।   

रोमी. 15:23 – अब कोई जगह नहीं बची।  


प्रभावशाली बदलाव से अप्रत्याशित फसल :

1. एक मंदिर में मिलने के बदले वे हजारों घरों में मिलने लगे. इस तरह इब्राहीम के साथ वाचा, कि “तुम दुनिया के सब कुलों के लिए आशीष का कारण बनोगे,” पूरा हुआ। (उत्पति 12:3)


2. मुर्दा जानवर की बलि चढ़ाने के बदले वे अब जीवित आत्माओं को बलिदान स्वरुप चढ़ाकर आराधना करने लगे। (रोमियो 15:16) 


3. मूसा की व्यवस्था में आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत और जान के बदले जान की शिक्षा देने के बदले अब वे पड़ोसी से प्रेम, एक दूसरे से प्रेम, यहाँ तक कि अपने शत्रु से भी प्रेम करने लगे। (लूका 10:27; 16:16 युहन्ना 13:34,35; 14:15)


4. सिनेगोग (आराधनालय) में पुल्पिट से भाषण सुनने के बदले आपसी वार्तालाप से अब वे स्वयं धर्मशास्त्र से सच्चाई की खोज करने लगे। (प्रे. का. 17:11) 


5. पहिले वे अन्य जातियों से छुआछूत करते थे, लेकिन अब वे उनके घरों में भोजन की संगती करने लगे। (लूका 10:5-8; प्रे. का. 10:23-34; 1कुरिन्थियों 14:24-26) 


6. पहिले वे पश्चाताप का बपतिस्मा लेते थे लेकिन अब वे पवित्र आत्मा और आग का बपतिस्मा भी सामर्थ्य पाने के लिए लेने लगे। (मत्ती 3:11; प्रे. काम 2:37-39) 


7. मंदिर में दिन में तीन बार प्रार्थना करने के बजाय, अब वे घरों में हियाव से वचन सुनाने और सामर्थ्य के कार्यों के लिये प्रार्थना करने लगे। (प्रे. का. 2:42; 4:28-30)


8. मंदिर के रख-रखाव के लिए दसवांश देने के बदले अब वे गरीबों के लिए और प्रेरितों के पैर चलायमान करने के लिए, स्वेच्छादान देने लगे। (प्रे. का. 2:44-45; 1कुरु.9:6,7)


9. आराधनालय में बांज भेड़ों की खिदमत करने के बदले अब वे खोई हुई भेड़ों को खोजने और उनका उद्धार कराने में संलग्न हो गए। (लूका 15:7, 10; 19:10) 


10. सब्त, बलिदान, खतना और धार्मिक विधि विधान रखने के बदले अब वे शिष्य बनाकर और कलीसिया रोपण करके राजपदधारी याजक और प्रभु के राज्य के राजदूत बन गए। (2कुरु. 5:20; 1पत. 2:9; प्रे. 6:7; 16:5)


आज के दिन में महान आदेश के लक्ष्य को पूरा करने में कौन अवरोधक बन गए हैं?

हमने तलाश किया तो पता चला कि अपराधी हम और “हमारा चर्च” ही है। सदियों से हम पवित्र इमारत, पुलपिट, प्रोग्राम्स, पॉलिटिक्स और बजट के दलदल में फंस गए हैं और प्रभु द्वारा निर्धारित लक्ष्य से भटक गए हैं। हमारी कलिसियाँयें सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर नहीं रहीं (मरकुस 11:17)। हमारे अगुवे ऐसे पेड़ों को खाद पानी डालकर पाल रहे हैं जो फल नहीं लाते। हमारे बाइबिल स्कूल विद्वान तैय्यार करते हैं न कि मनुष्यों को पकड़ने वाले मछुवारे। हमारे प्रचारक एक ही जगह में बसे रहते हैं जबकि संत पौलुस स्थानीय अगुवे खड़ा करके आगे बढ़ जाता था। हमारे प्रार्थना और बाइबिल अध्यन समूह, प्रार्थना योद्धा और बाइबिल ज्ञाता तैय्यार करते हैं जिनके पास विजातियों को शिष्य बनाने कि योग्यता नहीं होती। (मत्ती 4:19) 


सो आज के दिन प्रभु क्या कर रहा है? 

प्रतिदिन मीडिया बरबादी और निराशा कि खबर देतें रहते हैं कि सभी देश आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक संकट और हिंसा में फंसे हुए हैं, परन्तु मीडिया इस बात को नहीं बता रही है, कि बेशुमार नए विश्वासी हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा से मसीह के राज्य में बड़ी तेज रफ़्तार से प्रवेश कर रहें हैं, मियान्म्मार से मंगोलिया और इंडोनेशिया से इथियोपिया तक सारे मुल्कों में खलबली मची हुई है; मजेदार बात ये है कि ये कोई प्रसिद्ध टीवी और क्रूसेड करने वाले प्रचारकों के द्वारा नहीं और न परंपरागत कलीसियाओं के द्वारा, लेकिन विजातिओं में से आये हुए साधारण विश्वासियों के प्रार्थना, प्रयास और समर्पण से, सताव के बावजूद, ये महान कार्य हो रहा है। वे घर घर रोटी तोड़ने के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बन्धनों को भी तोड़ते हुए सुसमाचार सुनाते और शिष्य बनाते हैं जिससे कलीसिया में विस्फोटक उन्नति हो रही है। शिष्य बनाना उनकी दैनिक जीवन शैली है न कि कोई प्रोग्राम। क्योंकि प्रभु भटके हुओं को खोजने और उनका उद्धार कराने आये थे इसलिए इन गृह कलीसियाओं का लक्ष्य भी गुनाहगारों को उद्धार दिलाने पर केन्द्रित है। ये आन्दोलन पहिली शताब्दी की क्रांतिकारी कलीसियाओं की तरह पुनः उभर रहा है। प्रभु हमारे धार्मिक अगुओं से अपनी कलीसिया को छीन कर मूर्खों, निर्बलों और तुच्छों को वापस दे रहें हैं क्योंकि वे बहुतायत से फल ला रहें हैं। (मत्ती 11:12; 21:43; प्रे. के. काम 20:20; लूका 19:10; 1 कुरिन्थियों 1:27-28)  


प्रत्येक मसीही एक महान आदेशीय राजपदधारी याजक है : प्रभुजी के इस पृथवी पर दो महत्वपूर्ण लक्ष्य थे। पहिला ये कि वे मनुष्यजाति के उद्धार के लिए कुर्बान होने आये थे और दूसरा, उन्होंने कहा कि “मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल नहीं होंगे... मै उसे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूंगा... और उसे शत्रु की सारी सामर्थ्य के ऊपर सामर्थ्य दूंगा और उसे भटके हुओं को खोजने और उनका उद्धार कराने भेज दूंगा। (मत्ती 16:18,19; लूका 10:19;19:10) लेकिन प्रभुजी ने कोई ईमारत नहीं बनाई बल्कि 12 शिष्यों की एक ऐसी कलीसिया बनाई जिन्होंने जाकर सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक अधोलोक के फाटकों को ध्वस्त कर के दुनिया को उलट पुलट कर दिया। हालाँकि यह सच है कि कई जातियों को सुसमाचार सुनाया गया, उन्हे कलीसिया का सदस्य और दानदाता बनाया गया और उन्हें शिक्षा दीक्षा मिली, लेकिन अभी तक किसी कलीसिया ने प्रभु और पौलुस के शिष्यों के स्तर का महानादेश को पूरा करनेवाले शिष्य नहीं बना पाई। कलीसिया का सही लक्ष्य ये है कि, “समस्त कलीसिया, समस्त सुसमाचार को समस्त जातियों के पास ले जाकर उनका उद्धार कराये”। सामरी स्त्री की तरह, आत्मा और सच्चाई से आराधना करने का सबसे अच्छा तरीका, ये है कि गुनाहगारों को प्रभुजी के चरणों पर ले आईये ताकि वो उन्हे नयी आत्मा और नया ह्रदय दे सके। (युहन्ना 4:23,24; प्रे.के कम 17:6; यहजकेल 36:26)


प्रभुजी ने केवल महान आदेश नहीं दिया लेकिन करके दिखाया: 


• जाओ: वे प्रतिदिन जाते थे और कर वसूली करनेवाले भ्रष्ट जक्कई और गदारा के दुष्टात्मा से ग्रसित जैसे भटके हुए लोगों को खोजकर उनका उद्धार करते और उन्हे अपने लोगों के मध्य प्रभु का राज्य स्थापित करने के लिए ‘शांति के संतान’ में परिणित करके वापस भेज देते थे। (मरकुस 1:38;6; लूका 10:6) 


• शिष्य बनाओ: प्रभु ने 12 शिष्य बनाया और उन्हे 2x2 करके भेज दिया, जिन्होंने 70 और शिष्य बनाया। प्रभु ने दूसरी पीढ़ी को भी 2x2 करके भेजा ताकि वे तीसरी पीढ़ी तैयार करें। शिष्य वे हैं जो बहुतायत से शिष्य बनाते हैं। (लूका 10:1,2; यह. 15:16) 


• बपतिस्मा दो: अपने शिष्यों के द्वारा प्रभु ने युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कहीं ज्यादा बपतिस्मा दिया. महानादेश हर एक विश्वासी को बपतिस्मा देने का अधिकार देता है। (युहन्ना 4:1,2)


• उन्हे आज्ञाकारी बनाओ: प्रभुजी स्वयं मृत्यु तक आज्ञाकारी रहे. उन्होंने अपने भक्तों  से कहा कि, “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।” प्रभु के सब शिष्य शहीद हुए। (फिलिप 2:8; युहन्ना 14:15)  


महान आदेश का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष: ये वह समय है जिसमे दुनिया के सब मसीही अपने मदभेदों को ताख पर रखकर एक संकल्प लें कि हम सब एकजुट होकर हमारे प्रभु के महानादेश को पूरा करेंगे. “पहिले राज्य और धर्म कि खोज करो...” चाहे जो भी कीमत पटाना पड़े. अपने प्रार्थना और प्रयास से अपने पड़ोस, कार्यस्थल और नगर को अपनी कलीसिया मानकर, परमेश्वर के राज्य में परिणित करेंगे, जहां राज्य के मूल सिद्धांत जैसे: प्रेम, न्याय, शान्ति और धार्मिकता इत्यादि, विरोध के बावजूद, स्थापित करेंगे, ताकि जैसे प्रभु की इच्छा स्वर्ग में पूरी होती है वैसे ही हमारे क्षेत्र में भी पूरी हो। (मत्ती 6:10,33)


हम जानते हैं कि परमेश्वर का अंत दर्शन ये है कि हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा के लोग सफ़ेद वस्त्र पहिने हुए और अपने हांथों में खुजूर कि डालियाँ पकड़े हुए, राजाओं के राजा के तख़्त के सामने उसकी भव्य भक्ति और इबादत करेंगे (प्रकाशित 7:9,10; 21:24)। ये केवल धर्मी लोग नहीं होंगे लेकिन जिन्होंने भूखे को खाना खिलाया, प्यासे को पानी पिलाया, नंगे को कपड़े पहनाया, परदेसी को पनाह दिया, बीमारों और जो बंदीगृह में हैं, उनकी सुधि ली। (मत्ती 25:31-46) 


इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, सह्कर्मिओं, दोस्तों और दूसरों को इस योग्य बनाएं कि वे भी उस भव्य भक्ति में भाग ले सकें। हमें हर भटके हुए इन्सान को ऐसा देखना है जैसे एक डूबते हुए इंसान को, एक कुशल तैराक देखता है और तुरंत खतरे से भरे गहरे पानी में कूदकर बचाता है। हमें उनके लिए केवल प्रार्थना नहीं करना है लेकिन हमारा लक्ष्य उन्हे बचाकर कुशल तैराक बनाना है ताकि वो भी दूसरे डूबते हुओं को बचा सके। हमें उन्हें शिष्य बनानेवाले, बपतिस्मा देनेवाले, तथा आज्ञाकारी बनाकर महानादेश की पूर्ति करने के लिए भेजना है, “जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे मैं भी तुमको भेजता हूँ।” (युहन्ना 20:21)। येशु भक्त होना पर्याप्त नहीं है, लेकिन अपने क्षेत्र के रखवाले की जिम्मेदारी लेकर, केवल प्रचार द्वारा नहीं, लेकिन जरूरतमंदो की सेवकाई करके, अपनी कलीसिया को बदल देना है ताकि कलीसिया फलवन्त क्षेत्रपालकों की सफल मण्डली बन जाये। (मत्ती 4:19; इफी. 4:12) 


उद्देश्य: एक अन्तराष्ट्रीय आन्दोलन बनाना है न कि मात्र एक कार्यक्रम :   

जवानों और माहिला समूहों, कलीसियाएं, दान दाताओं और मसीही संस्थाओं को चाहिए कि वे अपने पड़ोस, मोहल्ले, शहर, कार्यस्थल, क्षेत्र और जातिओं को गोद लेकर महानादेश का दायित्व संभालें ताकि उनका क्षेत्र परमेश्वर के महिमा के ज्ञान से ऐसा भर जाये जैसे समुद्र जल से भरा रहता है, ताकि वहाँ की भ्रष्ट राजनीति, मीडिया, शिक्षा, स्वास्थ, कृषि, व्यापार पूर्णतः बदल जाये और दावे के साथ कहा जाये कि, “हमारे क्षेत्र का राज्य हमारे परमेश्वर और उसके मसीह का हो गया है और वो युगानुयुग राज्य करेगा” (हबक्कुक 2:14; प्र. वाक्य 11:15) 


ऐसा कोई इंसान या स्थान छूट न जाये :

इस पैगाम को हर एक मसीही के पास पहुंचाना जरुरी है। इसे आप अपने व्यक्तिगत सम्पर्क से या आधुनिक संसाधनों से या प्रशिक्षण के माद्ध्यम से जागरूकता ला सकते हैं। हमारे कलीसियाओं में अनेक वरदानी सदस्य बैठे हैं जिनकी योग्यता, साधन और वर्चस्व का सकारात्मक सदुपयोग नहीं किया जा रहा है। यदि उन्हें सही प्रशिक्षण देकर महान आदेशीय बनाकर भेजा जाये तो एक ऐसी क्रांति शुरू हो जाएगी जिसे रोकना असंभव हो जायेगा और वे जो अंधकार और मृत्यु कि छाया में बैठे हैं वे सब उद्धार और संपन्न जीवन का अनुभव करेंगे। अंत में हम सब को अपने जीवन का लेखा देना पड़ेगा। हमारा नाम मेम्ने कि पुस्तक में लिखे जाने के लिए हमें नादान भेड़ों के समान, खूंखार भेड़ियों के बीच जाकर, और उन्हें वश में करके, महान आदेश का आन्दोलन शुरू करना होगा। इस प्रक्रिया को तब तक गतिशील रखना होगा जब तक कि हमारे क्षेत्र में कोई ऐसा इंसान न रह जाये जिसने प्रभु का नाम नहीं सुना और न कोई एसी जगह रह जाएँ जहाँ उसका नाम नहीं पंहुचा हो। इस तरह दुनिया के सारे राज्य हमारे प्रभु के हो जायेंगे और हम सब उसके साथ युगानुयुग राज्य करेंगें। (प्र.वाक्य 11:15; मत्ती 4;16; यहेज्किएल 3:18; दानिएल 7:18,27; 12:1-3; लूका 10;20; याकूब 5:20; रोमियों 15:23) 


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