प्रार्थना कैसे करें? / HOW TO PRAY
प्रार्थना कैसे करें?
1. चेलों ने येशुआ से कहा:- हमें प्रार्थना करना सिखा, येशुआ ने कहा ‘‘जब तुम प्रार्थना करो तो कहो, हे हमारे पिता तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आये’’। (लूका 11ः1-2)
2. संबोधित प्रार्थना:- हे हमारे पिता कहकर परमेश्वर को पुकारने से हमारा पूरा संबन्ध और घनिष्ठ हो जाता है और तब हम उसकी सन्तान बन जाते है। इसलिए बराबरी से धनिष्ठ संबन्ध रखने वाला कोई अन्य धर्म नही है। (यूहन्ना 1ः12)
3. प्रार्थना का लक्ष्य:- प्रार्थना का लक्ष्य अवश्य ही पिता परमेश्वर के राज्य लाने से होना चाहिए।
4. उपाधि:- प्रार्थना परमेश्वर पिता को उपाधि देना नही है। यद्यपि जैविक संतान इस बात से या इस विषय से भली भांति अवगत है कि उनके पिता या बाप शक्तिमान, सर्वज्ञानी, सर्वयापी और आवश्यक्ता के समय हमेशा उनके लिए उपलब्ध हैं, परन्तु वे कभी नही अपने जैविक पिता को बड़ी-बड़ी आदरनीय पदवी या उपाधि से संबोधित करते हैं, वे साधारणतः पिता, बाप, अब्बा या पापा आदि शब्दों से संबोधित करते है। इसलिए जब हम अपने पिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं तो हमें बड़े-बड़े आदरनीय शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। परन्तु बड़े सरल शब्दों से पिता परमेश्वर से वार्तालाप और धनिष्ठता की संगति करना चाहिए।
5. क्या माँगे, क्या ढूढें़, और कहां खटखटायें:- मांगों को तुम्हें दिया जायेगा, ढूढ़ों तो तुम पाओगे, खटखटाओं तो तुम्हारे लिए खोला जायेगा। (लूका 11ः9)
6. बच्चे ग़लत वस्तु माँगते हैं:- बच्चों को ग़लत चीजें मांगने की आद्त है, जैसे अक्सर बच्चे चाॅकलेट, आईस्क्रीम या मीठी चीजे़ ही मांगते हैं - परन्तु उनका पिता वही वस्तु देगा, जो बच्चों के हित में है।
7. प्रथम बात प्रथम:- ‘‘पवित्र आत्मा मांगो’’ - अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुंए देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा? (लूका 11ः13)
8. तभी तुम उचित वस्तु को माँगोंगे:- जैसे भजन संहिता 2ः8 में लिखा है कि ‘‘मुझसे माँग और मैं जाति जाति के लोगांे को तेरी सम्पत्ति होने के लिए और दूर-दूर के देशों को तेरी निज भूमि होने के लिए दे दूंगा।
9. उचित वस्तु प्राप्त करना:- जैसे येशुआ खोए हुओं को ढ़ूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया। (लूका 19ः10)
10. उचित द्वार को खटखटाना:- शांन्ति की संतान के द्वार को खटखटाओगे, तो वह द्वार खोलेगा, तब आप उसके साथ भोजन करोगे, और उसका घर सब जाति के लोगों के लिए प्रार्थना का घर बनाओगे। (प्रका. वा.3ः20, लूका 10ः5-9, मरकुस 11ः17)
11.आप इस बात को समझें:- क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किसा रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भर कर जो बयांन से बाहर है हमारे लिए बिनती करता है, और मनों जो जांचने वाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छानुसार बिनती करता है। (रामियों 8ः26,27)
12. पवित्र आत्मा के द्वारा हम संतो के लिए मध्यस्थता कर सकते हैं।
13. संत कौन है:- संत वे हैं जिन्होंने बिलादान चढ़ाकर वाचा बान्धी है (अपने आप को परमेश्वर पिता की सेवा के लिए बलिदान किया है।) (भजन संहिता 50ः5, रोमियों 1ः1,2)
14. परमेश्वर संतों की प्रार्थना सुनता है:- वे केवल प्रार्थना ही नही करते, परन्तु रोते हुए (मध्यस्थता) बीज बोने के लिए चले जाते हैं और पुलिया लिए हुए जयजयकार करते हुए निश्चय लौट आते हैं। (प्र.वा. 8ः3, भ. सं.126ः 5,6)
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