नमक का दृष्टान्त
नमक का दृष्टान्त
सदन्दर्भ: मत्ती 5ः13 ‘‘तुम पृथ्वी के नामक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इस के कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।’’
लूका 14ः34-35 ‘‘नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से स्वादिष्ट किया जाएगा। वह न तो भूमि के और न खाद के लिए काम में आता है; उसे तो लोग बाहर फेंक देते है: जिस के सुनने के कान हो वह सुन ले।’’
प्रस्तावना एंव पृष्ठभूमि: नमक सम्पूर्ण संसार में मानव की आधारभूत आवश्यक्ता है। नमक का उपयोग प्रमुख रूप से स्वाद के लिए, किसी वस्तु को सड़ने से बचाने एंव प्यास जागृत करने के लिए किया जाता है।
यह संदर्भ तीन सुसमाचारों में पाया जाता है। प्रभु यीशु मसीह ने मसीहियों के सताव, उनके विश्वास के परखे जाने एंव परीक्षाओं में खरा निकलने के विषय में यह दृष्टान्त कहा है।
विषय वस्तु सारांश: प्रभु यीशु मसीह ने कहा ‘‘तुम पृथ्वी के नमक हो।’’ नमक अच्छा है परन्तु यदि वह अपना स्वाद खो दे तो फिर वह किसी काम का नहीं। इसे फिर से किसी वस्तु से नमकीन नहीं किया जा सकता और न ही इसका कोई उपयोग ही रह जाता है। भूमि की उर्वरता यह नष्ट करता है और खाद में डालने पर यह पौधों को और फसल को नुकसान पहुंचाता है। अतः यह केवल इस योग्य रह जाता है कि फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।
व्यवहारिक पक्ष एंव आत्मिक शिक्षा
1. नमक का प्रमुखतम गुण है स्वाद। नमक की थोड़ी ही मात्रा सम्पूर्ण भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त रहती है। चाहे मसीही अल्पसंख्यकता में हों, भीड़ के अनुपात में इनकी संख्या बहुत कम हो फिर भी मसीहियों को भीड़ से स्वयं अप्रभावित रहते हुए प्रभु यीशु मसीह के गुणों से अपने सम्पर्क में आने वाले सभी को प्रभावित करना है।
स्मरण रखिये कि यीशु मसीह के कुछ चुने हुए शिष्यों ने अपने प्रभाव से सारी दुनिया को प्रभावित कर दिया। आज उस अनुपात में मसीही बहुत हैं। जांचें कि हमने कहीं अपना स्वाद तो नहीं खो दिया है? हमें मसीह के गुणों को दूसरों में फैलाना है।
2. नमक के स्वाद के गुण के अन्तर्गत ही यह बात भी होती है कि भोजन की कितनी ही मात्रा क्यों न हो एंव कितने ही मसाले उसमें क्यों न मिले हों नमक का अपना अलग ही स्वाद होता है, जो अलग पहचाना जा सकता है। कहीं हम भीड़ का अनुसरण करने में इतने मतवाले तो नहीं हो गये कि हमने अपनी पहचान ही खो दी? बाईबिल में हम पाते हैं कि नूह ने अपनी पहचान नहीं खोयी और परमेश्वर की दृष्टि में वह धर्मी ठहरा। उसी प्रकार युसुफ, दानिएल, शद्रक, मेशक, अबेदनगो, मरियम आदि ने विषम परिस्थितियों में भी भीड़ में खो जाने से स्वंय को बचाकर रखा। सब कुछ सहते हुए वे परमेश्वर के वचन के प्रकाश में चले और बहुतेरे के लिए आदर्श बन गये। ये बहुतों को अपने विश्वास की गवाही से प्रभावित कर गये। हमें भी बुराई और अंधकार की बहुतायत से अपने विश्वास को और मसीही गुणों को कभी नहीं खोना है।
3. नमक का तीसरा प्रभुख गुण है कि यह भोज्य पदार्थो को सड़ने से बचाता है। इसका उपयोग रक्षक या बचाव करने वाले पदार्थ (PRESERVATIVE) के रूप में किया जाता है।
जिन्होंने मसीह को ग्रहण किया है और जो उसकी आज्ञाओं पर चलते हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। उनका अनन्त जीवन सुरक्षित है। परन्तु, हमें स्वार्थी न होकर दूसरों के लिए भी सोचना है, दूसरों को भी परमेश्वर के प्रेम और प्रभु यीशु मसीह के महानतम बलिदान के विषय में बताना है। प्रभु यीशु मसीह के योग्य गवाह बनकर दूसरों को भी बचाना है। जहां भ्रष्टाचार है वहां ईमानदारी, जहां घृणा है वहां प्रेम, जहां क्रोध है वहां धीरज, जहां विश्वास, जहां दुःख है वहां आनन्द, जहां आत्मिक अंधकार है वहां प्रभु यीशु मसीह के सत्य का प्रकाश फैलाकर हमें सम्पूर्ण वातावरण को दूषित होने से बचाना है।
हमें स्मरण रखना है कि परमेश्वर की सामर्थ में होकर हम अपने परिवार, कलीसिया, कार्यक्षेत्र एंव अन्य स्थानों पर अपनी कर्मठता से परिर्वतन ला सकते है। व्यक्ति + परमेश्वर = बहुमत। स्वंय को नगण्य समझकर प्रयास नहीं करना मसीहियों की गवाही में एक प्रमुख कमज़ोरी है।
4. नमक का चैथा प्रमुख गुण है प्यास जागृत करना, प्यास ही नहीं लगेगी तो पानी नहीं पीयेंगे। पानी नहीं पीयेंगे तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा।
यदि व्यक्ति को पता ही नहीं कि वो शैतान के जाल में फंसा हुआ है तो उसमें से निकलने की उसकी इच्छा का सवाल ही नहीं उठेगा। यदि उसे इस बात का अहसास ही नहीं कि वो असत्य के अंधकार में भटक रहा है तो उसे सत्य के प्रकाश में आने की चाहत ही नहीं होगी। यदि वह अनन्त जीवन के विषय में अन्जान है तो वह इसी जीवन को ही सब कुछ समझने की सबसे बड़ी त्रासदीपूर्ण ग़लतफ़हमी में ही बना रहेगा। मसीहियों का ये उत्तरदायित्व है कि ग़ैर मसीहियों में प्रभु यीशु के लिए प्यास जागृत करें। ऐसा वे तभी कर सकते हैं जब वे स्वंय मसीह के सद्गुण अर्थात उसका प्रेम, दया, क्षमा, विश्वासयोग्यता, संयम और पवित्रता आदि अपने जीवन एंव कार्यो से प्रगट करें।
5. मरकुस 9ः50 में प्रभु यीशु मसीह ने यह भी कहा कि ‘‘अपने में नमक रखो और आपस में मेल मिलाप से रहो।’’
इसका अर्थ है कि परमेश्वर चाहता है हम शान्ति से रहें, मेलमिलाप से रहें, लड़ाई-झगड़े न करें। यदि हम आपस में लड़ेंगे, दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करेंगे, दूसरों को छल से फंसाएंगे, दुव्र्यवहार एंव अन्य अनैतिक बुराइयों को कलीसिया में पनपने देंगे तो दूसरों को हम प्रभु यीशु मसीह की गवाही नहीं दे सकेंगे एवं कभी भी लोगों में उसके लिए प्यास जागृत नहीं कर सकेंगे। बहुतेरे लोग हो सकता है अपने जीवन में बाइबिल न पढ़ें, परन्तु वे मसीहियों के व्यवहार को अवश्य पढ़ते हैं। हमें अपने जीवन में अपना व्यवहार एंव आचरण उसकी गवाही के योग्य बनाना है।
इस प्रकार प्रभु यीशु मसीह का यह दृष्टान्त संक्षिप्त होते हुए भी अत्यन्त सारगर्भित है और हमें आत्मावलोकन करने पर विवश कर देता है कि हम परमेश्वर के राज्य के लिए उपयोगी है या नहीं?
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