भाग 7 क्या चर्च की ईमारत जरूरी है?
भाग 7 क्या चर्च की ईमारत जरूरी है?
होवर्ड सिन्डर ने एक महत्वपूर्ण किताब लिखी है जिस का शीर्षक ‘‘द प्रबलभ विथ वाइन स्कीनस‘‘। उस किताब में वह गहराई से उन समस्याओं को समाधान किया है जों चर्च की व्यवस्था का कारभार सम्भालते है। वे अपने चर्च केे विषय में परमेश्वर की योजना को खोलते है। वे मानव कमजोरियों के विषय में बोलते है जिसकी वजह से हम परमेश्वर की योजना में सहमत नही होते एक अध्याय में जिस का शीर्षक है ‘‘क्या चर्च की इमारत सूपरफलूअस वे कहते है जरा सोचिये जहां मसीहीयत पहुंच चुकी थी।
तब आप किसी से पूछिये ‘‘ कहा है चर्च तब आप बड़े लोग ऐसे धर का पता बतायेंगे जहां लोग इकट्ठे हो कर आराधना करते थें। वहां कोई खास इमारत नही है या धन दौलत जो हम चर्च से जोड़ते है वहां केवल लोग होगें।
वाल्टर अएटींग अपनी किताब ‘‘द चर्च इन केटाकम्ब कहते है ‘‘मसीही लोग चर्च की ईमारत सन 2000 तक नही बनाये थे। यह तथा यह साबित करता है कि चर्च ईमारत की जरूरत नही है जब हम संख्या में बढ़ोत्तरी मांगते है और आत्मिक गहराई भी चाहते है। प्राथमिक कलीसिया में दोनों बाते श्विास और गहराई दोनो पाये जाते थे। ये सिलसिला अभी तक था, कलीसिया की सब से ज्यादा स्पूर्ती और बढ़ोत्तरी पहली दो शताब्दी में थी। दूसरे शब्दों में कलीसिया बड़ी तेजी से बढ़ी जब कोई सहायता और रूकावट अर्थात चर्च की इमारत। इस प्रकार कलीसियांए विश्वास में दृढ़ होती गई और संख्या में दिन - प्रतिदिन बढ़ती गई। (प्रेरितों के काम 16ः5)
मैं यह बिश्वास करता हूँ कि प्रभु अपने लोगो को बुला रहा है कि वे पश्चाताप करें कि उन्होंने चर्च इमारत को ज्यादा महत्व दिया है पिछली सदियों में वह हमे बुला रहा है कि हर रूकावटों को दूर करे जो तेजी से कलीसिया रोपण में बाधक है। यह इसलिये जरूरी है कि ‘‘प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले और महिमा पायें‘‘ 2थिस्स. 3ः1, एक मनुष्य रूकावट बहुत से उदाहरण में इमरत है जिस को हम चर्च कहते है।
चर्च इमारत की रूकावट को तोड़ना
डाॅ. डोनाल्ड मेकामावरन आपनी किताब ‘‘अनडरस्टेडिंग चर्च ग्रोथ‘‘ में कहते है ‘‘घरेलू कलीसियायें ने छोटे से चर्च को सामर्थ पहली शताब्दी में दी की वह बहुत विशाल हो गई। एक ही वार प्रहार में उन्होंने 4 अवरोधको पर विजय पाई नीचे लिखे अवरोधक चर्च ने मुकाबला किया जब उन्होंने नई जनता को उद्धार दिलाया।
1. एक इमारत का खर्चा बिना किसी कमरे के घरेलू कलीसिया ने बहुत से आराधना का स्थान उपलब्ध कराया जैसे जैसे नये बिश्वासियों का झुण्ड आता गया। पहिला सामान्य रूकावट खड़ा ही नही हुआ जब चर्चों में संख्या में बढ़ते जा रहे थे।
2. यहूदी लोगों का सम्बन्ध घरेलू कलीसिया ने चर्च को यहूदी आराधनालय से हटा कर अन्यजातियों में पहुंच दिया।
3. अन्दर ही बढ़ने वाली रूकावट हर नये घरेलू कलीसिया नये मित्र और रिश्तेदारो को बिश्वासियो की संगती में खोल दिया।
4. सीमित अगुवों की रूकावट हर नये घरेलू कलीसिया ने जिम्मेदारी और अगुवे का सम्मान योग्य महिला और पुरूषो पर नई कलीसिया में थे डाला ये अगुवे पुराने नियम की शिक्षा पर चलते थे। तथा मौखिक शिक्षा यीशु के जीवन से तथा एक और दो पौलुस के पत्रो से इन सबके साथ जिसमें लचकदार सीमा के अन्दर वे पवित्रात्मा के द्वारा चलते थे।
वर्तमान समय में ये चार रूकावटे/बाधांए उनके सुझाव अभी भी महत्वपूर्ण हैं। जब हम प्राथमिक कलीसिया के विकास के विषय में बात करते है तो हमें उन कलीसियाओं की भौतिक स्थिती जो घरों में होती थी याद रखना चाहिए।
सघन कलीसिया रोपण आव्हान करता है कि चर्च इमारत से हट कर साधारण खुली कलीसिया में संगती परमेश्वर के लोगो के लिये जरूरी है। हम इस प्रकार की पवित्रात्मा की अगुवाई में भिन्न भिन्न रीति से करे और चर्च कहने से ना डरे।
चाहे हम उसके नाम से बड़े कार्य स्थल में या किचन में मिले वह फिर भी चर्च होगा। सारे इकट्ठे लोग परमेश्वर के द्वारा बलाये गये है।
हां हम भवन को इस्तेमाल करते है परन्तु हम को भवन जो चर्च कहते है हमारा आवागमन, हमारा दर्शन और उत्साह बहुगुणित संख्या में बढ़ने से रोकना नही चाहिए।
राजा कान्सटेन्ट टाईन पवित्र चर्च इमारत की समस्या शुरू की जेम्स रट्स अपनी किताब ‘‘द ओपन चर्च‘‘ में कहते है जिस वस्तु ने हमें हमारा मारा था ‘‘इट‘‘ इतिहास में सब से बड़ी गलती जब चर्च बहुत से चर्च बनाने लग गये। (यह रोमी सम्राट कान्सटेन्ट टाईन के समय से था) इमारत बनाने के अभियान ने पहाड़ो की गुफाओं और मृतक गड़ाने की जगाहों में, जंगल की सरकारी घाटी जहां सन्त लोग मिलते है बदल गया और हमेशा के लिये घर के प्यारे बैठक कमरे के वातावरन को खत्म कर दिया।
अब नये चर्च रोमी लोगो के मीटिंग हाल के समान जब सैकड़ो मसीही इकट्ठे हो सकते थे, अब आप समझ सकते है कि आपसी गहरी संगती उतने बड़ी भीड़ में नही हो सकती। एक नई आराधनालय शुरू होते ही पहिले इतवार आपसी बातचीत और बाटने को सीमित कर दिया।
आप कल्पना किजिये अगर आप उस समय जीते होते, अगर आप को अपने पाप को 10 या 20 मित्रो के बीच उसी जोसफेस और जोअन्ना के घर में कर सकते थे, पर क्या आप 500 अजनबी लोगो के शामने में करने से संकोच करेंगे।
अगर आप के हृदय में परमश्वर ने कुछ बोझ दिया तो आप अपने मित्र ेके घर में खड़े होकर 10 से 15 मिनट में बताने से नही हिचकिचायेंगे। पर अब इस नये हाल में यहां कम से कम 10 से 15 लोगो के हृदय में एक वचन जल रहा होगा, जा आप कों वचन बांटने का मौका ही नही मिलेगा।
जोसेफेस और जोअभा के घर में सब अराधना के समय में एक साथ मिल कर शुरू करते थे। आप बार बार परमेश्वर की स्तुती और प्रंशसा अपने दिल से कर सकते थे जैसे पवित्रात्मा अगुवाई करता था। पर अब इस नये भवन में आपको अपनी बारी के लिये ठहरना पड़ेगा, जो शायद न आये। मै और भी कुछ बोलना चाहता हूँ पर आपको पता चल गया होगा आजकल के कलेक्ट्रोनिक बाजे और साऊंण्ड सिस्टम के को खुली जगह में मीटिंग करना कठिन हो गया है। यह थोड़ा कठिन नही पर बहुत कठिन हो गया है। इसलिये बन्द जगहो में मीटिंग चालू हो गई सब आदान प्रदान अब पुलपिट पर केन्द्रित हो गया। सही कार्य क्रम व्यवस्था लाहू हो गई। उस समय लोगो को यह पसन्द आया।
जोसेफस और जोअन्ना के घर में आप भाग लेने वाले थे यहां पर आप देखनेवाले और शान्ती से सुननेवाले हो गये। अब आपको ऐसा महसूस होता है कि आप जरूरी और महत्वपूर्ण नही है।
पैराडाईस (सपनो की दुनिया) में खो गया।
जब हम बैठक कमरे से चर्च में परिर्वतित हुए जहां पेशेवर कर्यकर्ता थे तब बढ़ोत्तरी की तेज़गी खत्म हो गई स्थानीय चर्च अब ठन्डा और कमजोर हो गया।
जिसको प्रीस्ट की दीक्षा नही थी वे लेमेन कहलाने लगे यह शब्द बाईबिल में नही पाया जाता है।
लेमेन स्थिती में चैथी सदी के चर्च बिल्डींग में आप परमेश्वर से संम्पर्क कर सकते थे। प्रीस्ट आपके बदले में करता था, यही एक कारण था कि कुछ लोग अलक श्रेणी में रख कर नौन-प्रीस्ट या लेमेन कहते थे, इस प्रकार भवन निर्माण समस्या धर्म सिन्द्धात समस्या बन गई। इस तरह राजपदधारी याजको का समाज खत्म हो गया। बाईबिल लेमेन के हाथ से ले ली गई और प्रीस्ट को दी गई। आगर आप को निर्णय करने का हक नही है कि वचन का क्या मतलब है तो क्यों पढ़े?
विनाश का रास्ता
आखिर क्या गलती हुई? जैसे मैंने कहा कि चर्च बहुत बढ़ गया और लोक प्रिय कि वह स्वंय अपने लिये भवन कर सकते थे
दुर्भाग्य वश इस के द्वारा बहुत लम्बे समय से पहिले की एक समस्या का समाधान हो गया, जिसको वैसे ही छोड़ देना था। जब एक तनरूस्था घरेलू कलीसिया एक बैठक कमरे के लिये बहुत बड़ी हो गई तो उसको विभाजित ही कर दो बैठक कमरों में हो गई, नई अगुवाई करने वाले जबद दस्ती से उभरने लगें।
जब चर्च इधर उधर बनने लगे तो मन्डली की वह समस्या का सामना नही करना पड़ा तब यह समस्या नही आई कि कौन किस लोकप्रिय प्राचिन के साथ रहेगा सभी लोग सभी लोगों के साथ बने रहे।
मुख्य समस्या कि गहराई सम्बन्ध और गवाही बांटना 500 लोगों की भीड़ में बाटना कठिन हो गया। बड़ी भीड़ में जो अच्छा बोलता था उसको ज्यादा महत्व दिया जाता थाय। इसलिये हकलबे नये बिश्वासी अपने आत्मिक वरदानो को अपने अन्दर रखने लगे।
एक दूसरे को ना जानने से संगती खत्म हो गई, संदेश देने वाले अगुवाइ्र करने लगें क्योंकि उनके पास बाईबिल/किताबें थी और वे पढ़ सकते थे। अन्त वह एक प्रीस्ट ही अगुवाई करता था जो प्रीस्ट नही थे पर साधारण नागरिक रोमी राज्य के थे उनको आत्मिक लीडरो की नौकरी से अलग कर दिया गया चर्च का प्रभाव खत्म हो गया जो रोमी सरकार को उस समय चाहिए था।
ए.डी.420 रोमी राज्य आखिरी बार खत्म हो गया तब चर्च अन्धकार काल में प्रवेश किया।
‘‘वह एक लम्बे अन्धकार की रात जो एक हजार साल तक चली। एक भयंकर केन्सर के समान चर्च अपने ही मेम्बर के ऊपर भड़क गया और बेहरमी से 10 लाख लोगों को नाश कर दिया और सच्चे बिश्वासी को विधर्म कह दिया।‘‘
भवन का सही उयोग
हम यह सुझाव नही दे रहे है कि भवन की कोई आवश्यकता नही परमेश्वर के राज्य की बढ़ोत्तरी में प्रभु हमें आवश्यक बुद्धि और अगुवाई देगा कि हम भवन का उपयोग, ‘‘महान आदेश‘‘ को पूरा करने के लिये कैसे करें। परन्तु हमें सतर्क रहना है कि हम अस्वस्थ और वचन पर अनआधारित रवैया और ज्यादा भवन पर मूल्य रखना, जब कलीसिया रोपन करते है।
कलीसिया संचालित की जा सकती है बिना खास बिल्डिंग के, यह बात कलीसिया के इतिहास से साबित की गई है। वास्तव में, इतिहास दिखाता है कि चर्च तेज़ी से बढ़ता है और स्वस्थ बिना चर्च बिल्डिंग के अपेक्षा।
घरेलू कलीसिया आन्दोलन केवल एक भाग है जो परमेश्वर का परिर्वतन नशीब युक्ति सरल और साधारणता पर परमेश्वर अनेक रीति से अपनी कलीसिया को शुद्धता और पवित्रता की ओर ले चल रहा है। यह उसकी इच्छा और योजना है।
यह ऐसा नही है कि अचानक से परमेश्वर जाग उठा कलीसिया की जरूरत पर और आन्दोलन चालू किया उस जरूरत को पूरी करने का केवल यह बात बहुत से लोग सुर रहे हैं जो परमेश्वर उन से बहुत समय से कह रहा है कि ‘‘मुझे मेरा चर्च दो‘‘।
मैं पूरी रीति से कायल हूँ कि चर्च का व्यवहार का रवैया ऐसा होना चाहिए कि ‘‘प्रभु जब तक विशेष रीाति से चर्च बनाने के लिये कहता या खरीदने के लिये या किराये में लेने के लिये बोलता हम कलीसिया रोपण् करते हुए उसे बहुगुणित करेगे।
मैं भवन की योजना के लिये खुला हूँ पर मैं कलीसिया रोपण को परमपरागत भवन आधारित में सहमत नही हूँ सघन कलीसिया रोपण की बहुत जरूरत है।
हम कभी भी ‘‘महान आदेश‘‘ को अपने निकटतम भविष्य में पूरा हाते नही देखेंगे अगर हम परम्परागत भवन केन्द्रित कलीसिया में फस जायेंगे। इस प्रकार की सोच किसी रीति से भारी आन्दोलन को प्रोत्साहिन देगा कि कलीसिया रोपित की जाये ताकि जातिया शिष्य बनाई जाये।
सदियों से चर्च ने विस्तृत और सुसज्जित रूपरेखा में बड़ी सजावट के साथ आदरयुक्त भवन बनाये है, इनको चर्चेस कहा गया है। कुछ ऐसे भवन जो चर्चेस कहलाये जाते है उनको लोग पूजने लगते थे विशाल मुद्रा जो परमेश्वर को दिये जाते है, वह सब ऐसी पवित्र भवन तैयार करने औश्र चालू हालात में रखने में खर्च किये जाते है।
यह युग समाप्त हो रहा है अब परमेश्वर के लोगों में एक परिर्वतन आ रहा है जो सादेपन पर है अब समय आ गया है संस्था वादी, जीवावषेश संस्कारो के अनुसार परम्परागत, एकाधिकार राजनैतिक सुव्यवस्थित अत्याधिक मसीहीयत से हट जाये।
नया नियम पर ही आधारित बिश्वास और व्यावहारिकता होना चाहिए। बिश्वास ही के द्वारा हम से समझ आये ताकि हमें भवन हो पहिचानें की यहां आराधना का स्थान है जिससे पूरो संसार में यीशु मसीह का सुसमाचार फैले।
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