भाग 4 एक धार्मिक बिश्वासियों का समूह चर्च है।
भाग 4 एक धार्मिक बिश्वासियों का समूह चर्च है।
इस्पानिया भाषा में एक शब्द उछल कर सामने आया। मैंने उसे पहिले कभी नही देखा था। और इस्पानिया भाषा में उसे ‘‘कौंगरीगाडो‘‘ जिसका अंग्रेजी में मतलब है ‘‘एक साथ आना‘‘ अर्थात उनके साथ एकत्रित होना‘‘ जहां दो या तीन एकत्रित होते मेरे नाम से वहां मैं उनके मध्य उपस्थित होता हूँ। तब मुझे अंग्रेजी का शब्द ‘‘कंग्रीगेशन‘‘ याद आया तो मैंने मक्सीकन बिश्वासियों से पूछा ‘‘इस पद के अनुसार कितने लोगों की जरूरत है जिसे एक कांग्रीगेशन बने? मैं उन के उत्तर के लिये ठहरा था मैं स्वंय अपने प्रश्न का उत्तर अपने दिमाग देकर ताज्जुब कर लिया। केवल दो या तीन एक ‘‘कांग्रीगेशन बन सकते है। एक ऐसी ‘‘कांग्रीगेशन‘‘ जो बिश्वासियों का हां जिन के मध्य में यीशु हो, वह एक चर्च है इसका यह मतलब नही कि कोई भी दो या तीन लोग परन्तु दो या तीन लोग जो यीशु के नाम से बुलाये गये है, क्योंकि वे उसकी सम्पत्ती है।
यीशु उनके साथ: यीशु हमारे अन्दर का अनुभव प्रत्येक को उनकी संगती प्रभु के साथ है। यीशु उनके साथ का वही मतलब एक चर्च के अन्दर यीशु हमारे साथ चल रहा है, वह हमें छू रहा है, बाते पवित्रात्मा के वरदानों द्वारा कर रहा है। यह यीशु अपनी देह में रहते हूए बह रहा है वह है चर्च ‘‘यीशु उनके साथ ‘‘यह सामूहिक अनुभव है। यीशु हमारे अन्दर एक व्यक्तिगत अनुभव है।
जब दो या तीन नया जन्म पाये हुए बिश्वासी एक साथ उसके नाम से आते है यीशु उन के साथ रहता है। यीशु और उस के लाये हो चर्च है। यह अनुभव कुछ कड़क होता है जब यीशु हमारे अन्दर होता है। हम यीशु को अनुभव नही कर सकते जब हम अकेले है। यीशु हमारे साथ अनुभव तभी करते है जब हम दूसरो के साथ संगती करते है कम से कम एक या दो लोग।
क्यों दो और तीन एक साथ कलीसिया / चर्च बन जाते एक पूरे मायने में? हां वे एक चर्च पूरी तरह से बन जाते है। यह एक बुनियादी चर्च है। आप दो या तीन से ज्यादा हो सकते है। तौभी यह फिर भी पूरी तरह से चर्च है परन्तु ये चर्च से बढ़ कर नही क्योंकि यहां दो या तीन से ज्यादा लोग है। यह केवल बड़ा चर्च हो जाता है।
चर्च लीडर की योग्यता: प्रेरित भविष्द्वक्ता, प्रचारक, पास्टर और शिक्षक की क्या योग्यता थी। क्या एक चर्च इन के बिना हो सकता है? हां यह चर्च हो सकता है इन सब लोगों के बिना। इफिसियों का चैथा अध्याय कहता है कि प्रभु ने स्वंय यह वरदान किसी को दिया था जिनका अस्तीत्व पहिले से था। याद रखे यह वरदान बहुत जरूरी है सन्तों को तैयार करने के लिये ताकि कलीसिया की विभिन्न सेवाये जिनके द्वारा गुणत्मक तथा संख्या में बढ़ती गई। एक से अधिक अगुवे होने से कलीसिया में नये अगुवे, परिपक्व और सन्तुलित रीति से तैयार होते जाते है।
जब पौलुस अपनी पहिली मिशनरी यात्रा अन्ताकिया से निकलकर उस ने 4नगरों में कलीसिया स्थापित की, जब वह लौट कर अन्ताकिया आया जो उसने उन नगरो में प्राचिन नियुक्त किये।
यह दर्शाता है कि पवित्रात्मा, जो प्रेरितो के काम पुस्तक का लेखक है जानता था कि इन चर्चो में पहिले अगुवे नही नियुक्त किये गये है।
‘‘और उस नगर में सुसमाचार सुनाने तथा बहुत से चेले बनाने के पश्चात, वे लुस्त्रा, इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए, और चेलों के मनों को स्थिर करते और विश्वास में स्थिर बने रहने के लिए यह कहकर प्रोत्साहित करते रहे, ‘‘हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के रज्य में प्रवेश करना है।‘‘ फिर उन्होने प्रत्येक कलीसिया में प्राचीन नियुक्त कर के उपवास सहित प्रार्थना की, और उन्हें प्रभु के हाथों सौंप दिया जिस पर उन्होंने विश्वास किया था।
प्राचीन उन कलीसियाओं को शिष्यों मे से चुने गये थे जो उन कलीसिया में थे। शिष्य वे लोग थे जिन्हें परमेश्वर ने अन्धकार से ज्योति में बुलाया था। यही लोग ही चर्च बनाते हैं। आप यहां ध्यान से देखे कि प्रेरितों के काम का लेखक शिष्य और चर्च को अदल बदल कर इस्तेमाल करता है।
यह ध्यान दिजिये कि पौलुस इन नये बिश्वासियों की कलीसिया को प्रभु के हाथ में सुरक्षित छोड़ा जिस पर लोगो ने बिश्वास किया था। यह कथन केन्द्र बिन्दू है और इसको पूरी तरह से समझना जरूरी है।
पौलुस फिलिप में कुछ दिन ही रहा और लुदिया बहिन के हाथ में सुरक्षित छोड़ दिया। कलीसिया यही से पूरे यूरोप में फैल गई।
हम जो कलीसिया की अगुवाई करते है कभी हम गनती से ज्यादा महत्व अपने ऊपर डालते है। हम जब सोच लेते है कि कलीसिया हमारे पूरे निगरानी के बिना मन्डली चल नही सकती।
एक बिशप, प्राचीन या पास्टर एक निरिक्षण करने वाला और भोजन खिलाने वाला है। वह एक पिता के समान या नर्स के आत्मिक बच्चों की देख रेख करता है। किन्तु एक सीमा तक आत्मिक निगरानी होनी चाहिए। बहुत से अगुवे बहुदा बार एक सीमा का उलंघन करते है। सब से बड़ी गलती चर्च के अगुवे करते है वह यह है कि हम लोगो की सेवा करने की हैसियत को दूर कर देते हैं। हम सारी योग्यता एक परमेश्वर पादरी के हांथ में सौंप देते है।
तब कैसे एक चर्च अगर हम अनुपयोगी को चर्च से हटा लेते है तब केवल जरूरी रह जाता है। जब हमारे पास यीशु और कम से कम दो लोग रह जायेगें जो उस के नाम से इकट्ठे होते हैं। दो लोग जिन्होंने नया जन्म पाया है और एक मिलते है और यीशु की उपस्थिती को पहिचानते है इस प्रकार का चर्च बिल्कुल बुनियादी स्तर पर है। यह जरूरी नही कि वे कब और कहां दो लोग मिलते है और यीशु को सम्मान देते है तब वह चर्च वैसा है जैसा मानों बहुत लोगो के साथ।
इसका यह मतलब नही कि प्रभु इस तरह के स्तर पर हर समय कार्य करना चाहता है। परमेश्वर का धन्यवाद हो जहां ज्यादा लोग होते है। परन्तु हमें बुनियादी चर्च को कभी नही भूलना चाहिए। अगर हम मूलते है तो हम रीति रिवाज एक ढांचा धार्मिक पद्यति, संस्कार धार्मिकता और कानून में बन्ध जाते है।
कलीसिया का क्या आदेश है और अगुवे कैसे कार्यभार संभालते है।
यह अच्छा होगा कि हम लोगो को जातियों को शिष्य बनाने का आदेश दिया गया है। इसलिये, सन्तो को तैयार करने का मुख्य कार्य कलीसिया को दिया गया है। इसलिये प्रभु ने स्वंय कलीसिया को तैयार करने का वरदान दिया गया है। लीडर को काम करने का उत्तरदाइत्व केवल इतवार की सभा को चलाने का ही नही परन्तु सन्तों को बुरी तरह से भूल गये इसलिये जातियों को शिष्य बनाने का काम अधूरा रह गया है।
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