स्वर्ग के फाटक

स्वर्ग के फाटक
जब याकूब वीरान में लुज़ नामक नगर के पास सो रहा था ता उसने सपने में स्वर्ग से पृथ्वी पर स्वर्गदूतों को एक सीढ़ी से उतरते चढ़ते देख। याकूब ने उस स्थान को बेतेल अर्थात् ‘‘परमेश्वर का घर’’ कहा। प्रभु यीशु ने नथानियेल से कहा कि तू मुझ पर स्वर्गदूतों को उतरता चढ़ता देखेगा (यूहन्ना 1ः 51)। अब आप परमेश्वर के चलते फिरते मंदिर हैं।

‘‘और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध ? क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर के मन्दिर हैं; जैसे परमेश्वर ने कहा है कि मैं उन में बसूंगा और उन में चला फिरा करूंगा; और मैं इन का परमेश्वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे।’’ (2 कुरिन्थियों 6ः 16)

आप जिस घर में प्रवेश करते हो और वहां प्रभु यीशु की आराधना और महिमा होने लगती है तो परमेश्वर अपने स्वर्गदूत वहां आने जाने लगते हैं (निर्गमन 23ः 20)। और वह स्थान ‘‘परमेश्वर का घर’’ बन जाता है। पहले इस घर में दुष्टात्माएं आती जाती थी और लोगों को विनाश की ओर ले जाने की तैयारी में थी परन्तु अब इस स्थान से आपके पड़ोसी सीधा स्वर्ग जा सकते हैं।

‘‘और उपदेश करके उन से कहा, क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा ? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है। (मरकुस 11ः 17)

परमेश्वर ने आपको आपने नगर में इसलिए रखा है कि आप उसके हित के लिए प्रार्थना और प्रयास करें क्योंकि आपके नगर के हित में आपका हित है।

‘‘परमेश्वर जिस नगर में मैं ने तुम को बंधुआ कराके भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो, और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करो। क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल के साथ रहोगे।’’ (यिर्मयाह 29ः 7)
याद रखिए कि आपके नगर का उद्धार आपको असम्भव लगे - परन्तु परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
‘‘यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।’’ (मत्ती 19ः 26)

परमेश्वर ने कहा है कि धर्मीजन की प्रार्थना से नगर आशीषित होता है। 
‘‘सीधे लोगों के आशीर्वाद से नगर की बढ़ती होती है, परन्तु दुष्टों के मुंह की बात से वह ढाया जाता है।’’ (नीतिवचन 11ः 11)

जैसे जैसे विश्वासी लोग अपने नगर को प्रार्थना भ्रमण द्वारा आशीषित करेंगे वैसे वैसे नगर घरेलू कलीसियाओं से भर जाएगी और परमेश्वर की इच्छा वहां पूरी होने लगेगी।

परमेश्वर की सेवकाई एक बगीचे में शुरू हुयी परन्तु उसका अन्त एक नगर में होगा। इसलिए अपने गनर को प्रभु के आगमन के लिए तैयार कर लीजिए।

‘‘प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है कि अन्य जातियों के लिए ज्योति ठहराया है ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो।’’ (प्रेरितों के काम 13ः 47)
याद रखिए कि आप अन्य जातियों के उद्धार के फाटक हैं। बिना आपकी मध्यस्थता के वे ज्योति में प्रवेश नहीं कर सकते।
‘‘इस प्रकार कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गई।’’ (प्रेरितों के काम 16ः 5)
‘‘तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खेजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को चंगा कर दूंगा।’’(2 इतिहास 7ः 14)

इस देश का भविष्य आपके मध्यस्थता की प्रार्थना पर निर्भर करता है।

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