लूका 10ः 1-12

लूका 10ः 1-12

1. इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और शिष्यों को नियुक्त किया। जिस-जिस नगर और स्थान में यीशु स्वयं जाने वाले थे वहाँ उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा।
2. यीशु ने उन से कहा, ‘‘पक्के खेत बहुत हैं, परन्तु मज़दूर थेड़े हैं। इसलिए खेत के स्वामी से प्रार्थना करो कि वह अपने खेत काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।
3. जाओ, देखो, मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेज रहा हूँ।
4. इसलिए न बटुआ, न झोला, न जूते लो, और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।
5. ‘‘जिस किसी घर में तुम प्रवेश करो वहाँ पहले कहो, ‘इस घर का कल्याण हो।’
6. यदि उस घर में कोई कल्याण के योग्य (Huios Eirene = Sonof Peace= शांति का पुत्र) होगा, तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आएगा।
7. उसी घर में रहो। जो कुछ उन से मिले, वही खाओ-पीओ; क्योंकि मज़दूर को अपनी मज़दूरी मिलनी चाहिए। तुम घर-घर न फिरना।
8. ‘‘जब तुम किसी नगर में प्रवेश करो और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत करें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने परोसा जाए, वही खाओ।
9. उस नगर के बीमारों को स्वस्थ करो, और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।’
10. परन्तु जब तुम किसी नगर में प्रवेश करो, और वहाँ के लोग तुम्हारा स्वागत न करें, तो उस नगर के बाजारों में जाकर कहो,।
11. ‘तुम्हारे नगर की धूल भी जो हमारे पांवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। तो भी तुम यह निश्चय जान लो कि परश्वेर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।’’
12. ‘‘मैं तुमसे कहता हूं, उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी।

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