कलीसिया के तीन प्रमुख कार्य
कलीसिया के तीन प्रमुख कार्य
पहला कार्य: आत्माओं का उद्धार कराना।
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लूका 19:10 - प्रभु जी भटकी हुई भेंड़ो का उद्धार कराने आये थे।
प्रेरितों के काम 2:46,47 - प्रतिदिन नये उद्धार पाये हुए, जुड़ते थे।
लूका 15:7, 10 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी प्रकार स्वर्ग में भी उन निन्यानवे धर्मियों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यक्ता नहीं, मन फिराने वाले एक पापी के लिए बढ़कर आनन्द मनाया जाएगा।10 मैं तुम से कहता हूँ कि इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिए भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों की उपस्थिति में आनन्द मनाया जाता है।’’
याकूब 5:20 तो वह यह जान ले कि जो कोई भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह उस के प्राण को मृत्यु से बचाएगा और अनेक पापों पर पर्दा डालेगा।
प्रेरितों के काम 1:8 - उद्धार पाये हुए लोग कलीसिया में चुपचाप नहीं बैठते थे, लेकिन हर जगह अपनी गवाही देते थे।
मत्ती 16:26 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण खोए तो उसे क्या लाभ? अथवा मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?
दूसरा कार्य: उद्धार पाये हुए लोंगो को सेवकाई के लिए तैयार करना, ताकि कलीसिया में उन्नति हो।
इफिसियों 4:11-13 - 11 उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार - सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और शिक्षक नियुक्त करके दे दिया, 12 जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए और मसीह की देह उन्नति पाए, 13 जब तक कि हम सब के सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएँ, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ।
विश्वास संख्या में : प्रेरितों के काम 16:5,
पृथ्वी के छोर तक मेरे गवाह: प्रेरितों के काम 1:8,
तुम मसीह की देह हो: 1कुरिन्थियों 12ः27,
विश्वास करने वालों में ये चिन्ह होंगे: मरकुस 16ः17,
मसीह की पहचान पवित्र आत्मा का फल : गलातियों 5ः22,
भ्रष्ट लोग: प्रेरितों के काम 5:1-10,
यहोवा का कोप : यशायाह 26ः20
2तिमुथियुस 2:2 - और जो बातें तू ने बहुत गवाहों के साम्हने मुझ से सुनी है, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे, जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों।
तीसरा कार्य: भेजना
यूहन्ना 20:21 - यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।
अपनी कलीसिया के लोंगो को तैयार करके भेजो, ताकि वे सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाकर प्रभु जी के महान आदेश को पूरा कर सकें। (मत्ती 28:18-20 के अनुसार)
यह महत्वपूर्ण नहीं है, कि अपनी कलीसिया में कितने लोग आते है, परन्तु कितने लोंग शिष्य बनाने के लिए भेजे जाते है, यह सही कलीसिया की पहचान है।
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