खुली कलीसिया (OPEN CHURCH)
खुली कलीसिया (OPEN CHURCH)
झोला भरो अभियान
भारत की जनसख्या 100 करोड़ से ज्यादा है जिसमें देशी-विदेशी प्रचारको की मेहनत से पिछले 200 वर्षो में केवल 2,3% यानी 2.3 करोड़ नामधारी इसाई बने जबकि 97.5% अभी भी अंधकार में हैं। इसमे एक करोड़ प्रोटेस्टेन्ट है और बाकी आधे से ज्यादा केथोलिक हैं। मात्र 13 % मसीही उत्तर भारत में है बाकी 87% या तो दक्षिण भारत में या फिर उत्तर पूर्वी प्रांतो में रहते हैं। इनमें से अधिकांश सदस्य या तो तेव्हारीलाल हैं और बाकी बैंच गरम करने वाले इतवारीलाल हैं । इन सारे चर्चो की स्थिती चिन्ताजनक है क्योंकि इनकी सख्यां में लगातार गिरावट हो रही है, खास करके युवा वर्ग मे इसके लिए कोई रूची नही है और जो माता पिता के दबाव से चर्च आते हैं वे बाहर मोटर साईकल मे बैठ कर गपियाते रहते हैं। निश्चित रूप से एक जमाने में जो कलीसिया ज्योति का कारण थी वो स्वंय अंधकार के ओर अग्रसर हैं और उनका भविष्य संकट में है और कई लुप्त होने के कगार पर हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि इस आपातकाल स्थिती में पहूँचने के बाद भी क्षेत्रीय या प्रान्तीय या राष्ट्रीय स्तर पर कोई विचार विमर्श या मत्रंना नही होती कि इस चिन्ताजनक स्थिति के लिए कोई हल निकलतें। जबकी दूसरे धर्मो के सांप्रदायिक संगठनो की रणनीति पर समय बे-समय बैठक होती रहती है और उसके सफलता या कमजोरी का गंभीरता से मूल्याकंन होता रहता है और जो खामिया पाई जाती हैं उनके सुधार के लिए उचित उपाय निकालते हैं।
मसीहियों मे भी अनेक सभाएं होती रहती है जैसे रविवारीय सभा, भाईयों की, बहनो की, जवानो की और धार्मिक जागृती सभा इत्यादि पर दुःख की बात यह है कि कलीसिया के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए रणनीति बनाने के लिए विचार विमर्श या मंत्रना कभी नही करते। इस कारण वर्तमान कलीसिया के पास अपनी उन्नती के ना कोई लक्ष्य है और ना लिए कोई रणनीति है। प्रभु ने अपने कलीसिया को लक्ष्य दिया है, ‘‘कि जाओ और सब जाति के लोगों को शिष्य बनाओ और उन्हें बपतिस्मा दो और उन्हें आज्ञाकारी बनाकर शिष्य बनाने के लिए भेज दो’’ (मत्ती 28:18,20; यूहन्ना 20:21)। यदि इस लक्ष्य का पालन हर एक विश्वासी गंभीरता और तत्परता से करता तो उसका झोला शिष्यों से भर जाता और आज भारत में परमेश्वर का राज्य होता और हर आबादी में प्रभु की महिमा होती। जो कलीसिया इस लक्ष्य की उपेक्षा करती है उन्हें परमेश्वर पिता भी त्याग देता है और उनकी स्थिती दैनीय हो जाती है। (होशे 4:6)
खुशी की बात यह है कि अब अन्य जातियों में से नयी फौज तैय्यार हो रही है। मसीही कलीसिया तेजी से गांवो और शहरी मोहल्लों में फैल रही हैं जो आज के अन्य जातियों से आए नये नवाड़ी मसीहियों की मेहनत का फल है। इन नये मसीहियों में अपने रिश्तेदारों और बिरादरी के लोगो को प्रभु में लाने का बोझ होता है, जिसकी वज़ह से वे अत्याधिक सताव भी सहते हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि इस तरह की छोटी-छोटी गृह कलीसिया पिछले 10-15 सालों में भारत के छः लाख गांवोे, मे से करीबन 2 लाख गांवो तक पहुंच चुकी हैं। कहीं ज्यादा हैं, कहीं कम और कहीं अंधकार है। ये कलीसियायें दिखाई नही पड़ती क्योंकि इनके पास ना भवन है, ना पास्टर, ना रविवारीय आराधना लेकिन ये कहीं भी, कभी भी एकत्रित होती है और कोई भी अगुवाई करता है। प्रभु ने वायदा किया है कि जहां दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते है वहां मै उपस्थित हो जाता हूँ (मत्ती 18:18.20)। इनका लक्ष्य चंदा देने वाले मेम्बर बनाना नही लेकिन ऐसे शिष्य बनाना जो पीढ़ी दर पीढ़ी शिष्य बनाने की क्षमता रखते हैं (2तिमोथी 2ः2)। इनके पास बाईबल का उतना ज्ञान भी नही और न साधन लेकिन इनका झोला फलों से लदा रहता है फिलिप्पियों 4:17। यदि आपके आस पास की आबादी में लोग अंधकार और मृत्यु की छाया मे बैठे हैं तो उनका हिसाब आपसे लिया जायेगा इसलिये वहां जाकर अपना झोला भरना आपके और उनके, दोनों के हित मे हैं। परमेश्वर पिता को मात्र बाईबल के ज्ञाता नही लेकिन झोलाछाप समर्पित लोग चाहिये।
पाश्चात्य नमुने के अनुसार, पुलपिट, शोरगुल के साथ गाना बजाना, केवल वचन से प्रचार करना और पर्चा बांट कर आ जाना, ये पूरी बाईबल मे कहीं नही पाया जाता। लूका 9 में प्रभु जी ने 12 चेलों को बिमारों को चंगा करने और दुष्ट आत्माओं को निकालने की सामर्थ देकर खाली झोले के साथ भेज दिया। लूका 10 में जब वे वापस आये तो उनके झोले में 70-72 शिष्य भरे थे जिन्हें प्रभु जी ने हिदायत देकर फिर से खाली झोले के साथ वापस शिष्य बनाने के लिए भेज दिया। हमें मालूम नही कि उन्होंने कितने और श्ष्यि बनाए लेकिन ये तो पक्का है कि वे खाली झोला लेकर वापस नही आये होंगे, बल्कि शिष्य बनाने का आंदोलन शुरू करके वापस आये होंगे। पौलूस कहता है कि मैने केवल वचन से नही बल्कि सामर्थ के कामों के द्वारा पूरा पूरा प्रचार किया है (रोमियों 15:19-20) इस फलदायक पद्धति के लिए हर एक मसीहियांे को प्रशिक्षण की जरूरत पड़ेगी।
अब नये सरकार के आते ही सताव का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। भारत के छः लाख गांवो और शहरों के 4 लाख मुहल्लों मे पहुंचने के लिए उन समर्पित लागों की जरूरत पड़ेगी जो इस्साकार के समान समयों और कालो को समझते हैं और सांप के तरह चतुर और कबूतर की नाई भोले होकर हिकमत और बुद्धिमानी से बिना शोर शराबा किये परमेश्वर के राज्य को लाने के लिए कुर्बानी देने को तैय्यार हैं (1इतिहास 12र:32; रोमियो 12:1-2)।
ये काम गुनगुने इसाई नही कर सकते हैं जो प्रभु के काम से छः दिन की छुट्टी मनाते हैं और सातवे दिन आराम करते हैं और ना वे लीडर जिनकी प्रतिदिन की दुआ है कि ‘‘शुक्र हो खुदा तेरा और पेट भरते रहे मेरा’’। हर कलीसिया में चंद ऐसे समर्पित सदस्य होते है जिन्हें प्रभु के राज्य को बढ़ाने की तीव्र इच्छा होती है लेकिन शिष्य बनाने के प्रशिक्षण के अभाव में कलीसिया में बेंच गरम करते रह जाते हैं। यदि भारत के 2.5 करोड़ इसाईयों में से मुट्ठी भर मसीही भी आज्ञाकारी होकर भटकी हुई भेंड़ो को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कराने का बोझ लेकर चलें तो लाखों की फौज़ तैय्यार हो जायेगी और परमेश्वर के दर्शन के अनुसार हर एक जाति, कुल, गोत्र और भाषा के लोगों में उसकी गवाही होने में देर नही लगेगी क्या आप इस चुनौती को लेने के लिए तैय्यार हैं?
प्रभुजी दाखलता हैं और उनमें चार किस्म की डालियां हैं। पहिली डाली जिसमें कोई फल नही है। उसे वह काटकर आग में डाल देगा यानी नरक में डाल देगा। अधिकांश इसाई इस वर्ग में आते हैं। दूसरी डाली जिसमे थोड़े से फल हंै, उस डाली को छाटता है यानी दुःख देता है ताकि और फल लाए। तीसरी डाली वो है जो बहुतायत से फल लाती है याने मेम्बर बनाते है लेकिन शिष्य बनाने वाले शिष्य नही बनाते और शिष्यता की प्रशीक्षण की कमी के कारण बहुत से सड़ गल जाते हंै याने वे बेफल हो जाते है या अपने पुराने बिरादरी में वापस चले जाते हैं। चैथी डाली वह है जिन्हें प्रभु ने चुना है कि वे तीस गुणा, साठ गुणा, और सौ गुणा ऐसे फल लाते है जो बना रहता याने वे शिष्य बनाने वाले शिष्य होते है। (यूहन्ना 15:1.8,16)
बहुत से सुन्दर सुन्दर गीत गाने और पुलपिट से जोरदार भाषण देने से काम नही होगा क्योंकि इससे कोई फल नही फलता यानी कोई आत्मा नही बचाई जाती। समय आ गया है कि इससे पहिले कि आपकी कलीसिया का अंतकाल हो जाये और उसे दफनाना पड़े, कुछ बुनियादी परिर्वतन लाना जरूरी है। प्रभु जी इस दुनियां में भटके हुवों को खोजने और उनका उद्धार करने आये इसलिए हर एक मसीही का फर्ज बनता है कि वह भी अपने प्रभु का अनुसरण करें। बहुत से गीत और लम्बा भाषण के बदले 1कुरिन्थियों 14:26-32 के मुताबिक सदस्यों को गवाही देने का पर्याप्त मौका दिया जाये कि उन्होंने अपने पड़ौस में या जहां वे काम करते हैं या कहीं और प्रभु के राज्य को बढ़ाने का सप्ताह भर में क्या प्रयत्न किया है। खुली कलीसिया में सब लोग खुलकर भाग लेते है इस लिए इतवारीलाल को दैनिकलाल फलदायक मसीही बनाने का यह एक अचूक तरीका है। खुली कलीसिया पाश्चात्य नमूने में लिप्त रूढ़ीवादी इसाईयों के गले शायद न उतरे परन्तु प्रभु जी या पतरस या पौलुस, मंदिर और आराधनालयों में खुला वार्तालाप और वाद-विवाद करते थे। इस पद्धति से मजबूत श्ष्यि तैय्यार होते हैं। (प्रे.काम 17:1,2;18:4;19:1-10)
प्रभु जी ने कहा कि मेरा घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा, लेकिन तुमने इसे डाकुओं की खोह बना दिया है (मरकुस 11:17)। इसलिए आपको अपना चर्च और अपना घर अन्यजातियों के उद्धार के लिए खोलना पड़ेगा कि वे प्रार्थना कराने आएं और शारिरिक और आत्मिक चंगाई और उद्धार पाएं। इसके लिए आपको कलीसिया के कुछ चुने हुए लोंगो को, जिनको बुलाहट है, शिष्य बनाने का प्रशीक्षण उनके द्वारा दिलाना पढ़ेगा जिनके झोले अन्य जाति के फलों से लदे हुए है। प्रशीक्षण लेना अत्यंत आवश्यक है जैसे इलेक्ट्रीशियन या कम्प्यूटर या नर्स या टीचर बनने के लिए प्रशीक्षण लेना जरूरी हैं। आप अपना आपरेशन किसी नीम हकीम डाक्टर से नही करवाओगे। वैसे मनुष्यों के मछुवारे बनने के लिए प्रशीक्षण जरूरी है। ये केवल बाईबल काॅलेज के क्लास रूम की किताबी शिक्षा नही हैं लेकिन खेत मे फसल काटने का व्यवहारिक अभ्यास करना है। (इफीसियों 4:10; यूहन्ना 4:35)
हर महिने में एक सप्ताह 6 से 8 बजे शाम को यदि आपके चर्च मे प्रशिक्षण मिले तो बैंच गरम करने वाला नामधारी इसाई, कामधारी मसीही में परिवर्तित हो जायेगा और एक शिष्य बनाने वाली फौज़ तैय्यार हो जाएगी जिसके पास दुनियां को उलट पुलट करने की योग्यता होगी और वे भारत में परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने में सक्षम होंगे (प्रे.काम 17:6)। प्रभु जी ने शुरू से अपने शिष्यों को अपना लक्ष्य बता दिया था कि वे उनको मनुष्यों के मछुवे बनाएंगे (मत्ती 4:19)। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वे अपने शिष्यों को प्रतिदिन नगर नगर ले जाते थे। याद रखिये कि न्याय के दिन आपका मुल्यांकण आपके धार्मिकता से नही बल्कि फलों से होगा। इसलिये मनुष्यों के निपुण मछुवे बनने का प्रशीक्षण योग्य प्रेरितों के द्वारा शीध्र लेने की कोशिश करें, ताकि जिस दिन आप परमेश्वर के न्याय के तख्त के सामने खड़े होंगे तो आपका झोला शिष्यों से भरा रहेगा। (मत्ती 7:20)
शलोम, झोलावाला
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