आप याज़क और अधिकारी हैं मात्र लेमेन नहीं

आप याज़क और अधिकारी हैं मात्र लेमेन नहीं

हर एक मसीही एक पुरोहित: सर्वशक्तिमान परमेश्वर पिता के आप एक राजदूत और राजपदधारी याजक तथा अपने नगर के अधिकारी है। इसे आप कभी न भूलिए। आप कभी भी किसी चर्च के लेमेन नहीं है। लेमेन वह होता है जो एक कलीसिया की मात्र संख्या बढ़ाता है, नियमानुसार चंदा देता है और रविवार को स्वाद रहित और बिना सामर्थ के भाषण सुनता है परन्तु उसके स्वयं का कलीसिया में कोई अस्तित्व और अधिकार नहीं होता।

जब एक ब्राह्मण एक बस्ती में रहने लगता है तो उस बस्ती के आस-पास के सब गावों में मालूम हो जाता है कि पुजारी वहाँ आ गया है।

दुःख की बात यह है कि एक मसीही को खुद ही पता नहीं कि वह सर्वप्रधान परमेश्वर का याजक और अधिकारी है तो उस बस्ती के लोगों को कैसे आभास होगा कि हमारे मध्य एक मसीही पुरोहित रहता है ?

‘‘पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग और (परमेश्वर की) प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।’’(1 पतरस 2ः 9)
‘‘इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा ...और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा।’’ (उत्पत्ति 22ः 17)

आपको इसलिए राजपदधारी याजक नियुक्त किया गया है कि आप जहाँ भी हो वहाँ पर परमेश्वर के गुण प्रगट करो।
याजक का चुनाव: जब मूसा  पर्वत पर परमेश्वर से बाते कर रहा था तो सारा इस्राएल पाप में गिर गया। उन्होंने सोने का बैल बनाकर उसकी पूजा की और नाचा, गाया और व्यभिचार किया। मूसा ने इस पाप को देख कर आव्हान किया कि जो कोई परमेश्वर की ओर है वह तलवार उठा ले और अपने की विद्रोही भाई, मित्र, पड़ोसी का घात करे। केवल लेवी के वंश के लोगों ही ने मूसा की चुनौती का साथ दिया और उन्होंने उसी दिन तीन हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात परमेश्वर ने लेवियों को याजकीय सेवा के लिए चुन लिया क्योंकि वे परमेश्वर का अपमान किसी भी हालत में सहने को तैयार नहीं थे। ग्यारह गोत्रों को परमेश्वर ने कनान देश में जमीन दिया परन्तु लेवी गोत्र को नहीं दिया क्योंकि वे सब गोत्रों के मध्य सेवकाई के लिए चुने गए। परमेश्वर ने याजकों को अपनी निज सम्पत्ति कहा। (निर्गमन 32ः 26-28)

प्रभुजी ने भी कहा कि जो मुझ से अधिक अपने माता या पिता, पुत्र या पुत्री से प्रेम करता है वह मेरे योग्य नहीं है और जो अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे नहीं चलता वह मेरे योग्य नहीं। (मत्ती 10ः 37-38)

आज हमें तलवार इत्यादि शारीरिक हथियारों की आवश्यकता नहीं है परन्तु हमारे पास वचन की दो धारी तलवार है जिससे हम उन सारी शक्तियों को नष्ट कर देते हैं जो परमेश्वर का अपमान करते हैं।

इसलिए याजकीय सेवा के लिये चुना जाना एक बहुत गंभीर उत्तरदायित्व है। परन्तु इस उत्तरदायित्व की अपेक्षा करना और उसके प्रति उदासीनता दिखाने का नतीजा हमारे लिये और भी गंभीर हो सकता है।

जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्रात्मा के भागी हो गए हैं, और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आने वाले युग की सामर्थो का स्वाद चख चुके हैं यदि वे भटक जाएं तो उन्हें मन-फिराव के लिये फिर नया बनाना अनहोना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रकट में उस पर कलंक लगाते हैं। (इब्रानियों 6ः 4-6)

तेरे द्वारा भूमंडल के सारे आशीष पायेंगे: हर एक मसीही को परमेश्वर द्वारा दिए गए याजकीय अधिकार का हमेशा आभस रहना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने इब्राहीम से बाचा बांधी और आशीष दी कि तू और तेरी संतान इस भूमंडल के समस्त कुलों के लिए आशीष का कारण बनेंगे।

‘‘और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे।’’ (उत्पत्ति 12ः 3)

इस्राएल को परमेश्वर ने सब घरानों को आशीष देने के लिए चुना परन्तु उन्होंने सारी आशीष स्वार्थ पूर्वक अपने लिए समेट लिया और अन्य जातियों को तुच्छ जाना। इसलिए परमेश्वर ने इस्राएलियों के ऊपर से आशीष उठा ली और आज तबाही की स्थिति में हैं।

इब्राहीम की संतान अन्य जातियों के लिए आशीष का कारण:
वर्तमान में हम लोग नए इस्राएल हैं और हम इब्राहीम की संतान हैं।
‘‘और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।’’ (गलातियों 3ः 29)

हमें भी वही जिम्मेदारी मिली है कि हम अन्य जातियों के हर कुलों के लिए आशीष का कारण बने। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो हमारे ऊपर से भी आशीष उठा ली जाएगी।

जो स्वार्थी कलीसियाएं और मसीही अन्य जातियों के उद्धार के बोझ को त्याग देते हैं तो परमेश्वर भी उन पर से आशीष उठा लेता है और उनमें अनेक समस्याएं और अशांति आ जाती है।

‘‘जो और समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी है।’’ (इफिसियों 3ः 5-6)

अन्य जाति के लोगों को सुसमाचार द्वारा मसीह की देह में पूरी तरह से सम्मिलित करना - सही तरह से उन्हें आशीषित करना है।

मसीहयों द्वारा यीशु मसीह की आशीष अन्य जातियों तक: हर एक मसीही को याद रहना चाहिए और एक दूसरे को याद दिलाना चाहिए कि वे परम प्रधान के राजदूत और याजक हैं। हमे न केवल अपना अस्तित्व जानना है परन्तु अन्य जातियों के लिए याजकीय उत्तरदायित्व भी सम्भालना चाहिए।

‘‘यह इसलिये हुआ, कि इब्राहीम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पहुंचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसकी प्रतिज्ञा हुई।’’ (गलातिया 3ः 13)

आपके अन्यजाति पड़ोसियों के लिए आप याजक हैं: परमेश्वर ने एक ही खून से अनेक जातियों को इसी समय में उनके निवास स्थानों को आपके पड़ोस में ठहराया है और आपको याजक नियुक्त किया है।

‘‘उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्धा है कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोलकर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं!’’ (प्रेरितों के काम 17ः 26-27)

परमेश्वर मनुष्यों द्वारा बनाए आराधनालयों में नहीं रहता और न वह मनुष्यों के हाथों के दानों को ग्रहण करता है क्योंकि उसे इन चीजों की जरूरत नहीं है क्योंकि वह स्वयं हमें जीवन और श्वास और सब कुछ देता है।
‘‘जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता।’’ (प्रेरितों के काम 17ः 24)

अब मनुष्य का हृदय परमेश्वर का मंदिर हो गया है। अपने पड़ोसियों के हृदय को बदल कर परमेश्वर का मंदिर बनाना आपकी याजकीय सेवा है। उसके लिए उसे केवल टूटा और पिसा हुआ मन चाहिए।

‘‘ क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में निवास करता है ? यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नष्ट करेगा तो परमेश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मंदिर पवित्र है, और वह तुम हो!’’ (1 कुरिन्थियों 3ः 16-17)

‘‘टुआ मन परमेश्वर के याग्य बलिदान है ? हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।’’ (भजन संहिता 51ः 17)

परमेश्वर ने इन सारी अन्यजातियों को आपके सिवाने (बस्ती) के अन्दर इसलिए रखा है कि आप उन्हें सम्पूर्ण याजकीय सेवकाई प्रदान करें। कि उन्हीं सिवानों के अंदर वे पश्चाताप करें, प्रभु पर विश्वास करें। वहीं पर बपतिस्मा लें और वहीं पर कलीसिया स्थापित करें और उन्नति करें। क्योंकि वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो।

परमेश्वर ने कहा ‘‘परन्तु जिस नगर में मैंने तुम को बंधुआ करा के भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो, और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करों। क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल के साथ रहोगे।’’ (यिर्मयाह 29ः 7)

‘‘प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।’’(2 पतरस 3ः 9)

प्रभु देरी नहीं करता। उसके वापस आने में हम देरी करा रहें हैं क्योंकि अपनी याजकीय सेवा द्वारा हमने अपने पड़ोसियों को अभी तक आशीषित ही नहीं किया। प्रभुजी तो चाहते हैं कि हम उन के जल्द जाने का प्रयत्न करें।
‘‘उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता निवास करेगी।’’ (2 पतरस 3ः 12)

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