प्रभुजी द्वारा मनोनीत कलीसिया रोपण की विधि

प्रभुजी द्वारा मनोनीत कलीसिया रोपण की विधि

(लूका 10 पर आधारित)

1. पहले अपने ही जाति और मित्रों में भेजिए: मत्ती 10 और लूका 9 में प्रभुजी ने 12 शिष्यों को चंगाई और दुष्टात्माओं को खदेड़ कर निकाल भगाने का अधिकार दिया और उन्हें परमेश्वर का राज्य स्थापित करने के लिए इस्राएलियों के मध्य भेजा। लूका 10 में वे सत्तर लोगों को अन्य जातियों के मध्य भेज रहे हैं।

2. दो शिष्य पर्याप्त हैं: प्रभुजी ने सत्तर लोगों को परमेश्वर का राज्य स्थापित करने के लिए दो-दो जन के झुंड में भेज दिया। उन्होंने भीड़ को ले जाने की सलाह नहीं दी जो गलती हम अक्सर करते हैं। हमरा लक्ष्य फसल काटने के लिए मज़दूर तैयार करना है न कि भजन कीर्तन करना है। मज़दूर तैयार करने के लिए दो विश्वासी पर्याप्त हैं।

‘‘और इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहां उन्हें दो-दो करके अपने आगे भेजा।’’ (लूक 10ः 1)

अन्ताकिया कि कलीसिया अन्य जातियों के मध्य सब से पहिली कलीसियास थी। उसके स्थापित होने के कुछ ही समय बाद उन्होंने पौलुस और बरनबास जैसे वरिष्ट दो मिशनरियों को कलीसिया रोपण के लिए भेज दिया।

‘‘तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना की और बरनबास और शाऊल पर हाथ रखे और उन्हें विदा किया।’’ (प्रेरितों के काम 13ः 3) 

पौलूस हमेशा एक या दो साथियों के साथ चलता थ। यदि ज़्यादा लाग हो गये तो उन्हें यहाँ वहाँ भेज देता था। एक समय चार जन हो गए तो आपस में झगड़ा हो गया परन्तु प्रभु का काम नहीं रूका क्योंकि वे दो-दो जन का दल बना कर अलग-अलग स्थान कलीसिया रोपण के लिए निकल गए। (प्रेरितों के काम 15ः 39)

3. फसल तैयार है: प्रभुजी ने बताया कि फसल तैयार खड़ी है बस उसे काटने की देरी है।
‘‘क्या तुम नहीं कहते, कि कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं ? देखो, मैं तुमसे कहता हूं, अपनी आँखे उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं।’’ (यूहन्ना 4ः 35)

हम अधिकतर इस नकारात्मक विचार को जानते हैं कि लोग अभी तैयार नहीं हैं या कट्टर हैं। इसलिए कोई खास फल प्राप्त नहीं होता है। यदि हम प्रभु के सकारात्मक विचार से जांए कि फसल तैयार खड़ी है तो अत्याधिक सफलता प्राप्त होगी।

प्रभु के शिष्य जहाँ भी जाते थे तो मात्र प्रचार करने के लिए नहीं जाते थे। जहाँ भी वे जाते थे तो एक शांति की संतान को खोज निकालते थे और वहाँ कलीसिया खड़ी कर देते थे।

‘‘और लुदिया नाम थुआथीरा नगर की बैंजनी कपड़े बचनेवाली एक भक्त स्त्री थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए। और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो; और वह हमें मनाकर ले गई।’’ (प्रेरितों के काम 16ः 14-15)

4. लक्ष्य-मज़दूर तैयार करना: प्रभुजी ने बताया कि फसल काटने में सबसे बड़ी कठिनाई मज़दूरों की कमी है। इसलिए आप जब परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने जाते हैं तो आपका मुख्य लक्ष्य मज़दूर तैयार करना है। अच्छा मज़दूर मेहनती आदमी होता। प्रभु ने मछुवारों को मज़दूर तैयार किया क्योंकि वे रात दिन ज़ोखिम और संकट में काम करने वाले थे।

‘‘और उसने उससे कहा; पक्के खेत बहुत हैं; परन्तु मज़दूर थेड़े है: इसलिये खेत के स्वामी से बिनती करो, कि वह अपने खेत काटने को मज़दूर भेज दे।’’ (लूका 10ः 2)

अंग्रेजी भाषा में श्। थ्मूश् का अर्थ होता है ‘‘थोड़ा’’ परन्तु श्थ्मूश् का अर्थ होता है ‘‘नगण्य या महत्वहीन’’। आज की सही स्थिति यह है कि ईसाई तो बहुत हैं परन्तु अन्य जातियों में से फसल काटने वाले नगण्य हैं।

यदि मसीही, फसल काटे वाले मज़दूर बन जांए तो इसी पीढ़ी में सारे संसार में परमेश्वर का राज्य स्थापित हो सकता है। हर रविवार को आराम से मात्र चर्च जाने से और सप्ताह भर प्रभु के काम से विश्राम करने से यह दर्शन एक सपना ही बन कर रह जाएगा।

पौलुस जहाँ-जहाँ भी गया वहाँ वह तब तक रहा जब तक कि स्थानीय लोग अपनी स्वयं की कलीसिया चलाने के योग्य नहीं हो जाते थे उसके बाद वह शीघ्र वहाँ से प्रस्थान कर देता था।

‘‘और उन्होंने हर एक कलीसया में उनके लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके, उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था।’’ (प्रेरितों के काम 14ः 23)

पौलुस और बरनबास और उनके साथियों ने अपने मात्र 15 साल की सेवकाई में यहाँ वहाँ जाकर यरूशलेम से लेकर रोम तक सारे देशों को कलीसियाओं से भर दिया। इसमें से चार साल उन्होंने जेल में काटे और वहाँ भी कलीसिया रोपण किया। (प्रेरितों के काम 16ः 25-34)

‘‘और चिन्हों और अद्भुत कामों की सामर्थ से, और पवित्रात्मा की सामर्थ से मेरे ही द्वारा किए: यहां तक कि मैंने यरूशलेम से लेकर चारों ओर इल्लुरिकुम तक मसीह के सुसमाचार का पूरा-पूरा प्रचार किया। पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊं; ऐसा न हो, कि दूसरे की नीव पर घर बनाऊं।’’ (रोमियों 15ः 19-20)

पौलुस के समान हर एक विश्वासी का लक्ष्य होना चाहिए कि जहाँ अभी कलीसिया नहीं है वहाँ एक घरेलू कलीसिया खड़ी करे।

पौलुस के पृथ्वी की छोर तक के दर्शन के विपरीत आज का पासबान, गर्व से कहता है कि वह एक ही स्थान से, सप्ताह के एक ही दिन, एक ही मंडली को पंद्रह साल भाषण देता है परन्तु कलीसिया की कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती।

यर्थात् में पौलुस एक स्थान में दो या चार माह की व्यतीत करता था। तत्पश्चात् वह कलीसिया को स्थानीय मंडली के हाथ में छोड़ कर चला जाता था। परन्तु फिर भी स्थानीय कलीसिया बड़ी तेजी से उन्नति करती थी। कुछ समय पश्चात् वह फिर आकर या तीमोथी या तीतुस को भेजकर वहाँ स्थानीय धर्म ;म्सकमतेद्ध वृद्ध नियुक्त करता था। उसने कभी किसी बाहर के अगुवे को किसी कलीसिया पर नहीं थोपा।

‘‘मैं इसलिये तुझे क्रेते में छोड़ आया था कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारे, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त करे।’’ (तीतुस 1ः 5)

वैसे भी इस कलीसियाओं में बिशप, प्राचीन, डीकन इत्यादि उपाधियों का उपयोग नहीं होता था और न पौलुस या पतरस, कोई नेता या अगुवा नियुक्त करते थे। सब लोग एक दूसरे को भाई या बहिन कहते थे और संगति को बिरादरी करते थे। (प्रेरितों के काम 15ः 1, 3, 7, 13, 22, 23, 32, 33, 36, 40)

यदि आप पासवान हो या साधारण सदस्य और सालो-साल एक ही जगह में डटे हुए हैं तो आप नए नियम के सिद्धान्तों से काम नहीं कर रहे हैं। जैसे ही एक कलीसिया सध जाती है तो आपको आगे बढ़ जाना चाहिए। इस पद्धति से सारा क्षेत्र परमेश्वर की महिमा से भर जाएगा।

5. गुप्त प्रवेश: प्रभुजी ने कहा कि जब तुम परमेश्वर का राज्य स्थापित करने जाते हो तो अपनेसाथ व्यर्थ के सामान साथ न ले जाना। इसके विपरीत हम नाना प्रकर के ढोल ढमाके और हल्ला करने के यंत्र साथ में ले जाते हैं और सोते हुए शैतान को जगा देते हैं जिससे अनेक प्रकर का विरोध खड़ा हो जाता है।
.....न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो।’’ (लूक 10ः 4)

याद रखिए कि आपका लक्ष्य मीटिंग चलाने का नहीं परन्तु ऐसे स्थानीय योग्य मज़दूर तैयार करना है जो खेत की देख-रेख कर सकें और फसल काट सकें।

आपका लक्ष्य है कि उसी स्थन पर गुप्त कलीसिया स्थापित करें। हो हल्ला करने से उन पर सताव आ जाता है।
‘‘जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूंढते भी न थे उन्हों ने मुझे पा लिया, और जो जाति मेरी नहीं कहलाई थी, उस से भी मैं कहता हूं, देख, मैं उपस्थित हूं।’’ (यशायाह 65ः 1)

प्रभु ने हमें शिष्य बनाने का आदेश दिया है न कि हल्ला करने का। प्रभु द्वारा मनोनीत तरीके से शिष्य बनाने से हमारे बस्तियों में ऐसे-ऐसे स्थानों में कलीसियांए स्थापित हो जाती हैं जहाँ लोग सच्चे प्रभु को ढूंढते भी न थे।

6. भेड़ियों को न जगाएं: प्रभुजी ने कहा कि रास्ते में किसी को नमस्कर न करना। उहोंने जताया कि आप मेम्ने के रूप में जा रहे हैं और वहाँ भेड़िये आपका इन्तज़ार कर रहे हैं। इसलिए चुपचाप जाना। चुपचाप जाने का एक और कारण हो सकता है कि आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए रास्ते भर प्रार्थना में लवलीन हों। प्रभु के इस आदेश के विपरीत हम भीड़-भाड़ ले जाते हैं जो रास्ते भर हल्ला करते हैं और भेड़ियों को सतर्क कर देते हैं।

7. बलवन्त को बांधिये: रास्ते में प्रार्थना न करने से और वहाँ की दुष्टात्माओं को बांधकर नहीं खदेड़ने से यात्रा तो विफल हो ही जाती है बरन सताव भी उभर जाता है। प्रभुजी ने कहा कि जब तक तुम ‘‘बलवन्त’’ (दुष्टआत्मा) को बांध नहीं दोगे तब तक उसका माल अर्थात् लोगों को उसके वश से कैसे छीनोंगे ? याद रखिए कि ‘‘बलवन्त’’ अस्त्र-शस्त्र से पूरी रतह लेस होकर लोगों को अपने वश में रखता है। उसके हथियार झूठ और धोखा है क्योंकि शैतान झूठों का पिता है। जैसे उसने हमारी मूल माता हव्वा को झूठ बोलकर धोखा दिया वैसे ही आज भी वह लोगों को धोके में रखता है।

‘‘या क्योंकर कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट सकता है जब तक कि पहिले उस बलवन्त को न बान्ध लो ? और तब वह उसका घर लूट लेगा’’ (मत्ती 12ः 29)

क्योंकि आप पवित्रात्मा की सामर्थ में जा रहे हैं इसलिए आप ज़्यादा शक्तिशाली हैं। इसलिए जिन लोगों को बलवंत ने झूठ और धोके से अपने कब्जे में रखा उन्हें आप सत्य से आसानी से छुटकारा दिला सकते हैं। परन्तु बिना सत्य और असत्य, ज्योति और अंधकार से संघर्ष के यह सम्भव नहीं है।

‘‘जब बलवन्त मनुष्य हथियार बान्धे हुए अपने घर की रखवाली करता है, तो उसकी संपत्ति सुरक्षित रहती है। पर जब उससे बढ़कर कोई और बलवन्त चढ़ाई करके उसे जीत लेता है, तो उसके वे हथियार जिन पर उसका भरोसा था, छीन लेता है और उसकी संपत्ति लूटकर बांट देता है।’’ (लूका 11ः 21-22)

जब तक दुष्टात्माएं घर में बैठी हैं तब तक प्रभु के वचन का प्रकाश वहाँ प्रवेश नहीं कर सकता।
जब तक आप ‘‘बलवन्त’’ को बांधकर नहीं निकाल कर भगाएंगे तब तक परमेश्वर का राज्य वहाँ नहीं आ सकता। किसी भी घर में प्रवेश करने से पहिले प्रार्थना यात्रा द्वारा सारे दुष्टात्माओं को बांधिए, और उनके गढ़ों को ढ़ा दीजिए और उनकी सारी कल्पनाओं को जो परमेश्वर के विरूद्ध हैं उन्हें भी कैद कीजिए। यह सारी प्रक्रिया प्रभु यीशु के नाम से, मेम्ने के लहू से, वचन से और परमेश्वर की महिमा तथा अपनी गवाही से कीजिए।

‘‘पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुंचा है। या क्योंकर कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल (मनुष्य) लूट सकात है तब कि पहिले उस बलवन्त को न बान्ध ले ? और तब वह उसका घर लूट लेगा।’’ (मत्ती 12ः 28-29)

याद रखिए कि बलवन्त का घर मनुष्य का हृदय होता है। ‘‘तब दुष्टात्मा कहती है, ‘मैं अपने उसी घर में जहाँ से निकली थी, लौट जाऊंगी।’ जब वह लोटती है तब उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है।’’ (मत्ती 12ः 44)

परमेश्वर ने जब इब्राहीम को आशीष दिया तो कहा कि तेरी संतान अपने शत्रु (शैतान) के फाटकों पर प्रबल होंगे।
आपके पड़ोसी के घरों में जो जो फाटक दुष्टात्माओं के प्रवेश के लिए स्थापित किए गए हैं उन्हें बंद करना एक विश्वासी का काम है।

‘‘इस करण .....तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों (फाटकों) का अधिकारी हो: और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।’’ (उत्पत्ति 22ः 17-18)

यदि आप विश्वासी हैं तो दुष्टात्मा निकाल भगाना आपका प्राथमिक अधिकार है।
‘‘और विश्वास करने वालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे।’’ (मरकुस 16ः 17)

तीन स्तरीय संघर्ष

पहला-मानसिक स्तर: इस संसार के ईश्वर (शैतान) ने नाश होने वालों की ‘‘बुद्धि’’ को अंधा कर दिया है .....।
‘‘और उन अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।’’ (2 कुरिन्थियों 4ः 4)

हमारा संघर्ष शरीर से नहीं है इसएिल हमारे हथियार शारीरिक नहीं है। हम कल्पनाओं और विचारों और भावनाओं के ‘‘मानसिक गढ़ों’’ को पवित्रात्मा की सामर्थ से ढा देने में सक्षम है।

जब तक मानसिक गढ़ नहीं टूटेंगे तब तक हमारा पड़ोसी सुसमाचार को सुन नहीं सकता और सुनने पर समझ नहीं सकता और समझने पर ग्रहण नहीं कर सकता और ग्रहण करने केबाद फलवंत नहीं बन सकता।

उसके सारे गलत विचारों, कल्पनाओं और भावनाओं को प्रभुजी के नाम, लहु, वचन, प्रार्थना, पवित्रात्मा की सहायता और अपनी गवाही से कैद करके नष्ट कर दीएि। इसके बद ही उनकी बुद्धि की आँखे खुल जायेंगी और परमेश्वर का तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उस पर चमक सकेगा।

‘‘क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढ़ा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊँची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।’’ (2 कुरिन्थियों 10ः 3-5)

शाऊल को ‘‘धार्मिक दुष्टात्ओं’’ (Religious Spirits) ने पकड़ लिया था जिसके वश में हाकर वह प्रभु की कलीसिया को नाश करने में लगा था। इसमें शक नहीं कि हजारों प्रताड़ित विश्वासी उसके लिए प्रार्थना कर रहे थे। फलस्वरूप परमेश्वर ने हस्तक्षेप किया। उसके आँखों से अंधकार की पापड़ी गिरी और उसका हृदय परिवर्तन हो गया और वह शाऊल से बदल कर पौलुस हो गया।

आज भरमाने वाली ‘धार्मिक दुष्टात्माओं’ ने अनेक लोगों को अपने वश में कर रखा है और उनके विचारों, कल्पनाओं और भावनओं पर पूरा नियंत्रन रखा है।

‘‘परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।’’ (1 तीमुथियुस 4ः 1)
इन ‘‘विचारों के गढ़ों’’ का जो परमेश्वर के विरूद्ध हैं उनका खंडन करना परम प्रधान के याजकों का परम कत्र्तव्य है।

‘‘सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते है; और हर एक भवना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।’’ (2 कुरिन्थियों 10ः 5)

यदि गलत विचार वाले व्यक्ति आपके सामने हैं तो आप आत्मिक हथियारों से उसके ‘‘गलत’’ विचारों के गढ़ों’’ को ढाते जाइये।

दूसारा-सांस्कृतिक स्तर (Redeeming the Culture) : प्रत्येक समाज के लोगों को अपने संस्कृति की बड़ी आस्था होती है। परन्तु शैतान उन्हें सच्चाई से कहीं न कहीं भटका देता है। किसी को नदी, पत्थर, पहाड़ वुक्ष की पूजा करने भेज देता है तो कि सी को कब्र में चादर चढ़ाने तो कहीं ईसाइयों को चर्च में प्रति रविवार मूक दर्शक की नाई चर्च में बैठा देता है जिससे वे ‘‘जाकर सब जातियों के लोगों को शिष्य बनाने’’ में असमर्थ हो जाते हैं। आत्मिक हथयारों से ‘‘सांस्कृतिक गढ़ों’’ को नाश करना आवश्यक है क्योंकि उनके नाश किए बिना समाज को स्वतंत्रता नहीं मिलती।

इफिसियों नगर में डायना देवी का विशाल मंदिर था। उसके द्वारा वहाँ का सारा व्यापार और संस्कृति चलती थी। वहाँ पर कुछ झाड़ा फूकी करने वालों ने प्रभुजी और पौलुस के नाम से दुष्टात्मा को निकालने की कोशिश की तो दुष्टात्मा ने उन्हें पिटाई लगाई और नंगे भगाया। इसका वहाँ पर इतना असर पड़ा कि जादू टोन्हा वालों ने पचास हज़ार चांदी के सिक्के के तुल्य अपनी पुस्तकें जला दी। धीरे-धीरे में डायना की पूजा बंद हो गयी। इस आत्मिक संघर्ष के बाद ही इफिसियों में एक अत्यन्त प्रभावशाली कलीसिया स्थापित हुई। (प्रेरितों के काम 19ः 11-20)

संस्कृति में जो जो अच्छी बाते हैं या जो परमेश्वर की महिमा में बाधक नहीं है उन्हें वचन और प्रार्थना द्वारा पवित्र (Sanctify) कीजिए।

‘‘जो ब्याह करने से रोकेंगे, और भोजन की कुछ वस्तुओं से परे रहने की आज्ञा देंगे; जिन्हें परमेश्वर ने इसलिये सृजा कि विश्वासी, और सत्य केपहिचानने वाले उन्हें धन्यवाद के साथ खाएं। क्योंकि परमेश्वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी हैः और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं; पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए। क्योंकि परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के द्वारा हो जाती है।’’ (1 तीमुथियुस 4ः 3-5)

नए नियम में अन्य जातियों पर केवल निम्न लिखित बातें थोपी जा सकती हैं।

‘‘इसलिये मेरा विचार यह हैं, कि अन्य जायितों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दुःख न दें। परन्तु उन्हें लिख भेजें, कि वे मूरतों की अशुद्धिताओं और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के मांस से और लोहू से परे रहें।’’ (प्रेरितों के काम 15ः 19-20)

यदि आप उनके बपतिस्मा से पहिले सिंदूर, मांग भरना या मंगलसूत्र और चूड़ी उतारने के लिये बाध्य करते हैं तो बाइबल के आदेश के विपरीत काम करते हैं।

‘‘क्योंकि सब से स्वतंत्र होने पर भी मैं ने अपने आप को सब का दास बना दिया है; कि अधिक लोगों को खींच लाऊं। मैं निर्बलों के लिये निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊं, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।’’ (1 कुरिन्थियों 9ः 19, 22)

तीसरा-क्षेत्रीय (Territorial Spirits)  स्तर: जब दनियेल धर्मशास्त्र को पढ़ रहा था तो उसे समझ आया कि परदेश में सत्तर साल पूरे हो गये हैं और अब उन्हें यरूशलेम वापस जाने की तैयारी करनी है। उसने उपवास और प्रार्थना शुरू किया। तीन सप्ताह बाद एक स्वर्गदूत ने आकर दानियेल को बताया कि ‘‘उसकी प्रार्थना पहले दिन से सुन ली गयी थी। परन्तु ‘‘पारस देश के प्रधान’’ ने मुझे आकाश में रोक लिया थ। फिर मिकाइल ने आकर मेरी सहायता की तब मैं आने पाया। अब मुझे यहाँ से यूनान जाना है और अब ‘‘यूनान देश का प्रधान’’ रास्ते में संघर्ष करेगा।’’ (दानिय्यल 10ः 12-13, 20)

इस तरह हर क्षेत्र में शैतान के प्रधान होते हैं। आपके क्षेत्र में एक या अनेक बलवन्त जरूर तैनात होंगे जो वहाँ की गति विधियों पर नियंत्रण रखते हैं।

‘‘क्योंकि महारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।’’ (इफिसियों 6ः 12)

बिना क्षेत्रीय ताकतों को तोड़े-कलीसिया अधोलोक के फाटकों पर प्रबल नहीं हो सकती।
सारे आत्मिक हथियारों को पहिनकर योजनाबद्ध रणनीति से, आकाश की शाक्तियों को नष्ट करना हर एक कलीसिया का काम है।

‘‘उसके प्रधानताओं और अधिकारों अपने ऊपर से उतार कर उनका खुल्लम खुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय जयकार की ध्वनी सुनाई।’’ (कुलुस्सियों 2ः 15)

‘‘किन्तु अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का नाना प्रकर का ज्ञान, उन प्रधानों और अधिकारियों पर, जो स्वर्गीय स्थानों में हैं, प्रकट किया जाए।’’ (इफिसियों 3ः 10)

शैतान तो हारा हुआ है अब हमें उसे पुनः नहीं हराना है। हमें उस ‘‘आकाश के अधिकरी शासक’’ अर्थात् शैतान को मात्र घोषणा करके याद दिलाना है कि वह युद्ध में हार चुका है और उसे और उसके साथियों को यह क्षेत्र खाली करना है जिससे परमेश्वर का राज्य इस क्षेत्र में स्थतिप हो जाए। (इफिसियों 2ः 2)

‘‘इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भग निकलेगा।’’ (याकूब 4ः 7)

8. ‘‘शांति का घर’’: प्रभुजी ने सिखाया कि गाँव या बस्ती में जाने के बाद सबसे पहिला और प्रमुख कार्य ‘‘शांति के घर’’ की खोज करो।

इस ‘‘शान्ति की संतान के निवास’’ में परमेश्वर के राज्य की स्थापना केसारे कार्यक्रम होंगे।
यदि एक घराना आपका स्वागत करता है और आपके भोजन और ठहरने का निमंत्रण देता है तो आप जान जाएंगे कि परमेश्वर ने इसी घर को घरेलू कलीसिया के स्थापना के लिए चुन लिया है। यदि पहिले प्रयास में ‘‘शान्ति की संतान’’ का घर नहीं मिलता है तो इसका मतलब यही हो सकता है कि आपने वहाँ के दुष्टात्माओं और बलवंत को पूरी तरह से बांधकर नहीं निकाल भगाया। इसलिए जब तक ‘‘शांति के संतान’’ का घर नहीं मिल जाता तब तक ‘‘प्रार्थना भ्रमण’’ जारी रहना चाहिए।

‘‘जिस किसी घर में जाओ, पहिले कहो, कि इस घर का कल्याण (Eirene=शांति) हो। यदि वहां कोई कल्याण के योग्य होगा (Huios Eirene=शांति की संतान) तो तुम्हारा कल्याण उस घर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। (लूका 10ः 5-6)

जब पौलुस और बरनबास अपनी पहली यात्रा में पाफुस नामक स्थान पर पहुंचे और वहाँ पर बर-यीशु नामक एक यहूदी जादू-टोन्हा करने वाला थ जिसने उनका विरोध किया परन्तु पौलूस ने पवित्रत्मा की अगुवाई से उसे थोड़े समय के लिए अन्धा बना दिया। शैतान के दास और प्रभु के दासों के बीच इस आत्मिक युद्ध से वहाँ का सुबेदार इतना प्रभावित हुआ कि वह एक ‘‘शान्ति का संतान’’ बन गया और उसके वहाँ की कलीसिया की अगुवाई की।

पौलुस भी उस सुबेदार के विश्वास से इतना प्रभावित हुआ कि एक ही महिने के प्रशिक्षण के बाद उसने वहाँ की कलीसिया को उसके हाथ छोड़कर आगे चला गया और वहाँ कभी वापस नहीं आया परन्तु बरनबास दो साल बाद आया तो इस दौरान सारे कुप्रुस टापु में कलीसिया फैल चुकी थी।

‘‘तब (कुप्रुस टापु के) सूबेदार ने जो हुआ था, देखकर और प्रभु के उपदेश से चकित हाकर विश्वास किया।’’ (प्रेरितों के काम 13ः 12)

पुराने और नए नियम दोनों में अनेक ‘‘शांति के संतानों’’ का उदाहरण है। पुराने नियम में राहाब वेश्या परमेश्वर के दासों के लिए शांति की संतान बनी। नए नियम में कुरनेलियुस (प्रेरितों के काम 10 वां अध्याय), लुदिया (प्रेरितों के काम 16ः 14-15), फिलीपि का जेलर (प्रेरितों के काम 16ः 25-34), यासून (प्रेरितों के काम 17ः 5-9) जिसके घर पर हमला कर दिया गया था, युस्तुस क्रिसपुस (प्रेरितों के काम 18ः 8), प्रिसका और अक्विला (1 कुरिन्थियों 16ः 19), नुमफास (कुलुस्सियों 4ः 15), एवं (अफफिया फिलेमोन 1ः 2) इत्यादि। इनके घरों में घरेलू कलीसिया चलती थी।

9. आशिष दीजिए: प्रभु ने आज्ञा दी कि जब तुम एक बस्ती में जाते हो तो वहाँ के घरानो को ‘‘तुम्हारा कल्याण हो’’ कहने के द्वारा आशीषित करो। यदि वहाँ पर कल्याण के योग्य इन्सान होगा (शान्ति की संतान =Man of Peace) तो आपका तो आपका कल्याण ठहर जाएगा अन्यथा आपके पास वापस आ जाएगा।

जब एक ब्राह्यण या साधु किसी घर के सामने से निकलता है तो वह अवश्य कहता जाता है कि तुम्हारा कल्याण हो। वह यक नहीं देखता कि वह घराना कल्याण के योग्य है या भ्रष्टाचार से भरा हुआ है। परन्तु कल्याण करने का उसे अधिकार नहीं है और वह अपने स्वार्थ के लिये यह काम करता है।

यथार्त् में यह अधिकार जीवित परमेश्वर के याज़क अर्थात् आपका है। यदि आप अपने अधिकार का उपयोग नहीं करेगें तो दूसरे लोग उस अधिकार का दुरूपयोग रकेंगे।

‘‘जिस किसी घर में जाओ, पहिले कहो, कि इस घर पर कल्याण हो। यदि वहां कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा।’’ (लूका 10ः 5-6)

कल्याण के याग्य व्यक्ति के लिए अंग्रेजी भाषा में (Son of Pence) लिखा हुआ है जिसका विस्तृत अर्थ एक सम्पन्न और वर्चस्व रखने वाले घराने से होता है। कुरनेलियुस, कुप्रुस का सुबेरार, लुदिया इत्यादि सब सम्पन्न और समाज में सम्मानित लोग थे। लुदिया सम्पन्न लोगों के मध्य बैंजनी वस्त्र का व्यापार करती थी। ऐसे लोगों के विश्वास में आने से कलीसिया बड़ी तेजी से उन्नति करती है।

10. भोजन कीजिए: ‘‘शान्ति के घर’’ का दरवाजा खुल जाने के बाद आपका सबसे पहिला काम प्रचार नहीं करना है। आपका सबसे पहिला काम जो भी परोसा जाता है उसका भोजन करना अर्थात् संगति करना है। जब तक आपसी भाई चारा न हो जाए तब तक प्रचार करना व्यर्थ है। हमारे संस्कृति में जातिवाद के कारण अक्सर साथ में भोजन नहीं किया जाता। इसलिए भाईचारे का रिश्ता कायम करना बहुत आवश्यक है। यदि भोजन में मक्खियां भी बैठी हों तो भी प्रेम से खा लीजिए। आपका लक्ष्य भोजन करना नहीं परन्तु भाई चारे का सम्बन्ध स्थापित करना है।

‘‘इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए।’’ (इफिसियों 2ः 19)

‘‘उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ पीओ, क्योंकि मज़दूर को अपनी मज़दूरी मिलनी चाहिए: घर घर न फिरना।’’ (लूका 10ः 7)

प्रभुजी की अधिकांश सेवकाई खाते-पीते हुयी। क्योंकिवे महसूल लेने वाले इत्यादि पापियों के साथ खाते-पीते थे इसलिए उन्हें फरीसियों ने पेटू और पिय्यकड़ कहा।

‘‘प्रभुजी ने कहा कि देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ।’’ (प्रकाशित वाक्य 3ः 20)

‘‘प्रभुजी ने कहा कि मेरा भोजन मेरे पिता की इच्छा को पूरा करना है, जिसने मुझे भेजा है और उस काम को पूरा करना है जो मुझे सौपा गया है’’। (यूहन्ना 4ः 34)

याद रखिए कि परमेश्वर की इच्छा यह है कि वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो। (2 पतरस 3ः 9)

जब तक एक ऐसा ‘‘शान्ति का घर’’ नहीं मिल जाता जहाँ आपका पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित नहीं होता, तब तक आप ‘‘प्रार्थना संघर्ष’’ जारी रखिए।

11. सामर्थ प्रदर्शन द्वारा प्रचार: खाने के बद भी प्रचार का काम शुरू नहीं करिए। प्रभुजी कहते हैं कि पहिले सामर्थ के कार्य करिए। बीमारों की चंगाई के लिए प्रार्थना और दुष्टात्मा से छुटकारा पहिे दिलाना है। जब वहाँ के लोग सामर्थ के काम देखेंगे तो वे स्वयं आपसे प्रभु यीशु के बारे में पूछेंगे। अब आपका खुलकर प्रभु के बारे में बताएं। याद रखिए कि अभी भी आपका मुख्य उद्देश्य प्रचार करना नहीं है परन्तु ‘‘शान्ति के संतान’’ और उसके साथियों को मज़दूर तैयार करना है।

फिलिप्पुस जब सामरिया नगर में प्रचार करने के लिये निकला तो बहुतों में से अशुद्ध आत्माएं बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकली और बहुत से झोले के मारे हुए और लंगड़े भी चंगे हुए। इससे उस नगर में बड़ा आनन्द हुआ और बहुतों ने विश्वास किया। बाद में पतरस ने जाकर सामरिया की कलीसिया स्थापित किया। (प्रेरितों के काम 8ः 5-8)
‘‘वहां के बीमारों को चंगा करोः और उनसे कहो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।’’ (लूका 10ः 9)

12. घर-घर न जाइये: प्रभुजी कहते हैं कि उसी घर में रहिये और वहीं से बिदा लीजिए। घर-घर न जाइये। ठीक इसके विपरीत हम लोग घर-घर जाकर लोगों को हमारी मीटिंग में आने के लिए बाध्य करते हैं। पतरस जब कुरनेलियुस के घर गया तो कुरनेलियुस ने अपने रिस्तेदारों और संगी साथियों को बुलाया। कुरनेलियुस एक ‘‘शान्ति के संतान’’ का अच्छा उदाहरण है और उसका घर ‘‘शान्ति का घर’’ कहलाया क्योंकि अवश्य है कि पतरस के जाने के बाद वहाँ पर घरेलू कलीसिया स्थापित हो गई (प्रेरितों को काम 10ः वां अध्याय)। आपको घर-घर जाने आवश्यकता नहीं है। जब ‘‘शान्ति का पुत्र’’ प्रशिक्षित हो जाएगा तब वह स्वयं पड़ोसियों के घर-घर जाकर एक कलीसिया स्थापित कर लेगा।

13. शान्ति की संतान को प्रशिक्षण दीजिए: ‘‘शान्ति के घर’’ के योग्य व्यक्ति को वचन तथा प्रार्थना करना सिखाईये। आप जब चले जाएंगे तो वह ‘‘शान्ति का घराना’’ वहाँ के लोगों के लिए प्रार्थना और शिक्षा का केन्द्र बना रहेगा। यदि आप ही हमेशा मीटिंग चलाते रहेंगे और स्थानीय व्यक्ति को फसल काटने वाला मज़दूर तैयार नहीं करेंगे तो निकाली हुई दुष्टात्माएं वापस आकर आपकी सारी मेहनत को झाडू लगा कर साफ कर देंगी और उस गाँव की स्थिति पहिले से बत्तर हो जाएगी।

‘‘जब अशुद्ध आत्मा मनुष्यों में से निकल जाती है, जो सूखी जगहों में विश्राम ढूंढती फिरती है, और पाती नहीं। तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहां से निकली थी, लौट जाऊंगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया पाती है। तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उसमें बैठकर वहाँ बास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहिले से भी बुरी हो जाती है; इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।’’ (मत्ती 12ः 43-45)

इस आज्ञा के अव्हेहना से और स्थानीय याजक तैयार नहीं करने के करण आज अनेक कलीसियाएं पिछड़ गयी है और लोग वापस संसार में चले गए। स्थानीय याजक तैयार नहीं करना यह एक गहन अपराध है।

प्रशिक्षण देने का अर्थ यह नहीं कि आप भाषण दें और बाकी लोग मूक दशक होकर आपका उद्बोधन सुने। पौलुस वार्तालाप (Dialogue) के द्वारा प्रशिक्षण देता था, इसलिए उसके शिष्य अपने विश्वास में बड़े मज़बूत होते थे।

‘‘सप्ताह के पहले दिन हम रोटी तोड़ने के लिए इकट्ठे हुए। पौलुस ने लोगों से बातें (Dialogue) कीं। वह दूसरे दिन त्रोआस नगर से चले जानेवाले थे, इसलिये वह आधी रात तक बातें (क्पंसवहनमत्र)करते रहें।’’ (प्रेरितों के काम 20ः 7)

14. सर्वेक्षण कीजिए: याद रखिए कि आपके बस्ती के हर एक गढ़ को और अधोलोक के फाटकों को प्रार्थना और वचनों से नष्ट करना आवश्यक है। अंधविश्वास, जादू-टोना, प्रकृति पूजा, दारू और नशीली वस्तुओं के अड्डे, वेश्या गमन, व्यभिचार, अश्लील विडियों, सिनेमा, लूट-पाट स्थान, भ्रष्टाचार, शोषण, हिंसा, जातिवाद, ऊँच-नीच, छुआछूत इत्यादि-इत्यादि के दुष्टात्माओं को बांधना और खदेड़ कर अलग करना आपका पहिला काम है (लूका 10ः 9)। याद कीजिए कि अभी आपकी बस्ती शैतान के कब्जे में है। उसने वहाँ बहुत से गढ़ बनाया है। जब तक दुष्टात्माओं के गढ़ नष्ट नहीं हो जाते तब तक परमेश्वर का राज्य स्थापित नहीं हो सकता।

‘‘पर यदि मैं परमेश्वर के आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुंचा है।’’ (मत्ती 12ः 28)

परमेश्वर की आज्ञानुसार यहोशू ने पुरनियो को कनान देश का सर्वेक्षण करने भेजा और उनसे लिखित रिपोर्ट मांगी।
‘‘तो वे पुरूष उठकर चल दिए; और जो उस देश का हाल (सर्वेक्षण) लिखने को चले। उन्हें यहोशू ने यह आज्ञा दी, कि जाकर देश में घूमो फिरो, और उसका हाल (सर्वेक्षण) लिखकर मेरे पास लौट आओ; और मैं यहाँ शीलो में यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिये चिट्ठी डालंगा। तब वे पुरूष चल दिए और उस देश में घूमे, और उसके नगरों के सात भाग करके उनका हाल (सर्वेक्षण) पुस्तक में लिखकर शीलो की छावनी में यहोशू के पास आए।’’ (यहोशू 18ः 8-9)

सर्वेक्षण के बद ही आपके पास सही जानकारी होगी जिससे आप योजना बद्ध तरीके से दुष्ट के सब गढ़ों को ढ़ा सकेंगे। सब जूओं के टूटने के बाद ही वहाँ परमेश्वर का राज्य आ पड़ेगा।

‘‘.....अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालें का जूआ तोड़कर उन्हें छुड़ा देना और सब जूओं को टुकड़े कर देना।’’ (यशायाह 58ः 6)

15. आशीष दीजिए - कोसिये नहीं: हमाको किसी को कोसने का अधिकार नहीं है क्योंकि जो हमें कोसेगा उसे परमेश्वर स्वयं शापित करेगा। इसलिए हम हर एक कुल का श्राप तोड़कर उन्हें आशीषित करेंगे। यहाँ तक कि बिजली, पानी सड़क इत्यादि की अव्यवस्था होते हुए भी हम उसे कोसेंगे नहीं बरन जैसे है वैसे में ही आशीष देंगे। नतीजा यह होगा कि वह आशीषित होकर सर्वांगीण विकास करेंगे।

‘‘.....यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे, उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दुःखियों को सन्तुष्ट करे, तब अन्धियारे में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा अजियाला हो जाएगा।’’ (यशायाह 58ः 9-10)

परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा कि तू और तेरी संतान संसार के सब कुलों के लिए आशीष का कारण बनेंगे। इस्राएल को परमेश्वर ने पहिले चुना कि वे संसार के सब कुलों के लिए आशीष का कारण बने। परन्तु उन्होंने सारी आशीषों को अपने ही स्वार्थ के लिए काम लाया इसलिए परमेश्वर ने उन्हें त्याग दिया।

अब प्रभु ने अपनी कलीसिया बनाई है और उसे इब्राहीम की संतान कहा (गलातियों 3ः 14, 19)। यदि हम अन्य जातियों के लिए आशीष का कारण नहीं बनेंगे तो हम भी त्याग दिए जाएंगे।

अधिकांश मसीहियों ने सारी आशीषों को अपनी झोली में रख लिया है। यहीं कारण है कि आज बहुत से मसीही परिवार सम्पन्न होते हुए भी पतरस के मार्ग में हैं।

प्रार्थना यात्रा के दौरान आप हर एक घराने को आशीषित करएि। शैतान के बंधनों से छुटकारा दिलाने के द्वारा आप अपने पड़ोसियों के लिए एक बहुत बड़ा आशीष का कारण बन सकते हैं।

16. आप टूटे हुए बाड़े के सुधारक हैं: एक झुग्गी-झोपड़ी में जहाँ चारो ओर गंदगी और शोषण का परिणाम दिखता है, जहाँ गरीबी और हर किस्म का दुःख तथ अंधकार नजर आता है। यदि वहाँ सुसमाचार का प्रकाश पहुंच जाता है तो धीरे-धीरे परमेश्वर का राज्य स्थापित हो जाता है और सारा वातावरण बदल जाता है।

‘‘और मैं ने उन में ऐसा मनुष्य ढूंढ़ना चाहा जो बउड़े को सुधारे और देश के निमित नाके में मेरे साम्हने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पड़े, परन्तु ऐसा कोई न मिला।’’ (यहजकेल 22ः 30)

यथार्थ में आपको कोसने का कोई अधिकार नहीं हैं, क्योंकि नगर की बिगड़ी हालत, उसके टूटे-फूटे मकान और सड़को के सुधारने वाले आप ही हैं। यदि ही हैं यदि आप कोसेंगे तो शाप आप ही को लगेगा।

‘‘और तेरे वंश के लोग बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएंगे; तू पीढ़ी पीढ़ी की पड़ी हुई नेव पर घर उठाएगा, तेरा नाम टूटे हुए बाड़े का सुधारक औरपथों का ठीक करने वाला पड़ेागा।’’ (यशायाह 58ः 12)

हर एक मसीही अपने बाड़े अर्थात् बस्ती का सुधारने वाला याजक है और परमेश्वर ऐसे सुधारकों को खोज रहा है।

17. नगर को प्रार्थना से भर दीजिए: परमेश्वर ने वादया किया है कि -
‘‘तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को चंगा कर दूंगा।’’ (2 इतिहास 7ः 14)

प्रभुजी ने बताया कि जो तुम्हें ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है और जो मुझे ग्रहण करता है वह परमेश्वर पिता को ग्रहण करता है। जो आपका तिरिस्कार करता है और यदि आपने अपने पैरों की धूल को साफ कर दिया तो उस गाँव का विनाश सदोम और गमोरा से भी भयानक हो सकता है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि आप हर घर के सामने प्रार्थना यात्रा करके उस नगर को प्रार्थना से इतना भर दीजिए कि जैसा समुद्र जल से भरा रहता है। धीरे-धीरे परमेश्वर पूरे देश को चंगा कर देगा।

‘‘क्योंकि पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से एकसी भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भर जाता है।’’ (हबकुक 2ः 14
इससे ‘‘शांति के संतान’’ का घर प्रगट हो जाएगा। वहाँ प्रभु के नाम से चिन्ह चमत्कार होंगे - वचन बांटा जाएगा और विश्वासी तैयार होकर अनेक स्थानों में घरेलू कलीसियाएं स्थापित करेंगे। तब तक प्रार्थना संघर्ष जारी रखिए जब तक ‘‘शांति का घराना’’ प्रगट न हो जाए। (लूका 10ः 11,12,16)

18. घरेलू कलीसिया स्थापित कीजिए: आगे प्रभुजी ने आज्ञा दी कि आपके आत्मिक युद्ध के दौरान जो लोग छुटकारा पाते हैं उहें तुरन्त एकत्रित करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता वह बिखेरता है और इतना अच्छा काम करने के बावजूद प्रभु का विरोधी ठहरता है। यही कारण है कि क्रूसेड और यदाकदा आत्मिक सभाओं से कोई स्थायी या दूरगामी परिणाम नहीं मिलता।

हजार लोगों को क्रूसेड में सुसमाचार का स्वाद चखा कर बिखेर देने के बदले एक शांति के संतान के निवास में पड़ोसियों को शिक्षा दीक्षा देना-कहीं ज्यादा फलदयक सिद्ध हो सकता है।
‘‘जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिथराता है।’’ (मत्ती 12ः 30)

‘‘शांति के संतान का निवास’’ आत्मिक फसल बटोर कर उन्हें परमेश्वर के राज्य के निकट लाने का सबसे उत्तम स्थान है। हमेशा याद रखिए की आपका लक्ष्य ‘‘मनुष्यों के मछुए’’ तैयार करना है। शांति का पुत्र/पुत्री के घर में एकत्रित लोगों को प्रार्थना और वचन की सेवकाई करना सिखाएं। वे जाने कि प्रभु ने उन्हें सापों और बिच्छुओं को रौन्दने का और शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है। उन्हें यहाँ तक परिपक्व करें कि वे भी आनन्दित होकर कहें कि हे प्रभु आपके नाम से दुष्टात्माएं भी हमारे वश में हैं। और प्रभु कहे कि इस बात से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गये हैं।

‘‘देखो, मैंने तुम्हें सांपों और बिच्दुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। तौभी इस से आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में परन्तु इससे आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग परलिखे हैं। (लूका 10ः 19-20)

अपने पड़ोसियों का नाम मेम्ने की किताब में लिखाना आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। यही आपके पड़ोसियों के लिए आपकी सही याजकीय सेवकाई है।

19. अपने पड़ोसियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रेम दिखाइये: हमें परमेश्वर ने आज्ञा दी कि हमें अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिए। इसलिए अपने पड़ोस में प्रार्थना यात्रा के दौरान पता चलाते रहिए कि आपके पड़ोसियों को कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और तुरन्त बिना भेद-भाव किये उनकी सहायता कीजिए। इससे अनेक दरवाजे खुल जाएंगे और उनको पता चल जाएगा कि उनका असली पड़ोसी कौन है। (लूका 10ः 27)

यदि आप उपवास करने वाले मसीही हैं तो याद रखिए कि परमेश्वर कहता है कि ‘‘जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालों का जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और सब जूओं को टुकड़े टुकड़े कर देना ? क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर मे लाना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना ? तब मेरा प्रकाश पौ फटने की नाई चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा, तेरा धर्म तेरे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं।’’ (यशायाह 58ः 6-9)

आपका न्याय केवल आपकी धार्मिकता अर्थात् प्रति रविवार चर्च जाना, बाइबल पठन तथ नियमानुसार प्रार्थना करना तथा खराई से चलना इत्यादि से ही नहीं परन्तु बकरी और भेड़ के अंतर के अनुसार होगा अर्थात् जिन्होंने भूखे, प्यासे, बेघर बार, वस्त्रहीन, बीमार, बंदी इत्यादि जरूरत मंद लोगों की प्रत्यक्ष सहायता की। (मत्ती 25ः 31-46)

20. सारी सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से ‘‘परमेश्वर के संतानों’’ के प्रगट होने की प्रतीक्षा कर रही है: परमेश्वर ने अपने लिए हर गाँव और बस्ती और मोहल्ले में ‘‘शांति के संतान’’ को चुन करके रखा है। बस आपका कर्तव्य है कि आप प्रार्थना यात्रा करके इन्हें पहचाने और उनसे सम्पर्क करके उन्हें ‘‘शांति के संतान’’ कुरनेलियुस और लुदिया के समान अभी मसीही नहीं हैं। आपके प्रार्थना और वचनों की सेवकाई से वह बपतिस्मा लेकर ‘‘परमेश्वर की संतान’’ बन जाएंगे। हो सकता है कि जो आज पौलुस के समान विरोधी है वह भी आपकी प्रार्थना और प्रयास से ‘‘परमेश्वर की संतान’’ में बदल सकता है।

‘‘क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है।’’ (रोमियों 8ः 19)
इस पद्धति से सारे गाँव और नगर और सारा देश ‘‘परमेश्वर के संतानों’’ से शीघ्र भर जाएगा और उनके निवास स्थानों में सच्चे और जीवित परमेश्वर की महिमा होने लगेगी।

आपको हर जाति, कुल, गोत्र और भाषा में से लाखों बल्कि करोड़ो यहां तक की अनगिनित लोगों को तैयार करके परमेश्वर के सिहासन के सामने खड़ा करना है। इसलिये आपना दर्शण छोटा न रखें।

‘‘इसके बाद मैंने दृष्टि की, और देखा: हर एक जाति, कुल, राष्ट्र और भाषा बोलनेवालों को एक बड़ी भीड़ आयी। वह इतनी बड़ी थी कि उसको कोई गिन नहीं सकता था। भीड़ के सब प्राणी श्वेत वस्त्र पहिने, और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिए हुए थे। वे सिंहासन के सामने और मेमने के सामने खड़े हो गये।’’ (प्रकशितवाक्य 7ः 9)

21. मेरा घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर: परमेश्वर ने कहा कि मेरा घर सब जातियों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा। हर एकविश्वासी का कार्य है कि वह अपने पडोस में ऐसा ‘‘परमेश्वर का घर’’ स्थापित करे जो फैलते-फैलते पूरे नगर में फैल जाए।

प्रभुजी द्वारा बताई गई यह पद्धति अत्यन्त सरल है और उसमें सफलता पाने के लिए हर एक विश्वासी सक्षम है चाहे वह स्त्री हो या पुरूष, जवान हो या वृद्ध, नया विश्वासी हो या बुजुर्ग, यहाँ तक कि बच्चे भी दूसरे बच्चों को खेलते-खेलते कुशलता से आशीषित करसकते हैं।

कलीसिया रोपण की इस अति सरल विधि को ‘‘परमेश्वर ने धर्म ज्ञानियों और बुद्धिमानों से छिपा रखा परन्तु बालको पर प्रगट किया क्योंकि हे पिता तुझे यही अच्छा लगा।’’ (लूका 10ः 21)

‘‘परन्तु जब पवित्रात्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओंगे, और यरूशलेम (आपकी बस्ती) और सारे यहूदिया (आपका जिला) औरसामरिया में (आपका प्रान्त), और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।’’ (प्रेरितों के काम 1ः 8)

‘‘क्योंकि पृथ्वी (आपकी बस्ती) यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसे समुद्र ज से भर जाता है।’’ (हबक्कूक 2ः 14)

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