याजक के उत्तरदायित्व

याजक के उत्तरदायित्व

1. मध्यस्थता की प्रार्थना: क्योंकि हमारा महायाजक यीशु मसीह आज दो हजार साल से परमेश्वर के दाहिने हाथ बैठकर ‘‘मध्यस्थ्ता की प्रार्थना’’ कर रहा है इसलिए हर एक याजक का भी यही काम है। (इब्रानियों 7ः 25)

यदि भारत का हर एक मसीही यह समझ ले कि उसे अपने पड़ोसियों के लिए मध्यस्थ्ता की प्रार्थना करना उसका उत्तरदायित्व है तो भारत के सारे कुल शीघ्र ही आशीषित हो जाएंगे।


कुलों के लिए मध्यस्थता की प्रार्थना तब तक की जाती है तब तक पड़ोसियों को शैतान के बंधनो से छुटकारा नहीं मिल जाता।

‘‘जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालों को जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जूओं को टुकड़े टुकड़े कर देना ?’’ (यशायाह 58ः 6)

आज हमारे अन्य जाति पड़ोसी और परमेश्वर के बीच एक बड़ी दरार हो गयी है। परमेश्वर आप के जैसे एक ऐसे जन को खोज रहा है जो इस दरार पर खड़ा होकर उसे सुधारे अन्यथा आपके सारे पड़ोसी नाश हो जाएंगे।

‘‘और मैंने उनमें ऐसास मनुष्य ढूढ़ना चाहा जो बड़े को सुधारे और देश के निमित्त नाके में मेरे साम्हने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पड़ा, परन्तु ऐसा कोई न मिला।’’ (यहेजकेल 22ः 30)

परन्तु उनके नाश होने का हिसाब परमेश्वर हम से लेगा अर्थात् उनके उद्धार में ही हमारा उद्धार है।
‘‘जब मैं दुष्ट से कहूं कि तू उसको न चिताए, और न दुष्ट से ऐसी बात कहे जिस से कि वह सचेत हो और अपना दुष्ट मार्ग छोड़कर जीवित रहे, तो वह दुष्ट अपने अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा। (यहेजकेल 3ः 18)

अपने पड़ोसियों के उद्धार के लिए योजनाबद्ध तरीके से मध्यस्थ्ता की प्रार्थना करना, अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करने का पहिला ठोस कदम है।

प्रभुजी ने चलते-चलते यरूशलेम नगर के लिए मध्यस्थता की प्रार्थना की कि ‘‘हे यरूशलेम... जब तक तुम प्रभु के नाम से आने वाले को धन्य नहीं कहोगे तब तक तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता’’ (लूका 11ः 33-35)। कुछ ही समय पश्चात् यरूशलेम नगर और आस-पास के क्षेत्र घरेलू कलीसियाओं से भर गया।

‘‘क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से शिक्षा न देना ? तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षा से भर दिया है और उस व्यक्ति का लोहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।’’ (यहेजकेल 3ः 18)

2. याजक का दूसरा काम सेनाओं के यहोवा के वचन का पंडित:
‘‘क्योंकि याजक को चाहिये कि वह अपने ओंठों से ज्ञान की रक्षा करे, और लोग उसके मुंह से व्यवस्था पूछें, क्योंकि वह सेनाओं के यहोवा का दूत है। परन्तु तुम लोग धर्म के मार्ग से ही हट गए; तुम बहुतों के लिये व्यवस्थ के लिये ठोकर का कारण हुए; .....सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।’’ (मलाकी 2ः 7-8)

‘‘मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नाश हो गई; तू ने मेरे ज्ञान को तुच्छ जाना है, इसलिये मैं तुझे अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराऊंगा। और इसलिये कि तू ने अपने परमेश्वर की व्यवस्था को तज दिया है, मैं भी तेरे लड़केबालों को छोड़ दूंगा।’’ (होशे 4ः 6)

परमेश्वर चाहता है कि आपकी प्रार्थना और आपके ज्ञान से परमेश्वर कानाम अन्य जातियों के बीच महान हो और जो धूप और भेंट गलत स्थान पर चढ़ाए जा रहे हैं वे सृजनहार, परमेश्वर को चढ़ाए जांए।

‘‘क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक अन्यजातियों में मेरा नाम महान होगा, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट चढ़ाई जोयगी; क्योंकि अन्यजातियों में मेरा नाम महान होगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।’’ (मलाकी 1ः 11)

यह तब ही सम्भव है जब आप अपने पड़ोसियों के साथ प्रार्थना और प्रवचन करते हैं।

प्रभु ने महान आदेश दिया कि जाकर सब जातियों को शिष्य बनाओ, उन्हें बपतिस्मा दो और सब बाते जो मैंने आज्ञा दी है, उन्हें मानना सिखाओ (मत्ती 28ः 19)। यदि आप प्रभु क सच्चे शिष्य हैं तो अन्य जातियों को आप प्रभु के आज्ञा मानना सिखाएंगे। परन्तु सिखाने से पहिले आप स्वयं सीखेंगे और उन पर चलेंगे और फिर दूसरों को सिखाएंगे।

पौलुस दावा करता है कि ‘‘ जो जो बाते तुम्हारे लाभ की थी मैं उनको बताने से कभी नहीं झिझका। मैं लोगों के सामने और घर-घर जाकर सिखाता रहा।’’ (प्रेरितों के काम 20ः 20)

आपको प्रभु द्वारा दी गयी कौन-कौन सी आज्ञाएं मालूम है ?

(देखिए: यूहन्ना 13ः 34-35; 15ः 8, 16; भजन संहिता 2ः 8; मरकुस 16ः 15; मत्ती 9ः 37-38; 4ः 17; 19ः 23-24; 5ः 44; 6ः 24, 33; 7ः 13; 9ः 37-38; 28ः 19)

3. याजक का तीसरा काम बलिदान चढ़ाना: प्रत्येक यहूदी को मंदिर में छूछे हाथ आना वर्जित था। उसे साल में कम से कम तीन बर भेड़ या अन्य पशु चढ़ाने के लिये लाना अनिवार्य था (व्यवस्थाविवरण 16ः 16)। क्योंकि प्रभु यीशु मसीह मेमने के समान हामरे लिये बलिदान हो चुके हैं इसलिए आज हमको पशु चढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु अब हम पुजारियों (याजकों) को अन्य जातियों को आत्मिक बलिदान के रूप में चढ़ाना अर्थात् बपतिस्मा देना जरूरी है। (रोमियों 15ः 16)

अपने पड़ोसियों के लिये मध्यस्थ्ता की प्रार्थना द्वारा छुटकरा दिलाकर, उन्हें परमेश्वर के ज्ञान से परिपूर्ण करके और उन्हें बपतिस्मा देकर परमेश्वर के राज्य में सम्मिलित करना, आपकी याजकीय सेवकाई का एक प्रमुख अंग है। (यूहन्ना 3ः 5)

प्रभुजी ने महान आदेश अपने शिष्यों को दिया कि तुम जाकर सब जाति के लोगों को शिष्य बनाओं और उन्हें पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। यदि आप प्रभु के शिष्य हैं तो आपको भी बपतिस्मा देने का पूरा याजकीय अधिकार है। (मत्ती 28ः 19)

4. याजक की चैथी सेवकाई याजकों का समाज तैयार करना और उनकी रखवाली करना: यदि याजक दूसरे याजक को तैयार नहीं करेगा तो याजकी सेवा और समाज समाप्त हो जाएगी। बाइबल हमें साफ सिखाती है कि हम याजकीय वंश और समाज के सदस्य है।

‘‘पर तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिस ने तुम्हें अन्धकर में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।’’ (1 पतरस 2ः 9)

इसलिए हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम अपने बस्ती में परमेश्वर के गुण प्रगट करने के लिए याजकों का समाज तैयार करें।

हमें आदेश मिला है कि ‘‘तुम जाकर सब जातियों के लोगों ो चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ....।’’ (मत्ती 28ः 19)

सब जातियों को शिष्य बनाकर और सब जातियों को बपतिस्मा देकर तथा सब जातियों को आज्ञाकरी बनाने के लिये हमें सब जातियों में से सिखाने योग्य विश्वासियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता पड़ेगी।

पौलूस कहता है कि ‘‘जो बातें तू ने बहुत गवाहों के साम्हने मुझ से सुनी है, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो औरों को भी सिखाने के याग्य हों।’’ (2 तीमुथियुस 2ः 2)

योग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षित करके याजकीय सेवा के लिए तैयार करना एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है।
आप याजक और अपने झुंड की रखवाली करने वाले बिशप या धर्मवृद्ध भी हैं। प्रभु यीशु के खून से खरीदे गए पड़ोसियों की रखवाली करना आपकी ही जिम्मेदारी है।

‘‘क्योंकि मैं परमेश्वर की सम्पूर्ण अभिप्राय को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझक। इसलिये अपनी और पूरे झुंड की चैकसी करो; जिस में पवित्रात्मा ने तुम्हें अध्यक्ष (बिशप) ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है।’’ (प्रेरितों के काम 20ः 7-28)

इब्राहीन ने परमेश्वर से सौदा किया और परमेश्वर ने आश्वासन दिया कि यदि सदोम और गमोरा जैसे पापी नगर में दस विश्वासी जन हो जाएंगे तो वह उन्हें नाश नहीं करेगा।

आपके भी अपने बस्ती को नाश होने से बचाने के लिए कम से कम दस लोगों के उद्धार का लक्ष्य बनाइये।

5. याजक का पाँचवा काम परमेश्वर का राज्य स्थापित करना: प्रभु यीशु मसीह ने हमें कभी आदेश नहीं दिया कि तुम जाकर आत्मा बचाओ या कलीसिया स्थापित करो। उन्होंने हमे सामर्थ और अधिकार दिया कि हम जाकर परमेश्वर का राज्य स्थापित करें (लूका 9ः 1-2)। उनके सिखाए अनुसार हम दो हज़ार साल से प्रार्थना कर रहे हैं कि ‘‘तेरा राज्य आवे, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो।’’ (मत्ती 6ः 10)

हमारा पड़ोस ही अभी हमारी पृथ्वी है जहाँ परमेश्वर का राज्य स्थापित करना है।
अवश्य है कि परमेश्वर का राज्य स्थापित करने के लिए आत्माएं जीतनी पड़ेगी और कलीसिया रोपण करना पड़ेगा परन्तु हमारा लक्ष्य यहीं तक सीमित नहीं है। हमें हमारे बस्ती में परमेश्वर का राज्य स्थापित करना है। प्रभु यीशु मसीह ने अपना लहु केवल आत्मा बचाने के लिए नहीं परन्तु इसलिए बहाया कि वह सारे संसार से मेल-मिलाप कराये जिसके लिए हमें मेल-मिलाप के राजदूत नियुक्त किया गया है।

‘‘और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।’’ (कुलुस्सियों 1ः 20)

‘‘अर्थात् परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।’’ (2 कुरिन्थियों 5ः 19-20)

जब परमेश्वर का राज्य हमारी बस्ती में आ जाएगा तो सारे शैतानिक काम समाप्त हो जाएंगे जैसे: लड़ाई-झगड़ा, अशांति, भ्रष्टाचार, चोरी, गंदगी, लूटपाट, छुआछूत, जातिवाद, अन्धविश्वास, गरीबी, बिमारियां, दुष्टात्माओं का प्रकोप, अज्ञान्ता इत्यादि। इसके बदले हमारे नगर में शांति, समृद्धी, सफाई, सुन्दरता, एकता, प्रेम-भाईचारा, साक्षरता और अच्छे परमेश्चर पर विश्वास इत्यादि। क्योंकि जब लोग सत्य को जानेंगे तो सत्य उन्हें स्वतंत्र करेगा। वे व्यक्तिगत, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक और आत्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे और परमेश्वर की इच्छा पूरी करेंगे। (यूहन्ना 8ः 22)

इतना ही नहीं परन्तु परमेश्वर के राज्य में सड़क, बिजली, पानी, मकान इत्यादि तो आपके आशीष से व्यवस्थित हो ही जाएंगे बरन पेड़, फल और फूल के पौधे, हरियाली तथा खेत भी अच्छी फसल देने लगेंगे और गाय जानवर भी स्वस्थ और अच्छे दूध देने वाले बन जाएंगे।

‘‘उस समय ऐसा होगा कि मनुष्य केवल एक गाय और दो भेड़ों को पाले; और वे इतना दूध देंगी कि वह मक्खन खाया करेगा; क्योंकि जितने इस देश में रह जाएंगे वह सब मक्खन और मधु खाया करेंगे।’’ (यशायाह 7ः 21-22)
यह इसलिए होगा क्योंकि आप सालों से प्रार्थना कर रहें हैं कि ‘‘तेरा राज्य आवे, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी (आपकी बस्ती) में पूरी हो।

परमेश्वर का राज्य आपकी बस्ती, नगर में आपके मात्र परिवारीय आराधना से नहीं होगा। यह तो आपके पड़ोसियों के मध्य प्रतिदिन की याजकीय सेवा से सम्भव है। आपको मात्र राई के दाने के बराबर विश्वास की आवश्यकता है।

जब भी आप घर से बाहर निकलते हैं तो परमेश्वर की महिमा करते जाइये और यदि जीवते परमेश्वर का निरादर होते देखते हैं तो शैतान के कार्यों को नष्ट करते जाइये और परमेश्वर के राज्य की स्थापना के लिए प्रार्थना करते जाईये।
‘‘...परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे।’’ (1 यूहन्ना 3ः 8)

‘‘चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।’’ (यूहन्ना 10ः 10)

‘‘यहोवा ने सिय्योन (आपके नगर) को शान्ति दी है, उस ने उसके सब खण्डहरों को शान्ति दी है; वह उसके (उजाड़ स्थान) जंगल को अदन के समान और उसके निर्जल देश को यहोवा की बाटिका के समान बनाएगा; उस में हर्ष और आनन्द और धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सुनाई पड़ेगा।’’ (यशायाह 51ः 3)

सृष्टि और मनुष्य की रचना के बाद सबसे पहिला काम परमेश्वर ने एक ‘बाग’ की रचना की। यह बाग कितना सुन्दर होगा इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आपके मध्यस्थता की प्रार्थना से पर्यावरण समेत आपका नगर बदल कर कितना सुन्दर हो सकता हैजिसका हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आप याजक हैं परख कर देखिए।

‘‘उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता निवास करेगी।’’ (2 पतरस 3ः 13)

आपके पड़ोसियों का अधिकार है कि वे जीवन पांए और बहुतायत से पांए। यह सब आपकी याजकीय सेवकाई पर निर्भर करता है।

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