अध्यक्ष व उनके कर्तव्य
अध्यक्ष व उनके कर्तव्य
प्रेरितों के काम 20ः8 ‘‘इसलिये अपनी और अपने पूरे झुण्ड की चैकसी करो जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है, कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है।’’
कोई भी कलीसिया अगुवों की नियुक्ति के बिना काम नहीं कर सकती। इसलिए, जैसा कि प्रेरितों के काम 14ः23 संकेत देता है, आत्मा से भरपुर विश्वासियों ने पवित्र आत्मा द्वारा 1तीम. 3ः1-7 और तीत. 1ः5-9 में तय की गई नैतिक योग्यताओं के अनुसार प्रार्थना और उपवास द्वारा परमेश्वर की इच्छा जाननी चाही कि कुछ व्यक्तियों को प्राचीन व अध्यक्ष के पद पर नियुक्त करेंगे। इस कारण, आखिर में वह पवित्र आत्मा ही, है जो किसी को कलीसिया का अध्यक्ष बनाए। इफिसियों के प्राचिनों को पौलुस का आखिरी सम्बोधन प्रेरितों के काम 20ः18-35 पवित्र शास्त्र के उन सिद्धांतो का एक अति उत्तम अंश है कि एक दृश्यमान् कलीसिया में एक अध्यक्ष को कैसे काम करता है। यह काम पुराने नियम के नबियों से कुछ अलग नहीं है।
विश्वास को बढ़ावा देगा।
(1) परमेश्वर का वचन सिखाने द्वारा भेड़ो को चराना, अध्यक्षों की प्रमुख कत्र्तव्यों में से एक है। उन्हें हमेशा यह ध्यान रखने की ज़रूरत हे कि जो झुण्ड उन्हें परमेश्वर ने उन्हें दिया है अपने पुत्र के कीमती खून से खरीदा है। (प्रेरितों के काम 20ः28;1कुर. 6ः20; 1पत.1ः19; 2ः9; प्रे.5ः9)।
(2) पौलुस प्रेरितों के काम 20ः19-27 में, यह वर्णन करते हैं कि उन्होंने इफिसुस में कलीसिया के चरवाहे के रूप में किस तरह सेवकाई की थी; उन्होंने निष्ठापूर्वक इफिसुस के मसीही लोगों को चेतावनी देते और सिखाते हुए परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा को किया (प्रे. 20ः27)। परिणाम स्वरूप वे यह कहने योग्य हुए, ‘‘मैं सब के लहू से निर्दोष हूँ’’ (प्रे. 20ः26)। आज अध्यक्षों को भी आवश्यक रूप से अपनी कलीसियाओं के सामने इसी तरह से परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा की घोषणा करने से झिझकना नही चाहिए। यह ज़रूरी है कि वे ‘‘वचन का प्रचार करें बड़े धैर्य से शिक्षा देते हुए ताड़ना दें, डांटे और समझाएं’’ (2तीम 4ः2), और ऐसा शिक्षक होने से इनकार कर दें जो लोगों को खुश करना और वही कहना चाहते हैं जो वे सुनना चाहते हैं (2तीम 4ः3)।
(3) विश्वास की रक्षा करता। एक सच्चे शिक्षक के लिए यह ज़रूरी है कि वह श्रमपुर्वक भेड़ों की उनके शत्रुओं से रक्षा करें। पौलुस यह जानते है कि कलीसिया के भविष्य में शैतान कलीसिया के अन्दर से ही झूठे शिक्षक खड़े करेगा और बाहर से परमेश्वर के झुण्ड में ऐसे डोंगियों की घुसपैठ करेगा जो बाइबल रहित धर्मसिद्धान्त, सांसारिक विचारधारा और मूर्तिपूजक और मानवता की विचारों से जुड़े हुए होंगे। दोनों ही परमेश्वर के लोगों के बाइबल आधारित विश्वास का नाश करेंगे। पौलुस ने उन्हें ‘‘फाड खानेवाले भेडियों’’ कहा है, अर्थात यह कि वे शक्तिशाली हैं निपटने में मुश्किल है हिंसक और खतरनाक हैं (प्रे. 20ः29; मत्ती 10ः16)। ऐसे व्यक्तियों को मसीह की शिक्षाओं से दूर करेंगे और अपनी तरफ तथा अपने विकृत सुसमाचार की तरफ मोड लेंगे। पौलुस का आग्रहपूर्ण पर एक गंभीर दायित्व डालता है।
(1) सच्चे कलीसिया में केवल वही लोग हैं जो मसीह के अनुग्रह और पवित्र आत्मा की सहभागिता के द्वारा प्रभु यीशु मसीह और परमेश्वर के वचन के प्रति विश्वासयोग्य हैं। आतः परमेश्वर की कलीसिया की रक्षा करने के एक ज़रूरी पहल के रूप में कलीसिया के अगुवों के लिए यह आवश्यक है कि वे कलीसिया के भतर उन्हें, जो परमेश्वर के वचन और प्रेरितों की गवाही के विपरीत शिक्षा देने के द्वारा सत्य को तोडते मरोडते है (प्रे. 20ः30) उन्हें प्रेम में (इफि. 4ः15) और दृढ़तापूर्वक उनका विरोध करते हुए (2तीम.4ः1-4; तीत. 1ः9-11) अनुशासित और शिक्षित करें।
(2) कलीसिया के अगुवे, क्षेत्रीय झुण्डों के रखवाले और प्रशासनिक अधिकारी यह याद रखते हुए भला करते हैं कि प्रभु यीशु ने उनको देखभाल में दिए गए सभी लोगों के जीवनों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया है (प्रे. 20ः26-27; 3ः20-21)। यदि अगुवे कलीसिया के लिए परमेश्वर के पूरे उद्देश्य की घोषणा करने व उसे कार्यशील करने में निष्फल होते हैं (प्रेरितों के काम 20ः27), विशेष रूप में झुण्ड की निगरानी करने के क्षेत्र में (प्रे. 20ः28), तो वे ‘‘सब लोगों के लहू से निर्दोष’’ नहीं होंगे। (प्रेरितों के काम 20ः26; यहेजकेल 34ः1-10)। अन्यथा परमेश्वर उन्हें उन सभी लोगों के लहू का दोषी ठहराएगा जो इस कारण खो गए क्योंकि अगुवों ने उन लोगों से, जो वचन को निर्बल और विकृत करते हैं, झुण्ड की रक्षा करते है इनकार किया (1तीम. 1ः14, प्रे.2ः2)।
(3) कलीसिया को दिशा निर्देश देने के लिये ज़िम्मेदार लोगों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि वे धर्मज्ञान, धर्मसिद्धान्त और नैतिकता से जुड़े मामलों में अनुशासन लागु करें। कलीसिया के उच्च महाविद्यालय, बाइबल प्रशिक्षण केन्द्रो, गुरूकुलों, प्रकाशन संख्याओं और सभी प्रशासनिक ढाँचों में धर्मसिद्धान्त और जीवन की शुद्धता और पवित्र शास्त्र के त्रुटिरहित होने की बात से जुडे रहने की ध्यानपूर्वक रक्षा की जानी चाहिए (2तीम. 1ः13-14)।
(4) यहा मुख्य मुद्दा यह है अलौकिक प्रेरणा से रचे गए पवित्र शास्त्र के प्रति एक व्यक्ति को मनोवृत्ति का, जिसे पौलुस ‘‘अपने अनुग्रह का वचन’’ कहते है (प्रे. 20ः32)। झुठे शिक्षक, रखवाले और अगुवे यह कोशिश करेंगे कि उनकी विनाशक शिक्षाओं और बाइबल विरोधी सिद्धान्तों के द्वारा वे बाइबल के प्रभुत्व को कमजोर करें। परमेश्वर के वचन के पूरे अधिकार का इनकार करने के द्वारा वे इस बात से इनकार करते है, कि जो कुछ बाइबल सिखाती है उसमें वह सच्ची और विश्वासयोग्य है (प्रेरितों काम 20ः28-31; गल. 1ः6; 1तीम. 4ः1; 2तीम 3ः8)। यह आवश्यक है कि ये लोग कलीसिया की खतिर अनुशासित किए जांए व संगति से निकाले जाएं (2यूह. 9-11;गल.1ः9)।
(5) वह कलीसिया, जो कलीसिया को शुद्धता के लिए पवित्र आत्मा की सरगर्म चिन्ता में निष्फल हो जाती है (प्रेरितों के काम 20ः18-35) दृढ़ होकर सत्य में बने रहने से इनकार करते है और पमरेश्वर के वचन के अधिकार को निर्बल बनानेवाले लोगों को अनुशासित करने से पीछे होती है, नए नियम के मानदण्डों के अनुसार एक कलीसिया के तौर पर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। (प्ररितों के काम 12ः5) वह मसीह व पे्ररितों के मूल प्रकाशन के धर्मत्याग की दोषी होगी, नए नियम के उद्देश्य, सामथ्र्य और जीवन से ज़्यादा और ज़्यादा नीचे गिरती जाएगी।
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