दर्शन (लेख पत्र)

दर्शन (लेख पत्र)
महान आदेश कटनी काटने वाले मजदूरों
उद्देश्य:- को और घरेलु कलीसिया रोपण पर आधारित तैयार करना।

सुसमाचार:- संसार के वर्तमान में इतिहास महान आदेश पर आधारित मसीहियत संसार में सब से तेजी से बढ़ने वाला विश्वास आन्दोलन है। भारत के हर राज्य में किसी न किसी तरह का आन्दोलन चल रहा है कही ज्यादा, कहीं कम। 6,38,000 ग्रामों मे 72 प्रतिशत आबादी वास करती है, 8000 नगरों के अलावा। जहां आंध्रप्रदेश के ग्रामों मे 90 प्रतिशत मसीही उपस्थिती है। वहीं बिहार में केवल 20 प्रतिशत गावों में और जम्मू कश्मीर में शुरूवात हो रहा है। किसी एक ग्राम में मसीही उपस्थिती होने का अर्थ वह नही है कि कार्य पूरा हो गया। क्योंकि बहुत राष्ट्र, भाषा और जाति के लोगो तक पहुचना है भारत के हर एक गांव में एक दिया जलाना हमारा तत्काल का लक्ष्य बना रहना चाहिये। जिस तरह से आखिरी दस वर्षों में राज्य की बढ़ोत्तरी हुई है आज के दिन में यह लक्ष्य सम्भव हैं। 

सबसे प्रथम हम परमेश्रवर को धन्यवाद दें कि वचन के प्रति एक भूख और प्यास उत्पन्न किया है। ‘‘प्रभु यहोवा की यह वाणी है ‘‘देखो, ऐसे दिन आनेवाले हैं जबकि मैं इस देश में अकाल भेजूंगा। यह अकाल रोटी य पानी का नहीं वरन् यहोवा के वचन सुनने का होगा’’ (आमोस 8ः11)। दूसरा कि बहुत अगुवे केवल कलीसिया रोपन नहीं, परन्तु आन्दोलन रोपण करने वालें बन गए है। और चेले तैयार करने लगे है। आज हर देश/जाति समूह में एक चेला तैयार करने वाला आन्दोलन है जिनके पास न तो रवीवार सर्वीस, न सुन्दर सुरीले संगीत बाजा, अच्छी ईमारत, न बाईबल स्कूल, न पढ़े लिखे पास्टर और न बाईबल उनके अपने भाषा में है। 

अभी हम यह जानते है कि पश्चात्य और दक्षिण देषों में स्थिरता, सुरक्षा सहारा और सुख अन्त में रूढ़िवाद होकर बरबाद कर देती है। बहुत दुःख की बात है कि बहुत से घरेलू कलीसिया भी रूडीवादी चर्च बन गए है जिसमें ईमारत, पास्टर, दशमांश इत्यादि होता है। ज्यादातर ऐसे चर्च में और खोए हुए में बहुत दूरी होती है जब की वहं। बहुत अच्छे और खरे मसीही उपस्थित है। इन लोगों को अलग कर के उन्हें प्रेरित और सहायक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। जो की भेजे जा सकते है और धन जामा कर सकते है।  

कलीसिया में निष्फल  और आलसी ईसाई चर्च के बैंच मेें सुस्त बैठें रहते है, यह सुख भोग सह नही सकते है। ‘‘परन्तु अपने आपको वचन पर चलने वालें प्रमाणीत करो ना की केवल सुनने वाले जो स्वयं को धोका देते है।’’ (याकूब 1ः22) दूध पीनेवाले ईसायों को दूध छुड़ा कर वचन के शिक्षक बना देना है, ‘‘तुम्हे अब तक तो शिक्षक हो जाना चहिए था, फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें फिर से परमेश्वर के वचन की प्रारंभिक शिक्षा दे तुम्हे ठोस भेजन की आवश्यक्ता नही पर दूध कि आवश्यक्ता है’’ (इब्रा.5ः12) यदि आज एक करोड़ मसीह हर साल में एक ही चेला बनाए, तो इस पीढ़ी में भारत पहुचां जा सकता है। यह इतना सरल है, लेकिन यह होने के लिये हर मसीह में महान आदेश की डी.एन.ए ( खुन में पैत्रिक समावेश ) होना जरूरी है ताकि सुसमाचार शीघ्रता से बढ़े। जितनी हिसंक दशा हो, जैसे अरब देशों में है, उतनी जल्दी और गहरा वचन बढ़ता है। 

बुरा संदेश:- जो विकास हो रहा है उसके लिये एक मूल्य चुकाया जा रहा है है। 2013 में ईसाईयों के विरूध 4000 केस दर्ज हुए जिसमें 7 हत्या भी शामिल है। यह हिंसा सब जगह बढ़ती जा रही है। और मसीहियत का सार्वजनीक प्रदर्शन स्कूलो, अस्पताल, सरकार या कोई जनसभा में रूकावट पैदा करते हैं। मीडिया,पुलिस, कचहरी, ज्यादातर प्रतिकूल होते है और यह दर्शाते है कि प्रत्येक मसीही कार्य धर्म परिर्वतन केवल छल और लालच के कारण से होता है। यदि मसीही विरोधी सरकारें चुनाव में जीत गई तो उनका पहिला लक्ष्य एन्टी कन्वर्सन बिल को पारित करके धर्म परिर्वतन को रोकने का कानून बनायेंगे। सारे भारत में थोड़े समय में चर्च और मिशन में विदेशी धन को रोक देंगे। पाश्चात्य देशों में चर्च और संस्था को टेक्स/ कर माफ करने की रोक लग सकती है। फिर भी आशा है कि राज्य की बढ़ोत्तरी विस्फोटक रूप से हो जाएं।

चुनौती:- आने वाले समय के लिये शिश्यता और धन प्राप्ति के लिये हमारे पास एक नक्शा होना चहिये। हम सुस्त न पाए जांए। हर रूकावट एक मौका प्रस्तुत करता है। इसका यह अर्थ नहीं है हम सताव को खोजे परन्तु जैसे मसीह ने अपने चेलों को आज्ञा दी ‘‘देखो मै तुम्हें भेड़ो के समान भेंडियों के बीच में भेजता हूं इसलिये सर्प के समान चतूर कबूतरों के समान भोले बनों,‘‘ ‘‘ जब कभी वे तुम्हें इस नगर में सताये तो दुसरें मे भाग जाना, क्योंकि मै तुमसे सच कहता हूं कि इससे पूर्ण कि तुम इस्त्राएल के सब नगरों में फिरना समाप्त करों मनुष्य का पुत्र आ जायेगा’’। (मत्ती 10ः16,23)

चुनौती यह है कि महान आदेश की पूर्ती करे और सब जाति के लोगों को शिष्य बनांए बिना भेड़ियो को छेडे़। इसका यह मतलब है कि अदृश्य होकर, बिना पहचान के, रेडार खोज के यत्रं से बच कर, खरगोश की तरह छोटे बिल में बहुत बच्चे पैदा करें। काम करने का सिद्धान्त यह है कि हर जगह, हर समय, हर कोई, हर जाति हर उम्र, ‘‘क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति जाति में मेरा नाम महान होगा और प्रत्येक स्थान में मेरे नाम पर धूप जलाई जायेगी और शुद्ध अन्न बलि चढ़ई जाएगी क्योंकि जाति जाति में मेरा नाम महान होगा सेनाओ के यहोवा का यही वचन है।’’ (मला.1ः11) यीशु मसीह हर जगह स्वर्ग और पृथ्वी की सारी सामर्थ सहित उपस्थित है, जहां दो या तीन उसके नाम से एकत्रित हुए है। यत्रो सिंद्यान्त पर आधारित, हमें यीशु के समान कम से कम एक करोड़ चेले तैयार करना है जो सक्षम और साहसी है जो 50, 100, 1000 और 10,000 आबादी तब पहुचें और एक करोड़ आबादी वाले स्थान हर जगह में जाए। हर क्षेत्र में कम से कम 10 धर्मी लोग रहना चाहिये अपने नगर को बचाने के लिये। यहोवा ने इब्राहिम से वायदा किया था कि यदि 10 धर्मी लोग सदोम और गमोरहा में पाए गए तो वह उन्हें नाश नहीं करेगा। आज के संदर्भ में 10 धर्मी लोग यानि महान आदेश को पूरा करने वाले मसीही ‘‘और मूसा ने सम्पूर्ण इस्त्राएल में से योग्य पूरूशों को चुन लिया और उन्हें हजार हजार सौ सौ पचास पचास, दस दस लोगो पर प्रधान ठहराया’’। ‘‘ उसने कहा हे प्रभु यदि तू क्रोध ना करे तो मै अन्तिम बार कहूंगा, कदाचित वहां 10 ही मिले तो? उसने कहा मै उन दस के कारण भी उनको नष्ट नही करूंगा’’ (निर्गमन 18ः25,उत्पत्ती 18ः32

वर्तमान स्थिती:- बीते वर्षों में हम ने एक करोड़ जल संस्कार का लक्ष्य रखा, क्योंकि यहोवा ने हमें प्रेरित किया कि हजारों चेले बनाने वाले और कलीसिया रोपक तैयार हो जाए। ‘‘इस प्रकार कलीसियाएं विश्वास में दृढ़ होती गई और संख्या में प्रतीदिन बढ़ती गयी’’ प्रे.काम 16ः5 के अनुसार हम चैड़ाई में बढ़ गए, परन्तु गहराई में नही! परिवर्तित लोग तो थे परन्तु महान आदेश को पूरा करने वाले, चेले बनाने वाले और कलीसिया रोपक कम थे। यदि यह सिल सिला चलता रहा तो आफ्रीका के कलीसिया के समान एक मील लम्बा और एक इन्च गहरा होगा। 

कार्य:- अवसर बहुत है और परन्तु उन्हे हमें कब्जा करना जरूरी है। यीशु ने कहा ‘‘मेरे पीछे हो लो और मै तुम्हे मनुष्यों का मछुआरा बनाऊंगा। यीशु मसीह के चेला होना पर्याप्त नही है हर विश्वासी को मसीही के चेले बनाने वाले बन जाना चाहिये। यीशु मसीह ने हजारों को प्रचार किया परन्तु केवल बारह चेलों को चुन लिया जिन्होने दुनिया उलट-पुलट कर दिया। ध्यान रखे कि यीशु मसीह ने अपने चेले धर्मिक संस्था से नहीं चुना परन्तु साधारण कामकाजी लोगो में से चुना जैसे- पतरस और यहून्ना। यद्यपी हम स्वस्थ विश्वासियों को प्रोत्साहित करते है कि वह अपने मन और शरीर को समर्तित करें (लाट्रिया, आराधना / वर्षिप) ‘‘अतः हे भाईयों मै परमेश्वर की दया का स्मरण दिलाकर तुमसे आग्रह करता हूं कि तूम अपने शरीरों को जीवित, पवित्र और ग्रहण योग्य बलिदान करके परमेश्वर को समर्पित करदो यही तुम्हारी आत्मिक आराधना है’’ (रोमियों 12ः1) और खोए हुओं, कमज़ोर के बीच में सेवा करें। हम जानते है की अन्त के दिनो में यहोवा अपनी आत्मा सब लोगों पर उण्डेल रहा हैं खास कर पहिली पीढ़ी के उत्साहित विश्वासियों पर। उन्हें प्रेरित और नबी के रूप में उसयोग कर के, भरपूर कटनी को खत्ते में ला रहा है जिससे राज्य की बड़ोत्तरी होती जा रही है दूर दूर की बस्तीयों के किनारे में होती जा रही है। ‘‘परमेश्वर कहता है अन्तिम दिनों मे ऐसा होगा कि मै अपना आत्मा सब लोंगो पर उण्डेलूगां तूम्हारे पुत्र और पुत्रिया नबूवत करेगीं। तूम्हारे जवान दर्शन देखेंगे और तुम्हारे वृद्ध जन स्वप्न देखेंगे। मै अपने दासो और दासियों पर उन दिनों में अपनी आत्मा मे से उण्डेलूगां और वे नबूवत करेंगे’’। ‘‘ उसने कुछ को प्रेरित, कुछ को भविष्यवक्ता, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक, कुछ को पास्टल और कुछ को शिक्षक नियुक्त करके दे दिया, कि पवित्र लोग सेवा कार्य के योग्य बने और मसीही की देह तब तक उन्नती करें। (प्रेरितों के काम 2ः17,18; इफि. 4ः11,12)

जहां मजदूरों को तैयार किया जा रहा है, यहीं पर हमें अपने तन मन धन से सेवांए देना चाहिए। यह ठीक नही है कि विश्वासियों को बड़ी भीड़ को इकत्रित कर के उन्हें दूध पीते ईसाई बनांए। हर विश्वासी को मौका दिया जांए कि वह मनुष्यों को पकड़ने वाला बनें, खोए हुओं का खोजी और बीज बोने वाला बनें जिससे वे परिपक्व हो सके। ‘‘यीशु ने उनसे कहा मेरे पिछे चलो मै तुम्हें मनुष्यों के मछुवारे बनाउंगा’’, ‘‘वह उन विश्वास योग्य वचन पर स्थिर रहें जो धर्मोपदेश के अनुसार है जिससे की वह खरी शिक्षा का उपदेश देने और विरोधीयों का मुहं बंद करने में समर्थ हो,’’ ‘‘तुम्हे अब तक तो शिक्षक हो जाना चहिए था, फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें फिर से परमेश्वर के वचन की प्रारंभिक शिक्षा दे तुम्हे ठोस भेजन की आवश्यक्ता नही पर दूध कि आवश्यता है’’ । (मत्ती 4ः19; तीतुस 1ः9; इब्रा.5ः12) वास्तव में बीज, राज्य के सन्तान हैं। ‘‘उसने उत्तर दिया जो अच्छा बीज बोता है वह मनुष्य का पुत्र है खेत तो संसार है। अच्छे बीज राज्य की संतान है। जगंली बजी दुष्ट की संतान है’’। मत्ती 13ः37,38) बीज तो वह है जो खत्ते (यानि चर्च इमारत ) में पड़ा रहता है। वहां चूहें, कीडे़, या मनुष्यों के  द्वारा खाया जाता है, बिना बढ़ोत्तरी के, परन्तु ‘‘अच्छा बीज’’ वह है जो भूमि पर गिर कर मर जाता है और उस में से 30 गुणा, 60 गुणा, 100 गुणा फल उत्पन्न होता है। ‘‘अब वह बोने वाले को बीज और भोजन के लिये रोटी देता है, बोने के लिए तुम्हे बीज देगन और तुम्हारें लिये बीज को बढ़ाएगा और तुम्हारी धार्मिकता की फसल की वृद्धि करेगा।’’ 2कुरि 9ः10 ‘‘उसी ने हमको मृत्यु के इतने भारी संकट से बचाया, और भविश्य में भी आवष्य बचाएगा। उसी पर हमने आशा रखी है। और वही हमें आगे भी बचाता रहेगा।’’ जब हम फल को देखते है तो हमें भोजन वस्तु दिखता है। जबकि पेड़ के द्रष्टिकोण में वह फल अगली पीढ़ी है और बहूगुणित होता है। यहोवा ने हर बीज में गुणात्मक बढ़ोत्तरी की क्षमता डाली है। ‘‘फिर परमेश्वर ने कहा पृथ्वी वनस्पति उत्पन्न करें अर्थात पृथ्वी पर बीज वाले पौंधे अपनी अपनी जाति के अनुसार फल देने वाले वृक्ष उगें जिनके बीज उन्हीं में हो।’’, फिर परमेश्वर ने कहा देखो मैने समस्त पृथ्वी का प्रत्येक पौधा जो बीज उत्पन्न करता है तथा प्रत्येक पेड़ जिस पर बीज वाले फल होते है तुम्हे दिया है, सब तुम्हारे भोजन के लिये हों’’ (उत्पत्ती 1ः11,12,29)

पिछले कुछ दशकों में, हमने हजारों जमीनी स्तर कि कलीसिया रोपक तैयार किया। परन्तु जब शिक्षकों की उम्र बढ़ गई, तब उनकी यात्रा कम हो गई और वे संसाधन केन्द्रों के निर्माण में व्यस्थ हो गये है। यह भी ठीक है अगली पीढ़ी को तैयार कर सामर्थी करण कर रहे हैं। हमे लक्ष्य बनाकर दुसरे राष्ट्रों में काम आरभं करना है जैसे जम्मू - कश्मीर, बिहार, ओडिशा, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, राजस्थान,हरियाणा, असम, पश्चिम बंगाल इत्यादि। यहां पर आन्दोलन जारी है परन्तु आपको दर्शन दिखाना और लक्ष्य पूरा करने के लिये एक नक्षे की आवष्यक्ता होती है। आप में से कुछ लोगो को अपना दर्शन बढ़ाना है और इन राज्यों को गोंद ले लेना चाहिये। पौलूस ने तीतुस को क्रेते भेजा कि वह वहां प्राचीन नियुक्त करें और शेष बातों को सुधारे’’ तीतुस 1ः5)

शिक्षकों के लिये शिक्षा और चैथी पीढ़ी तक उनका निरिक्षण, करना, जरूरी है। साथ में श्रेणी (‘लाईन’)/पीढ़ी प्राथमिकता स्तर पर चलना चाहिये। पौलूस, के चेले जैसे:- बरनबास, तितूस, इपाफ्रास, आर्किपुस, प्रिस्किल्ला, अक्वील्ला, लिदिया, फिबे सब अलग अलग पीढ़ी बना रहे थे। ‘‘यद्यपि मसीही में तुम्हारे असंख्य शिक्षक है फिर भी तुम्हारे अनेक पिता नही होते। क्योंकि मसीही यीशु में सुसमाचार के द्वारा मै तुम्हारा पिता बना’’ (1कुरि. 4ः15)। इन चेलों के द्वारा कई पीढ़ियों के ‘ लाईन’ बनते जा रहे थे। उनमें से एक तिमोथी था जो अपनी पीड़ी की बड़ोत्तरी पर नियन्त्रण कर रहा था। लोंगो को पूरी शिक्षा और निपूर्णता से तैयार करना ही प्रर्याप्त नही हैं। मुख्य बात यह है कि चैथी पीढ़ी तक प्रोत्साहित करना, ठीक उसी तरह जैसे हम अपने पोते, परपोते को करते है। यह पृथ्वी के छोर तक पहुंचने की विशेष कुन्जी है। यह तब सम्भव है जब विश्वास योग्य लोगों को पुरी जिम्मेदारी सौंप देते है। जो आगे बढ़ कर दूसरों को शिक्षा देने के लिये तैयार कर देते हैं। ‘‘और जो बातें तुने बहोत से गवाहों के समक्ष मुझसे सुनी हैं, उन्हें ऐसे विश्वास योग्य मनुष्यों को सौंप दे जो दुसरों को भी सिखाने के योग्य हो’’ 2तिमोथी 2ः2  तीमोथी एक विश्वास योग्य जवान था, ज्ञानी तो नही था। और पौलूस को देखता था कि वह कैसे यहोवा की प्रेरना पर दिये गये वचन पर चलता था। (2तिमोथी 3ः16) इस तरहे आत्मिक माता-पिता, शिष्य और अगुवा तैयार करने के घेरे में रहकर ज्ञान और समझ देकर शिष्यों अधिकार और जिम्मेदारी के साथ अगले वंश को तैयार कर सकते है। 

विश्वास की रक्षा:- मसीहीयत पर विरोध बाहर से आता है लेकिन अन्दर से विरोध ज्यादा दुखदाई होता है खास कर के नए विश्वासी के लिये। विरोधी कई बातें बोल कर उन्हें चकरा देते है। ‘‘तुम योग्य नही हो, तुम नियुक्त नही किए गए, तुम बपतिस्मा नहीं दे सकते, या प्रभु भोज नही दे/ले सकते, तुम केवल स्त्री हो इसलिये सिर ढ़ांक कर चुप बैठो और शिक्षा मत दो। इश्मयेल के पुत्रों के सवाल बहुत होते है, यह कि परमेश्वर को पुत्र नही हो सकता, यीशु कभी क्रूस पर नही मरा, त्रेएक मतलब तीन ईश्वर (पिता यीशु और मरीयम), यीशु एक नबी था और वैसे भी बाईबल भ्रष्ट है। बहुमत वालो के सवाल ज्यादा कठिन और भावात्मक होते हैं। उनके सवालों के उत्तर उनके ही पवित्र किताबों से दिया जाना चाहिये। विरोध को संतुष्ट करने के लिये विषेश शिक्षा विष्वास से सम्बन्धीत लगती है। 

पौलूस ने कहा कि वह सुसमाचार की सुरक्षा के लिये हर समय तैयार रहना है। (फिलि.1ः17) उसने तीमोथी को आदेश दिया कि हर समय सुविधा हो या ना हो, सुसमाचार प्रचार करते रहना है। ‘‘कि वचन का प्रचार कर, समय-असमय तैयार रह , बडे धैर्य से शिक्षा देते हुए ताढ़ना दे, डांट और समझा’’ (2तीमो.4ः2) पौलूस ने तीतूस से कहा जो विरोध करते है उनका खरी शिक्षा से खण्डन कर तीतुस 1ः9। पतरस ने सब विष्वासियों को सुसमाचार कि सुरक्षा/प्रत्युत्तर देने के लिये चिताया ‘‘परन्तु मसीही को पवित्र प्रभु जानकर अपने हृदय में रखो। अपनी आषा के विषय पुछे जाने पर प्रत्येक पुछने वालें को सदैव नम्रता व श्रद्धा के साथ उत्तर देने को तत्पर रहो’’ 1पतरस 3ः15। दुःख की बात यह है कि प्रायः सभी ईसाई विश्वासी इस मामले में बहुत कमजोर हैं क्योकि कहीं से शिक्षा नही मिली। यीशु मसीह ने कहा, ‘‘मै तुम्हारी रक्षा दूसरों से और तुम्हारे लोगों से करूंगा। (प्रेरितों 26ः17,18)

राज्य विस्कोटक होने के लिये प्रशिक्षण:- पहिली सदी की कलीसिया का मिलना ज्यादातर भोजन की संगती पर होती थी जिसमें रोटी भी तोड़ी जाती थी। यह घर-घर  में होता था, जहां खोजी को आमंत्रित किया जाता था, रिश्ते दृढ़ किये जाते थे और यहोवा का पूरा ज्ञान बांटा जाता था। (प्रेरितों के काम 2ः42,46,47; 20ः7,20,27; 1कुरि.11ः20-22;14ःः24-32) इस तरह से नए विश्वासी जुड़ते जाते थे और परिपक्व होते जाते थे। और एक दूसरे से चर्चा करके यह कलीसिया गिनती में और विश्वास में बढ़ती गई। (प्रेरितों के काम 16ः5

शिक्षा देना यह नहीं कि सामने खडे़ हो कर, चिल्ला चिल्ला कर भाषण देना। शिक्षा यह भी नहीं कि शिष्य बनाने के  लोगों को कक्षा में बैठा कर उपदेश देना। यीशु मसीह ने करीब 345 प्रश्न पूछें और उलटा प्रश्न पूछें, पौलूस ने 350 प्रश्न पूछें। लोगों को खुद के लिये सत्य खोजना चाहिये। सोच विचार, वाद विवाद से ही कोई मुद्दा अन्दर दिमाक में बैठता है जिसके बिना सत्य अन्दर नही जाता है। एक बुद्धिमान शिक्षक एैसे सवाल पूछता है कि मुद्दा साफ समझ आए और दैनिक जीवन में अमल कर सकें।

यहूदी स्कूलों में यह वाद विवाद का तरीका अपनाने से,120 लाख यहूदी ने 183 नोबेल पुरूस्कार पाया है। यहां भारत में 1.3 अरब आबादी में बिना वाद विवाद के केवल 9 पुरूस्कार मिले है, और वो ऐसे भारतीय हैं जो विदेश में बसे हुए हैं। 

पौलूस न केवल ज्ञान और जानकारी शिष्यों को दिया परन्तु आदर्श बन कर उन्हें दिखाया ‘‘जो कुछ तुमने मुझसे सिखा, गृहण किया,सुना और मुझमें देखा है उन्हीं का अनुकरण करो और परमेष्वर जो शांति का स्त्रोत है तुम्हारे साथ रहेगा’’ ‘‘और एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अध्ययन करने, उस पर चलने और एस्त्राएल में उसकी विधि और नियम सिखाने में अपना मन लगाया था।’’(फिल्ली. 4ः9, ऐज़रा 7ः10) वार्तालाप और वाद विवाद के माध्यम से कम विषय तो सीखते हैं परन्तु प्रभाव बड़ा होता है प्रभु ने संवादात्मक सीखने के तरीके को बनाया जिसमें हर एक भाग ले सकता है। इस प्रकार से पुलपिट कलाकार/ बैंच में बैठने वाले आलु ,प्रसिद्ध प्रचारक और श्रोताओं का भेद भाव दूर करता है ‘‘ये लोग तिथलुनिके वालों से अधिक सज्जन थे, क्योंकि उन्होंने बड़ी उत्सूकता से वचन को गृहण किया और प्रतिदिन पवीत्र शास्त्रो में से खोज बीन करते रहे कि देखें ये बातें ऐसी ही है या नहीं’’(प्रेरितों को काम 17ः11)

एक दुल्हिन पैदा करने के उद्देश्य से तैयार की जाती है:- अगर हम भारत के आत्मिक नक्षों को बदलने मेें गम्भीर है तो हमें बदलना होगा। केवल बांझ चेले तैयार करने के बदले हमें चेलें उत्पन्न करने वालें चेलें तैयार करना है, जो चेले बनाने वालों को तैयार करें जो और कलीसिया रोपण करें। इसलिए हमें लेजर के समान हमारे उद्देश्यों पर ध्यान लगाते हुए कार्य करना है तभी हम हमारी कलीसिया में लम्बाई और गहराई पाई जायेगी। 

मूल्यांकन:- एक दिन सभी देशों से, भाषा, कुल और जाति के लोग यहोवा के सिंहासन के सामने खडे़ होंगे और अपने हांथों में खजूर की डाली हिला रहे होंगे। सन्त वही है, जो खजूर के समान जीवनदायक फल उत्पन्न करते है, चाहे कितने ही मरूभूमी में रोपे जाए।

चर्च और मिशन और उनके फल/पैदावर को अपने मूल्याकन में एक नया मिसाल लाना होगा। बीज का अंकुरण , उपजाऊपन, और फलप्रद कितना है। यह बीज राज्य के पुत्र और पुत्री है जो खेत में बोए जाते है। पहिले महान आदेश का नाप चेलों की गिनती, कितने बपतिस्मा, कितने चेले तैयार किये गए और कितने भेजे गए। लेकिन अब शीघ्र ही यह बदल कर यह माप नाप कितना चेले बनाने वाले, कितना बपतिस्मा देने वाले कितने भेजने वाले मजदूर हैं। ‘‘मुझे इस बात का निश्चय है जिसने तुम में भला कार्य आरम्भ किया है वही उसे मसीही यीशु के दिन तक पूर्ण भी करेगा’’ (फिलि. 1ः6)। 

शालोम.....
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