कलीसियाई सेवा के वरदान
कलीसियाई सेवा के वरदान
इफिसियों 4ः11 ‘‘उसने कुछ को प्रेरित, नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यवक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और शिक्षक नियुक्त करके दे दिया।’’
इफिसियों 4ः11 में सेवा के वरदानों की सूची है (अर्थात प्रतिभाशाली/गुणी आत्मिक अगुवे) जो मसीह ने कलीसिया को दिया। पौलुस स्पष्ट करता है कि कलीसिया को यह वरदान इसलिये दिया कि: (1) परमेश्वर के लोग सेवा के काम के लिये तैयार किये जाएं इफिसियों 4ः12 और (2) परमेश्वर की ईच्छा के अनुसार मसीह की देह की आत्मिक उन्नति हो। (4ः13-16)।
1कुरिन्थियों 12ः27-28 'इसी प्रकार तुम मसीह की देह हो और एक एक करके उसके अंग हो, 28 और परमेश्वर ने कलीसिया में प्रथम प्रेरित, द्वितीय नबी भविष्यवक्ता, तृतिय शिक्षक, फिर सामर्थ्य के कार्य करने वाले, चंगा करने के वरदान वाले, परोपकारी, प्रबन्धक, तथा अन्य-अन्य भाषाएं बोलने वालों को नियुक्त किया है।
प्रेरित: ‘‘प्रिरेत पद" नये नियम के कुछ अगुवों के लिये इस्तेमाल किया गया है। यूनानी भाषा में अपोस्टेलों (क्रिया) शब्द का अर्थ है किसी व्यक्ति को विशेष कार्य के लिये सन्देशवाहक और प्रतिनिधि के रूप में भेजना। इस पद को मसीह के लिये (इब्रानियों 3ः1), बारह चेलों के लिये मत्ती 10ः2, पौलुस के लिये (रोमियों 1ः1; 2कुरिन्थियों 1ः1; गल.1ः1) और अन्य लोगों के लिये (प्रे.14ः4; रोमियों 16ः7; गलातियों 1ः19; 2ः8-9; 1थिस्सलुनीकियों 2ः6-7) इस्तेमाल किया गया है।
(1) नया नियम में ‘‘प्रेरित’’ शब्द पद का आम मतलब है कलीसिया का अधिकृत प्रतिनिधि, जैसे पहले मसीह मिशनरी। इसलिये नया नियम में प्रेरित शब्द का मतलब है कोई भी संदेशवाहक जिसको नियुक्त करके मिशनरी के रूप में भेजा जाता है या किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिये ठहराया जाता है (प्रे. 14ः4, 14; रोमियों 16ः7; 2कुरिन्थियों 8ः23; फिलि. 2ः25)। यह ऐसे समर्थ्य से जिन्होंने साधारण आत्मिक अगुवाई प्रकट की या; अंधकार की समर्थ्य का सामना किया, सुसमाचार को चमत्कारों के द्वारा प्रमाणित किया और प्रेरितीय सत्य और पवित्रता के के आधार पर कलीसियाओं को स्थापित किया। इन घुमक्कड़ सेवकों ने प्रभु यीशु समीह और सुसमसाचार के लिये अपने जीवन को जोखिम में डाला (प्रेरितों के काम 11ः21-26; 13ः50; 14ः19-22; 15ः25-26) वे आत्मा से परिपूर्ण विश्वास और प्रर्थनाशील लोग थे (प्रेरितों के काम 11ः23-25; 13ः2-5; 46-52; 14ः1-7; 21-23)।
(2) इस आम अर्थ में ‘‘प्रेरित‘‘ कलीसिया के लिये परमेश्वर के लक्ष्य में विशेष स्थान रखते है। अगर कलीसिया आत्मा से परिपूर्ण लोगों को नही भेजेगी, तो संसार में सुसमाचार का फैलाना रूक जायेगा। जब तक कलीसिया इस प्रकार के लोगों को खड़ा करेगी और उन्हें भेजेगी, वह अपने मिशनरी कार्य को पूरा करेगी और प्रभु की महान आज्ञा के प्रति वफ़ादार रहेगी (मत्ती 28ः18-20)
(3) विशेष अर्थ से ‘‘प्रेरित‘‘ पद उनके लिये उपयोग किया गया जिन्होंने यीशु को उसके पुनरूत्थान के बाद देखा और इस पूनर्जीवित प्रभु ने इनके व्यक्तिगत तौर से सुसमाचार प्रचार करने और कलीसिया स्थापित करने के लिये नियुक्त किया है (उदाहरण, बारह चेले और पौलुस)। उनके पास कलीसिया के संदर्भ में ईश्वरीय प्रकाशन एंव मूल सुसमाचार संदेश का एक ऐसा विशेष अधिकार पाया गया, जो आज किसी में भी नहीं पाया जाता (इफिसियों 2ः20) इसलिये इस विशेष अर्थ से प्रेरित का यह पद अनुपम, अनूठा है और दोहराया नही जा सकता। प्रारम्भिक प्रिरेतों का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं हो सकता (1कुरिन्थियों 15ः8)।
(4) नया नियम के प्रेरितों का प्राथमिक कार्य था कि वे ऐसी कलीसियाओं को स्थापित करें जो मसीह और नया नियम के विश्वास पर आधारित या पुनःस्थापित हों (यूहन्ना 21ः15-17, 1कुरिन्थियों 12ः28, 2कुरिन्थियों 11ः2-3; इफिसियों 4ः11-13; फिलिप्पियों 1ः17) इस कर्त्तव्य की पूर्ती में दो प्रधान भाग है।
पहला भागः कलीसिया की पवित्रता, और पाप एंव संसार से अलग रहने के लिये परमेश्वर के द्वारा दी गई इच्छा (1कुरि. 5ः1-5; 2कुरि. 6ः14-18; याकूब 2ः14-26; 1पतरस 2ः11; 4ः1-5; 1यूहन्ना 2ः1,15-17; 3ः3-10)।
दूसरा भागः नया नियम के सुसमाचार की घोषणा के लिये और उसका अधर्म, नए ईश्वरीयज्ञान सम्बंधी विचारधाराओं और झूठे उपदेशकों से बचाव के लिये बोझ (रोमियों 16ः17; 1कुरिन्थियों 11ः2; 2कुरिन्थियों 11ः3-4,14; गलातियों 1ः9; 2पतरस 2ः1-3; 1यूहन्ना 4ः1-6; 2यूहन्ना 7-11; यूहन्ना 3-4, 12-13)।
(5) यद्यपि प्रारम्भिक प्रेरितों (जिन्होंने कलीसिया की नींव डाली) का कोई उत्तराधिकारी नही हैं, कलीसिया आज भी उनके शब्दों, सन्देश और विश्वास पर निर्भर है। कलीसिया को आवश्यक है कि उनकी मूल शिक्षाओं के प्रति विश्वायोग्य रहे और उनका पालन करे। प्रेरितों के ईश्वरीय प्रकाशन के तिरस्कार का मतलब है कि कलीसिया बाइबल आधारित नहीं रहेगी और यह प्रभु को तिरस्कार करने के समान है (यूहन्ना 16ः13-15; 1कुरिन्थियों 14ः36-38; गलातियों 1ः9-11) प्रेरितों के संदेश पर विश्वास करके उसको हर प्रकार की विकृति से बचाने का मतलब है, परमेश्वर के निरन्तर जीवन, आशीष और कलीसिया के बीच उसकी उपस्थिति (इफिसियों 2ः20)।
भविष्यवक्ता।
भविष्यवक्ता विश्वासी थे जो पवित्र आत्मा की प्रेरणा से एंव परमेश्वर के नाम में बोलते थे। उनकी प्रधान दिलचस्पी कलीसिया के आत्मिक जीवन और पवित्रता में है। नई वाचा के अधीन परमेश्वर से उसके प्रजा तक संदेश पहुँचाने के लिये उनको खड़ा किया (प्रेरितों के काम 2ः17, 4ः8; 21ः4)।
(1) शुरू की कलीसिया की नबूवत की सेवकाई समझने के लिये पुराना नियम के भविष्यवक्ताओं का अध्ययन जरूरी है। उनका प्राथमिक कर्त्तव्य यह था कि वे आत्मा के द्वारा वचन प्रस्तुत करें जिससे परमेश्वर की प्रजा अपनी वाचा के सम्बन्ध में विश्वासयोग्य रहे। समय-समय पर जैसे आत्मा ने उन्हें प्रकट किया वैसे उन्होंने भविष्य के विषयों को व्यक्त किया। मसीह और उसके प्रेरित पुराना नियम में पाए गए इस आदर्श के उदाहरण हैं (प्रेरितों के काम 3ः22-23; 13ः1-2)।
(2) भविष्यवक्ता नया नियम की कलीसिया मं निम्नलिखित रूप से कार्य करते थेः
(अ) वे आत्मा से परिपूर्ण घोषणा करने वाले एंव व्यख्या करने वाले लोग थे जिनको परमेश्वर ने चेतावनी, शिक्षा, सान्त्वना, और उन्नति के लिये नियुक्त किया है (प्रेरितों के काम 2ः14-36; 3ः12-36; 1कुरिन्थियों 12ः10; 14ः3)।
(ब) उनको भविष्यवाणी के वरदान का प्रयोग करना था।
(स) समय समय पर वे नबी थे, जिन्होंने भविष्य के बारे में बताया (प्रेरितों के काम 11ः28; 21ः10-11)।
(द) पुराना नियम के भविष्यवक्ता के समान नया नियम के भविष्यवक्ताओं को पाप प्रकट करना धार्मिकता की घोषणा, आने वाले न्याय की चेतावनी और परमेश्वर की प्रजा के बीच सांसारिकता एंव अनुत्सुकता से संघर्ष करना था (लूका 1ः14-17)। उनके धार्मिकता के संदेश के कारण अनुत्सुकता और धर्मत्याग के समयों में भविष्यवक्ता और उनकी सेवकाई को अनेक लोग अस्वीकार करेंगे।
(3) भविष्यवक्ता का चरित्र, बोझ, इच्छा और क्षमता में निम्नलिखित बातें शामिल हैं।
(अ) कलीसिया की पवित्रता के लिये उत्साह / जोश (यूहन्ना 17ः15-17; 1कुरिन्थियों 6ः9-11; गलातियों 5ः22-25)।
(ब) बुराई के प्रति अतिसंवेदनशीलता और अधार्मिकता को पहचानना एंव उसके प्रति बैर रखना (रोमियों 12ः9; इब्रानियों 1ः9)।
(स) झूठी शिक्षा के ख़तरो के बारे में तीक्षण समझदारी (मत्ती 7ः15; 24ः11; गलातियों 1ः9; 2कुरिन्थियों 11ः12-15)।
(द) भविष्यवक्ता के संदेश की मान्यता के लिये परमेश्वर के वचन पर अन्तर्निहित निर्भरता (लूक 4ः17-19, 1कुरिन्थियों 15ः3-4; 2तीमुथियुस 3ः16)
(ध) परमेश्वर की भावनाओं को बाँटना और उसके राज्य की सफलता के लिये दिलचस्पी रखना (मत्ती 21ः11-13; 23ः37; लूक 13ः34; यूहन्ना 2ः14-17; प्रेरितों के काम 20ः27-31)।
(4) भविष्यवक्ताओं का संदेश अचूक नहीं है। उनके संदेशों का मूल्याकंन कलीसिया, अन्य भविष्यवक्ताओं और परमेश्वर के वचन के आधार पर करना चाहिये। मण्डली के लिये ज़रूरी है कि भविष्यवक्ताओं के संदेश को वे पहचाने और परखें कि क्या उनका संदेश परमेश्वर की ओर से है कि नहीं (1कुरिन्थियों 14ः29-33;1यूह. 4ः1)।
(5) भविष्यवक्ता कलीसिया के लिये परमेश्वर के उद्देश्यों में मुख्य है। जो कलीसिया परमेश्वर के भविष्यवक्ताओं का तिरस्कार करेगी वह गिरती जाएगी और सांसारिकता एंव बाइबल सत्यों की मिलावट की ओर बहती जाएगी (1कुरिन्थियों 14ः3; तुलना करें मत्ती 23ः31-38; लूक.11ः49; प्रेरितों के काम 7ः51-52)। अगर भविष्यवक्ताओं को आत्मा की अगुवाई से पाप और धार्मिकता (यूहन्ना 16ः8-11) की फटकार और चेतावनी का मौका न मिला तो कलीसिया एक ऐसा जगह बनेगी जहाँ आत्मा की आवाज कभी भी सुनाई नहीं देगी, पवित्रता की जगह कलीसिया सम्बन्धी राजनीति और सांसारिक सामर्थ्य प्रबल होगी (2तीमुथियुस 3ः1-9, 4ः3-5; 2पतरस 1-3, 12-22)। अगर कलीसियाओं उनके अगुवों के साथ भविष्यवक्ताओं की आवाज़ को सुनेंगी तब मसीह की संगती और बढ़ेगी जिससे पाप त्यागा जाएगा और आत्मा की उपस्थिति विश्वासयोग्य लोगों के बीच व्यक्त होगी (1कुरिन्थियों 14ः3; 1थिस्सलुनीकियों 5ः19-21; प्रकाशित वाक्य 3ः20-22)।
सुसमाचारक: नया नियम में प्रचारक परमेश्वर के ऐसे जन थे जो नाश होने वालों के लिये सुसमाचार की घोषणा और शहर में नया काम शुरू करने के लिये प्रतिभाशाली और परमेश्वर के द्वारा अधिकृत थे। सुसमाचार घोषणा में हमेशा उद्धार का सामथ्र्य अन्तर्निहित है (रोमियों 1ः16-17)।
(1) नया नियम के प्रचारक की सेवकाई का स्पष्ट चित्र हम फिलिप्पुस (प्रेरितों के काम 21ः8) की सेवकाई में देख सकते हैं। (अ) फिलिप्पुस ने मसीह का सुसमाचार प्रचार किया (प्रेरितों के काम 8ः4-5,35। (ब) अनेक लोगों ने उद्धार पाया और बपतिस्मा लिया (प्रेरितों के काम 8ः6,12) (स) उसके प्रचार के साथ चिन्ह, चमत्कार, चंगाई, और दुष्टात्माओं से छुटकारे का काम हुआ (प्रेरितों के काम 8ः6-7,13)। (द) वह चाहता था कि नये चेले पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो (प्रेरितों के काम 8ः12-17; 2ः38; 19ः1-6)।
(2) कलीसिया के लिये परमेश्वर के उद्देश्य में प्रचारक का महत्वपूर्ण स्थान है। जो कलीसिया प्रचारकों की सेवकाई को प्रोत्साहित नही करेगी वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आत्माये नहीं जीत पाएगी। वह एक गतिहीन कलीसिया बनेगी और उसमें पिता के राज्य का कार्य या विकास नहीं होगा। जो कलीसिया सुसमाचार के आत्मिक वरदान को मान्यता देती है और खोए हुओं के प्रति निष्कपट बनाए रखती है, वह उद्धार के सुसमाचार को दृढ़ घारणा और उद्धार की सामथ्र्य के साथ प्रस्तुत करेगीं (प्रेरितों के काम 2ः14-41)
रखवाले: रखवाले वे है जो किसी स्थानीय मण्डली की आत्मिक ज़रूरतों का निरीक्षण एंव ध्यान रखते है, उनको प्राचीन (प्रेरितों के काम 20ः17; तीतुस 1ः5) और अध्यक्ष (1तीम. 3ः1; तीत. 1ः7) भी सम्बोधित किया गया है।
(1) रखवाले का का कर्तव्य है खरी शिक्षा प्रस्तुत करना, अधर्म का खण्डन करना (तीतुस 1ः9-11) और स्थानीय कलीसिया को वचन सिखाकर उसकी अगुवाई करना; सफाई और खरी शिक्षा का नमूना बनना (तीतुस 2ः7-8) और ध्यान दे कि सभी विश्वासी ईश्वरीय अनुग्रह में बने रहें (इब्रानियों 12ः15, 13ः17; 1पतरस 5ः2) उकने कार्य का विवरण प्रेरितों के काम 20ः28-31 में किया गया है जो कलीसिया के अंदर पाये गये झूठे सिद्धान्तों एंव शिक्षाओं से चौकस रहकर प्रेरिताई सत्य की सुरक्षा और परमेश्वर की भेंड़ों को सम्भालना है। रखवाले चरवाहे का कार्य करते है, जिसका आदर्श अच्छा चरवाह यीशु है (यूहन्ना 10ः11-16; 1पतरस 2ः25; 5ः2-4)।
(2) नया नियम के नमुने के अनुसार किसी भी स्थानीय कलीसिया के आत्मिक जीवन की अगुवाई एक से अधिक रखवाले करते थे (प्रेरितों के काम 20ः28; फिलिप्पियों 1ः1) रखवालों को राजनीति से चुना नही जाता था बल्कि देह को दिए गए ज्ञान से जिससे उम्मिदवार के अत्मिक गुणों को परखा जाता है।
(3) परमेश्वर की कलीसिया ले लक्ष्य में रखवालों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। जो कलीसिया भक्त और विश्वासयोग्य रखवालों को नहीं चुनेगी, वह आत्मा की मनसा अनुसार शासित नहीं होगी (1तीतस 3ः1-7)। वह ऐसी कलीसिया होगी जो शैतान और संसार की विनाशकारी ताकतों के लिये खुली होगी (प्रेरितों के काम 20ः28-31) उसके वचन की घोषणा विकृत होगी और सुसमाचार का मापदण्ड जो जाएगा (2तीमुथियुस 1ः13-14)। कलीसिया के सदस्यों और परिवारों की परमेश्वर के लक्ष्यों के अनुसार देख रेख नहीं होगी (1तीमुथियुस 4ः6; 12-16, 6ः20-21)। अनेक लोग सत्य से कथा कहानियों पर कान लगाएंगे (2तीमुथियुस 4ः4)। लेकिन धार्मिक रखवाले नियुक्त किए जांएगे तो खरे सिद्धान्त एंव विश्वास के वचनों से विश्वासियों को प्रोत्साहन और भक्ति के लिसे अनुशासित किया जा सकता है (1तीमुथियुस 4ः6-7)। कलीसिया को मसीह और प्रेरितों की शिक्षा में बने रहने के लिये सिखाया जा सकता है जिससे और उसके सुनने वालों का उद्धार हो (1तीमुथियुस 4ः16; 2तीमुथियुस 2ः2)।
शिक्षक: शिक्षक वे है जिनको परमेश्वर ने वचन समझाने और घोषणा करने का वरदान दिया है जिससे मसीह की देह उन्नति पाए (इफियों 4ः12)।
(1) शिक्षको का विषेश कर्त्तव्य है, कि पवित्र आत्मा की मदद के द्वारा उनको सौंपे गए सुसमाचार की रखवाली करें (2तीमुथियुस 1ः11ः14)। उनको विश्वायोग्यता से कलीसिया के बाइबल प्रकाशन और मसीह एंव प्रेरितों का मूल संदेश व्यक्त करना है और इस कार्य में लगे रहना भी है।
(2) बाइबल शिक्षण का प्रधान लक्ष्य है, सत्य कि सुरक्षा और मसीह की देह को वचन आधारित धार्मिक जीवन शैली के लिये अटल प्रतिज्ञा की ओर अगुवाई करते हुए उन्हें पवित्रता में आगे बढ़ाए। वचन स्पष्ट करता है कि मसीही उपदेश का लक्ष्य है कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक और कपटरहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो (1तीमुथियुस 1ः5)। मसीह उपदेश का प्रमाण यह नही कि हम कितना जानते है, पर हम किस प्रकार का जीवन निभाते हैं अर्थात जीवन के द्वारा प्रेम, पवित्रता, विश्वास और धार्मिकता को व्यक्त करना।
(3) परमेश्वर की कलीसिया के लक्ष्य में शिक्षकों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अगर कलीसिया उन शिक्षकों और धर्म विज्ञानियों की बातें सुनना बन्द करे, जो वचन के प्रकाशन के प्रति विश्वासयोग्य है, तो बाइबल संदेश की असलीयत और मसीह एंव प्रेरितों के मूल शिक्षाओं के प्रति वह कम महत्व देगा। जिस कलीसिया में ऐसे शिक्षक और धर्म विज्ञानी चुप रहेंगे, वह कलीसिया सत्य में स्थिर नहीं रह सकती। नया धर्म सिद्धान्तों को बिना विचार-विमर्श स्वीकार किया जाएगा, प्रकाशित सत्य के सिवाय धार्मिक अनुभव और मानवीय विचार कलीसिया के सिद्धान्त, नमूने एंव व्यवहार को प्रभावित करेंगे। धार्मिक शिक्षकों और धर्मविज्ञानियों को सुनने वाली कलीसिया झूठे विचारों से बचेगी, मसीह के मूल संदेश में बनी रहेगी और उसकी शिक्षा एंव व्यवहार सुसमाचार आधारित होगा। ईश्वर प्रेरित वचन सभी शिक्षा को परखने का आधार होगा और कलीसिया के लिये यह स्पष्ट किया जाएगा कि आत्मा प्ररित वचन ही कलीसिया एंव संस्थाओं पर प्रबल है और सत्य एंव अधिकार का मापदण्ड है।
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