मोआबी रूत
नाओमी और रूत
(बाइबल की किताब रूत।)
बाइबल में रूत नाम की एक किताब है। इस किताब में रूत और नाओमी नाम की दो औरतों के बारे में बताया गया है। वे उस समय जीती थीं, जब इस्राएल में न्यायी हुआ करते थे। रूत इस्राएल जाति की नहीं, बल्कि मोआब देश की रहनेवाली थी। इसलिए उसे यहोवा के बारे में कुछ नहीं मालूम था। मगर जब उसे यहोवा के बारे में पता चला, तो वह उसे पूरे मन से मानने लगी। आखिर उसे यहोवा के बारे में किसने बताया? नाओमी ने।
नाओमी एक इस्राएली थी। एक बार इस्राएल में खाने के लाले पड़ गए। तब नाओमी अपने पति और दो बेटों के साथ मोआब देश में रहने चली गयी। वहाँ नाओमी के पति की मौत हो गयी। कुछ समय बाद, नाओमी के एक बेटे ने रूत से और दूसरे ने ओर्पा नाम की लड़की से शादी कर ली। रूत की तरह, ओर्पा भी मोआब देश की रहनेवाली थी। दस साल बाद, नाओमी के दोनों बेटे भी मर गए। इससे नाओमी और उसकी बहुओं पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा! अब नाओमी क्या करती?
एक दिन नाओमी ने सोचा कि वह अपने घर, अपने लोगों के पास लौट जाएगी। इस्राएल देश वहाँ से बहुत दूर था। रूत और ओर्पा उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थीं। इसलिए वे भी उसके साथ चल दीं। थोड़ी दूर जाने पर, नाओमी ने अपनी बहुओं से कहा: ‘जाओ, तुम दोनों अपनी-अपनी माँ के घर वापस चली जाओ।’
तब नाओमी ने अपनी बहुओं को चूमा और उन्हें अलविदा कहा। इस पर उसकी बहुएँ फूट-फूटकर रोने लगीं। वे नाओमी से बहुत प्यार करती थीं। उन्होंने कहा: ‘नहीं, हम वापस अपने घर नहीं जाएँगी! हम आपके साथ आपके लोगों के पास चलेंगी।’ पर नाओमी ने कहा: ‘मेरी बच्चियो, तुम वापस चली जाओ। इसी में तुम्हारी भलाई है।’ तब ओर्पा उसकी बात मानकर अपने घर को चल दी। लेकिन रूत नहीं गयी।नाओमी, रूत से बोली: ‘देख, ओर्पा जा रही है। तू भी उसके साथ चली जा।’ लेकिन रूत ने कहा: ‘मुझे जाने के लिए मजबूर मत कीजिए। मुझे अपने साथ चलने दीजिए। जहाँ आप जाएँगी, वहाँ मैं भी जाऊँगी। जहाँ आप रहेंगी, वहाँ मैं भी रहूँगी। आपके लोग, मेरे लोग होंगे। और आपका परमेश्वर, मेरा परमेश्वर होगा। जहाँ आप मरेंगी, वहीं मैं भी मरूँगी; और मुझे भी वहीं दफनाया जाएगा।’ रूत की ये बातें सुनकर नाओमी ने उससे फिर घर लौट जाने के लिए नहीं कहा।
आखिरकार, रूत और नाओमी इस्राएल देश पहुँच गयीं और वहीं रहने लगीं। उस समय वहाँ जौ की फसल की कटाई हो रही थी। इसलिए रूत फौरन खेतों में जाकर जौ की बालें बीनने लगी। बोअज़ नाम के आदमी ने उसे अपने खेतों में बालें बीनने दीं। मालूम है बोअज़ की माँ कौन थी? राहाब, जो यरीहो शहर की थी।
एक दिन बोअज़ ने रूत से कहा: ‘मैं तुम्हारे बारे में सबकुछ जानता हूँ। मुझे पता है कि तुम अपनी सास नाओमी से बहुत प्यार करती हो। और यह भी कि तुम अपने माता-पिता और अपने देश को छोड़कर उन लोगों के साथ रहने आयी हो, जिन्हें तुम जानती तक नहीं। मेरी दुआ है कि यहोवा तुम्हारा भला करे!’
रूत ने बोअज़ से कहा: ‘मुझ गरीब पर आपने बड़ी दया की है। आपकी इन बातों से मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला है।’ बोअज़ को रूत अच्छी लगी। कुछ समय बाद उन दोनों की शादी हो गयी। इससे नाओमी कितनी खुश हुई होगी! और जब रूत और बोअज़ के बेटा हुआ, तब तो नाओमी की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उन्होंने उस बच्चे का नाम ओबेद रखा। ओबेद आगे चलकर दाऊद का दादा बना। दाऊद के बारे में हम आगे और सीखेंगे।
आप जानते है?
- नाओमी, मोआब देश क्यों आयी?
- रूत और ओर्पा कौन थीं?
- जब नाओमी ने रूत और ओर्पा को अपनी-अपनी माँ के घर लौट जाने के लिए कहा, तो दोनों ने क्या किया?
- बोअज़ कौन था? उसने रूत और नाओमी की कैसे मदद की?
- बोअज़ और रूत के बेटे का नाम क्या था? हमें उसका नाम क्यों याद रखना चाहिए?
क्या आप और जानते है?
- रूत 1:1-17 पढ़िए।
- रूत ने किन सुंदर शब्दों से अपना सच्चा प्यार ज़ाहिर किया? (रूत 1:16, 17)
- आज धरती पर मौजूद अभिषिक्त जनों के लिए ‘अन्य भेड़ों’ ने कैसे रूत जैसा प्यार दिखाया है? (यूह. 10:16, ; जक. 8:23)
- रूत 2:1-23 पढ़िए।
- आज की जवान स्त्रियों के लिए रूत कैसे एक अच्छी मिसाल है? (रूत 2:17, 18; नीति. 23:22; 31:15)
- रूत 3:5-13 पढ़िए।
- रूत किसी जवान लड़के के बजाय बोअज़ से शादी करने को तैयार थी, इस वजह से बोअज़ ने रूत के बारे में क्या कहा?
- रूत का रवैया हमें सच्चे प्यार के बारे में क्या सिखाता है? (रूत 3:10; 1 कुरि. 13:4, 5)
- रूत 4:7-17 पढ़िए।
- आज मसीही पुरुष, बोअज़ की तरह कैसे बन सकते हैं? (रूत 4:9, 10; 1 तीमु. 3:1, 12, 13; 5:8)
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