यहोवा ने यिप्तह की प्रार्थना सुन ली
यिप्तह ने यहोवा से वादा किया
(न्यायियों 10:6-18; 11:1-40)
यिप्तह के समय में इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना करनी छोड़ दी थी। वे फिर से बुरे काम करने लगे थे। इसलिए यहोवा ने अम्मोनी जाति के लोगों को उन पर हमला करने दिया। तब इस्राएली एक बार फिर यहोवा को पुकारकर कहने लगे: ‘हमने पाप किया है। हमें माफ कर दे और हमें बचा ले!’
इस्राएलियों ने यिप्तह को चुना, ताकि वह अम्मोनी जाति के लोगों से लड़ सके। यिप्तह चाहता था कि इस लड़ाई में यहोवा उसकी मदद करे। इसलिए उसने यहोवा से वादा किया: ‘अगर तू मुझे अम्मोनियों पर जीत दिलाएगा, तो वापस जाने पर मेरे घर से जो कोई मुझसे मिलने सबसे पहले आएगा, उसे मैं तुझे दे दूँगा।’
यहोवा ने यिप्तह की प्रार्थना सुन ली और उसे जीत दिलायी। इसके बाद, जब यिप्तह घर लौटा, तो जानते हैं सबसे पहले उससे मिलने कौन आया? उसकी एकलौती बेटी। बेटी को देखते ही वह छाती पीटने लगा और कहने लगा: ‘हाय मेरी बेटी! तूने यह क्या किया! पर मैंने यहोवा से वादा किया है और मैं उसे तोड़ नहीं सकता।’
जब यिप्तह की बेटी को अपने पिता के वादे के बारे में पता चला, तो पहले वह भी बहुत दुःखी हुई। क्योंकि अपने पिता का वादा पूरा करने के लिए, उसे अपने पिता और सहेलियों को छोड़कर जाना पड़ता। मगर फिर उसने सोचा कि ऐसा करके वह अपनी सारी ज़िंदगी शीलो में रहकर यहोवा के तंबू में सेवा कर सकती है। इसलिए उसने अपने पिता से कहा: ‘अगर आपने यहोवा से वादा किया है, तो आपको उसे ज़रूर पूरा करना चाहिए।’
तब यिप्तह की बेटी अपने पिता और सहेलियों को छोड़कर शीलो चली गयी। वहाँ उसने अपनी बाकी ज़िंदगी यहोवा के तंबू में उसकी सेवा करते हुए बितायी। इस्राएली औरतें उससे मिलने हर साल, चार दिन के लिए जाती थीं और वे सब साथ मिलकर खुशी से समय बिताती थीं। यिप्तह की बेटी को सभी लोग प्यार करते थे, क्योंकि वह पूरे दिल से यहोवा की सेवा करती थी।
क्या आप जानते है?
- यिप्तह कौन था? उसके समय में क्या हो रहा था?
- यिप्तह ने यहोवा से क्या वादा किया?
- अम्मोनियों को हराने के बाद जब यिप्तह घर लौटा, तो वह दुःखी क्यों हो गया?
- यिप्तह की बेटी को जब अपने पिता के वादे के बारे में पता चला, तो उसने क्या कहा?
- सभी लोग यिप्तह की बेटी से क्यों प्यार करते थे?
क्या आप और जानना चाहते है?
- न्यायियों 10:6-18 पढ़िए।
- इस्राएली, यहोवा को छोड़ दूसरे देवताओं की उपासना करने लगे थे, इससे हमें क्या चेतावनी मिलती है? (न्यायि. 10:6, 15, 16; रोमि. 15:4; प्रका. 2:10)
- न्यायियों 11:1-11, 29-40 पढ़िए।
- हम कैसे जानते हैं कि जब यिप्तह ने अपनी बेटी को “होमबलि” के तौर पर दिया, तो उसने अपनी बेटी को सचमुच आग में होम नहीं किया था? (न्यायि. 11:31; लैव्य. 16:24; व्यव. 18:10, 12)
- यिप्तह ने किस तरह अपनी बेटी को बलि के तौर पर दिया?
- यिप्तह ने यहोवा से किए अपने वादे को जिस तरह गंभीरता से लिया, उससे हम क्या सीखते हैं? (न्यायि. 11:35, 39; सभो. 5:4, 5; मत्ती 16:24)
- पूरे समय की सेवा को अपना करियर बनाने में यिप्तह की बेटी, जवान मसीहियों के लिए कैसे एक अच्छी मिसाल है? (न्यायि. 11:36; मत्ती 6:33; फिलि. 3:8)
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