ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 3

 शैतान आपको दुःखी रखना चाहता है।

परमेश्वर आपको स्वस्थ करना चाहता है। परन्तु केवल शैतान ही आपके रोगी और दुःखी रखना चाहता है। आदि से ही शैतान परमेश्वर और परमेश्वर के सृजन कार्यो का विरोध रहा है।

बाइबल में उत्पत्ती नामक प्रथम पुस्तक का वृतान्त प्रकट करता है कि हमारे आदि माता पिता (आदम-हव्वा) जिन्हें परमेश्वर ने अपनी समानता और अपने ही स्वरूप में उत्पन्न किया। उन्हें शैतान ने अपनी धुर्त चाल से उन्हें परमेश्वर की जीवन की आज्ञा से बहका कर, रोग, शोक, संताप, क्लेश बन्धन, मृत्यु दूसरे शब्दों में इसी का नाम नरक है, को स्वीकार करने के लिये मजबुर कर दिया, और अनन्त काल के लिये अपने सृजनहार यहोवा परमेश्वर पिता से दूर कर दिया। 

मसीह यीशु से स्वर्गीय चंगाई प्राप्त करने के लिये कई लोगों के विश्वास में, यह विचार बाधा बनी है, कि रोग, बीमारियों और दुःख आदि परमेश्वर की ओर से है, और परमेश्वर ने दिया है। इन विचारों से हजारों लोग पीड़ित रहने से समय के पूर्व ही मर जाते है। 

इन विचारों से अपने मानव मस्तिष्क को स्वच्छ करते हुए समझना है कि ये बाते परमेश्वर की ओर से नही हैं, वरन शैतान की ओर से है। और यह रोग परमेश्वर से नही पर शैतान ने लादा है। पवित्र शास्त्र बाइबल यह प्रमाणित और सिद्ध करती है। (मत्ती 12ः22-26) में वृतान्त हे। कि यीशु ने एक अन्धे-गुंगे जिसमें दुष्टात्मा थी उसे अच्छा किया, और वह बोलने और देखने लगा। परन्तु फरीसियों ने यह देखकर कहा-यह तो दुष्टात्माओं को नहीं निकालता। इस पर यीशु ने कहा- ‘‘जिस किसी राज्य में फूट होती है, वह उजड़ जाता है। और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है, फिर उकसा राज्य कैसे बना रहेगा।

  • अययूब 2ः7 में लिखा है- तब शैतान यहोवा के सामने से निकला और अययूब को पांव के तलवे से लेकर सिर की चोटी तक बडे़ बड़े फोड़े से पीड़ित किया।

यहाँ पीड़ा शैतान के द्वारा लाई गई।

  • प्रभु यीशु ने एक कुबड़ी स्त्री के विषय यह कहा - तो क्या यह उचित न था कि यह स्त्री जो अब्राहम की बेटी है, जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बांध रखा था, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाए। जब उसने ये बातें कही, तो उसके सब विरोधी लज्जित हुए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था आनन्दित हुई। (लूका 13ः16-17)

इस स्त्री को शैतान ने बांध रखा था, और उसमें दुर्बलता की आत्मा थी। 

  • एक मृगी से पीड़ित बालक जो बहरा और गुंगा भी था। उसे प्रभु ने चंगा किया।

जब यीशु ने देखा कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे है, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डांटा, हे गुंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उसमें से निकल जा, और उसमें फिर प्रवेश न करना। (मरकुस 9ः25)

बाइबल में एक महत्वपूर्ण पद है जिसे कई लोग छोड़ देते है। 

परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषेक किया, और वह भलाई करता और सब को जो शैतान के सताए हुए थे अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। (प्रेरितों के काम 10ः38)

बाइबल के कई स्थल प्रमाणित करते है कि जितने भी रोगियों को प्रभु यीशु ने चंगा किया वे सब शैतान के सताए हुए थे। उन दिनों में रोग को शैतान का प्रकोप समझा जाता था। 

प्रत्येक रोगों का कीटाणु अथवा विषाणु होते है जो शरीर में रोग फैलाते है। ये रोगाणु शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान नाश करता है। इसको प्रभु यीशु ने‘‘दुर्बलता की आत्मा’’ अशुद्ध आत्मा की संज्ञा दी है। ये रोगाणु शरीर में रोग को उसी प्रकार से बढ़ाता है। जिस प्रकार से शुक्राणु गर्भाशय में प्रवेश करके एक बच्चे का रूप धारण करता है। जब यह जीवित रोगाणु शरीर में पहुंच कर बढ़ता है और जीवित रहने और वृद्धि के लिये टाक्सीन उत्पन्न करता है और अपने लिये अनुकूल वातावरण बनाते जाते हैं। परन्तु जब औषधियों या यीशु नाम की प्रार्थना से शरीर में रोग क्षमता शक्ति को भेजा जाता। तब ये रोगाणु मर जाते है। और रोग से चंगाई मिलती है। 

मैंने अपनी सेवाकाल में ऐसे कई रोगियों से सम्पर्क हुआ जो नाना प्रकार की बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने बताया कि जैसे जैसे हमने डाक्टरी इलाज लिया उससे लाभ मिलने के बदले बीमारी और भी बड़ती गई। फिर हमने देवी धामी करवाई उससे भी कोई फायदा नही मिला। परन्तु जब हमारे लिये यीशु की दुआ की गई, तो हम तुरन्त चंगे हो गए। यह सब सुनने और प्रत्यक्ष देखने से विचार आया कि अवश्य ही ऐसी बीमारियों का कारण दुष्टात्माओं का प्रभाव है। क्योंकि दुष्टात्माओं पर औषधियों और डाक्टरी चिकित्सा का कोई प्रभाव नही पड़ता। यह मेरे अपने व्यक्तिगत विचार है। 

शैतान की वे दुर्बलता की आत्माये, अशुद्ध आत्माये जिन्हें वह भेजता है नान प्रकार की बीमारियों से मनुष्यों को पीड़ा पहंुचती है। पर जब उन्हें प्रभु यीशु नाम से निकाला जाता है। तब प्रभु की प्रतिज्ञानुसार रोगी स्वस्थ हो जाते है। कई रोग ऐसे भी है जो पुरी तरक से नष्ट हो जाते है। परन्तु उनका विनाशकारी लक्षण निर्जीव और निष्क्रीय है। जैसे यदि पेड़ से उसकी डाल काट दी जाए तो वह निर्जीव हो जाती है परन्तु उसकी पत्तियां हरी दिखाई देती हैं। परन्तु इन पत्तियों में जीवन न होने से कुछ समय बाद सूख जाती है। इसी प्रकार कई दुष्टात्माग्रस्त बीमारियों में ऐसे लक्षण देखने में आए है। आप को विश्वास करना है कि आपकी बीमारी देह से निकल गई है। केवल यह करें की चंगाई के लिये निरन्तर प्रभु को धन्यवाद देते रहें। कुछ समय के पश्चात विनाशकारी लक्षण लुप्त हो जायेगे। ध्यान रहे कि पुनः प्रभु से यह प्रार्थना प्रभु के प्रति अविश्वास को प्रगट करती है। 

मरकुस 11ः12-14 पदों में वृतान्त आया है कि प्रभु यीशु एक अंजीर के पेड़ को देखकर, फल की आशा से पेड़ के पास आए। परन्तु जब उसमें फल न पाया। तो उसे डांट और कहा - अब से तेरा फल कोई कभी न खाए। प्रभु यीशु को ज्ञात था कि पेड़ उसी समय नष्ट हो चुका है। और वह सुख जायेगा। 

दूसरे दिन जब यीशु और ससके शिष्य वहां से निकले, तो चेलों ने देखा कि अंजीर का पेड़ सुख गया हैं। जब उन्होंने यह बात यीशु से कहा तब यीशु ने उनसे कहा - 

इसलिये मैं तुम से कहता हूं कि जो कुछ तुम प्रार्थना में मांगो तो प्रतिति कर लो कि तुम्हें मिल गया है और तुम्हारे लिये हो जाएगा। (मरकुस 11ः24)

यदि हम जानते है कि रोग शैतान लाता है, और रोग का जीवन एक दुर्बलता की आत्मा, अशुद्ध आता है। तो हम प्रभु यीशु नाम में अधिकार के साथ आज्ञा देकर निकाल सकते है। तब हमें निश्चय जान लेना चाहिए की बीमारी मर चुकी हैं हम सन्देह न करें। यद्यपि हरी पत्तियां (रोेग के लक्षण) तुरन्त नष्ट होते नही दिखाई दे रहे है। फिर भी हमें निश्चय पुर्वक जान लेना है कि रोग का जीवन नष्ट हो गया है। और रोग की जड़ नाश हो गई है। चंगाई के लिये प्रभु परमेश्वर का धन्यावाद करें।


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