यहोशू इस्राएलियों का अगुआ
यहोशू अब नया इस्राएलियों का अगुआ
(गिनती 27:12-23; व्यवस्थाविवरण 3:23-29; 31:1-8, 14-23; 32:45-52; 34:1-12)
मूसा इस्राएलियों के साथ कनान देश जाना चाहता था। इसलिए उसने परमेश्वर से कहा: ‘हे यहोवा, मुझे यरदन नदी के पार जाने दे, ताकि मैं उस अच्छे देश को देख सकूँ।’ लेकिन यहोवा ने कहा: ‘बस! अब यह बात दोबारा मत कहना।’ भला यहोवा ने ऐसा क्यों कहा?
याद कीजिए, जब मूसा ने चट्टान पर लाठी मारी थी, तब क्या हुआ था? मूसा और हारून ने लोगों के सामने यहोवा की महिमा नहीं की थी। उन्होंने लोगों से यह नहीं कहा कि चट्टान से यहोवा ने पानी निकाला है। इस वजह से यहोवा ने कहा कि वह मूसा और हारून को कनान देश में नहीं जाने देगा।
इसलिए हारून के मरने के कुछ महीनों बाद, यहोवा ने मूसा से कहा: ‘यहोशू को याजक एलीआज़र और सब लोगों के सामने खड़ा कर। फिर उनसे कहना कि अब यहोशू तुम्हारा नया नेता है। अब से वही तुम्हें बताएगा कि क्या करना है।’ जैसा यहोवा ने कहा, मूसा ने बिलकुल वैसा ही किया। आप यहाँ तसवीर में उसे ऐसा करते देख सकते हैं।
फिर यहोवा ने मूसा से मोआब देश के नबो पहाड़ पर चढ़ने को कहा। मूसा उस पहाड़ पर चढ़ गया और वहाँ से उसे यरदन नदी के पार कनान देश दिखायी दिया। वह देश बहुत ही खूबसूरत था। यहोवा ने उससे कहा: ‘यही वह देश है जिसे मैंने इब्राहीम, इसहाक और याकूब के बच्चों को देने का वादा किया था। मैंने तुम्हें वह देश दिखा तो दिया है, लेकिन मैं तुम्हें उस देश में कदम नहीं रखने दूँगा।’
इसके बाद, नबो पहाड़ के ऊपर ही मूसा की मौत हो गयी। उस वक्त वह 120 साल का था। इतनी उम्र में भी वह काफी ताकतवर था और उसकी आँखों की रोशनी भी बहुत अच्छी थी। मूसा की मौत की खबर सुनकर लोगों को बहुत दुःख हुआ और वे रोने लगे। लेकिन उन्हें इस बात की खुशी भी थी कि यहोशू अब उनका नया नेता है।
क्या आप जानते है?
- तसवीर में मूसा के साथ खड़े दो आदमी कौन हैं?
- यहोवा ने यहोशू से क्या कहा?
- मूसा नबो पहाड़ पर क्यों चढ़ा? वहाँ यहोवा ने उससे क्या कहा?
- जब मूसा की मौत हुई तब उसकी उम्र कितनी थी?
- लोग दुःखी क्यों हो गए? लेकिन उन्हें किस बात की खुशी थी?
कुछ और क्या आप जानते है?
- गिनती 27:12-23 पढ़िए।
यहोवा ने यहोशू को कौन-सी ज़िम्मेदारी दी? आज कैसे पता चलता है कि यहोवा को अपने लोगों की फिक्र है? (गिन. 27:15-19; प्रेरि. 20:28; इब्रा. 13:7)
- व्यवस्थाविवरण 3:23-29 पढ़िए।
यहोवा ने मूसा और हारून को वादा किए देश में क्यों नहीं जाने दिया? इससे हमें क्या सीख मिलती है? (व्यव. 3:25-27; गिन. 20:12, 13)
- व्यवस्थाविवरण 31:1-8, 14-23 पढ़िए।
इस्राएलियों को कहे मूसा के आखिरी शब्दों से कैसे पता चलता है कि उसने यहोवा से मिली ताड़ना को नम्रता से कबूल किया? (व्यव. 31:6-8, 23)
- व्यवस्थाविवरण 32:45-52 पढ़िए।
परमेश्वर के वचन का हमारी ज़िंदगी पर कैसा असर होना चाहिए? (व्यव. 32:47; लैव्य. 18:5; इब्रा. 4:12)
- व्यवस्थाविवरण 34:1-12 पढ़िए।
मूसा ने कभी अपनी आँखों से यहोवा को नहीं देखा था, फिर भी व्यवस्थाविवरण 34:10 के मुताबिक यहोवा के साथ उसका कैसा रिश्ता था? (निर्ग. 33:11, 20; गिन. 12:8)
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