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मिस्रियों पर दस विपत्तियाँ

 मिस्रियों पर दस विपत्तियाँ 

(निर्गमन के अध्याय 7 से 12)

ज़रा यहाँ दी तसवीरों को देखिए। इन तसवीरों में वे दस विपत्तियाँ दिखायी गयी हैं, जो यहोवा मिस्रियों पर लाया था। पहली तसवीर में आप देख सकते हैं कि हारून अपनी लाठी नील नदी में मार रहा है। जब उसने ऐसा किया तो नदी का पूरा पानी खून बन गया। नदी की सारी मछलियाँ मर गयीं और नदी में से बदबू आने लगी।



फिर यहोवा दूसरी विपत्ति लाया। जानते हैं उसमें क्या हुआ? नील नदी के सारे मेंढक बाहर निकलकर पूरे शहर में फैल गए। जहाँ देखो वहाँ मेंढक-ही-मेंढक थे। तन्दूरों में मेंढक, खाना पकाने के बर्तनों में मेंढक, लोगों के बिस्तरों पर मेंढक। फिर जब मेंढक मर गए तो मिस्रियों ने उन्हें इकट्ठा करके बड़े-बड़े ढेर लगा दिए। पूरा देश उनकी बदबू से भर गया।

इसके बाद हारून ने ज़मीन पर अपनी लाठी मारी, तो धूल से छोटे-छोटे कीड़े बन गए। ये कीड़े लोगों को काटने लगे। यह मिस्र पर आयी तीसरी विपत्ति थी।

इन विपत्तियों के बाद जितनी भी विपत्तियाँ आयीं, उनसे सिर्फ मिस्रियों को नुकसान पहुँचा, इस्राएलियों को नहीं। चौथी विपत्ति बड़ी-बड़ी मक्खियाँ थीं, जो सब मिस्रियों के घरों में घुस गयीं। पाँचवीं विपत्ति जानवरों पर आयी। मिस्रियों के बहुत-से गाय-बैल और भेड़-बकरियाँ मर गए।

पाँचवीं विपत्ति के बाद, मूसा और हारून ने कुछ राख लेकर हवा में उड़ा दी। इससे लोगों और जानवरों के शरीर पर बड़े-बड़े फोड़े निकल आए। यह छठी विपत्ति थी

फिर मूसा ने अपना हाथ आसमान की तरफ उठाया। तब यहोवा मिस्र पर सातवीं विपत्ति लाया। बिजली कड़कने लगी और ओले गिरने लगे। इतने बड़े-बड़े ओले गिरे, जितने कि मिस्र में पहले कभी नहीं गिरे थे।

आठवीं विपत्ति में मिस्र पर टिड्डियों ने हमला बोला। टिड्डियों का इतना बड़ा दल न तो इससे पहले कभी देखा गया और ना ही इसके बाद। जो कुछ भी ओलों से बच गया था, वह सब इन टिड्डियों ने सफाचट कर दिया।

मिस्र पर जो नौवीं विपत्ति आयी, वह थी अंधकार। तीन दिन तक सारे देश में घुप अंधेरा छाया रहा। मगर जहाँ इस्राएली रहते थे, वहाँ उजाला था।

इस सब के बाद, परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा कि वे अपने घर की चौखटों पर छोटे बकरे या मेम्ने का खून छिड़कें। तब परमेश्वर का एक स्वर्गदूत मिस्र देश से गुज़रा। उस स्वर्गदूत को जिस किसी घर की चौखट पर खून दिखायी दिया, उस घर के किसी भी आदमी या जानवर को उसने नहीं मारा। लेकिन जिन घरों की चौखटों पर खून नहीं लगा था, उन घरों में इंसानों और जानवरों, दोनों के पहले बच्चे को स्वर्गदूत ने मार डाला। यह दसवीं विपत्ति थी।

इस आखिरी विपत्ति के बाद फिरौन ने इस्राएलियों को जाने दिया। इस्राएली मिस्र से जाने के लिए तैयार ही बैठे थे। इसलिए वे उसी रात मिस्र से निकल गए।

क्या आप जानते है? 

  • इन तसवीरों को देखकर बताइए कि यहोवा मिस्र पर पहले कौन-सी तीन विपत्तियाँ लाया।
  • पहली तीन विपत्तियों और बाकी विपत्तियों के बीच क्या फर्क था?
  • चौथी, पाँचवीं और छठी विपत्ति क्या थी?
  • बताइए कि सातवीं, आठवीं और नौवीं विपत्ति में क्या हुआ।
  • दसवीं विपत्ति लाने से पहले यहोवा ने इस्राएलियों को क्या करने के लिए कहा?
  • दसवीं विपत्ति क्या थी और उसके बाद क्या हुआ?

क्या आप और जानते है? 

  • निर्गमन 7:​19-8:​23 पढ़िए।

    जब यहोवा पहली दो विपत्तियाँ लाया, तब मिस्र के जादूगरों ने भी वैसा ही किया, मगर तीसरी विपत्ति के बाद उन्हें क्या मानना पड़ा? (निर्ग. 8:​18, 19; मत्ती 12:​24-28)

    चौथी विपत्ति ने कैसे दिखाया कि यहोवा अपने लोगों की हिफाज़त करने की ताकत रखता है? इस जानकारी से यहोवा के लोगों को कैसे “बड़े क्लेश” का सामना करने की हिम्मत मिलती है? (निर्ग. 8:​22, 23; प्रका. 7:​13, 14; 2 इति. 16:​9)

  • निर्गमन 8:24; 9:​3, 6, 10, 11, 14, 16, 23-25 और 10:​13-15, 21-23 पढ़िए।

    दस विपत्तियों से किन दो समूहों का परदाफाश हुआ और आज इन समूहों के बारे में हमारा क्या नज़रिया है? (निर्ग. 8:​10, 18, 19; 9:​14)

    निर्गमन 9:16 के मुताबिक यहोवा ने शैतान को अब तक क्यों ज़िंदा रहने दिया है? (रोमि. 9:​21, 22)

  • निर्गमन 12:​21-32 पढ़िए।

    फसह का पर्व मनाने की वजह से कैसे बहुत-से लोगों की जान बची और यह पर्व किस बात की निशानी था? (निर्ग. 12:​21-23; यूह. 1:29; रोमि. 5:​18, 19, 21; 1 कुरि. 5:​7)

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