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Showing posts from June, 2021

ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 4

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 ईश्वरीय आरोग्यता उद्धार का भाग है  जिस प्रकार हम स्वास्थ्यकर्ता परमेश्वर को उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह से अलग नही कर सकते, क्योंकि दोनों एक ही तत्व है।  यीशु ने कहा - ‘‘मैं और पिता एक हैं। ( यूहन्ना 10ः30 )  यीशु ने उससे कहा - हे फिलिप्पुस मैं इतने दिन तुम्हारे साथ हूं, और क्या तू नही जानता? जिसने मुझे देखा, उसने पिता को देखा है, तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? ( यूहन्ना 14ः9 ) क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की सारी परिपुर्णता सदेह वास करती है। ( कुलुस्सियोें 2ः9 ) इसी प्रकार से ईश्वरीय आरोग्यता और उद्धार को एक दुसरे से लग नही कर सकते। यदि आप शारीरिक आरोग्यता चाहते है। तो आपको आत्मिक आरोग्यता भी ग्रहण करना चाहिए। यदि आप शारीरिक चंगाई चाहते है, तो आपको स्वास्थकर्ता और उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह को अपने जीवन में प्रवेश देना चाहिए।  प्रभु यीशु ने उस झोले के मारे हुए व्यक्ति से कहा - हे पुत्र तेरे पाप क्षमा हुए, अपनी खाट उठा और अपने घर चला जा। ( मरकुस 2ः5 और 11 ) यहां पापों की क्षमा पहले मिली, और बाद में रोग का निवारण हुआ। चंगाई की वाचा से संबन्धित परमेश्वर की श...

ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 3

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  शैतान आपको दुःखी रखना चाहता है। परमेश्वर आपको स्वस्थ करना चाहता है। परन्तु केवल शैतान ही आपके रोगी और दुःखी रखना चाहता है। आदि से ही शैतान परमेश्वर और परमेश्वर के सृजन कार्यो का विरोध रहा है। बाइबल में उत्पत्ती नामक प्रथम पुस्तक का वृतान्त प्रकट करता है कि हमारे आदि माता पिता (आदम-हव्वा) जिन्हें परमेश्वर ने अपनी समानता और अपने ही स्वरूप में उत्पन्न किया। उन्हें शैतान ने अपनी धुर्त चाल से उन्हें परमेश्वर की जीवन की आज्ञा से बहका कर, रोग, शोक, संताप, क्लेश बन्धन, मृत्यु दूसरे शब्दों में इसी का नाम नरक है, को स्वीकार करने के लिये मजबुर कर दिया, और अनन्त काल के लिये अपने सृजनहार यहोवा परमेश्वर पिता से दूर कर दिया।  मसीह यीशु से स्वर्गीय चंगाई प्राप्त करने के लिये कई लोगों के विश्वास में, यह विचार बाधा बनी है, कि रोग, बीमारियों और दुःख आदि परमेश्वर की ओर से है, और परमेश्वर ने दिया है। इन विचारों से हजारों लोग पीड़ित रहने से समय के पूर्व ही मर जाते है।  इन विचारों से अपने मानव मस्तिष्क को स्वच्छ करते हुए समझना है कि ये बाते परमेश्वर की ओर से नही हैं, वरन शैतान की ओर से है। और ...

ईश्वरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 2

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 आरोग्यता प्राप्ति के लिये परमेश्वर की प्रतिज्ञायें।  पवित्र शास्त्र बाइबल में चंगाई की सब प्रतिज्ञायें आपके व्यक्तिगत जीवन के लिये है। जब आप बाइबल पढ़ते है तो ध्यान रखें कि आप प्रभु से उसके साथ व्यक्तिगत वार्तालाप कर रहे है। परमेश्वर के लिखित वचन की पूर्ण सत्यता ही दृढ़ विश्वास का एक मात्र आधार है। आप परमेश्वर को उसके पवित्र वचन से अलग नही कर सकते। वह न केवल इसमें है या इसका एक भाग है, परन्तु इसका आधार है और इसका समर्थन करता है, और इसे पुरा भी करता है। स्वर्गदूत ने कहा था - जो वचन परमेश्वर की ओर से होता है, वह प्रभाव रहित नही होता ( लूका 1ः37 ) बाइबल में जितनी भी प्रतिज्ञायें हैं, उनके द्वारा परमेश्वर अपने व्यक्तिगत रूप से बातें करता है। ये प्रतिज्ञायें, मानों उस चैक (धनादेश पत्र) के समान है, जो आपके नाम पर काटा गया है। आप उस चैक को बैंक में भुना सकते है। क्योंकि वह आपके नाम पर है। इसी प्रकार आप परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को भी प्रार्थना में इसलिये ले सकते है, क्योंकि वे आपके लिये हैं।  परमेश्वर ने आपको व्यक्तिगत रूप से चंगाई देने के लिये प्रतिज्ञा किया है। क्या आप विश्वास कर...

ईवरीय चंगाई के विभिन्न चरण - 1

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चंगाई और उद्धार के लिये परमेश्वर की प्रतिज्ञा।  1. परमेश्वर स्वस्थकर्ता बाइबल के समस ही से परमेश्वर की सामथ्र्य से रोगी स्वस्थ हुए। अन्धों को दृष्टि मिली, बहिरों को सुनने की शक्ति, अपंग चलने लगे, कोढ़ी शुद्ध हुए, एंव सब प्रकार के रोगी व पीड़ित लोग स्वस्थ हुए ये आश्चर्यकर्म आज भी कलीसिया के लिये उतने ही आवश्यक तथा महत्वपूर्ण हैं, जितना की पूर्व काल के समय में थे। हमें यह क्यों जानना चाहिए? क्योंकि ईश्वरीय चंगाई से परमेश्वर की महिमा होती हैं। यदि तु अपने परमेश्वर यहोवा का तन मन से सुनें, और उसकी दृष्टि में ठीक है, वही करें और उसकी आज्ञाओं पर कान लगाए, और उसकी सब विधियों को माने, तो जितने रोग मैंने मिस्रियों पर भेजे हैं, उनमें से एक भी तुम पर न भेजूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला यहोवा हूँ। ( निगर्मन 15ः26 ) वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता और तेरे सब रोगों को चंगा करता है। ( भजन संहिता 103ः3 ) वह अपने वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड़हे में पड़े है, उससे निकालता है। ( भजन संहिता 107ः20 ) धन्य है प्रभु जो प्रतिदिन हमारा बोझ उठाता है, वही हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर है। वही ...

यहोवा ने हन्ना की प्रार्थना सुनी

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यहोवा की सेवा के लिए   शमूएल     (1 शमूएल 1:​1-28; 2:​11-36; 3:​1-18; 4:​16-18; 8:​4-9) कितना प्यारा बच्चा है यह, है ना? इसका नाम शमूएल है। और जो आदमी उसके सिर पर हाथ रखे हुए है, वह इस्राएल का महायाजक एली है। देखिए शमूएल के साथ उसका पिता एल्काना और माँ हन्ना भी है। वे शमूएल को एली के पास लाए हैं। उस वक्‍त शमूएल की उम्र सिर्फ चार-पाँच साल की रही होगी। लेकिन अब से वह यहीं यहोवा के तंबू में एली और दूसरे याजकों के संग रहकर यहोवा की सेवा करेगा। पर शमूएल तो कितना छोटा है। फिर क्यों उसके माता-पिता ने उसे इतनी कम उम्र में यहोवा की सेवा के लिए दे दिया? दरअसल कुछ साल पहले हन्ना बहुत दुःखी रहती थी, क्योंकि उसके कोई बच्चा नहीं था। एक दिन हन्ना यहोवा के तंबू में गयी और यहोवा से प्रार्थना करने लगी: ‘हे यहोवा! मुझ पर रहम कर! अगर तू मुझे एक बेटा देगा, तो मैं वादा करती हूँ कि मैं उसे तुझे दे दूँगी और वह सारी ज़िंदगी तेरी सेवा करेगा।’ यहोवा ने हन्ना की प्रार्थना सुनी और कुछ महीनों बाद उसे एक बेटा हुआ। उसने अपने बेटे का नाम शमूएल रखा। हन्ना शमूएल से बहुत प्यार करती थी। वह उसे बचप...

सबसे ताकतवर आदमी ने गधे के जबड़े की हड्डी से 1,000 आदमियों को मार डाला

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  शिमशोन  सबसे ताकतवर आदमी  है ( न्यायियों के अध्याय 13 से 16) क्या आपको अब तक के सबसे ताकतवर आदमी का नाम मालूम है? उसका नाम है शिमशोन। वह एक न्यायी था। शिमशोन को ताकत देनेवाला यहोवा परमेश्वर था। यहोवा ने उसके पैदा होने से पहले ही उसकी माँ से कहा था: ‘जल्द ही तुझे एक बेटा पैदा होगा। वह इस्राएलियों को पलिश्तियों से बचाएगा।’ ये पलिश्ती कौन थे? पलिश्ती, कनान देश के ही रहनेवाले थे। वे बहुत बुरे लोग थे। उनमें से कई लोग लड़ाई करने में माहिर थे। वे इस्राएलियों को बहुत सताते थे। एक बार शिमशोन उस जगह गया जहाँ पलिश्ती रहते थे। रास्ते में उस पर एक बड़े-से शेर ने हमला किया। उस वक्‍त शिमशोन के पास कोई हथियार नहीं था, फिर भी उसने शेर को मार डाला। बाद में उसने कई पलिश्ती लोगों को भी मार डाला। कुछ समय बाद, शिमशोन दलीला नाम की एक औरत से प्यार करने लगा। तब पलिश्तियों के बड़े-बड़े लोगों ने दलीला से कहा, ‘अगर तुम शिमशोन की ताकत का राज़ पता लगाकर हमें बता सको, तो हममें से हरेक तुम्हें इनाम में चाँदी के 1,100 सिक्के देगा।’ यह सुनकर दलीला के मन में लालच पैदा हो गया। वह न तो शिमशोन से प्यार...

यहोवा ने यिप्तह की प्रार्थना सुन ली

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  यिप्तह  ने   यहोवा   से  वादा किया    (न्यायियों 10:​6-18; 11:​1-40) क्या आपने कभी किसी से ऐसा वादा किया है, जिसे बाद में पूरा करना आपको बड़ा मुश्किल लगा हो? इस तसवीर में जो आदमी दिखायी दे रहा है, उसने ऐसा ही वादा किया था। इसीलिए वह इतना दुःखी है। उसका नाम है यिप्तह। वह इस्राएल का एक बहादुर न्यायी था। यिप्तह के समय में इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना करनी छोड़ दी थी। वे फिर से बुरे काम करने लगे थे। इसलिए यहोवा ने अम्मोनी जाति के लोगों को उन पर हमला करने दिया। तब इस्राएली एक बार फिर यहोवा को पुकारकर कहने लगे: ‘हमने पाप किया है। हमें माफ कर दे और हमें बचा ले!’ इस्राएलियों को अपने किए पर पछतावा हुआ। उन्होंने यहोवा से माफी माँगी और फिर से उसकी उपासना शुरू कर दी। तब यहोवा ने एक बार फिर उनकी मदद की। इस्राएलियों ने यिप्तह को चुना, ताकि वह अम्मोनी जाति के लोगों से लड़ सके। यिप्तह चाहता था कि इस लड़ाई में यहोवा उसकी मदद करे। इसलिए उसने यहोवा से वादा किया: ‘अगर तू मुझे अम्मोनियों पर जीत दिलाएगा, तो वापस जाने पर मेरे घर से जो कोई मुझसे मिलने सबसे पहले आएगा, उसे...

300 सैनिक और गिदोन

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यहोवा ने गिदोन से एक सेना तैयार करने को कहा ( न्यायियों के अध्याय 6 से 8) क्या आप बता सकते हैं कि इस तसवीर में ये कौन लोग हैं और वे क्या कर रहे हैं? ये सब इस्राएली सैनिक हैं। वे बारी-बारी से पानी पी रहे हैं। उनके पास जो आदमी खड़ा है, वह इस्राएल का न्यायी गिदोन है। वह देख रहा है कि ये लोग कैसे पानी पी रहे हैं। ज़रा ध्यान से देखिए, ये कैसे अलग-अलग तरीके से पानी पी रहे हैं। कुछ लोग तो एकदम सिर गड़ाए पानी पी रहे हैं। मगर एक आदमी चुल्लू से पानी पी रहा है, ताकि वह अपने चारों तरफ नज़र रख सके। यह गौर करने लायक बात है। पता है क्यों? क्योंकि यहोवा ने गिदोन से कहा था कि सिर्फ उन्हीं आदमियों को चुनना, जो पानी पीने के साथ-साथ अपने चारों तरफ नज़र भी रखें। बाकियों को घर भेज देना। लेकिन यह सब किस लिए था? बात यह है कि इस्राएलियों ने यहोवा का कहना नहीं माना, इस वजह से वे फिर मुसीबत में फँस गए। उन पर मिद्यान देश के लोग बार-बार हमला करते थे और उनका जीना मुश्किल कर दिया था। तब इस्राएलियों ने मदद के लिए यहोवा से बिनती की। यहोवा ने उनकी बिनती सुन ली। यहोवा ने गिदोन से एक सेना तैयार करने को कहा। गिदोन ने...

प्रभु यीशु मसीह ने वह सब वापस कर दिया जो आदम ने खो दिया था।

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 प्रभु यीशु मसीह ने वह सब वापस कर दिया जो आदम ने खो दिया था।  आदम ने  पिता के साथ घनिष्ठ संबध खो दिया। (उत्पत्ति 3ः24) यीशु ने हमें जीवित परमेश्वर के मंदिर बनाया। (1कुरिन्थियों 3ः16) आदम ने अनन्त जीवन खो दिया और नश्वर बन गया। (उत्पत्ति 3ः19) यीशु अनन्त जीवन देने आया था। (यूहन्ना 10ः27,28) आदम अपने माथे के पसीने से जीता था। (उत्पत्ति 3ः17-19) यीशु हमें सम्पूर्ण जीवन देने आया था। यूहन्ना 10ः10) आदम ने परमेश्वर के पुत्र होने का अधिकार खो दिया। (उत्पत्ति 2ः27) यीशु ने हमें परमेश्वर के पुत्र होने का अधिकार दिया। (यूहन्ना 1ः12) आदम ने अपना याजकीय अधिकार खो दिया (उसने अपने हाथों के कामों को हमत्व दिया) उत्पत्ति 2ः15) यीशु ने हमें पृथ्वी पर राज्य करने के लिए शाही याजक बनाया। (प्रकाशित वाक्य 5ः9,10) आदम ने अपना याजकीय अधिकार खो दिया। (उत्पत्ति 1ः28) यीशु का लहू हमें याजक और राजा बनाता है। (प्रकाशित वाक्य 1ः6) आदम ने दुष्टात्माओं पर अपना अधिकार खो दिया। (उत्पत्ति 2ः15) यीशु ने हमें शैतान की सारी शक्ति पर अधिकार दिया। (लूका 10ः19) यीशु ‘‘उस को ढूँढ़ने और बचाने आया जो खो गया था। ...

मोआबी रूत

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 नाओमी और रूत  ( बाइबल की किताब रूत। )  बाइबल में रूत नाम की एक किताब है। इस किताब में रूत और नाओमी नाम की दो औरतों के बारे में बताया गया है। वे उस समय जीती थीं, जब इस्राएल में न्यायी हुआ करते थे। रूत इस्राएल जाति की नहीं, बल्कि मोआब देश की रहनेवाली थी। इसलिए उसे यहोवा के बारे में कुछ नहीं मालूम था। मगर जब उसे यहोवा के बारे में पता चला, तो वह उसे पूरे मन से मानने लगी। आखिर उसे यहोवा के बारे में किसने बताया? नाओमी ने। नाओमी एक इस्राएली थी। एक बार इस्राएल में खाने के लाले पड़ गए। तब नाओमी अपने पति और दो बेटों के साथ मोआब देश में रहने चली गयी। वहाँ नाओमी के पति की मौत हो गयी। कुछ समय बाद, नाओमी के एक बेटे ने रूत से और दूसरे ने ओर्पा नाम की लड़की से शादी कर ली। रूत की तरह, ओर्पा भी मोआब देश की रहनेवाली थी। दस साल बाद, नाओमी के दोनों बेटे भी मर गए। इससे नाओमी और उसकी बहुओं पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा! अब नाओमी क्या करती? एक दिन नाओमी ने सोचा कि वह अपने घर, अपने लोगों के पास लौट जाएगी। इस्राएल देश वहाँ से बहुत दूर था। रूत और ओर्पा उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थीं। इसलिए वे भी उस...

यहोवा ने उनकी मदद के लिए बहादुर लोगों को भेजा।

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दबोरा और याएल (न्यायियों 2:​14-22; 4:​1-24; 5:​1-31) जब इस्राएली मुसीबत में फँस गए, तो वे यहोवा को पुकारने लगे। यहोवा ने उनकी मदद के लिए बहादुर लोगों को भेजा। इन बहादुर लोगों को बाइबल में न्यायी कहा गया है। उनमें से कुछ के नाम हैं, ओत्नीएल, एहूद और शमगर। इनके अलावा, यहोवा ने इस्राएलियों की मदद के लिए दो औरतों को भी चुना। वे थीं, दबोरा और याएल। दबोरा एक नबिया थी। उसे नबिया इसलिए कहा जाता था, क्योंकि यहोवा उसे भविष्य में होनेवाली बातों के बारे में पहले से बता देता था। फिर यही बातें वह लोगों को बताती थी। इसके अलावा, वह एक न्यायी भी थी। वह पहाड़ी देश में एक खजूर के पेड़ के नीचे बैठा करती थी। वहीं पर लोग अपनी परेशानियाँ लेकर उसके पास आते थे और वह उनका हल बताती थी। उन दिनों कनान देश में याबीन नाम का एक राजा रहता था। उसके पास 900 युद्ध के रथ थे। उसकी सेना बहुत ही ताकतवर थी और उसी के दम पर उसने कई इस्राएलियों को ज़बरदस्ती अपना गुलाम बना लिया था। उसके सेनापति का नाम सीसरा था। उस समय बाराक इस्राएलियों का न्यायी था। एक दिन दबोरा ने बाराक को अपने पास बुलाया और उससे कहा: ‘यहोवा ने कहा है, “तू...

यहोशू ने सूरज को ठहरने के लिए कहा

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  गिबोनियों पर हमला (यहोशू 10:​6-15; 12:​7-24; 14:​1-5; न्यायियों 2:​8-13) ज़रा यहाँ यहोशू को तो देखिए। आखिर वह अपने हाथ ऊपर उठाए कर क्या रहा है? वह कह रहा है: ‘सूरज, ठहर जा!’ जानते हैं फिर क्या हुआ? सूरज सचमुच आसमान में ठहर गया और वह भी पूरे एक दिन के लिए! यह सब कैसे हुआ? यह यहोवा का चमत्कार था। लेकिन यहोशू ने सूरज को ठहरने के लिए क्यों कहा? जैसा कि आप जानते हैं, कनान देश के पाँच बुरे राजाओं ने गिबोनियों पर हमला करने की सोची थी। जब वे गिबोनियों से लड़ाई करने पहुँचे, तब गिबोनी घबरा गए। उन्होंने अपने एक आदमी को यहोशू के पास मदद माँगने के लिए भेजा। उस आदमी ने यहोशू से कहा: ‘जल्दी आकर हमें बचा लीजिए! पहाड़ी इलाके के सारे राजाओं ने हम पर हमला कर दिया है।’ यहोशू तुरंत अपने सैनिकों को लेकर उनकी मदद के लिए निकल पड़ा। वे पूरी रात चलते रहे। जब वे गिबोन पहुँचे, तो पता है क्या हुआ? उन्हें देखकर पाँचों राजाओं के सैनिक डर के मारे भागने लगे। इसके बाद, यहोवा ने उन राजाओं के सैनिकों पर बड़े-बड़े ओले बरसाए। यहोशू के सैनिकों को ज़्यादा लोगों को मारने की ज़रूरत नहीं पड़ी। क्योंकि बहुत-से लोग ओले गिरने...