प्रभु येशु क्यों आए?

 प्रभु यीशु क्यों आए?

  1. प्रभु यीशु खोई हुई लोगों को ढूँढ़ने और बचाने आया (लूका 19:10)
  2. प्रभु यीशु दुष्ट के कामों को नष्ट करने आया था (1 यूहन्ना 3:8)
  3. प्रभु यीशु हमें परमेश्वर के पुत्र बनाने के लिए आया था (यूहन्ना १:१२)
  4. प्रभु यीशु हमें उद्धार देने के लिए आया था (प्रेरितों के काम 4:12)
  5. प्रभु यीशु बहुतायत का जीवन देने आया था (यूहन्ना 10:10)
  6. प्रभु यीशु हमें राजकीय याजक बनाने आया था (प्रका०वा० 5:9,10; 1पतरस 2:9)
  7. प्रभु यीशु हमें मनुष्यों का मछुआरा बनाने आया था (मत्ती 4:19)
  8. प्रभु यीशु हमें पृथ्वी की छोर तक गवाह बनाने के लिए आया (प्रेरितों के काम 1:8; ; मत्ती 28:19)
  9. प्रभु यीशु दाऊद के गिरे हुए तम्बू को पुनह उठाने आया (प्रेरितों के काम 15:16)

 प्रभु यीशु के समय में मूसा या दाऊद के तम्बू या सुलैमान के मंदिर नहीं थे। केवल हेरोदेस द्वारा पुनर्निर्माण किया गया मंदिर था जिसे जल्द ही (एडी 70) रोम के जनरल टाइटस द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था जैसा कि प्रभु येशुआ ने भविष्यवाणी की थी। (मत्ती 24:1-2)

 यरूशलेम के अधिवेशन में याकूब ने आमोस 9:11,12 का उल्लेख करते हुए कहा , "इसके बाद मैं लौटूंगा, और दाऊद के निवास के खण्डहरों जो गिर गया है उसे फिर से निर्मित करुँगा, कि अन्यजाति जिन पर मेरा नाम रखा जाता है, वे प्रभु को ढूंढ़ सकें” (प्रेरितों के काम 15:16,17)

 दाऊद के समय में गिदोन में मूसा का तम्बू (1इतिहास 19:26,27) और यरूशलेम में दाऊद का तम्बू दोनों ही अस्तित्व में थे और पूरी तरह से कार्य कर रहे थे।

 लेकिन मूसा और दाऊद के तम्बू के बीच आवश्यक अंतर थे:

1. मूसा का तम्बू: मूसा द्वारा वर्णित सभी संरचनाएं जैसे वेदी, पानी का हौज, दीपक, रोटी की मेज, और धूप की स्वर्ण वेदी मौजूद थीं।

दाऊद के तम्बू में इनमें से कोई भी संरचना नहीं थी। इसमें केवल वाचा का संदूक था।

 2. मूसा का तम्बू: लेवीय याजक नियमित रूप से पशुओं आदि की बलि चढ़ाते थे।

दाऊद के तम्बू: में 4000 संगीतकार अपने होठों से परमेश्वर की स्तुति करते थे। (भजन 51:15; इब्रा. 13:15)। वे परमेश्वर को बलिदान के रूप में पछतापी दिलों की चढ़ाते थे । (भजन 51:17)

3. मूसा का तम्बू: वहाँ केवल यहूदी ही परमेश्वर की आराधना करने जाते थे जहाँ पुरोहित याजक पशु बलि चढ़ाकर उनकी सेवा करते थे।

दाऊद का तम्बू: यहूदी और अन्यजाति दोनों अपने होठों से उसकी स्तुति करके और जीवित बलिदान के रूप में पश्चाताप करने वाली आत्माओं को चढ़ाकर प्रभु की आराधना करने वहां आते थे ।यहाँ कोई पेशेवर पुजारी नहीं होते थे । (रोमियों 15:1; याकूब 5:20)

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